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अनुकम्पा री चौपई
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४२. संसारी पाणी छह ही काय के जीवों की हिंसा करते हैं । साधु उनके बीच नहीं पड़ते। बीच में पड़ने से साधु का व्रत भंग होता है । विवेकशून्य लोगों को कोई खबर नहीं पड़ती।
४३. कुछ तो कहते हैं- साधु को बीच में नहीं पड़ना चाहिए और कुछ कहते है - उन्हें बीच में पड़ना चाहिए। साधु को तो समभाव में ही रहना चाहिए। किन्तु विवेक शून्य लोक यह निर्णय नहीं कर पाते ।
४४. साधु को बीच में पड़ने का तीन करण, तीन योग से निषेध है। इसलिए वे हिंसा करते समय बीच में नहीं जाते। फिर भी गृहस्थ के बीच में पड़ने में धर्म कहते है। तब उन्होंने घर के धर्म को (आत्मधर्म ) क्यों खोया ? ।
४५. जीवों की हिंसा की जाती है- प्रशंसा, सम्मान, पूजा, जन्म-मृत्यु से मुक्ति पाने के लिए एवं दुःख को मिटाने के लिए।
४६. इन छह कारणों से छहकाय के जीवों की हिंसा की जाती है तो वह अहित का कारण बनती है । यदि जन्म-मरण से मुक्ति पाने के लिए हिंसा करता है, तो वह सम्यक्त्व रत्न खोता है।
४७. इन छह कारणों से छहकाय के जीवों की हिंसा करने से आठ कर्मों की ग्रन्थि बंध जाती है। मोह और मार (जन्म-मरण) की निश्चय में वृद्धि होती है और जीव नरकगामी बनता है ।
४८. अर्थ या अनर्थ (प्रयोजन, बिना प्रयोजन) किसी भी प्रकार की हिंसा की जाए वह अहित का कारण बनती है। धर्म के लिए हिंसा करने से बोधिबीज का नाश होता है।
४९. छह कारणों से छहकाय के जीवों की हिंसा करता है, वह इस संसार में दुःख पाता है। आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन के छ उद्देशकों में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।