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अनुकम्पा री चौपई
२८१ ५७. कोई अनार्यकर्मा-कसाई पांच सौ जीवों को प्रतिदिन मारता है। यदि आग बुझाने में मिश्रधर्म है तो कसाई को मार देने में भी मिश्रधर्म होना चाहिए।
५८. अग्नि में जलते जीवों के लिए षट्कायिक जीवों की हिंसा करके आग बुझाई जाती है। वैसे ही कसाई से मरते जीवों को देखकर कोई उन जीवों को बचाने के लिए कसाई की हत्या कर डालता है।
५९. जब अग्नि को बुझाने से जीव बचते हैं तो कसाई को मार देने से बहुत सारे जीव बच जाते हैं। अग्नि को बुझाने और कसाई को मार देने इन दोनों का लेखा बराबर समझना चाहिए।
६०. सिंह, चीता, बाघ और नाहर ये दुष्ट जीव दूसरों की हत्या करते हैं। यदि आग बुझाने से जीव बचते हैं तो उन दुष्टों को मार देने में बहुत लोगों के साता होती है।