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दूहा
१. जीव हंसा , अति बुरी, तिण माहे ओगुण अनेक।
दया धर्मी में गुण घणा, ते सुणजो आंण ववेक॥
ढाल: ९
(लय - ओ भव रतन चिंतामण सरिसो....)
१.
दया धर्म श्री जिणजी री वांणी॥ दया भगोती , सुखदाई, ते मुगत पुरी नी साइ जी। साठ नाम दया रा कह्या जिण, दसमां अंग रे माही जी।
२. पूजणीक नाम दया रो भगोती, मंगलीक नाम छे नीको जी।
जे भव जीव आया इण सरणे, त्यांने छे मुगत नजीको जी॥
३. त्रिविधे त्रिविधे छ काय न हणवी, आ दया कही जिणरायो जी।
तिण दया भगोती रा गुण , अनंता, ते पूरा केम कहवायो जी॥
४. त्रिविधे त्रिविधे छ काय जीवां नें, भय नही उपजावें तांमो जी।
ए अभयदांन कह्यों भगवंते, ए पिण दया रो नामो जी।।
५. त्रिविधे त्रिविधे छ काय मारण रा, त्याग करें मन सूधे जी।
आ पूरी दया भगवंते भाखी, तिणसूं पाप रा बारणा रूधे जी॥