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अनुकम्पा री चौपई
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१५. अरिहन्त प्रभु ने साधु को माहण ( मतहणो ) इस संबोधन से सम्बोधित किया है । तो फिर ये जीवों की हिंसा किस आधार पर करते हैं ? जिनकी भीतरी आंख नष्ट हो गई, वे आगम की ओर नहीं देखते।
१६. जीव हिंसा महादुःख देने वाली है । वह नरक गमन की साई है। प्रश्न व्याकरण सूत्र (श्रु. १, अ. १, सूत्र ३) में हिंसा के बहुत ही बुरे तीस नाम बताए हैं। हिंसा में धर्म है, यह कुगुरू की वाणी है।
१७. प्राणघात करने वाली हिंसा बुरी है । वह सब जीवों के लिए दुःखदाई है । उस जीव हिंसा में अनेक अवगुण हैं । वे पूरे कैसे बताए जा सकते हैं।
१८. कुछ लोग कहते हैं, हम जानते हैं हिंसा करने में एकान्त पाप होता है । परन्तु हिंसा किए बिना धर्म भी नहीं हो सकता। हम अपनी धर्म भावना को कैसे पूरी करें ।
१९. कुछ लोग कहते हैं, हम पंचेन्द्रिय जीवों के लिए एकेन्द्रिय जीवों की हिंसा करते हैं । केन्द्रिय जीवों को मार कर पंचेन्द्रिय जीवों का पोषण करने में बहुत बड़ा धर्म होता है।
२०. एकेन्द्रिय जीवों से पंचेन्द्रिय जीवों के पुण्य अधिक होते हैं । इसलिए एकेन्द्रिय जीवों को मारकर पंचेन्द्रिय जीवों का पोषण करने में हमें जरा भी पाप नहीं
लगता ।
२१. कुछ लोग ऐसा धर्म धारण करके बैठे हैं, वह तो कुगुरू लोगों के द्वारा सिखाया गया है। वे निःशंक होकर छहकाय के जीवों को मारते हैं और मन में हर्षित होते हैं।
२२. कुछ लोग पांच स्थावर जीवों को सहज समझकर उन्हें मारने में पाप नहीं समझते। इसलिए उन्हें निःसंकोच मारते हैं । यह कुगुरूजनों का प्रताप है।
२३. पांच स्थावर जीवों की हिंसा से दुर्गति रूप दोष बढ़ते हैं। दशवैकालिक के छ अध्ययन ( श्लो. २६, २७, २८) में जब यह कहा गया है फिर बुद्धिमान हिंसा कैसे करे ? |