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अनुकम्पा री चौपई
२७९ ४९. यदि श्रावक श्रावक के लिए ये कार्य नहीं करते हैं तो वेशधारियों के मतानुसार वे व्रतभ्रष्ट हैं। श्रावकों के संभोग को साधु-संभोग की तरह बताने वाले वे मूर्ख (नासमझ) उल्टी खींचातान में पड़ गए।
५०. श्रावक के श्रावक से संभोग है और मिथ्यात्वी से भी। वे संभोग तो अव्रत . में है। उनका त्याग करने से ही पाप से बचाव होगा।
५१. उनसे शारीरिक संबंध (संभोग) छोड़कर ज्ञानादिक गुणों की एकता रखनी चाहिए। उपदेश देकर तटस्थ रहना चाहिए। अगला व्यक्ति समझकर पाप से टलना चाहेगा तभी पाप से टलेगा।
५२. आग लगते ही यदि कोई गृहस्थ देख लेता है, वह तत्काल छह काया की हिंसा करके उसे बुझाता है, यह सावद्य कर्तव्य लोगों का है। उसमें भी वेशधारी धर्म कहते हैं।
५३. अग्नि, पानी आदि छह काय के जीवों की हिंसा हुई, उसमें थोड़ा सा पाप हुआ यह कहकर अलग हो जाते हैं, और जो जीव बचे उनका धर्म बताते हैं । आग बुझाने का संकेत करते हैं।
५४. यह पाप और धर्म की मिश्र प्ररूपणा करते हैं। हानि की तुलना में अधिक लाभ बताते हैं। जो इन वेशधारियों का विश्वास करते हैं, वे आग बुझाने के लिए दोड़ते हुए जाते हैं।
५५. इस प्रकार की दया अज्ञानी लोग बताते हैं, और छह काय के रक्षक होने का दावा करते हैं। आग बुझाने में मिश्र धर्म कहते हैं, परन्तु प्रश्न पूछने पर उन्हें उत्तर नहीं आता है।
५६. षट्कायिक जीवों की हिंसा करने में जो दसरे जीव बचे. उनका धर्म कहते हैं। इस मान्यता को सुन-सुनकर जो बुद्धिमान हैं, उन्होंने तो खोटे रूपये की तरह पहचान कर भ्रम निकाल दिया।