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संवर पदार्थ
दोहा
१. छट्टा पदार्थ 'संवर' कहा गया है। उसके प्रदेश स्थिर होते हैं । यह आश्रव द्वार का अवरोध करने वाला है। उससे कर्मों का प्रवेश रूकता है।
२. आश्रव - द्वार कर्म आने के द्वार हैं। उन द्वारों को संवर बंद करता है। आत्मा को वश में करने से संवर होता है । यह उत्तम गुण - रत्न है ।
३. संवर पदार्थ को पहचाने बिना संवर नहीं होता। सूत्रों पर दृष्टि डाल इस पदार्थ के विषय में कोई शंका मत रखना ।
४. संवर के पांच भेद हैं। उन पांचों के अनेक भेद हैं। अब मैं उनके अर्थ और भेदों को प्रकट करता हूं। उसे विवेकपूर्वक सुनें ।
ढाल : ८
भव्यजनों! संवर पदार्थ को पहचानें ।
१. नौ ही पदार्थों को यथातथ्य श्रद्धने को सम्यक्त्व निधि कहा जाता है। उसके बाद विपरीत श्रद्धा का त्याग करना प्रथम 'सम्यक्त्व संवर' है ।
२. सर्व सावद्य योगों का पापमय प्रवृत्तियों की कोई छूट रखे बिना जीवन पर्यन्त के लिए प्रत्याख्यान करना 'सर्व विरति संवर' है ।