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___ भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ३२. जिम जिम मोहणी कर्म पतलो पडे, तिम तिम जीव उजलो थाय हो। ___इम करता मोहणी कर्म खय जाये सर्वथा, जब जथाख्यात चारित होय जाय हो।।
३३. जगन सामायक चारित तेहना, अनंता गुण पजवा जांण हो।
अनंता कर्म प्रदेस उदें था ते मिट गया, तिणसूं अनंत गुण प्रगट्या आंण हो।।
३४. जघन सामायक चारितीया तणा, तणा अनंत गुण उजला प्रदेस हो।
वले अनंता प्रदेस उदे थी मिट गया, जब अनंत गुण उजलो विसेस हो।।
३५. मोह कर्म घटें छे उदें थी इण विधे, ते तों घटे छे असंखेद्य वार हो। - तिणसूं सामायक चारित ना कह्या, असंख्यात थानक श्रीकार हो।।
३६. अनंत कर्म प्रदेस उदे थी मिट गया, चारित थानक नीपजें एक हो।
चारित गुण पजवा अनंता नीपजें, सामायक चारित रा भेद अनेक हो।।
३७. जगन सामायक चारित जेहना, पजवा अनंता जाण हो।
तिण थी उतकष्टा सामायक चारित तणा, पजवा अनंत गुणां वखांण हो।।
३८. पजवा उतकष्टा सामायक चारित तणा, तेह थी सुखम संपराय नां विशेख हो।
अनंत गुणां कह्यां छे जिगन चारित तणा, ए सुखम सपंराय लों पेख हो।।
३९. छठा गुणठाणां थकी नवमां लगे, सामायक चारित जाण हो।
तिणरा असंख्याता थांनक पजवा अनंत छे, सुषम संपराय दसमों गुण ठाण हो।।
४०. सुखम संपराय चारित तेहना, थानक असंखेद्या जांण हो।
एक एक थानक रा पजवा अनंत छे, तिणनें समाय ज्यूं लीजों पिछांण हो।