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अनुकम्पा री चौपई
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६. ज्ञान, दर्शन और चारित्र इन तीनों के रूप में साधुओं ने उनके प्रति उपकार किया, वे स्वयं तरने वाले और दूसरों को तारने वाले हुए। उनको संसार-सागर से पार उतारा।
७. इन तीनों ही चोरों के समझने से मालिक का धन बचा, वह कुशल रहा, और तीनों प्रकार के हिंसक व्यक्तियों को प्रतिबोध देने से उन्होंने हिंसा का त्याग किया, जिससे जीव बच गए।
८. शीलव्रत स्वीकार किया, उससे स्त्री कुए में जा गिरी। इन सबका पाप या धर्म साधु को नहीं होता। जीवित रहे या मरे ये तीनों ही अव्रत में है।
९. धन के बचने से धन का मालिक खुश हुआ। जो जीव बच गए वे भी हर्षित हुए। साधु उन दोनों को न तारने वाले हैं और न उस स्त्री को डुबोने वाले हैं।
१०. कई मूर्ख मिथ्यात्वी ऐसा कहते हैं-जीव बचे और धन रहा वह धर्म है। उनकी श्रद्धा के अनुसार जो स्त्री मर गई, उसका पाप फिर साधु को लगना चाहिए।
११. जीव (अपने आयुबल से) जीता हैं वह दया नहीं है। मरता है वह हिंसा नहीं है। मारने वाले को हिंसा होती है। नहीं मारता है-वह दया गुणों की खान है।
१२. किसी ने नियम लिया, मैं आम, नीम आदि वृक्षों को नहीं काटूंगा। उस जीव के अव्रत घटी, पर वृक्ष खड़ा है उसका धर्म कैसे हुआ?।
१३. किसी व्यक्ति ने सरोवर, द्रह और तालाब फोड़ने का त्याग लेकर आने वाले कर्मों को मिटा दिया। सर, द्रह और तालाब भरे रहे-इसमें जिनेश्वर देव का धर्म नहीं है।
१४. किसी ने आत्मा को वश करके लड्डू, घेवर आदि मिठाई खाने का त्याग किया। उसका वैराग्य बढ़ा, परन्तु लड्डू बचे, उसका धर्म नहीं हुआ।