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अनुकम्पा री चौपई
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१९. यदि अग्नि उठती है तो लाय लगती है । त्रस और स्थावर जीव मरते हैं । गृहस्थ के पैरों के नीचे आने वाले जीवों को बचाते हैं तो जिस बर्तन से तैल बह रहा है उस पात्र को क्यों नहीं बताते ? |
२०. पैर से मरते जीवों को बताते हैं, पर तैल से मरते जीवों को नहीं बतलाते, यह तो प्रत्यक्ष ही गलत श्रद्धा दिखाई दे रही है, परन्तु आभ्यंतर आंख जिनकी खुली नहीं है, उन्हें सत्य नजर नहीं आता ।
२१. वेशधारी साधु विहार कर रहे थे, रास्ते में कुछ श्रावक उन्हें सामने मिले । वे सब मार्ग भूलकर जंगल में भटक गए। त्रस, स्थावर जीवों को रौंदते हुए चल रहे
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२२. जंगल में पथ भूले श्रावकों को देखा और मरते हुए त्रस, स्थावर जीवों । गृहस्थ के पैरों के नीचे आने वाले जीवों को यदि वे बताते हैं तो उनकी मान्यता के अनुसार श्रावकों को मार्ग भी बता देना चाहिए ।
२३. एक पैर के नीचे आने वाले जीवों को बताने से तो थोड़े ही जीव बचते हैं। जबकि उत्पथ में चल रहे श्रावकों को सही मार्ग पर लाने से तो अनेक त्रस, स्थावर प्राणी बच जाते हैं।
२४. एक पैर के नीचे आने वाले जीवों को तो अज्ञानी लोग बचाते हैं। वे खाली-बादल वाले आकाश की तरह गर्जारव करते हैं। उन्हें जंगल में श्रावक मार्ग पूछे तो मौन कर लेते हैं। बोलने में लज्जा क्यों करते हैं।
२५. थोड़ी दूरी बताने में थोड़ा धर्म होता है तो अधिक दूरी बताने में अधिक धर्म होना चाहिए। अधिक दूरी का नाम लेने पर बकवास करते हैं । उनकी गलत श्रद्धा की यह पहचान है ।
२६. कोई अंध पुरूष किसी गांव जा रहा है। आंख के बिना वह जीवों को कैसे देख सकता है? चींटियां, मकोड़े आदि जीवों को कुचलता चलता है। त्रस, स्थावर जीवों का संहार होता है ।