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अनुकम्पा री चौपई
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११. सौ घरों की दूरी पर यदि कोई संथारा करे तो तत्काल आलस्य छोड़कर उसे आमरण अनशन दिलाने के लिए जाते हैं। सौ कदम जाने से ही लाखों जीव बच जाते हैं तो फिर वहां जाकर उन जीवों को क्यों नहीं बचाते?।
१२. सौ कोस की दूरी पर भी यदि कोई दीक्षा लेने वाला है तो वे वेशधारी उसे वेश प्रदान करने के लिए बड़े ठाठ से जाते हैं। एक कोस दूर जाने में करोड़ों जीव बचते हैं तो उन जीवों को जाकर क्यों नहीं बचाते?।
१३. तब कहते हैं, ऐसा करना हमारा कल्प-आचार नहीं है। हम संसार से अलग हो गए हैं। कभी कहते हैं, हम जीव बचाते हैं। वे एक जैसी बात नहीं कहते।
१४. साधु तो अपने व्रत को रखने के लिए तीन करण, तीन योग से किसी भी जीव को नहीं सताते । संसार में जो जीव आसक्त हो रहे हैं, उनसे साधुओं का कोई लगाव नहीं है। यह श्रद्धा जिनभाषित-प्ररूपित है।
१५. उनका जीना, मरना साधु नहीं चाहते। कोई समझने योग्य होता है तो साधु उन्हें समझाते हैं। ज्ञान आदि (दर्शन, चारित्र, तप) गुण उनके हृदय में भरकर उन्हें मोक्ष नगर पहुंचा देते हैं।
१६. गृहस्थ के पैर के नीचे यदि कोई जीव आ रहा है तो वेशधारी साधु कहते हैं, हम उसे तुरंत बचाते हैं। वे यह भी कहते हैं, हम जीव रक्षा के अवसर पर सभी जीवों का जीना चाहते हैं।
१७. जो अव्रती जीवों के जीवन की कामना करते हैं, उन्होंने धर्म का परमार्थ नहीं पाया है। अज्ञानी लोगों की यह श्रद्धा कदम-कदम पर अटकती है। उसे एकाग्रचित्त से सुनें।
१८. गृहस्थ का घट फूट जाने से तैल बह रहा है। चींटियों के बिल में धारबंद बहाव के साथ जा रहा है। उस तैल के साथ बहते हुए जीव भी बीच में आ रहे हैं, और वह तैल बहता-बहत्ता अग्नि में जा रहा है।