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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ ७. पेट दुखें तलफल करें, जीव दोरा हो करें हाय विराय।
साता वपराइ सों जणा, मरता राख्या हो त्यांने होको पाय॥
८. सों जणा दुरभख काल में, अन विनां हो मरें उजाड मांहि।
कोइ एक मारें तसकाय नें, सों जणा में हो मरता राख्या जीमाय॥
९. किण हीक कालें अन विना, सों जणा रा हो जुदा हुवें जीव काय।
सहजें कलेवर मूओं पड्यों, कुसले राख्या हो त्यांने एह खवाय॥
१०. मरता देखी सों रोगला, ममाइ विण हो तें तो साजा न थाय।
कोइ ममाइ कर एक मिनख री, सों जणां रे हो साता कीधी वचाय।
११. जमीकंद खवायां पांणी पावीयां, त्यांमें था हो धर्म में पाप दोय।
तों अगन लगायां होको पावीयां, इत्यादिक हो सगलें मिश्र होय॥
१२. जो धर्म सर) वचीया तकों, हंस्या तिणरा हो लागा जाणे कर्म।
तो सातोइ सारिखा लेखवे, कहि देंणों हो सगलें पाप ने धर्म।।
१३. जो सातां में मिश्र कहे नही, तों किम आवें हो इण बोल्या री परतीत।
आप था आप उथपें, तो कुण मानें हो आ सरधा विपरीत॥
१४. जो सातांइ में मिश्र कहें, तों नहीं लागें हो गमती लोकां में वात।
मिलती कह्यां विण तेहनी, कुण करें हो कूडां री पक्षपात॥
१५. एक दोय बोलां में मिश्र कहे, सगलां में हो कहितां लाजें मूढ।
एहवो उलटों पंथ झालीयों, त्यारे केडें हो तांणे मूर्ख रूढ॥