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दोहा
१. दया-दया सभी कहते हैं वह दया धर्म सही है। जो दया की पहचान करके उसका पालन करेंगे, उनके मुक्ति निकट होगी।
२. यह दया (अहिंसा) साधु और श्रावक का पहला व्रत धर्म है। उससे आने वाले कर्म रुकते हैं और नए कर्मों का बंधन नहीं होता।
३. मन, वचन और काया से षट्कायिक जीवों की हिंसा न करे, न कराए और न करने वालों का अनुमोदन करे। इसे जिनेश्वर देव ने दया कहा है।
४. जो इस प्रकार की दया का शुद्ध हृदय से पालन करता है, वह भयंकर, विकराल संसार को तर जाता है और इसी दया की प्ररूपणा करके भव्य जीवों को संसार-सिंधु से पार उतार देता है।
५. एक लौकिक दया है उसके अनेक भेद हैं। उस दया में अनेक वेशधारी साधु भ्रमित हो रहे हैं। उसे विवेक पूर्वक सुनें।
ढाल:८
साधु का वेश धारण करके जो भूल गए हैं उनका निर्णय करें। १. द्रव्य लाय (अग्नि) लगी है और भाव लाय (रागद्वेषमय) लगी है। द्रव्य कुआ (मिट्टी से बना) है और भाव कुआ (यह संसार) है। मूर्ख मिथ्यात्वी इस भेद को नहीं जानते। संसार और मोक्ष का मार्ग तो अलग-अलग है।