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अनुकम्पा री चौपई
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४२. भगवान महावीर ने बड़े-बड़े राजाओं को प्रतिबोध देकर जिनमार्ग में स्थिर किया। भगवान ने उनको साधु एवं श्रावक का धर्म बताया, किन्तु उनको पड़ह फिरवाना नहीं सिखाया।
४३. तब श्रेणिक ने यह किससे सीखा? भगवान तो इस विषय में पूछने पर मौन रहते हैं। अपना अभिप्राय भी प्रगट नहीं करते। आज्ञा बिना की करणी (क्रिया) को निकृष्ट जानें।
४४. वासुदेव-चक्रवर्ती शक्तिशाली पुरुष होते हैं। उनकी क्रमश: तीन खण्ड़ों में और छंह खण्ड़ों में आज्ञा चलती है। यदि ढिढ़ोरा पिटवाने से ही मुक्ति मिलती तो जैन धर्म का जानकार कौन व्यक्ति इस कार्य में विलम्ब करता?।
४५. चमड़ा रंगना, दीप जलाना, स्नान करना और सातों व्यसन बिना मन के बलपूर्वक किसी से छुड़वाना, यदि इस विधि से जिन धर्म होता तो चक्रवर्ती छह खण्ड़ों में निषेधाज्ञा प्रचारित करा देते।
४६. यदि बलपूर्वक छुड़ाने में धर्म होता तो फल-फूल, अनन्तकाय वनस्पति की हिंसा आदि अठारह पापों के सेवन की निषेधाज्ञा छह खण्डों में प्रचारित करवाई जा सकती थी।
४७. तीर्थंकर जब गृहस्थावास में थे तब उनके पास तीन ज्ञान थे, संसार में उनका आदेश-निर्देश चलता था। उन्होंने कभी पड़ह नहीं फिरवाया। सूत्रों को देख लो।
४८. बलदेव आदि बड़े राजाओं ने घर छोड़ कर पाप-प्रत्याख्यान किया, परन्तु श्रेणिक की तरह न पड़ह फिरवाया और न बलपूर्वक निषेधाज्ञा लागू की।
४९. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को चित्तमुनि प्रतिबोध देने आए। उसे साधु एवं श्रावक का धर्म बताया, परन्तु पड़ह फेरने का कोई संकेत नहीं किया।