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अनुकम्पा री चौपई
२३९ ४. साधुओं को आते देख कर गृहस्थ बोले, आप पेट पर हाथ फेर दें, नहीं तो ये श्रावक मर जाएंगे।
५. तब कहते हैं - साधुओं को हाथ फेरना नहीं कल्पता है। आप जीव बचाने के लिए कहते थे, फिर बोल कर क्यों बदल रहे हैं ?।
६. गोशालक को भगवान ने बचाया, उसमें धर्म कहते हो, परन्तु सौ श्रावकों को नहीं बचाया, इससे उनकी श्रद्धा (मान्यता) का भ्रम निकल जाता है।
७. गोशालक के लिए जगत प्रभु महावीर ने लब्धि का प्रयोग किया, तो फिर सौ श्रावकों को मरते हुए देख कर तुम हाथ क्यों नहीं फेरते?।
८. भगवान को धर्म हुआ बताते हैं तो स्वयं तुमने यह रीति क्यों छोड़ी? इस प्रकार सौ श्रावकों को नहीं बचाने से उनका विश्वास कौन करेगा?।
९. गोशालक को बचाने में साक्षात् धर्म कहते हैं। यदि सौ श्रावकों को नहीं बचाते हैं तो उनकी श्रद्धा की बात बिगड़ जाती है।
१०. ऐसा कहने पर जब उत्तर नहीं आता, तब झूठी बकवास करते हैं। अब साधु गोशालक का न्याय कहते हैं। तुम ध्यान से सुनो।
११. भगवती सूत्र (शतक १६, उ. १, सूत्र २३,२४) में कहा है कि साधुओं को लब्धि नहीं फोड़ना है। पर मोह कर्म जनित राग के कारण भगवान ने गोशालक को बचाया।
१२. उस समय भगवान में छह लेश्याएं थीं। आठों ही कर्म थे। छद्मस्थ होने के कारण उस समय प्रभु चूक गए। मूर्ख लोग उसमें धर्म की स्थापना करते हैं।
१३. छद्मस्थ प्रभु चूक गए, इस बात को ही लोग मुंह पर लाते हैं, परन्तु आन्तरिक विवेक को काम में लेकर इसे कोई निरवद्य मत जानना।