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दोहा
१. लोक में मच्छ गलागल लग रही है। सबल जीव निर्बल जीव को खा रहे . हैं। कुगुरू ने कुबुद्धि के द्वारा उसमें धर्म प्ररूपित किया है।
२. मूली, जमींकद खिलाने में मिश्र धर्म कहते हैं। यह श्रद्धा पाखंडी लोगों की है। इसे स्वीकार करने से सघन कर्म बंधेगें।
३. मूला खिलाना, पानी पिलाना और नाना प्रकार के सचित्त खाना, खिलाना एवं इसका अनुमोदन करना इन तीनों की एक ही विधि है।
४. उन अज्ञानियों ने न्याय नहीं समझा। वे उत्पथ में पड़ गए हैं। करण और योगों का विघटन किया है। ये मिथ्यादृष्टि होने के लक्षण हैं।
५. ये कुहेतु लगा कर लोगों को हिंसा में धर्म बता रहे हैं। अब 'साधु' उस पर सात दृष्टान्त कह रहे हैं। उन्हें शांति से सुनें।
__६. मूला, पानी, अग्नि, हुक्का, त्रस जीव, त्रस कलेवर (शरीर) और मनुष्य-ये सात दृष्टान्त हैं।
७. इन सात दृष्टान्तों में तीन दृष्टान्त बहुत कड़े हैं। अज्ञानी उनको विपरीत समझते हैं। सम्यग् दृष्टि लोगों ने जिन धर्म को पहचाना है। वे उसे न्यायपूर्वक शुद्ध मानते हैं।
८. केशी स्वामी ने कड़े दृष्टान्त कहे तो प्रदेशी राजा ने अपनी रूढ़ि-पकड़ छोड़ दी। न्याय को समझकर वह सम्यक्त्वी हो गया। वे मूर्ख होते हैं, जो झगड़ा करते हैं।