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दोह
१. जीव दया के ऊपर तीन मौलिक दृष्टान्त हैं। आगे चाहे जितना विस्तार हो सकता है। उन्हें शान्ति से सुनें ।
ढाल : ५
हे भव्य जीवो! तुम जैनधर्म को पहचानो ।।
१. एक चोर दूसरे के धन को चुराता है। दूसरा आगे होकर चुरवाता है। तीसरा कोई उसका अनुमोदन करता है। इन तीनों के कर्तव्य बुरे (पापात्मक) हैं।
२. एक त्रसकाय के जीवों की हिंसा करता है। दूसरा उनकी हिंसा करवाता है । तीसरा मारे जाते को देख कर हर्षित होता है। इन तीनों को ही हिंसक जाने ।
३. एक व्यक्ति हर्षित होकर कुशील सेवन करता है। दूसरा सेवन करवाता है । तीसरा उस कार्य का अनुमोदन करता है। इन तीनों के ही कर्म का बंध होता है।
४. इन सब व्यक्तियों को सुगुरू मिले। प्रतिबोध देकर सही मार्ग लगाया। किन-किन व्यक्तियों का साधुओं ने उद्धार किया, उनका विवरण सहित न्याय सुनें ।
५. चोर, हिंसक और व्यभिचारी इन तीनों के लिए साधुओं ने उपदेश दिया। उन्हें पापकारी प्रवृत्तियों से हटाकर धर्म में प्रवर्तित किया। यही जिनेश्वर देव के दयाधर्म का रहस्य है।