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अनुकम्पा री चौपई
२३. जो स्वयं सकुशल रहा, उसके अव्रत नहीं घटी। दूसरे को भी तुम ऐसा ही समझो | जिसने भला समझा उसके भी व्रत निष्पन्न नहीं हुआ। ये तीनों ही शुभगति में कैसे जाएंगे ? |
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२४. जो जीता है, जो जिलाता है और जो भला जानता है, ये तीनों ही करण एक समान है। जो चतुर होंगे, वे इस बात की परीक्षा कर लेंगे और जो अज्ञानी होंगे वे खींचतान करेंगे।
२५. जो छहकाय के जीवों का जीवन, मरण चाहता है, वह तो संसार में घूमता रहेगा। किंतु जो ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इनको अच्छी तरह से स्वयं स्वीकार करेगा और दूसरों को स्वीकार करवाएगा, उसका बेड़ा पार होगा।