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नव पदार्थ
१७९ १२. तीनों लोकों में उनके सुखों की कोई उपमा नहीं मिलती। उनके सुख शाश्वत और एक धार रहते हैं। वे सुख किंचित् भी कम-ज्यादा नहीं होते।
१३-१६. (१) 'तीर्थ सिद्ध' अर्थात् जैन साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाओं में से सिद्ध हुए। (२) 'अतीर्थ सिद्ध' तीर्थ के अतिरिक्त जो सिद्ध हए, (३) 'तीर्थंकर सिद्ध' तीर्थ की स्थापना कर सिद्ध हुए, (४) 'अतीर्थंकर सिद्ध' बिना तीर्थंकर बने सिद्ध हए, (५) 'स्वयंबुद्ध सिद्ध' स्वतः समझ कर सिद्ध हुए, (६) 'प्रत्येक बुद्ध सिद्ध' किसी वस्तु को देखकर सिद्ध हुए, (७) 'बुद्धबोधित सिद्ध' दूसरों से समझकर, उपदेश सुनकर, विशेष ज्ञान प्राप्त कर सिद्ध हुए, (८) 'स्वलिंगी सिद्ध' जैन साधु के वेष में सिद्ध हुए, (९) 'अन्यलिंगी सिद्ध' अन्य साधु के वेष में सिद्ध हुए, (१०) 'गृहलिंगी सिद्ध' गृहस्थ के वेष में सिद्ध हुए, (११) स्त्रीलिंग सिद्ध' स्त्रीलिंग में सिद्ध हुए, (१२) 'पुरुषलिंग' पुरुषलिंग में सिद्ध हुए (१३) 'नपुंसकलिंग सिद्ध' नपुंसक (कृत) के लिंग में सिद्ध हुए (१४) 'एक सिद्ध' एक समय में एक ही सिद्ध हुए (१५) 'अनेक सिद्ध' एक समय में अनेक सिद्ध हुए ये सिद्धों के पंद्रह भेद हैं।
१७. सब सिद्ध ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप से निर्वाण को प्राप्त हुए हैं। इन चारों के बिना कोई सिद्ध नहीं हुआ। इन चारों को मोक्ष का मार्ग जानें।
१८. ज्ञान से जीव सर्व भावों को जान लेता है। दर्शन से स्वयं श्रद्धा कर लेता है। चारित्र से आते हए कर्मों को रोक देता है और तप से कर्मों का क्षय कर देता है।
१९. इन पंद्रह भेदों से जो सिद्ध हुए हैं, उन सबकी करनी एक सरीखी समझो। तथा मोक्ष में सभी के सुख समान हैं। वे सिद्ध अनेक भेदों से अनंत हैं।
२०. मोक्ष पदार्थ की पहचान कराने के लिए यह ढाल नाथद्वारा में सं. १८५६, चैत्र शुक्ला ४, शनिवार को की है।