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अनुकम्पा री चौपई
२०१ १९. यदि उन जीवों को उठाकर छाया में रखे तो असंयति जीव की वैयावृत्त्य/ सेवा होती है। यदि ऐसी अनुकम्पा साधु करते हैं तो उनके पांचों ही महाव्रत भंग होते हैं। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२०. ग्रीष्मकाल की तेज गर्मी के समय सौ साधु पानी के बिना मर रहे हैं। किसी ने अनुकम्पा करके अशुद्ध आहार-पानी उन्हें लाकर दिया। छहकाय के रक्षक साधुओं को बचाया। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२१. गजसुकुमाल मुनि ने नेमिनाथ भगवान की आज्ञा लेकर श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग किया। सोमिल ने आकर सिर पर अंगारे रख दिये। किन्तु मुनि ने दिल में दया लाकर अपना सिर नहीं हिलाया। यह अनुकम्पा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है।
२२. साधु के सिवाय अन्य सब जीवों की अनुकम्पा करके कोई साधु उन्हें बांधे या बंधवाये तो उस साधु को निशीथ सूत्र के १२ वें उद्देशक (बोल २) के अनुसार चातुर्मासिक प्रायश्चित प्राप्त होता है। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२३. रस्सी आदि से जो जीव बंधे हुए हैं, वे भूख प्यास आदि से अत्यन्त दुःख पा रहे हैं। अनुकम्पा लाकर यदि कोई साधु उन्हें छुड़ाता है तो उसको चातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२४. कोई कुष्टादिक व्याधियों से ग्रस्त है, यह सुनकर वैद्य अपने आप आता है। गोली, चूर्ण आदि देकर उसका रोग मिटाता है और उसे स्वस्थ कर देता है। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२५. लब्धिधारी मुनि के श्लेष्म आदि से सोलह ही रोग समूल नष्ट हो जाते हैं। मुनि यह भी जान ले, यह व्यक्ति रोग के कारण मरने वाला है। तथापि साधु अनुकम्पा करके उसका रोग नहीं मिटाते। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
२६. साधु यदि अनुकम्पा करते हैं तो उपदेश देकर उसका वैराग्य बढ़ाते हैं। यदि वह स्वस्थ मन से हाथ जोड़कर चाहे तो चारों ही आहार का त्याग करा देते हैं। यह अनुकम्पा जिनेश्वर देव की आज्ञा में हैं।