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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ १३. मांका ने आधो पाछो करें, तो माखी उड नाठी जाय हो।
साधां रे सगला सारिखा, ते तों विचें न पडें जाय हो॥
१४. मिनकी धाकल उंदर वचाय लें, माखी राखें मांका ने धकाय हो।
ओर मरता देख राखें नही, यांमें चूक पड्यों ते वताय हो॥
१५. साध पीहर वाजें छ काय ना, एक छोडावें तस काय हो।
पांच काय मरती राखें नही, तो पीहर किण विध थाय हो॥
१६. रजूहरण लेई नें उठीयों, जोरी दावें दीया छुडाय हो।
ग्यांन दर्शण चारित्र माहिलो, यारें वधीयों ते मोहि वताय हो॥
१७. ग्यांन दर्शन चारित्र तप विना, ओर मुगत रो नही उपाय हो।
छोडा मेला उपगार संसार ना, तिण थी सुद गति किण विध जाय हो॥
१८. जितरा उपगार संसार ना, ते तो सगलाइ सावध जांण हो।
श्री जिण धर्म में आवें नही, कूडी म करों तांण हो॥
१९. अग्यांनी रो ग्यांनी कीयां थकां, हवों निश्चे पेंलां रों उधार हो।
कीयों मिथ्याती रो समकती, तिण उतारीयों भव पार हो॥
२०. असंजती ने कीयों संजती, ते तो मोख तणा दलाल हो।
तपसी कर पार पोहचावीयों, तिण मेट्या सर्व हवाल हो॥
२१. ग्यांन दर्शण चारित्र में तप, यारों करे कोई उपगार हो।
आप तिरें फेलों उधरे, दोयां रों खेवों पार हो॥
२२. ए च्यार उपगार , मोटका, तिणमें निश्चें जांणों धर्म हो।
शेष रह्या कार्य संसार ना, तिण कीधां बंधसी कर्म हो॥