________________
दूहा
१. वांछे मरणों जीवणों, तो धर्म तणों नहीं
ए अणुकंपा कीयां थकां, वधे कर्म नों
अंस। वंस॥
२. मोह
भोग
अणुकंपा वधे
जे इंद्रां
करें, तिणमें तणों, अंतर
राग ने
उंडो
धेख। देख॥
दया मरतो
अणुकंपा आदरे, तिण आत्म आंणी ठाय। देखें जगत नें, सोच फिकर नही काय॥
४. कष्ट सह्या घर में थकां, पाल्या वरत रसाल।
मोह अणुकंपा श्रावकां, त्यां पिण दीधी टाल॥
५. काचा था ते चल गया, ते होय गया चकचूर।
के सेंठा रह्या चलीया नही, त्यांने वीर वखांण्या सूर॥
ढाल : ३
(लय-तुम जोयजो रे स्वार्थ ना सगा.....)
___ जीव मोह अणुकंपा नांणीए॥ १. चंपा नगरी ना वांणीया, ज्याज भर में समुद्र में जाय रे।
हिवें तिण अवसर एक देवता, त्यांने उपसर्ग कीधो आय रे।
२. मिनका सीयाल कांधे बेंसांणीया, गलें पेंहरी , रूंड माल रे।
लोही रांध सूं लीप्यो सरीर में, हाथ खडग दीसें विकराल रे।