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दोहा
१. जीने और मरने की वांछा करने में धर्म का अंश नहीं होता। इस अनुकंपा के करने से कर्म की वंश-परम्परा बढ़ती है।
२. जो मोहयुक्त अनुकंपा करता है, उसमें राग और द्वेष होता है। उससे इन्द्रियों के भोग बढ़ते हैं। दोनों का अन्तर (भेद) गहराई से देखें।
३. जो दया और अनुकंपा को स्वीकार करता है, वह आत्मस्थित हो जाता है। वह संसार में मरते हुये जीवों को देखता है, परन्तु किसी की चिन्ता नहीं करता।
४. गृहस्थ जीवन में रहने वाले श्रावकों ने भी कष्टों को सहकर अपने व्रतों का निष्ठा से पालन किया है, उन्होंने भी मोह अनुकम्पा का वर्जन किया।
____५. जो मन से दुर्बल थे वे विचलित हो गए, चूर-चूर हो गए। जो विचलित नहीं हुए, मजबूत रहे, उन्हें भगवान महावीर ने शूर कहा है।
ढाल : ३
हे जीव! मोह अनुकंपा मत कर। १. चम्पानगरी के वणिक् जहाज में माल भरकर समुद्रपथ से जा रहे थे। उस समय एक देव ने आकर उन्हें उपसर्ग (कष्ट) दिए।
२. बिल्ली और शृगाल उसके कंधे पर बिठाए हुए थे। गले में कटे सिरों की माला थी। रक्त और पीप से लिप्त शरीर था और हाथ में भयानक खड़ग दिखाई दे रहा था।