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दोहा
१. जीवों को धूप में दुःखी देखकर जो छाया में नहीं रखता, उसे साधु और श्रावक नहीं गिना जाता-ऐसा अन्यतीर्थियों का कथन है॥
२. मारना, मरवाना और मारते हुए को अच्छा समझना ये तीनों ही करण पाप है। देखने वालों को पाप लगे यह तो खोटे कुगुरू के शाप-गाली जैसा है॥
३. कर्मों के अनुसार जीव जन्मते हैं और मर जाते हैं। उनके असंयत जीवन के लिए साधु उपाय नहीं करते॥
४. जीवों को परस्पर विनष्ट होते देख कर, हम जाकर उन्हें अलग करदें, जो ऐसा कहते हैं उस पर साधु न्याय बताते हैं।
ढाल:४
भविकजनों! जैन धर्म की परीक्षा करें। १. एक छोटा तालाब मेंढक और मछलियों से भरा है, उसमें भरपूर नीलण फूलण-काई जमी है। लट, फूहरा, जलोक आदि त्रस और स्थावर जीवों से ठसाठस भरा है।
२. सड़े हुए धान का ढेर लगा है, जिसमें अथाह लटें और ईलियां हैं। सुलसुले, अण्ड़े आदि अतिमात्रा में तिलमिला रहे हैं।