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नव पदार्थ
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११. जो समस्त कर्मों से मुक्त होती है, वह कर्म रहित आत्मा मोक्ष है । मुक्त जीव इस संसार रूपी दुःख से अलग हो चुके हैं। वे निर्दोष और शीतलभूत हो गए हैं। मिथ्यात्वी उस मोक्ष को जीव नहीं श्रद्धता ।
१२. कर्मों से मुक्त होना मोक्ष है। उस मोक्ष को सिद्ध भगवान कहा जाता है । और मोक्ष को परमपद और निर्वाण कहा जाता है । उसे निश्चय ही शुद्ध निर्मल जीव मानें। मिथ्यात्वी उस मोक्ष को जीव नहीं श्रद्धता ।
१३. पुण्य, पाप और बन्ध ये तीनों अजीव हैं। कोई उनको जीव - अजीव दोनों श्रद्धते हैं। ऐसी विपरीत श्रद्धा वाले मूढ़ मिथ्यात्वी हैं। उन्होंने साधु-वेष में आत्मा को डूबो दिया है। मिथ्यात्वी पुण्य, पाप और बंध को अजीव नहीं श्रद्धता।
१४. आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये चारों नियमतः निश्चय ही जीव हैं । उनको जो जीव-अजीव दोनों मानता है, उसने विपरीत श्रद्धा से आत्मा को डूबो दिया । मिथ्यात्वी इन चारों को जीव नहीं श्रद्धता ।
१५. जिनेश्वर ने नौ पदार्थों में पांच को जीव और चार पदार्थों को अजीव कहा है। इन नौ पदार्थों का निर्णय करेगा उसे ही शुद्ध सम्यक्त्व मानें। मिथ्यात्वी जीव, अजीव को शुद्ध नहीं श्रद्धता ।
१६. जीव, अजीव की पहचान कराने के लिए यह जोड़ पुर शहर में सं. १८५७, भाद्र शुक्ला पूर्णिमा, बुधवार को रची है ।