________________
१९७
अनुकम्पा री चौपई
३. उस स्थान में उसने संसार परिसीमन किया। राजा श्रेणिक के घर आकर जन्म लिया और भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। यह ज्ञाता सूत्र के प्रथम अध्ययन में वर्णन है। यह अनुकंपा जिनेश्वर देव की आज्ञा में हैं।
४. उसने एक योजन का परिमंडल तैयार किया। वहां आकर बहुत सारे जीव बच गए। परन्तु उनके बच जाने को धर्म नहीं बताया। सम्यक्त्व आए बिना कुछ भी समझ में नहीं आ सकता। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
५. नेमिकुमार विवाह के लिए चले। पशु पक्षियों को देख कर उनके मन में दया आई। यह कार्य मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं है, क्योंकि मेरे लिए बहुत सारे प्राणी मारे जा रहे हैं। यह अनुकंपा जिनेश्वर देव की आज्ञा में हैं।
. ६. विवाह से मन बदल गया। राजीमती को ज्यों की त्यों छोड़ दी। नेमिकुमार ने बन्धन से डरकर आठ भवों (जन्म) का नाता तोड़ दिया, यह अनुकम्पा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है।
७. अपने द्वारा मरते जीवों को जानकर धर्मरूचि अणगार ने कड़वे तुम्बे का आहार किया। चींटियों की अनुकम्पा की। धन्य है धरूचि अणगार को। यह अनुकम्पा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है।
८. भगवान महावीर ने अनुकम्पा लाकर लब्धि फोड़ी। गोशालक को बचाया। उस समय भगवान छह लेश्या युक्त छद्मस्थ थे। मोहकर्म के कारण भगवान को यह राग आया। इस अनुकम्पा को सावध समझें।
९. गोशालक असंयति और कुपात्र था। उसे भगवान ने शारीरिक सहयोग दिया। यदि इसमें धर्म समझते तो सारा संसार दु:खी था, फिर ऐसा कार्य भगवान ने दुबारा क्यों नहीं किया। इस अनुकम्पा को सावद्य समझें।
१०. गोशालक ने तेजोलेश्या के द्वारा दो साधुओं को जलाकर भस्म कर दिया, वहां लब्धिधारी अनेक-अनेक साधु थे फिर उन महापुरूषों को उन्होंने क्यों नहीं बचाया? इस अनुकम्पा को सावध समझें।