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दोहा
१. अनुकम्पा को स्वीकार करके जैन धर्म में रत्न तुल्य प्राप्त सम्यक्त्व का संरक्षण करें।
२. जिस प्रकार गाय, भैंस, आक और थूहर चारों के दूध, दूध ही कहलाते हैं, उसी प्रकार अनुकम्पा के अन्तर को भी मन की जागरूकता से समझें।
३. जैसे आक का दूध पीने से आदमी मर जाता है, उसी प्रकार सावद्य अनुकम्पा करने से पाप कर्म-अशुभ कर्म का बंध होता है।
४. केवल अनुकम्पा शब्द से भ्रमित मत होना। उसके आन्तरिक स्वरूप की परीक्षा करें, जिससे आत्मिक कार्य सिद्ध हो॥
५. अनुकम्पा में तीर्थंकरों की आज्ञा होती है, अतः आगमों का अवलोकन कर सावध, निरवद्य अनुकम्पा की पहचान करें।
ढाल: १
यह अनुकम्पा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है। १. मेघ कुमार ने हाथी के भव में जिनभाषित दया को मन में धारण करके अपने पैर को ऊँचा उठाए रखा। शशक को नहीं मारा। इस क्रिया की सराहना स्वयं भगवान महावीर ने की है।
२. उसने पाप के डर से कष्ट को सहन किया। मन को दृढ़ एवं शरीर को स्थिर रखा। परन्तु दावानल में जलते जीवों को सूंड से पकड़ पकड़ कर बाहर नहीं लाया। यह अनुकंपा जिनेश्वर देव की आज्ञा में है।