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अनुकम्पा री चौपई
त्याग कीयां विण हंसा टालें, तो कर्म निरजरा थायो जी। हिंसा टाल्यां सुभ जोग वरतें छे, तिहां पुन रा थाट बंधायो जी॥
कोई व्यक्ति हिंसा का प्रत्याख्यान किए बिना उसका वर्जन करता है, उससे कर्म की निर्जरा होती है। हिंसा की वर्जना शुभ योग की प्रवृत्ति है। उस समय निर्जरा के साथ पुण्य का बंध भी होता है। पर जहां हिंसा हो वहां निर्जरा भी नहीं होती। जब निर्जरा नहीं होती तो पुण्य बंध भी नहीं होता। इस प्रकार हिंसा से जुड़ी हुई अनुकम्पा से पुण्य बंध भी नहीं हो
सकता।
इस कृति में १२ ढालों में ५४ दोहे और ४८७ गाथाएं हैं।