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दोहा
१. कई वेषधारियों के घट में जीव- अजीव की पहचान नहीं है । वे वाणी के गोले फेंकते हैं। उनमें कुछ भी सुध-बुध दिखाई नहीं देती।
२.
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उनके नौ पदार्थों और छह द्रव्यों का निर्णय नहीं है। बिना न्याय निर्णय के वे बकवास करते हैं । उसका उनके मन में जरा भी विचार नहीं होता ।
३. जिनेश्वर ने जीव और अजीव दो भेद कहे हैं। तीसरी कोई वस्तु नहीं । लोक में जो भी वस्तुएं हैं, वे सब दोनों में समा जाती है ।
४. जिनेश्वर ने नौ पदार्थ कहे हैं। जो इन नौ पदार्थों को दो पदार्थों में नहीं डालते । उनके हृदय में गहन अंधकार है । भ्रम में भूल हुए हैं।
५. वे विपरीत-विपरीत प्ररूपणा करते हैं । भोलों को इसकी कुछ भी जानकारी नहीं है । अतः नौ पदार्थों का निर्णय कहता हूं। उसे चित्त लगाकर सुनें ।
ढाल : १३
मिथ्यात्वी जीव और अजीव को शुद्ध नहीं श्रद्धता ।
१.
जीव चेतन है। अजीव अचेतन है । इन्हें स्थूल रूप से पहचानना तो सरल है। पर उनके अलग-अलग भेदानुभेद करने से उनकी पहचान अत्यन्त कठिन होती है।
२. कई जीव और अजीव इन दो पदार्थों के अतिरिक्त अवशेष सात पदार्थों को जीव अजीव दोनों मानते हैं। ऐसी विपरीत श्रद्धा वाले मूढ़ मिथ्यात्वियों ने साधु-वेष ग्रहण कर आत्मा को डूबो दिया । मिथ्यात्वी जीव अजीव को शुद्ध नहीं श्रद्धता ।