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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१
५. आठ करमां में च्यार घणघातीया, त्यासू चेतन गुणां री हुइ घात हो।
ते अंसमात्र खयउपसम रहे सदा, तिणसूं उजलो रहें अंसमात हो।।
कायक घनघातीया खयउपसम हुआ, जब कांयक उदें रह्या लार हो। खयउपसम थी जीव उजलो हुवों, उदें थी उजलो नही छे लिगार हो।।
७. कांयक कर्म खय हवें, कांयक उपसम हवें ताहि हो।
ते खयउपसम भाव में उजलो, चेतन गुण परजाय हो।।
८. जिम जिम कर्म खयउपसम हवें, तिम तिम जीव उजल हुवें आम हो।
जीव उजलो तेहीज निरजरा, ते भाव जीव छे तांम हो।।
९. देस थकी जीव उजलो हवें, तिणनें निरजरा कही भगवान हो।
सर्व उजल ते मोख ,, ते मोख छे परम निधान हो।।
१०. ग्यांनावरणी खयउपसम हूआं नीपजें, च्यार ग्यांन में तीन अगनांन हो।
भणवों आचारंग आदि दे, चवदें पूर्व रो ग्यांन हो।।
११. ग्यांनावर्णी री पांच प्रक्त मझे, दोय खयउपसम रहें , सदीव हो।
तिणसूं दोय अग्यांन रहें सदा, अंसमात्र उजल रहें जीव हो।।
१२. मिथ्याती रे तो जगन दोय अग्यांन छे, उतकष्टा तीन अगनांन हो।
देस उणों दस पूर्व उतकष्टों भणे, इतलों उतकष्टो खयउपसम अग्यांन हो।।
१३. समदिष्टी रे जगन दोय ग्यांन छे, उतकष्टा च्यार गिनांन हो।
उतकष्टों चवदें पूर्व भणे, एहवों खयउपसम भाव निधांन हो।।
१४. मतग्यांनावर्णी खयउपसम हुआं, नीपजें मत गिनांन मत अगिनांन हो।
सुरत ग्यांनावरणी खयउपसम हूआं, नीपजें सूरत गिनांन अगनांन हो।।