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दोहा
१. निर्जरा को निर्मल गुण कहा है। वह जीव का विशेष उज्ज्वल गुण है । वह निर्जरा किस प्रकार होती है । इसे विवेकपूर्वक सुनें ।
२. जीव भूख, प्यास, शीत, ताप आदि विविध प्रकार के कष्टों को भोगता है । उदय में आए हुए कर्मों को भोगने से वे अलग होते हैं ।
३. नरक आदि के दुःखों को भोगने से कर्म के घिसने से जीव हल्का होता है । यह जीव के सहज निर्जरा होती है। उसके लिए जीव ने कोई उपाय नहीं किया ।
४. जो निर्जरा का कामी नहीं होता फिर भी अनेक तरह के कष्ट सहन करता है, उसके कर्म अल्पमात्र झड़ते हैं । यह अकाम निर्जरा का विचार है ।
५. कई इस लोक के लिए चक्रवर्ती आदि पदवियों की कामना से, कई परलोक के लिए तप करते हैं । किन्तु उनके निर्जरा के परिणाम नहीं होते ।
६. कई यश महिमा बढ़ाने के लिए तप करते हैं । इत्यादि अनेक कारणों से जो तप किया जाता है, उसको अकाम निर्जरा कहा गया है।
७. जीव निर्जरा की शुद्ध करनी करता है उससे कर्म कटते हैं । जीव अल्प व ज्यादा उज्वल होता है उसे चित्त को स्थिर कर सुनें ।