________________
नव पदार्थ
९७
४२. पांच आश्रव और अविरति अशुभ लेश्या के परिणाम हैं। अशुभ लेश्या जीव है । उसके लक्षण अजीव कैसे हो सकते हैं ?
४३. जीव की पहचान उसके लक्षणों से करो । जीव के लक्षणों को जीव समझो। जो जीव के लक्षणों को अजीव स्थापित करता है, वह वीर के वचनों का उत्थापन करता है।
[-उपाय हैं । पाप
४४. जिनेश्वर ने चार संज्ञाएं कही हैं । वे भी पाप आने की हेतु1 का उपाय आश्रव है और जो आश्रव है, वह जीव द्रव्य है ।
४५. जिनेश्वर ने शुभ और अशुभ इन दोनों अध्यवसायों को आश्रव कहा है। भले अध्यवसाय से पुण्य और बुरे अध्यवसाय से निकृष्ट पाप लगते हैं ।
४६. आर्त्त और रौद्र-ध्यान को भगवान ने आश्रव कहा है। आश्रव पाप कर्म आने के द्वार हैं और जो द्वार हैं, वे जीव के व्यापार हैं ।
४७. जो पुण्य और पाप के आने के द्वार हैं, वे कर्मों के कर्त्ता हैं । कर्मों का कर्त्ता आश्रव जीव है । अज्ञानी उसको अजीव कहते हैं ।
४८. जो आश्रव को अजीव जानता है, वह मूर्ख की तरह पीपल को बांध कर खींचता है। जो कर्मों को लगाते हैं, वे आश्रव हैं और वे निश्चय ही जीव द्रव्य हैं।
४९. स्वयं भगवान ने अपने मुंह से आश्रव को रूंधना कहा है। आश्रव रूंधने से कौनसा द्रव्य रूंधता है और कौनसा द्रव्य स्थिर रहता है ?
५०. तत्त्व को विपरीत कौन जानता है और कौन उल्टी - मिथ्या खींचातान करता है ? हिंसा आदि का अत्यागी कौन होता है ? किसके आशा - वांछा लगी रहती है ?
५१. शब्दादिक भोगों की अभिलाषा कौन करता है ? कषाय भाव कौन रखता है ? मनोयोग किसके होता है ? और कौन अपनी - परायी सोचता है ?