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दुहा
१. आश्व कर्म आवानां बारणा, त्यांने विकल कहें छे कर्म।
कर्म दुवार में कर्म एकहिज कहे, ते भूला अग्यांनी भर्म।।
२. कर्म ने आश्व छे जूजूआ, जूओं जूओ छे त्यांरो सभाव।
कर्म में आश्व एकहिज कहें, तिणरो मूढ न जांणे न्याव।।
३. वले आश्व में रूपी कहें, आश्व नें
दुवार ने दुवार में आवे तेहनें, एक कहें
कहें छे
कर्म दुवार। मूढ गिवार ।।
४. तीन जोगां में रूपी कहें, त्यांने इज कहें आश्व दुवार।
वले तीन जोगां नें कहें कर्म छे, ओ पिण विकलां रें नही छे विचार।।
५. आश्व नां वीस भेद ,, ते जीव तणी परज्याय।
कर्म तणा कारण कह्या, ते सुणजों चित ल्याय।।
ढाल: ७
(लय चतुर विचार करें में देखो)
आश्व ने अजीव कहें ते अग्यांनी।। १. मिथ्यात आश्व तो उधो सरधे ते, उधो सर. ते जीव साख्यातो रे।
तिण मिथ्यात आश्व में अजीव सर) छे, त्यांरा घट माहे घोर मिथ्यातो रे।।