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नव पदार्थ
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७१. साधुओं के गुणों को शुद्ध मानो । उनको भगवान ने अरूपी कहा है । जिसने योग आश्रव को रूपी स्थापित किया है, उसने वीर के वचनों को उत्थापित किया है ।
७२. भावयोग वीर्य का ही व्यापार है इसलिए अरूपी है। स्थानाङ्ग सूत्र के तृतीय स्थानक में ऐसा कहा है । उसे जो रूपी श्रद्धता है, उसकी श्रद्धा अयथार्थ है ।
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७३. योग आत्मा जीव है । अरूपी है। उन योगों को मूढ रूपी कहते हैं। योग जीव के परिणाम हैं और परिणाम निश्चय ही अरूपी हैं ।
७४. आश्रव को जीव श्रद्धाने के लिए यह जोड़ पाली शहर में सं. १८५५, आश्विन शुक्ला द्वादशी, रविवार को की है ।