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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २. जे जे सावध कामा नही त्याग्या छे, त्यांरी आसा वंछा रही लागी रे।
ते जीव तणा परिणाम , मेला, अत्याग भाव , इविरत सागी रे।।
३. परमाद आश्व जीव नां परिणाम मेला, तिणसूं लागें निरंतर पापो रे।
तिणनें अजीव कहें , मूढ मिथ्याती, तिणरे खोटी सरधा री थापो रे।।
४. कषाय आश्व में जीव कह्यों जिणेसर, कषाय आत्मा कही छे तामो रे।
कषाय करवारो सभाव जीव तणों छे, कषाय छे जीव परिणामो रे।।
५. जोग आश्व में जीव कह्यों जिणेसर, जोग आत्मा कहीं छे तांमो रे।
तीन जोगां रों व्यापार जीव तणों छे, जोग छे जीव रा परिणामो रे।।
६. जीवरी हिंसा करें ते आश्व, हिंसा करें ते जीव साख्यातो रे।
हिंसा करें ते प्रणांम जीव तणा छ, तिणमें संका नही तिलमातो रे।।
७. झूठ बोलें ते आश्व कह्यों ,, झूठ बोले ते जीव साख्यातो रे।
झूठ बोलण रा परिणाम जीव तणा छ, तिणमें संका नही तिलमातो रे।।
८. चोरी करें ते आश्व कह्यों जिणेसर, चोरी करें ते जीव साख्यातो रे।
चोरी करवा रा परिणाम जीव तणा छे, तिणमें संका नही तिलमातो रे।।
९. मइथांन सेवे ते आश्व चोथों, मइथुन सेवें ते जीवो रे।
मइथुन परिणाम तो जीव तणा छ, तिणसूं लागे , पाप अतीवो रे।।
१०. परिग्रह राखें ते पांचमों आश्व, परिग्रह राखें ते पिण जीवो रे।
जीव रा परिणाम में मूर्छा परिग्रह, तिणसूं लागे छे पाप अतीवो रे।।
११. पांच इंद्रयां ने मोकली मेले ते आश्व, मोकली मेले ते जीव जांणो रे।
राग धेष आवे शब्दादिक उपर, यांने जीव रा भाव पिछांणो रे।।