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भिक्षु वाङ्मय खण्ड-१ २२. वले फूटी नावा रें दिष्टंत, आश्व ओळखायों भगवंत।
भगोती पहिला सतक मझारे, छठे उदेशे में विसतार।।
२३. ए तो कह्या छे
ते पूरा केम
आश्व दुवार, वले अनेक , सूतर मझार। कहवाय, सगलां रों एकज न्याय ।।
२४. आश्व दुवार कह्या ठाम ठांम, ते तो जीव तणा परिणाम।
त्यांने अजीव कहें मिथ्याती, खोटी सरधा तणा पखपाती।।
२५. कर्मी में ग्रहें ते जीव दरब, ग्रहे तेहीज छे आश्व।
ते जीव तणा परिणाम, त्यांतूं कर्म लागें छे ताम।।
२६. जीव में पुदगल रो मेल, तीजा दरब तणों नही भेल।
जीव लगावें जांण जांण, जब पुदगल लागें छे आंण ।।
२७. तेहिज पुदगल , पुन पाप, त्यारों करता , जीव आप।
करता तेहिज आश्व जाणों, तिणमें संका मूल म आंणो।।
२८. जीव , कर्मा रो करता, सूतर में पाठ अपरता।
कह्यों पहिला अंग मझारो, जीव करमां रो करतारो।।
२९. ते पहिला इज उदेशों संभालो, ए तो करता कह्यों त्रिहूं कालो।
जीव सरूप नों इधिकार, तीन करणे कह्यों करतार।।
३०. करता तेहिज आश्व तांम, जीव रा भला भंडा परिणाम।
परिणाम ते आश्व दुवार, ते जीव तणों व्यापार।।
३१. करता करणी हेतू ने उपाय, ए कर्मी रा करता कहाय।
यां सूं कर्म लागें छे आय, त्यांने आश्व कह्यों जिणराय।।