________________
नव पदार्थ
८५
५३. अस्थिर नामकर्म के उदय से जीव अस्थिर कहलाता है। इससे उसे अस्थिरबिलकुल ढीला शरीर प्राप्त होता है। अशुभ नामकर्म के उदय से जीव अशुभ कहलाता है। इस कर्म के कारण नाभि के नीचे का शरीर-भाग बुरा होता है।
५४. दुर्भग नामकर्म के उदय से जीव दुर्भागी होता है वह दूसरों को अप्रिय लगता है। किसी को नहीं सुहाता । दुःस्वर नामकर्म से जीव दुःस्वर वाला होता है। उसका कंठ उत्तम नहीं होता।
५५. अनादेय नाम कर्म के उदय से जीव के वचनों को कोई अंगीकार नहीं करता। अयश नाम कर्म के उदय से जीव अयशस्वी होता है। लोग बार-बार उसका अयश बोलते हैं।
५६. अपघात नामकर्म के उदय से दूसरे की जीत होती है और जीव स्वयं घात को प्राप्त होता है। विहायोगति नामकर्म के संयोग से जीव की चाल किसी को भी देखी नहीं सुहाती।
५७. नीच गोत्रकर्म के उदय से जीव लोक में निम्न होता है। उच्च गोत्र वाले उससे छूत करते हैं। नीच गोत्र से जीव हर्ष को प्राप्त नहीं होता। नीच गोत्र अपना किया हुआ ही उदय में आता है।
५८. पाप-प्रकृतियों की पहचान के लिए यह जोड़ श्रीजीद्वार (नाथद्वारा) में सं. १८५५ वर्ष, ज्येष्ठ शुक्ला ३, गुरुवार को की है।