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आश्रव पदार्थ
दोहा
१. पांचवां पदार्थ आश्रव है। इसको आश्रवद्वार कहा जाता है। आश्रव कर्म आने के द्वार हैं। ये द्वार और कर्म भिन्न-भिन्न हैं।
२. आश्रव द्वार जीव हैं क्योंकि जीव के भले-बुरे परिणाम ही आश्रव हैं। भले परिणाम पुण्य के और बुरे परिणाम पाप के द्वार हैं।
३. कई मूढ़ मिथ्यात्वी जीव आश्रव को अजीव कहते हैं। उन्हें जीव-अजीव की पहचान नहीं। उनके मिथ्यात्व की नींव गहरी है।
४. आश्रव निश्चय ही जीव है। श्री वीर ने ऐसा कहा है। सूत्रों में जगह-जगह ऐसी प्ररूपणा है। अब उन सूत्र-साखों को सुनें।
५. अब मैं पहले आश्रवों का पाप आने के द्वारों का यथातथ्य वर्णन करता हूं। उसे एकाग्रचित्त से सुनो।
ढाल:६
१. स्थानाङ्ग सूत्र में पांच आश्रव-द्वार कहे गए हैं। ये द्वार महाविकराल हैं। उनसे निरंतर पाप आते रहते हैं।
२. मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच आश्रव-द्वार हैं। ये पांचों निश्चय ही जीव के परिणाम हैं।