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पाप पदार्थ
दोहा
१. पाप पदार्थ हेय है । वह जीव के लिए अत्यन्त भयंकर है । वह घोर रुद्र डरावना और जीव को दुःख देने वाला है ।
२. पाप तो पुद्गल-द्रव्य है । इन पुद्गलों को जीव ने आत्म-प्रदेशों से लगा लिया है । इनसे जीव को दुःख उत्पन्न होता है । अतः इन पुद्गलों का नाम पाप कर्म है ।
३. जब जीव बुरे-बुरे कार्य करता है तब ये (पाप कर्म रूपी) पुद्गल आकर्षित हो आत्म-प्रदेशों से लग जाते हैं । उदय में आने पर इन कर्मों से दुःख उत्पन्न होता है । इस तरह जीव के दुःख स्वयंकृत हैं ।
४. उस पाप का उदय होने से जब दुःख उत्पन्न हो तो कोई रोष न करे । जीव जैसे कर्म करता है, वैसे ही फल वह भोगता है । इसमें पुद्गलों का कोई दोष नहीं है ।
५. पाप कर्म और पाप की करनी दोनों अलग-अलग हैं। मैं उन्हें यथातथ्य प्रकट कर रहा हूं। उसे चित्त को स्थिर करके सुनें ।
ढाल : ५
पाप कर्म को अन्तःकरण से पहचानें ।
१. जिन भगवान ने चार घनघात्य कर्म कहे हैं । इन कर्मों को अभ्रपटल-बादलों की तरह जानें। जिस तरह बादल चन्द्रमा को ढक लेते हैं, उसी प्रकार इन कर्मों ने जीव को आच्छादित कर उसके स्वभाविक गुणों को विकृत कर दिया है।