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४ : पाप पदार्थ
__ दुहा
१. पाप पदारथ पाडूवों, ते जीव ने घणो भयंकार।
ते घोर रूद्र छे बीहांमणो, जीव नें दुख नों दातार।।
२. पाप तो पुदगल द्रव्य छे, त्यांने जीव लगाया ताम।
तिण सूं दुख उपजे , जीव रे, त्यांरो पाप कर्म , नाम ।।
३. जीव खोटा खोटा किरतब करें, जब पुदगल लागें तांम।
ते उदें आयां दुख उपजें, ते आप कमाया काम।।
४. ते पाप उदें दुख उपजें, जब कोई म करजों रोस।
आप कीधां जिसा फल भोगवें, कोई पुदगल रों नही दोस।।
५. पाप कर्म में करणी पाप री, दो, जूआ जूआ , तांम।
त्यांने जथातथ परगट करूं, ते सुणजों राखें चित ठांम।।
ढाल: ५
(लय आ अणुकंपा जिण आगन्या में.......)
पाप कर्म अन्तकरण ओळखी नें।। १. घणघातीया च्यार कर्म जिण भाष्या, ते अभपडल वादल ज्यूं जांणों।
त्यां जीव तणा निज गुण ने विगरया, चंद वादल ज्यूं जीव कर्म ढंकाणो।।