________________
नव पदार्थ
४४. पुद्गल के द्रव्य अनन्त कहे गए हैं। उन द्रव्यों को शाश्वत समझें। भावतः पुद्गल अशाश्वत हैं। बुद्धिमान् द्रव्य और भाव पुद्गल की पहचान करें।
४५. पुद्गल के द्रव्य अनन्त कहे गए हैं। वे एक भी घटते-बढ़ते नहीं। घट-बढ़ तो भाव पुद्गलों की होती है, उसके अनेक भेद हैं।
४६. पुद्गल द्रव्य के जिन भगवान ने चार भेद कहे हैं (१) स्कंध (२) देश (३) प्रदेश (४) परमाणु । परमाणु की विशेषता यह है कि
४७. स्कंध से लगा रहता है तब तक प्रदेश होता है और वही प्रदेश जब स्कंध से छूट कर अकेला हो जाता है तब उसको परमाणु कहा जाता है। प्रदेश और परमाणु में केवल इतना-सा ही भेद है और कुछ फर्क नहीं।
४८. परमाणु और प्रदेश तुल्य हैं। उसमें जरा भी शंका न करें। परमाणु अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना होता है। उसको चतुर और विज्ञ लोग पहचानें।
४९. पुद्गल का उत्कृष्ट स्कंध सम्पूर्ण लोक प्रमाण होता है और जघन्य स्कंध अंगुल के असंख्यातवें भाग जितना होता है।
५०. अनन्त प्रदेशी स्कंध एक आकाश प्रदेश क्षेत्र में समा जाता है और वही पुद्गल स्कंध फैलकर विस्तृत हो सम्पूर्ण लोक प्रमाण हो जाता है।
५१. समष्टि (समुच्चय) रूप में पुद्गल तीन लोक में सर्वत्र व्याप्त है। कोई भी स्थान नहीं जो पुद्गल से खाली हो। वे पुद्गल लोक में इधर-उधर संचरण कर रहे हैं। वे एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते।
५२. इन चारों ही भेदों की कम-से-कम स्थिति एक समय की और अधिक से अधिक असंख्य काल की है। पुद्गलों के ये परिणाम भाव पुद्गल हैं। ।
५३. पुद्गल का स्वभाव ही ऐसा है कि अनन्त बिछुड़ते और परस्पर मिल जाते हैं। इसी कारण इन पुद्गलों के भावों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं।