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नव पदार्थ
३९. पुण्य के ही प्रताप से हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों की चतुरंगिनी सेना प्राप्त होती है। और सब तरह की ऋद्धि, वृद्धि और सुख-सम्पत्ति भी उसी के परिणाम से मिलती है।
४०. क्षेत्र (खुली भूमि), वस्तु (घर आदि), हिरण्य, स्वर्ण, धन, धान्य, कुंभी धातु, द्विपद, चतुष्पद आदि ये पुण्य के प्रताप से मिलते हैं।
४१. पुण्य से ही हीरे, माणिक, मोती, मूंगे तथा नाना तरह के रत्न प्राप्त होते हैं। बिना पुण्य के इनमें से एक की भी प्राप्ति नहीं होती।
४२. पुण्य से ही मनोनुकूल व विनीत और अप्सरा के सदृश रूपवती स्त्री मिलती है और अनेक उत्तम पुत्र प्राप्त होते हैं।
४३. पुण्य के प्रसाद से ही देवताओं के अनिर्वचनीय सुख मिलते हैं और जीव पल्योपम सागरोपम तक उन्हें भोगता है।
४४. पुण्यवान के रूप-शरीर की सुन्दरता होती है। उसके वर्ण आदि श्रेष्ठ होते हैं। वह सबको प्रिय लगता है। उसका बार-बार बोलना अच्छा लगता है।
४५. संसार में जो-जो सुख हैं उन सबको पुण्य के फल जानें । मैं कह-कह कर कितना वर्णन कर सकता हूं, बुद्धिमान स्वयं पहचान लें।
४६. पुण्य के जो ये सुख बतलाए गए हैं, वे लौकिक (सांसारिक) दृष्टि की अपेक्षा से उत्तम हैं। मुक्ति-सुखों से इनकी तुलना करने से ये बिल्कुल भी सुख नहीं ठहरते।
४७. पुण्य के सुख पौद्गलिक हैं और वे रोगयुक्त हैं। मुक्ति के सुख आत्मिक हैं। उनके लिए कोई उपमा नहीं है।
४८. पाम के रोगी को खाज अत्यन्त मीठी लगती है, उसी तरह पुण्य के उदय होने पर इन्द्रियों के शब्द आदि विषय जीव को प्रिय लगते हैं।