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नव पदार्थ
३०. जो पद्गल-वर्गणा आत्म-प्रदेशों में आकर उच्च गोत्र रूप परिणमन करती हैं और उसी रूप में उदय में आती हैं और जिससे उच्च पदों की प्राप्ति होती हैं, उसका नाम 'उच्च गोत्र कर्म' है।
३१.सबसे उच्च और जिसके कहीं भी छूत नहीं लगी हुई हैं, ऐसी जाति के जो मनुष्य और देवता हैं, उनके उच्च गोत्र कर्म है।
३२. जो-जो गुण जीव के शुभ रूप से उदय में आते हैं, उनके अनुरूप ही जीवों के नाम हैं और जीव के साथ संयोग से वैसे ही नाम पुद्गलों के हैं।
३३. जीव पुद्गल से शुद्ध होकर नाना प्रकार के अच्छे-अच्छे नाम प्राप्त करता है। जिन पुद्गलों से जीव शुद्ध होता है, उन पुद्गलों के नाम भी शुद्ध हैं।
३४. जिन पुद्गलों के संग से जीव संसार में उच्च कहलाता है, वे पुद्गल भी उच्च कहलाते हैं। इसका न्याय अज्ञानी नहीं समझते ।
३५. तीर्थंकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव तथा माण्डलिक राजा की महान पदवियां सब पुण्य के ही कारण मिलती हैं।
३६. देवेन्द्र, नरेन्द्र और अहमिन्द्र आदि की बड़ी-बड़ी पदवियां सब पुण्य के प्रमाण से मिलती हैं।
३७. पुद्गलों का शुभ परिणमन पुण्योदय से ही प्राप्त होता है। पुद्गलों के शुभ परिणमन से संसार में सुख की प्राप्ति होती है। इस तरह सारे सुख पुण्य के ही फल है, यह पहचानें।
३८. पुण्य के ही प्रताप से बिछुड़े हुए प्रियजनों का मिलाप होता है, स्वजनों का संग मिलता है और यह भी पुण्य का ही कारण है कि शरीर में रोग नहीं व्यापता।