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नव पदार्थ
४५ २१. 'आदेय वचन शुभ नाम कर्म' से जीव के वचन सबको मान्य होते हैं। 'यश कीर्ति नाम कर्म' के उदय से जगत में यश-कीर्ति प्राप्त होती है।
२२. 'अगुरुलघु शुभ नाम कर्म' से शरीर हल्का या भारी अनुभव नहीं होता है। ‘पराघात शुभ नाम कर्म' के उदय से जीव स्वयं विजयी होता है और दूसरा हारता है।
२३. 'श्वासोच्छास शुभ नाम कर्म' के उदय से प्राणी सुखपूर्वक श्वासोच्छ्रास लेता है। 'आतप शुभ नाम कर्म' के उदय से जीव स्वयं शीतल होते हुए भी दूसरा (सामने वाला) आतप (तेज) का अनुभव करता है।
२४. 'उद्योत शुभ नाम कर्म' से शरीर शीत प्रकाश युक्त होता है। 'शुभ गति नाम कर्म' से हंस जैसी सुन्दर चाल प्राप्त होती है।
२५. 'निर्माण शुभ नाम कर्म' से शरीर फोड़े फुन्सियों से रहित होता है। 'तीर्थंकर नाम कर्म' के उदय से मनुष्य तीन लोक प्रसिद्ध तीर्थंकर होता है।
२६. यौगलिक आदि कुछ तिर्यंचों की गति और आनुपूर्वी प्रत्यक्ष पुण्य की प्रकृति प्रतीत होती है। फिर जो ज्ञानी कहे वह प्रमाण है।
२७. पहले संस्थान और पहले संहनन के सिवा शेष चार संहनन और संस्थान में पुण्य का मिश्रण प्रतीत होता है। फिर जो ज्ञानी कहे वह प्रमाण है।
२८. जो-जो हाड़ पहले संहनन में है, उनमें से ही जो शेष चार संहननों में है, उनको एकान्त पाप में डालना न्याय संगत प्रतीत नहीं होता।
२९. जो-जो आकार पहले संस्थान में है, उनमें से ही जो आकार बाकी के चार संस्थानों में है, उनको भी एकान्त पाप में डालना न्याय संगत प्रतीत नहीं होता।