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THE FREE INDOLOGICAL
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-The TFIC Team.
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भारतीय ज्ञानपीठ काशी
ज्ञानपीठ - प्रन्थागार
" णाणं पयासयं"
कृपया
(१) मैके हाथोंसे पुस्तकको स्पर्श न कीजिये । जिल्दपर काग़ज़ चढ़ा लीजिये ।
(२) पत्रे सम्हाल कर उलटिये । थूकका प्रयोग न कीजिये ।
(३) निशानीके किये पते न मोदिये, न कोई मोटी चीज़ रखिये । काशिका टुकड़ा काफी है ।
(४) हाक्षियोंपर निज्ञान न बनाइये, न कुछ लिखिये ।
(५) चुली पुस्तक कटकर न रजिये, न दोहरी करके पढ़िये ।
(६) पुखकको समयपर अवश्य कोटा दीजिये ।
"दुख ज्ञानजननी है, इनकी विजय कीजिये"
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धीवीतरागाय नमः।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक।
24-
A
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सम्पादकश्रीमान् ब्रह्मचारी गेवीलालजी।
संशोधकपं० गुलजारीलालजी चौधरी-केसली (सागर)।
-AANA
प्रकाशकमूलचन्द किसनदास कापड़िया, मालिक, दिगम्बर जैनपुस्तकालय, चंदावाडी-सूरत।
4...AAAA..
द्वितीयावृत्ति]
वीर सं० २४५७
[प्रति १...
___“जैन विजय" प्रिन्टिग प्रेस-सरतमें मूलचन्द किसनदास
कापरियाने मुद्रित किया। मूल्य-१०१-८-०
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निवेदन।
करीव १७-१८ वर्ष पहिले स्वर्गीय दानवीर जैनकुलभूषण सेठ माणिकचंद हीराचंदनी जौहरी जे० पी० बम्बईने अतीव परि. श्रम व बड़ा भारी द्रव्य व्यय करके "भारतवर्षीय दिगम्बर जैन बीर्थयात्रा दर्पण" नामक ग्रन्थ तैयार कराकर प्रगट किया था, जो
तीव लोकप्रिय हुआ था, उसके बादमें उसको संक्षेप करके सीर्थयात्रा विवरण व तीर्थयात्रा दीपक नामक छोटी २ पुस्तकें जैन यात्रार्थियों के लाभार्थ अन्य भाइयों की ओरसे प्रकाशित की गई थीं। उनके बिक जानेपर तथा सेठ नीका यात्रादर्पण पुराना होनानेसे एक ऐसे ग्रन्थकी आवश्यक्ता थी जो हरएक यात्रीको अपनी यात्रामें साथीका काम देसके । ऐसे कार्यको सभी यात्राप खुद करनेवाला कोई अनुभवी व्यक्ति करें तब ही सरल व उपयुक्त ग्रन्थ बन सकता था। सौभाग्यसे ऐसे ही व्यक्ति श्रीमान् ब० गेबीलालनी मिल गये जिन्होंने सं० १९७८में कलकत्तामें चातुर्माप्त करके अपने निनी अनुभवसे अतीव परिश्रम करके 'जैन तीर्थयात्रा दर्शक' नामम पुस्तक लिखी और कलकत्ता जैन समाजने बड़ा चंदा करके उसके २५०० प्रतियां छपाई थी तथा प्रायः मुफ्त में बांटी थीं और कुछ अतियां अतीव अल्प मूल्यमें दी गई थीं। जिससे इसका बहुत प्रचार हुमा और इसकी विशेष मांग होने लगी थी। तब हमने श्रीमान ब. गेबीलालनीसे निवेदन किया कि यदि आप इस पुस्तक
सुस्तक
छपाई
गई 4
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( ३ )
संशोधन करके फिरसे लिखदें तो हम हमारे पुस्तकालय द्वारा इसको प्रगट कर देंगे। तब ब्रह्मचारीजीने यह बात स्वीकार की । और सं० १९८९ में लाडनूं में चातुर्मास ठहरकर इसको फिरसे दिखीव हमें प्रकाशनार्थ भेज दी परन्तु आपकी भाषा पुरानी होनेसे उसमें मंशोधन होनेकी व सिलसिलेवार इसकी पुनः कापी करानेकी व्यावश्यक्ता थी इसलिये प्रकट करनेमें विलंब होगया ।
फिर हमने केसली (सागर) नि० पंडित गुलजारीलालमी चौधरी जो धुलियान (मुर्शीदाबाद ) की दि० जैन पाठशाला में मध्यापक थे उनसे इसकी शुद्ध भाषा में कापी कराई । उसके बाद हमारे कार्यालय में कार्याधिकता से इसको छपाने का काम कुछ विलंबसे होसका तौभी अब यह ग्रन्थ तैयार होकर पाठकों के सन्मुख उपस्थित होता है । इस 'जैन तीर्थयात्रादर्शक' पुस्तकको यदि हिंदुस्तानभरकी जैन यात्रा या कोई भी एक यात्रा करनेवाले यात्री अपने पास रखेंगे तो यह एक मार्गदर्शकका कार्य देगी तथा यदि इस पुस्तकको मंगाकर इसका स्वाध्याय करेंगे तो घर बेटे २ हिन्दुस्तानभरके जैन तीर्थ तथा प्रसिद्ध २ स्थानोंका ऐतिहासिक परिचय मिल सकेगा ।
इस पुस्तकको विशेष उपयोगी बनानेके लिये हमने इसमें हिंदुस्थानका एक ऐसा नकशा हिंदी भाषा में बनाकर रखा है जिसके पास में रखने से हरएक यात्राका सीधा व सरल मार्ग मालूप हो सकेगा । हम तो यहांतक कहते हैं कि इस मात्र एक नक्शे को ही पास में रखने से कोई भी अपरिचित भाई अकेले ही हरएक यात्राको
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( १ )
सुलभता से कर सकेगा और किसीकी सहायता लेने की भी आवश्यक्ता नहीं पड़ेगी। इस नक्शे में हरएक सिद्धक्षेत्र, अतिशयक्षेत्र व क्षेत्रको लाल स्याही से सचित्र बता दिया है । इससे तो इसकी उपयोगिता वसुंदरता और भी अधिक बढ़ गई है, तथा यह नकशा अलग भी सिर्फ दो आने में देने का हमने प्रबंध किया है । आशा है कि “जैन तीर्थयात्रा दर्शक " की इम दूसरी आवृत्तिके प्रकट होजानेसे जैन यात्रियोंको अतीव सुलभता होगी ।
अंतमें हम इस ग्रन्थके रचयिता श्री०ब० गेबीलालजीका आभार मानते हैं कि जिन्होंने ऐसे कठिन व महत्वपूर्ण ग्रन्थको बनाया है । ब्रह्मचारीजीका चित्र व संक्षिप्त परिचय भी इस ग्रंथ में दिया गया है, जिससे ब्रह्मचारीजीकी अनुकरणीय समाजसेवा व त्यागवृत्तिका पाठकोंको पता लग सकेगा। दूसरे श्री० पं० गुलजारीलालजी चौधरी भी धन्यवादके पात्र हैं जिन्होंने इस पुस्तककी सिलसिलेवार प्रेस कोपी करदी थी। अब भी इस ग्रन्थ में कुछ त्रुटियां रह गई हों तो पाठक हमें सूचित करते रहें जिससे आगामी आवृत्ति में वे त्रुटियां ठीक होसकें ।
सूरत बीर सं० २४५६ भाश्विन सुदी ५.
}
निवेदक
मूलचन्द किसनदास कापड़िया,
प्रकाशक ।
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इम समय संसारमें अगणित मत प्रचलित हैं । और बहुतसे मनुष्य उनके भक्त देखे जाते हैं । यद्यपि वर्तमानमें किसी भी मतका मंचालक उपासक देव दृष्टिगोचर नहीं होता है बथापि उनके म्मरण-चिह्न वर्तमानमें मौजूद है, वे तीर्थोके नामसे पुकारे जाते हैं । और लोग उन्हीं स्थानोंको बड़ी भक्तिभावसे पूनते हैं।
पंसारका प्रत्येक प्राणी सुख और आराम चाहता है, कोई भी जीव दुःख एवं कष्ट नहीं चाहता है । यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि जिस मतमें आराम रहता है, उसके अनुयायी बहुत होते है। परन्तु निम मतके अंदर आरामका स्थान नहीं, किसी बातका मुलाहना नहीं, इतनेपर भी उस मतमें दृढ़ता करानेवाला कोई व्यक्ति नहीं, उस मतसे लोग जल्दी गिर जाते हैं, अपनी इच्छानुसार मतको ग्रहण करके श्रद्धानमे भ्रष्ट होकर बहुत काल तक संसारमें घूमने हैं। यह बात निश्चित है कि काल दोषके प्रभावसे संक्लेशका कारण होनेपर भी उस मतके अनुयायी भले ही कम हों, पर उम सच्चे मतकी कीमत है । उसके अनुयायी मनुष्योंका जन्म सफल है । उसके ३ दृष्टांत है. १-पत्थर बहुत होनेपर भी एक रत्न भला है।
२-मुम्ब हमारों पुत्र भी रहें परन्तु गुणी, विद्वान, धर्मात्मा एक ही सुपुत्र श्रेष्ठ है।
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( ६ )
३- हरिण व खरगोश हजारों होनेपर भी सिंह एक ही भला है।
इसी तरहसे सच्चे घर्मके अनुयायी थोड़े भी बहुत हैं। प्राचीनता एक प्रामाणिक पदार्थ है । जिस मतकी जितनी प्राचीनता होगी, वह मत उतना ही श्रेष्ठ होगा ।
वर्तमान में उस प्राचीनताके माननेवाले कम मनुष्य हों, लेकिन वह प्राचीनता उनका बहुपना, अनादि निधनपना प्रगट करती है ।
माजकल ऊपरसे अच्छे दिखनेवाले बहुत मत हैं । बड़े विद्वान् प्राचीनकालके मतको उत्तम एवं गौरवकी दृष्टिसे देखते हैं । और मुक्तकंठसे प्रशंसा भी करने लग जाते हैं। क्योंकि सचाईका महत्व उनमें भरा हुआ है । आज दिगम्बर जैन मतानुयायी कम हैं। मगर उनके प्राचीन स्थान और आदर्श तत्व उनकी सचाई ब प्रमाणताको बता रहे हैं, कोई मूर्ख लोग अज्ञानतासे भले ही निंदा करें। जैन मतके किसी भी तत्वपर आरूढ रहने से संसारके प्राणियोंका प्रत्यक्ष कल्याण होता है । यदि कोई प्राणी जैन धर्मको सम्पूर्ण रूपसे ग्रहण करें, तो क्या उसका कल्याण नहीं होगा ? अवश्य ही होगा। जैन मत अहिंसातत्वप्रधान है। उसको धारण करनेवालोंका बल संसार में कितना बढ़ गया है यह बात जगतप्रसिद्ध है। ज्यादः प्रशंसाकी जरूरत नहीं है। जैन धर्मका रहस्य शास्त्रों में वर्णित है । विद्वान् लोग उसको देख सकते हैं। और परीक्षा भी कर सकते हैं कि कौनसा धर्म अच्छा है । अनेक प्राचीन तीर्थोको देखने से जैनघमंकी ढढ़ता होसकती है।
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यही सोचकर हमने वि० सं० १९७८ में कलकत्ता चातुर्मास किया था और तब चार महिने भारी परिश्रम करके यह पुस्तक अपने प्रत्यक्ष अनुभवसे लिखी थी। फिर इसको छपाकर प्रचार करनेका विचार हुमा । तदनुसार कलकत्ता समानको छपानेको कहा तो कलकत्ताके धर्मप्रेमो भाइयोंने इसको छपाकर प्रचार करनेका निश्चय कर लिया। इसी प्रकार कलकत्ताकी उदार, दानी समाजमे प्रथमावृत्ति २९०० पुस्तकें चंदा करके छपाई । इसलिये कलकत्ता समान एवं वा. किशोरीलालजी पाटणीको जितना धन्यवाद दिया जाय थोड़ा है।
प्रथमावृत्तिकी पुस्तकें वितीर्ण होनेपर समाजमें इसकी मांग बहुत हुई । फिर वि० सं० १९८३ में गया प्रतिष्ठा हुई थी। और सं० १९८५ में फाल्गुन मासमें तीर्थराजश्री सम्मेदशिखरजी का श्री. सेठ घासीलाल पुनमचंद हुमड बम्बईवालोंने संघ निकाला था, उसमें आचार्य श्रीशांतिसागरजी महाराज (दक्षिण) भी अपने संघ सहित पधारे थे | उनके संघमें १० मुनि, ४ आर्यिका, ५० ब्रह्मचारी, १ क्षुलक व ऐलक थे। जनताकी संख्या भी एक लाख होगी। उसीसमय संघपति सेठ घासीलाल पूनमचन्दजीने जिनबिंब प्रतिष्ठा कराई थी। वहांपर मैं भी गया था। सो उक्त दोनों प्रतिछाओंमें हजारों भाइयोंने यात्राकी पुस्तककी मांग की। और कई सजनोंने पुनः प्रेरणाकी कि आपकी पुस्तक उपयोगी है, माफ उसको पुनः प्रकाशित कराईये।
इतनेमें सुरतके दिगम्बर जैन पुस्तकालयके मालिक श्री. सेठ मुलचन्द किसनदासजी कापड़िया मिले, उनसे इस बातकी
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निकर करते ही मापने यह पुस्तक अपनी ओरसे प्रकाशित कर नेको कहा और मैंने उनको स्वीकारता दी ।
इसके बाद मैंने सं० १९८५का चातुर्मास लाडनूं (मारवाड़) किया और वहां पांच माह परिश्रम करके इस पुस्तकको भारतवर्ष के जैन भाइयोंके लाभार्थ फिरसे लिखके तैयार की व मुरत प्रकाशनार्थ भेज दी थी जो अब प्रकट हो रही है। इसमें अब भी प्रमादवश
और मेरे दूर रहनेके कारण कहीं पर अशुद्धियां रह गई हों ते पाठक सुधार लेवें और उसकी सुचना भी मुझे दें ताकि वे अशु. द्धियां अगली आवृत्तिमै सुधारी नासकें। विज्ञेषु किमधिकम् ।
ममाजसेवी-ब्र गेबीलाल ।
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(९) स्व. कविवर धानतरायजी कृतचतुर्विंशतितीर्थकर निर्वाणक्षेत्र पूजा ।
खोरठा। परम पूज्य चौवीस, जिह जि थानक शिव गये। सिद्धभृमि निशदीस, मन वच तन पूजा करौं ॥१॥
ॐ हीं श्री चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि अत्र अवतर भक्तर संवौषट् । ॐ हीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि अत्र विष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्राणि पत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट् ।
अष्टक।
गीता छन् । शुचि श्रीरदधि सम नीर निरमल, कनकझारीमें भरौं । संसारपार उतार स्वामी, जोरकर विनती करौं । सम्मेदगिरि गिरनर चंपा, पावापुरि कैलासकौं। पूजों सदा चौवीस मिन, निर्वाणभूमि निवासको । ॐही चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा॥१॥ केशर कपूर सुगंध चंदन, सलिल शीतल विस्तरौं । भवतापको संताप मेटी, जोर कर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो चन्दनं निर्वपामीति। मोतीसमान अखंड तंदुळ, अमल आनंद धरि तरों। गौमुन हरौ गुन करौ हमको, जोरकर विनती करौं ॥०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अक्षतान निर्वामीति.
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(१०) शुभफूलरास सुवासवासित, खेद सब मनके हरों। दुखधाम काम बिनाश मेरो, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्योः पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा नेवज अनेकप्रकार जोग, मनोग धरि भय परिहरौं । दुखधाम काम विनाश मेरो, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपक प्रकाश उजास उज्जल, तिमिरसेती नहिं डरौं । संशयविमोहविभरम तमहर, जोरकर विनती करौं ।स०॥ ॐ हीं चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो दीपं निर्वामीति स्वाहा। शुभ धूप परम अनृप पावन. भाव पावन आचरौं । सब करमपुंज जलाय दीजे, जोरकर विनती करौं ॥स०॥ ॐ ही चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो धूपं निर्वपामीति स्वाहा। बहु फल मंगाय चढाय उत्तम, चारगतिसों निरवरौं । निहचे मुकतिफल देहु मौकौं, जोरकर विनती करौं ।।स०॥ ॐदी चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्योः फळं निर्वपामीति स्वाहा। जल गंध अच्छत फूल चरु फल, दीप धूपायन धरौं । 'घानत' करो निरभय जगतम. जोरकर विनती करौं।स०॥ ॐ चतुर्विंशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला।
सोरठा । श्री चौबीस जिनेश, गिरि कैलासादिक नमों । वीरथमहामदेव, महापुरुष निरवाणते ॥१॥
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(११)
चौपाई १६ मात्रा। नमों रिषभ कैलासपहारं । नेमिनाथ गिरनार निहारं ।। वासुपूज्य चम्पापुर वंदों । सनमति पावापुर अभिनंदौ ॥२॥ वंदौं अजित अजितपददाता । वंदौं संभव भवदुखघाता ॥ वंदौं अभिनन्दन गणनायक । वंदौं मुमति मुमतिके दायक ॥३ वंदौं पदम मुकतिपदमाघर । वंदौं मुपास आशपासाहर ।। वंदौ चन्द्रप्रभ प्रभु चन्दा । वंदौं मुविधि मुविधिनिधिकंदा ।।४ बंदौं शीतल अघतपशीतल । वंदौं प्रियांस श्रियांस महीतल ॥ वंदौं विमल विमलउपयोगी। वंदौं अनंत अनंतमुखभोगी ।।८।। वंदौं धर्म धर्मविसतारा । वंदौं शांति शांतमनधारा ।। वंदौ कुंथु कुंथुरखवालं । वंदौं अरि अरिहर गुनमालं ॥ ६ ॥ वंदौं माल काममल चूरन । वंदौं मुनिसुव्रत व्रतपूरन । वंदौं नमि जिन नमित मुरासुर । वंदौं पास पासभ्रमजरहर ॥७ वीसौं सिद्ध भूमि जा ऊपर । शिखरसम्मेद महागिरि भूपर। एक वार बंदै जो कोई । ताहि नरकपशुगति नहिं होई ॥८॥ नरगतिनृप मुर शक कहावे ।तिकुंजग भोग भोगि शिव पावै ।। विघनविनाशक मंगलकारी। गुणविलास वंदें नरनारी ॥९॥
छद पत्ता। जो तीरथ जावै पाप मिटावै, ध्यावै गावै भगति करें। ताको जस कहिये सम्पति लहिये, गिरिके गुणको बुध उचरै।।
ॐ ह्रीं श्री चतुर्विशतितीर्थकरनिर्वाणक्षेत्रेभ्यो अर्घ निर्वः ।
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विषय-सूची।
| मौजाद रिंगस
। जैपुर
माम. पृष्ठ. नाम. पृष्ट. । नाम. निर्वाणक्षेत्र पूजा १. श्रीशांतनाथ ... ८ वृन्दावन ... उपयोगी प्रश्नोत्तर १७ देवगढ़
अजमेर ... यात्राम चेनावनो १८ रतलाम
नमीराबाद रेल्वे कानन ॥ बड़नगर
नरायणा डाकखानेके नियम २५ फतीहाबाद ... प्रांतवार तीर्थोकी उर्जन मनो ... ...२७ , मलसा
सीकर मिक्षेत्रों के नाम , मम्मी पंचकल्याणक क्षेत्र २८ भोपाल भतिशयक्षत्रोंके नाम,, समसागढ़
। बांदीकुई वैष्णवोंके तीर्थ...२९ । नागदा
अवनेग कौन क्षेत्रोम कौन२ छतरपुर
आगरा फोर्ट ल गई है... २९ झालरापाटन ... "
सांभर क्षेत्र और स्टेशन ३: चांदखेड़ी क्षेत्रों का रेल्वे मार्ग ३५ कोटा ... कुचामन अंधकारका परिचय ४८ वदी ... जसवन्तगढ़ भीडर ... १ बारा ... लाडनूं उदयपुर ... : पाटनगाव ... सुजानगढ़ केशरियाजी ... . चमत्कारजी ... १८ रतनगढ़ बिजौलिया नवाई ... ७ सांगानेर
चांदनगांव ... मन्दसौर ... , जंबृस्वामी ... प्रतापगढ़ ... , मथुरा ... ,
:::::::::::::::
नावा
वह
हांसी
जावरा
भिवानी
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(१३)
नाम.
जोधपुर
सुरत
ननागिर द्रोणगिर बीनाइटावा
आकोला
नाम. पृष्ठ । नाम. पृष्ठ. बीकानेर ... ३४ अहमदावाद ... केवलारी फलोदी
पिंडाई वडाली
जबलपुर पादत्री
बड़ौदा
। कटनी ब्यावर
पावागढ़
| दमोह आवृोड गोधरा
पटेग अचलगढ़ डाकोरजी
कुण्डलपुर आवछावनी ... ३८ अंकलेवर
सागर म्हसाणा
बण्डा तारंगाहिल ... :.. बारडोली
दोलतपुर तारंगा ... " महुआ वढ़वाण ... ४१ जलगाव गजकोट जामनगर मालेगांव
मुंगावली द्वारका अंतरीक्षजी
चन्देरी गोपीतलाव शिरपुर
थोवनजी बेट द्वारका मूर्तिजापुर
बीना जेतलसर कारंजा
गुना जूनागढ़ ऐलिचपुर
बजरंगगढ गिरनार
मुक्तागिरि चांदपुर अमरावती जाखलौन
भातकुली सीहोर ... ४९ कुन्दनपुर
ललितपुर भावनगर नागपुर
टीकमगढ़ गोषा ... ...
रामटेक पालीताना ...,
छिदवाडा शबुजय ... ५१ / सिवनी ..., मिरीन
:::::::::::::::::::::::::
वेरावल सोमनाथ
...
"
देवगढ
पपौरा देलवाड़ा
...
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वरगांव
सतना
...
"
आरा
...११८
पना
...
"
...११९
inlinnalilulilu
मा. पृष्ठ. । नाम. पृष्ठ. । नाम. पृष्ठ. तालवेट
भटनी ...१३ पवाजी ... ,
सेलीमपुर झांसी ... ८६
कहावा ... , हरपालपुरा ... ,
चन्द्रपुरी ...११४ नयागांव छावनी मेण्ट
...१.१ । सारनाथ छत्रपुर
हस्तिनापुर | স্থায়ী
भरवारी ...१०२ । मोगलसराय ...१७ नगोद
कानपुर ..., पहरिया
फकोसा ...१०३ । पटना
अलाहाबाद ....९ । विहार अजयगढ़
। लखनऊ ... " पावापुर खजहग वाराबंकी ...१०६
वडग्राम मोनागिरि विन्दौर ..., गजगृही
...१२. ग्वालियर
त्रिलोकपुर ..., गुणावा ...१२२ लश्कर
......,
नवादा .... " पनियार
सम्यूघाट ...१०७ आगरा ... ९४ अयोध्या ..., । रफीगंज फीरोजाबाद ... ९५ फैजाबाद ...१०८ । कुलुहा
...१२३ शिकोहाबाद ... , । प्रयाग ..., ईसरी वटेश्वर ... , अयोध्यास्टे....१०९ नापनगर ....१२७ शोरीपुर ... सोहावल ...,
चम्पापुरी फरुखाबाद ... नौराई ..... । भागलपुर ...१२८ कायमगंज
गोडा ... ,
मंदारगिर ...१२९ कपिलाजी ... , बलरामपुर ..., गिरती ...३० हाथरस
सेटमेट ... " मधुवन ..., अलीगढ़ गोरखपुर ...११२
सम्मेदशिखर...१३१ अम्बाला ..., । नौनखार ... | कलकत्ता ...११४
। सम्य
। गया
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________________
___...१६८
गोहाटी
...,
डीमापुर
... "
(१५) मि. पृष्टः । नाम. पृष्ट. | नाम. मोगरा ...1३६ मद्रास ... ,
। बरांग जेनिया ... " रायचूर ...१४९
सोमेश्वर ...१६९ नरवाडी ...१३. आरकोनम ... ,.
तीर्थलो ..., कांजीवरम् ...१५७ हूमच नीलांजना ... " काटपाड़ी ...१५२ सीमोगा
... १ पकासवाडी ...१३८ ! माधो मंगलम् , विरूर
| तोरुमले पहाड , निटर ...१७२ मणीपुर ... , मग ...१५३ टिपटूर तनमुखिया ...१३. धनुष्य कोटि...१५४ होगहेली ...१७३ डिवरूगढ़ ... , लंका ... ,, हुबली ..., डिगबोई ... ., गमेश्वा
आरटाल परशुराम कुण्ड १४० गंगावंगा
| बेलगांव ...१७४ दार्जलिंग ...११ यरोड़ा
स्तवनिधि ...१७५ जनकपुरी ...१४२ मंगला ...१५५ जोलारपेट
कोल्हापुर ... , बेगलोर
हातकलंगडा १७६
... " नेपाल
मीरज ...१४३ मैसुर
...१७७
... " तिब्बत ...४४ गोमट्टपुग ...१५९
सांगली ... , भंदगिरि ..., कुण्डल जैनविद्रो ...१६० झरोवरी
__... " खड़गपुर
बदामी गोमहस्वामी ... , ... " कटक
प्रवणबेलगोला १६२ । बीजापुर ... . ... " भुवनेश्वर ...१४६ हासन ...१६३
बावननगर ...१८० खण्डगिरी ...१४७ मआरसीकेरी ... " सोलापुर ... , जगनाथपुरी .... मूडविद्री ...१६४ कुर्दुवाडी ...११ खुरदारोड ...१४८ | वेयर ...१६६ पंढापुर ..., बंजवाड़ा
...१८२ ... | बरकल ...१६७ । बारसी
निपाणो
... "
रकोल वीरगंज
... " ... "
कैलाश
...१९
Page #20
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________________
___(१६)
...१८
घोड
...१८५
माम. पृष्ठ. नाम. पृष्ठ. माम. पृष्ठ. भृम ...१८० साकरी ...१९२ / खण्डवा ...२०२ कुन्यलगिरि ... , धूलिया ...१९३ मोटिक्का ... एडसी ..., एलोरागड ..... ॐकारेश्वर ...२.३ धागशिव
एलोगकी गुफाऐ १९६ । सिद्धवरकूट ...',
दौलताबाद ... ,, | बडवाहा ...२.४ लातुर
ओंगाबाद ...१९६ | महेशर ......
गौमापुर ...., | मऊ छावनी ...२०५ बारामती
गौमापुरकी गुफायें ., धार दहीगांव ..., अचनंग पात्र. १९७ कुसी ...२०६ पूना
...१८६ । चिकलटाना ...१९८ ...१८६
तालनपुर ... ., बम्बई ...१८७ , परभणी ... , सुसारी ...२०७ नाषिक ... , ' उखलद
मांडूगढ ...२०९ मसरूल
बावनगजाजी २१० गजपंथा
...:, रेवा तट ___... , अंजनगिरि ...१८९ बासिम
इन्दौर ...२११ मनमाड ...१.. सिकन्दावाद...२०० बनेडा ...२१ मालेगांव ... , | माणिक्यस्वामी , हरद्वार ...२१२ सटाना ...१९१ है। बाद ...२०१ | ऋषीकेश मांगीतुंगी ..., । मनमाड जंकशन , | सत्यनारायण ..., पीपलनेर ...१९२ ) नांदगांव ..., बद्रीनाथ ...२१४
* .
पूर्णा
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(१७) उपयोगी ममोत्तर! १-तीर्थयात्रा करनेमें क्या फल, क्या फायदा होता है ?
उत्तर-पापकर्मोका नाश, पुण्यकर्मोका बंध और परम्पराय मोक्ष भी मिलता है। पुण्यसे मुखकी प्राप्ति होती है। "भाव सहित वैदै जो कोई, ताहि नरक पशुगति नहिं होई", ऐसा ही शिखर महात्म्य, पूजापाठ आदि धार्मिक ग्रंथोंमें लिखा है।
२-इसके सिवाय और कुछ भी लाभ है ?
उत्तर-देवो ! शरीर तथा उत्तम कुल धन पानेकी सफलता पात्रोंको दान, सज्जन मिलन, देशाटन, नवीन२ पदार्थोका देखना, शहरोंका देखना, बुद्धिका निर्मल होना, प्रबल कटादिकी सहनशीलता, नम्रता, त्यागादिककी बहुलता, आलस्य, परीषहादिकका विजय, धर्मायतनोंका निरीक्षण, अनाथालय, विद्यालय, बोर्डिंग, श्राविकाश्रम, कन्याशाला, विधवाश्रम देखना, पंडितोंका समागम, क्रोध, मान, माया, मत्सर मावोंका त्यागना, मुनि, मार्यिका, श्रावक, श्राविका, ब्रह्मचारी आदिके दर्शन, बड़े२ सेठ व विद्वान लोगोंका मिलाप इत्यादिक लाभ तीर्थयात्रासे होता है।
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(१८)
यात्रामें चेतावनी।
१-भाईयो ! मनुष्य जन्म, नीरोग्यशरीर, धनसम्पत्ति, उत्तम कुल आदिका पाना दुर्लभ है। जो इन सबको पाकर और घरमे प्रमादी होकर पड़ा रहता है उसका ये सब पाना व्यर्थ है।
२-गृहस्थी सम्बन्धी सब कार्य छोड़कर, शांतचित्त उदार भावोंसे शक्तिप्रमाण तप-दान त्याग करते हुए, मान, मत्सर, प्रमाद क्रोधादि कषायोंको त्यागकर शुद्ध भावोंसे तीर्थयात्रा करनी चाहिये।
३-मिडक्षेत्रोंके उपर वंदनाको जाते समय शौचम्नानादिसे निवटकर, शुद्ध वस्त्र पहिनकर, शक्तिप्रमाण सामग्री लेकर, बड़े आनंद के साथ जय२ शन करते हुए जाना चाहिये । पहाड़ ऊपर ध्यान सहित, चित्त को शांत करके बड़े उत्कृष्ट भावोंके साथ यात्रा करनी चाहिये ।
४-अपनी शक्तिप्रमाण चढ़ानेकी सामग्रोको दिनमें खूब सोधकर बढ़िया करके ले जाना चाहिये ।
५-तीर्थोपा जीर्णोद्धार, माम्मत. नवीन कारखाना, पुनारी, मुनीम का वचं ज्यादह रहता है। इससे उदार भावोंसे धनका मोह छोड़कर अच्छा भंडार नाना चाहिये । तीर्थोपर नाना तरहके दुग्यो जीव रहते हैं उनको भी दान करना चाहिये। मुनि-आर्थिका, श्रावक, श्राविका, विद्यार्थी, पंडित ऐसे तुमत्रों को यथायोग्य दान देना चाहिये।
६-गोदी, डोली आदिके मजदूरों की मजूरी ठोकर देनी चाहिये। किसीको दुःख न हो। किसीका दिल न दुखे, इस बातको ध्यान में रखें।
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(१९)
७-जिस दिन वंदनाको जाना हो, उसके पहिले दिन शुद्ध, सादा, पाचक, हल्का भोजन करो। ताकि वंदनामें कोई बाधा न होवे । पहाइपर जुना पहिनकर मत जाओ। शांतिसे आगे-पीछेकी खबर रखने हुए धीरे२ पहाइपर चढ़ो, दौड़ा भागी न करो । सामान, जेवर वगैरह समालते रहो । बालबच्चोंको होशयारीसे रक्खो। (-तीर्थोपर प्रेम व मेल मिलाप रखो। झगड़ा विसंवाद न करो।
९-तीर्थोमें अपनी शक्तिपमाण दान करना चाहिये ।
१०-निम तीर्थ, क्षेत्र, रेल, शहरमें जाना हो, वहांका सब हाल याद रखो। स्टेशन, गाड़ीका बदलना, धर्मशाला, मंदिर, चैत्यालय, आसपास तीर्थ, बानारका हाल इत्यादि सब पूछ रखना चाहिये । इससे बड़ा लाभ होता है।
११-रेलमें चढ़ने उतरते समय सब सामान सावधानीसे रखना, उठाना चाहिये । आगे पीछे यात्रियोंको देखकर बैठनाउठना चाहिये । सबल-निबलका ध्यान रखना चाहिये । कुलोकी मजूरी ठहरा लेना चाहिये । रेलमें शांति भाव रखना, चाहिये । किसीसे झगड़ा नहीं करना चाहिये। सबसे हेल-मेल रम्बना, मीठा वचन बोलना; सामान, जेवर, रुपया आदिकी सावधानी रखना । रेलमें लुचे, गुंडे, बदमाश, दगावान बहुत रहते हैं। सबसे सावधानी रखके ठगाना नहीं चाहिये। बहुत नींद भी नहीं लेना । बालबरचोंको रेलकी खिड़कीसे दूर रखना। टट्टी पेशाब रेलके संडासमें ही करना चाहिये । घड़ी२ बाहर निकलनेसे गिरने व रेल चलने का भय रहता है। रेलवेका महसुस घटता बढ़ता रहता है, सो पछते रहना चाहिये । गाड़ीके पहिले टिकट लेलेना चाहिये। टिकटका दाम खिड़
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( २० )
I
की के पास लिखा रहता है । सो तुरत देख लेना चाहिये । रेल रुपया, पैसा, नोट वगैरह विना जरूरत नहीं निकालना चाहि १२ - माता, पुत्री, बहिन, स्त्री आदिको अपरिचित आ मी पास मत बैठाओ। हर समय संभालते रहो ।
१३- रेलमें किसी भी आदमीका एकदम विश्वास मत करें अपनी चीज किमीके भरोसे मत रखो |
१४ - बहुत से आदमी रेलमें सुरतके अच्छे मालूम पड़ते मगर लुच्चे दगाबाज होने हैं ।
१९ - जिस समय धर्मशाला से रवाना हो उस समय अप सब चीजें संभाल लो | दियावत्ती, लालटेन वर हमेशा साथ रखो अगर कोई टायम गाड़ी चूक जाय तो दूसरी गाड़ीसे चले जाओ १६ - कुत्री, तांगा आदिका किराया पहिले तय कर लो जिससे पीछे झगड़ा - फिसाद न हो ।
१७ - तांगा, कुली को अकेला छोड़कर मत जाओ । साथही रहना चाहिये । नहीं तो धोका खाओगे ।
१८ - रेलवे, मोटर, तांगा, कुलीका नंबर याद रखो । टिक टका नंबर नोटबुक में लिखलो | क्योंकि यदि टिकट गुम जाय तं नम्बर बताने से चल जाता है ।
१९ - स्टेशनपर आप घंटा पहिले पहुंचना अच्छा है। इस टिकट लेने में बैठने में सामान रखने में आराम रहता है । देरी जानेमें हरएक बातकी गड़बड़ी होती है।
२० - रेलवे जाते समय प्लेटफार्मसे दूर हट जाओ । औ चकती रेकमें चढ़ना-उतरना नहीं चाहिये ।
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(११)
२१-हिन्दू तीर्थोपर जाते समय ब्राह्मण, पंडा आदिसे बचते रहो।
२२-विदेशमें ज्यादः सामान मत लेनामओ, मत खरीदो । मविक बोझामें रेलका किराया, तांगा, कुलीका देनेसे बहुत खची होगा । अगर कुछ सामान खरीदो तो पार्सलसे सीधा घर भेन दो। मगर साथमें ज्यादः बोझ मत रग्बो । २३-यात्राको नाते ममय ज्यादः वर्तन, जेवर, विस्तर मत लेनाओ।
२४-अपने पास रुपया पैसा रखो, परदेशमें सवारी मजूर, खाने-पीने का सामान सब मिल जाता है। मगर फिजूलखर्च नहीं करना चाहिये।
२५-दिनमें १-२ वार आरामसे दाल-रोटी जीम लेना चाहिये । हरएक वस्तुको हरसमय खाना ठीक नहीं है। तीर्थयात्रामें रोग आदि होनेसे विघ्न होसकता है।
२६-अधिक भूखे मत रहो, रात्रिको अधिक मत जागो नहीं तो स्वास्थ्य खराब हो जायगा । ३-४ दिन सफर करके १ दिन आराम लेना चाहिये। ऐसा करनेसे बीमारीकी शंका नहीं रहती है। रात-दिन मुमाफिरी करनेसे हैरान होना पड़ता है।
२७-टिकट लेने समय होशयारी रखनी चाहिये। जितना रुपया लगता है उतना ही पासमें रखो। खिड़की के पास वापिमी दाम संभाल लो।
२८-रेलमें चढ़ जानेपर अपने संघके आदमी तथा सामान संभाल लो, कोई छूट तो नहीं गया है।
२९-चलती रेलकी खिड़की खुली मत रखो । बालबच्चों को और सामानको खिड़कीके पास मत रखो। नहीं तो गिर नायगे।
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(२१)
३० - सरकारी महसुल (रेल किराया ) नहीं चुराना चाहि जो चुराते हैं उनको जुर्माना देना पड़ता है।
३१ - बड़े२ जंकशनपर उतरकर घूम लेना चाहिये । ग बदलनेका स्थान व समय पूछते रहना चाहिये। नहीं तो कई कहीं चला जासकता है ।
३२- रेलवे कानून से ज्यादः सामानकी विल्टी कटा ले चाहिये। ऐसा नहीं करनेसे रास्ते में बाबू लोग तंग करते हैं । उ मुफ्त में घूस देनी पड़ती है।
३३ - रुपया, दिन ज्यादः लग जाय, इसकी फिक्र मत क मगर हरएक कार्यको सोच विचारकर, बड़ी सावधानीसे पूछकर करं ३४ - जहां पर पूजनकी सामग्री शुद्ध मिले वहींसे २-४ लेकर अपने पास रखलो, खूब शोध वीन लो क्योंकि कहीं पर सामा नहीं मिलती है अथवा दूना, ड्योढा दाम देना पड़ता है ।
३१ - रेलमें सफर करते हुए किसी क्षेत्रपर किसी ग्राम जानेकी आवश्यक्ता हो तो उतर पड़ना चाहिये ।
३६ - अगर कभी भूलसे रेलमें कोई कीमती सामान रह जा तो डब्बाका नम्बर याद होनेपर मिल सकता है। जिस स्टेशन तुमक याद आवे वहांके स्टेशन मास्टरको सूचना देकर तार दिला दो अगर वहां पर वह चीज होगी तो उसको वहांके स्टेशन मास्टर य गार्ड रख सकते हैं। पर डब्बाका नंबर याद होना चाहिये ।
३७- अगर किसी तरहसे अपने संघका आदमी मागे-पीछे रह जावे, तो तार देकर उतार देना चाहिये। फिर अपनेको दूसरे टायम में जाकर मिलना चाहिये ।
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(१३)
३८ - किसी कारण से टिकट न ले पाया हो तो गार्डको कहकर बैठ जाना चाहिये। आगेकी स्टेशन या गार्डसे टिकट लेलेना चाहिये । ३९ - किसीके पास आगे-पीछेकी स्टेशनका टिकट हो, जहां पर उतरना हो वहां पर स्टेशन बाबूको आगेका किराया चुका देना चाहिये । इसमें कुछ भी हर्ज नहीं है ।
४० - अगर अपने पास पेसीअर गाड़ीका टिकट हो । और डाक या एक्सप्रेस में जाना हो तो बाबूसे टिकट ठीक करा लें।
४१ - भूलसे या रात्रिके सोनेसे आगेकी स्टेशनपर चला जाय तो बाबूको कहकर लौटती गाड़ीसे वापिस आना चाहिये । मगर जिस स्टेशन से लौटकर आवोगे वहांसे टिकट लेना होगा ।
४२ - तीर्थ के मैनेजर के काम में कुछ त्रुटि मालूम हो तो विझीटबुक में बता देना चाहिये ताकि वह सुधार दी जासके ।
४३ - जहां पर पाठशाला, अनाथालय आदि हो वहांपर दान अवश्य देना चाहिये | दान देकर रसीद हरजगह से लेलेनी चाहिये।
४४ - इस पुस्तक में दिये गये हिन्दुओंके तीर्थं अवश्य देखना चाहिये, पुण्यबंधको या घर्माभिलाषासे नहीं । व अपने बड़े तीर्थों में ४ - ६ दिन रहकर सुखसे वंदना करना चाहिये ।
४५ - अगर अपनी स्त्रियां रजःस्वला होजांय तो घबड़ाना नहीं चाहिये । न पापका उदय समझना चाहिये । यह उनका स्वाभाविक धर्म है । शुद्धिके बाद यात्रा करनी चाहिये ।
४६ - तीर्थक्षेत्रों में रहकर धर्मध्यानपूर्वक समय विताना चाहिये । गप्पों या ताश में नष्ट नहीं करना। अगर कोई काम नहीं होवे तो शास्त्रस्वाध्याय करना चाहिये ।
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(१४) जाननेयोग्य रेलवे कानून ।
१-कुछ कानून वतौर 'यात्रामें चेतावनी' के नं० ३६२ ४१ तक लिग्वे गये हैं उनको समझना चाहिये।
२-सौ मीलसे अधिक दूर जानेवाला यात्री, सौ मील जाक २४ घंटे विश्राम करके फिर उसी टिकटसे जासकता है । जैसे देहली बंबईसे (६५ मील दूर है। यदि यात्री बीचमें बड़ौदा, सुरत, अहमदावाद ठहरना चाहे तो इकट्ठी टिकट में ठहर सकता है । भलगरमें नहीं।
३-रेलका किराया व समय बदलता रहता है । लम्बी सफरका एक टिकट लेनेसे फायदा होता है । भिन्नर लेनेसे किराया ज्यादः व तकलीफ भी ज्यादः होती है।
४-रेलवे में ४ दर्ने होते हैं, फर्ट, सेकेण्ड, इन्टर व थर्ड | थर्ड में किराया कम लगता है व ज्यादे ठहरती है ।
५-यात्रियोंको नीचे लिखे हुए बगेजसे अधिक होनेपर किराया लगता है। इन्टर क्लासमें २५ सेर (बंगाली) लेना सकता है। और थर्ड क्लासमें भी २५ सेरका नियम है। पहले व दुसरे दमें इससे दुना तिगुना लेना सकते हैं।
६-तीन वर्ष तक के बच्चे का किराया माफ है । बादको १२ वर्ष तक आधा लगता है। आगे पूरा लगता है ।
-एक जनाना डिव्या रहता है उसमें मदं नहीं बैठ सकता है। परंतु मर्दके डिब्बेमें जनानाको बैठा सकते हैं।
(-अपना संघ होनेपर डिव्या या पूरी गाड़ी रिगर्व करा
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( २५ )
सकते हैं । परन्तु इसमें खर्च दूना या ड्योढ़ा लगता है । एक दो सीट भी इन्टर या सेकन्डमें रिझर्व हो सकती है।
९ - टिकट लेनेके बाद यदि किसी कारण से नहीं जासकें तो उसी समय टिकटको वापिस देकर दाम वापिस लेना चाहिये । तुर्त न दें तो पीछे भी दाम वापिस मिलते हैं ।
१०- गाड़ी चूकनेपर बाबूको कहना चाहिये । और दूमरी ट्रेन से जाना चाहिये । घबड़ाओ मत ।
११- कानून से ज्याद : समान होनेपर लगेज करालो अन्यथा रास्ते में बाबुओं द्वारा आपत्ति उठानी होगी ।
१२ - अपने थर्ड क्लाम पैसनरकी टिकट होनेपर टिकट बदलाकर हरएक दर्जे में जासकते हैं ।
डाकखाने के नियम |
तार ।
१ - तार दो तरह से भेजा जाता है । १ ऑर्डिनरी - इसमें १२ शब्द और III) लगता है । फिर फी शब्द एक आना । २ - अर्जेंट - इसमें १ ||) लगता है । फिर फी शब्द दो आने । " जवाबी तार " भी III) या १||) अधिक देनेपर दे सकते हैं । २ - तार सब भाषा में लिया जाता है । पर लिपि इंग्लिश होनी चाहिये ।
३ - जहांपर हमको तार भेजना है। अगर वहां तारघर न हो - अन्यत्र हो तो वह तार डाकसे चिट्टियोंकी तरह की माईल
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(२६) एक आना देनेपर पहुंचा दिया जाता है। तार ओफिससे ६ मीलतक तो तार मुफ्त लेजाते हैं।
४-तारसे रुपया भी आता है। इसमें तारका ॥) अधिक लगता है । जैसे किसीको १००) भेजना है तो II) तार फीस व १) रुपया मनियार्डर फीस ऐसे १.॥) देने होंगे।
चिट्ठियाँ। १-ग्वुली चिट्ठी, लेखादि ५ तोलातक आपा आनाकी टिकटमें जाते हैं । व १० तोलातक एक आना लगता है।
२-बंद चिट्ठी, लिफाफा १ मानामें ढाई तोलातक जाता है।
३-आघ आनेका पोष्टकार्ड सब जगह जाता है । पतेके माधे हिस्सेसे ज्यादेपर लिखनेपर बैरंग होजाता है।
___४-चिट्ठी आदिका पता मुकाम, डाकखाना, निला साफर लिखना चाहिये।
५-बैरंग पोष्टकार्ड नहीं जाता है । केवल बंद लिफाफा ही जाता है।
६-वी० पी० सभी चीजोंकी होती है। सिर्फ मनियार्डरकी फीस ज्यादः देना होती है।
७-हिफाजतसे चीन भेननेके लिये वीमा किया जाता है। १००) तक) फीस फिर प्रत्येक सौपर दो आने देने पड़ते हैं। रनीस्ट्री चार्म दो माने तो देने ही पड़ते हैं।
-डाक पार्सल ५ सेर बंगाली (१०० तोला ) से ज्यादे बमनका नहीं लिया जाता है।
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( १७ )
९ - पोष्टकार्ड या लिफाफाकी रजिस्ट्री करनेसे सादीका =) और जवाबीका ) लगता है ।
१० - मनियार्डर की फीस १ रुपया से १० तक ), ११ ) से २५) तकका चार आना, आगे १०० ) पर १) लगता है ।
प्रांतोंके नाम और उनके तीर्थों की सूची ।
क्षेत्र सं०
नाम प्रांत
९ - शोलापुर प्रांत में
१० - कोल्हापुर प्रांत में
११ - बंगाल प्रांतमें
नाम प्रांत
१ - मेवाड़ में
२ - मालवा में
३- बुन्देलखड में
४ - नागपुर में
५ - मध्यप्रदेश में
६ - गुजरात प्रांत में
७ - बंबई प्रांत में
८- कर्णाटक प्रांत में
६
१ - श्री कैलासजी
२- श्री सम्मेदशिखर भी
गिरनारजी
१३
२७
३ - श्री
४ - श्री चंपापुरजी
५ - श्री पावापुरजी
१२
११
१३
११
१२ - मद्रास प्रांतमें
१३ - जयपुर प्रांतमें
१४ - मारवाड़ प्रांतमें
१५ - देहली प्रांत में
१०
कुल १६ प्रांतों में १४९ तीर्थ हैं ।
१६ - आगरा प्रांत में
श्री सिद्धक्षेत्रोंके नाम |
क्षेत्र सं०
१०
४
११
३
३
५
१२- श्री पटना गुलजार बाग
१३- श्री सिद्धवरकूटनी
१४ - श्री गजपंथाजी
११ - श्री द्रोणगिरिजी
१६- श्री सोनागिरिजी -
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(२८)
६-श्री पावागढ़नी १७-श्री गुणावाजी ७-श्री बड़वानीनी १८-श्री खण्डगिरिनी ८-श्री मांगीतुंगीनी १९-श्री तारंगाजी ९-श्री मुक्तागिरिजी २०-श्री मथुग-चौरामी १०-श्री नैनागिरिनी २१-श्री रेवातीर ११-श्री कुंथलगिरिनी इस प्रकार कुल २१ मिडक्षेत्र हैं।
पंचकल्याणक क्षेत्र । सौरिपुरी, अयोध्या, बनारस, सिंहपुरी, चंद्रपुरी, सेंटमेंट, रत्नपुरी, मोहावल, पटना, कुलुहा पहाड़, रानगृही, कुंभोज, हारिकापुरी, कंपिलानी, प्रयागराज, कौशांबोपुरी, भरवारी, खुकुन्दा, कुंडलपुर, चंपापुरी, मिथिलापुरी, अहिक्षेत्र, हस्तिनापुर व भेलसा ।
___अतिशयक्षेत्रोंके नाम। __कुलपाक (माणिक्यस्वामी), करेड़ा पार्श्वनाथ, चूलेश्वर, एरोडा रोड, उखलद, अंतरीक्ष पार्श्वनाथ, रामटेक, कुंडलपुर, बालावेट, बीनानी, मैनबद्री, गोम्मटपुग, नेर (नागठाना), स्त्वनिधि, सनौद, चमत्कारजी, झालरापाटन, वारागांव, बजरंगगढ़, बाबानगर, वेलगांव, लाडनूं, चांदनगांव, केशवजी पाटनगांव, आप्टे विघ्नेश्वर पार्धनाथ, भिंडरगांव, बिनोलिया पार्श्वनाथ, बनेड़ा, कचनेरा, तालनपुर, कौनी, भातकुली, खनराहा, पपौरा, सुमेका पहाड़, राजगृही, कारकल, बेनूर, धाराशिव, दहीगाव, चंदेरी, मालथौन, सी न, मूलबद्री, कुंडलक्षेत्र, महुमा, अंककेश्वर, चांदखेड़ो, मक्सी पार्श्वनाथ, जयपुर।
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(२९)
वैष्णवोंके तीर्थ। औकारमहारान, भुवनेश्वर, गिरनार, द्वारकापुरी, रामेश्वर, जगन्नाथपुरी, वैजनाथ महादेव, सोमनाथ, वटेश्वर, धनुष्यकोट, पुष्कर, नाथद्वारा, जनकपुरी, गया, मथुरा, वृन्दावन, पूर्णा, पर्वणी, हरहार, बद्रीनाथ, सत्यनारायण, कसंख्यादेवी, काकोरी रोड़, चारभुना, रूपनी, नाशिक, पंढरपुर, त्रिम्बक, काशो, प्रयाग, उज्जैन ।
कौन शहरों में कोनर रेल गई है। (1) जी० आई० पी० रेलवे, G. I. P. Ry. I
बंबई, नाशिक, मनमाड़, नांदगांव, चालीशगांव, धुलिया, जलगांव, भुषावल, मलकापुर, अकोला, सीरपुर (अंतरीक्ष पार्श्वनाथ), मनमाड़ ( मांगीतुंगी), नाशिक ( गनपंथा), मूर्तिजापुर (कारंना), एलिचपुर (मुक्तागिरि ), बड़नेरा-धामणगांव ( कुंदनपुर ), दमोह (कुंडलपुर), सागर (बंडा, नैनगिर, द्रोणगिरि), भोपाल (समसागढ़), मकसी (मक्सी पार्श्वनाथ), उज्जैन (भद्रीलापुरी), बीना ईटावा, गुना (बजरंगढ़), वारा, जाखलौन (देवगढ़ ), ललितपुर ( टीकमगढ़, पपौरा, चंदेरी, वन), देलवाड़ा (स्त्रीरौन शांतिनाथ ), तालवेट (पवा), झांसी (कुरगमा), हरपालपुर (छत्रपुर, खनराहा), सोनागिर सिद्धक्षेत्र, ग्वालियर ( लश्कर, पन्नीहार), मोरेना, आगरा, पूना, शोलापुर (आर्ट विघ्नेश्वर), घोंड बारामती (दहीग्राम), होणसकगी क्षेत्र, कुर्दुवाडी (वारसीटाऊन, कुंथलगिरि), ऐडसी (उस्मानाबाद), तेर, लातूर, देहली, हाथरस, अलीगढ़, मंबाला (परिक्षेत्र), खुर्मा,. काबपुर, हमहाबाद।
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(१०)
(२) एम. एस. एम. रेलवे, M.S. M. Ry.
मद्रास, जोलारपेढ़, बेंगलौर, पारसीकेरी, मंदगिरि (जैनबद्री) हांसन, हीरालेल्ली, तुमकुर, मैसूर, पूना, कुंडलरोड (झरीवरीपार्श्वनाथ ), मीरज, सांगली, शेडवाल, कोल्हापुर, हातकलंगड़ा (बाहुबली पहाड़), निपाणी (म्तवनिधि), बेलग्राम, वीरूर, शिवमोगा, तीर्थल्ली (हुमंच पद्मावती ), सोमेमर, वरांग, कारकल, भूलबद्री, वेणार, मंगलर, हुबली (आरटाल)।
(3) ई० आई० रेलवे E. I. Ry. पटना, बिहार (पावापुरी), वडगावरोड (कुंडलपुर), रानगृही क्षेत्र, नवादा (गुणावा), गवा (कुलुहा पहाड़), नाथनगर, भागलपुर (मंदारगिरि), हावड़ा गिरीड़ी (श्री सम्मेदशिखर) कटक, भुवनेश्वर, (बंडगिरि-उदयगिरि), जगन्नाथपुरी, खुरदारोड (पैननाथ), झांसी, सतना, (अनयगढ़, ग्वनराहा, नागौद), छत्रपुर, माणिकपुर, शिकोहाबाद, बटेश्वर (मौरीपुर', फीरोजाबाद, आगग, भरवारी, फफौसा, ( कौशांबी ), इलाहाबाद (पयाग), कानपुर, मोगलसराय (काशी), पटना (गुलनारबाग), बांकीपुर, बखत्यारपुर, लक्खीसराय, नाथनगर, चम्पापुरी, भागलपुर सिटी, हाथरस, अलीगढ़, मथुग, अंबाला, हजारीबाग (सम्मेदशिखर), अंबाला (अहिक्षेत्र), पानीपत, सुनपत, भिवानी, हांसी, हिसार, शिमला, जगाधरी, रोहतक, अंबाला, (छावनी), नैनपुर, पिंडाई, जबलपुर (कौनी क्षेत्र)। । (४) बी० एन० रेलवे B. N. Ry. , कलकत्ता, खडगपुर, कटक, भुवनेश्वर (जगदीशपुरी, खंडगिरि, उदयगिरि), वालटीयर, नागपुर, कामठी, रामटेक, गोंदिया, रायपुर,
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रायचुर, राजनांदगांव, झाड़ सुकड़ा सिवनी, छिंदवाड़ा, केवलारी।
(५) एन० डबल्यू. रेलवे N. W. Ry.
देहली, मेरठ (हस्तिनापुर), गनीयाबाद, खेखड़ा (बड़ाग्राम), मुलतान, लाहौर, लुधियाना, फीरोजपुर, करांची, हेद्राबाद, हरद्वार (बद्रीनाथ), देहरादून आदि ।
(६) एन० जी० एस० रेलवे N. G. S. Ry.
मनमाड़, एरोलारोड, दौलताबाद, औरंगाबाद, पूर्णा, मीरखेड़ा, (पोपर उखलदनी) (अचनेरा), पर्वणो, हींगोली, सीकंदरा. बाद (माणिक्यस्वामी), हैद्राबाद।
(७) जे० वी० रेलवे J. B. Ry. फुलेरा, मकराना, सांभर, देगाता, मेरतागेड, मेरता सिटी, नागौर, बीकानेर, जप्तवंतगढ़, लाडनूं, मुनानगढ़, चरु, हांसी, हिंसार, रत्नगढ़, जोधपुर, पल्ली, हेद्राबाद सिंध, मारवाड़, जंकशन (खारडा), प्रान्तीन, अहमदाबाद, इंडा ।
(८) एस० आई० रेलवे s. I. Ry. ।
तींडीवनम् (स तांबु।), भारसाकम् , कांजीवरम् , आरकोनम् , पंन्नूर, नीरुमले, वकनम् , म हुर, त्रचनापल्ली, रामेश्वा, मंगलू', मूलबद्री, कारकल, बरांग।
(९) ओ० आर० रेलये 0. R. Ry.-मोगलसराय, काशी, अयोध्या, फैजाबाद, इलाहाबाद, सोहावल, लखनऊ। . (१०) बी० एन० डबल्यू. रेलवे B N. W. Ry.
लखनऊ, बाराबंकी, बीन्दौरा (त्रिलोकपुर), सरजू (अयोध्या), मनकापुर, गौडा, बलरामपुर (सेंटमेंट), गोरखपुर, नौनखार,
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(३२)
(खुखुंदा, किष्कंधापुरी), भटनी (कहावगांव ), छपरा, कादीपुर, (चन्द्रपुरी), सारनाथ ( सिंहपुरी ), बनारस, कटीहार, पारवतीपुर, बारसोई, गोलगंन, धोवड़ी, गोहाटी, तनसुखिया, डीवरूगढ़, दीकशाल (नेपाल, कैलाश, तिब्बत ) परसुरामकुंड, डींगवोई, मनीपुर, दार्जिलिंग, वोबरा । (११) वी०बी०एण्ड सी० आई० रेलवे B.B. &.C.I Ry.
अनमेर, फुलेरा, जयपुर, सीकर, बांदीकुई, आगरा, अचनेरा, कानपुर, मथुरा, बडवा, मोरटका, (ओंकार, सिद्धवरकूट) बड़वाहा (महेश्वर), मउकी छावनी (घार, कुकशी, तालनपुर, बड़वानी, धर्मपुरी, मांडु पहाड़, (गनघाट), इन्दौर (वनेडा), फतीहाबाद (उज्जैन), बड़नगर, झावरा, रतलाम, चित्तौड़गढ़, नीमच (वीनौलिया, चूलेश्वर), करेडाक्षेत्र, सनवार, कांकोरीगेड, भीडर, नाथद्वारा, रूपनी, सारभुना, महोली, नाथद्वारा, उदयपुरसे (एकलिंग, केशरियानाथ), चित्तौड़गढ़, भीलोड़ा, हमेरगढ़, मांडल, नसीराबद, अजमेर, व्यावर, मारवाड जंकशन, भाव , अहमदावाद, वीरमगांव, बड़वान, भावनगर, पालीताना, राजकोट, द्वारिका, जामनगर, झूनागढ़, वेरावल, धोला, पोरबंदर, महेशाना, तारंगा, कल्लोल, अंकलेश्वर, आलंद, बड़ोदा, सूरत, बंबई, बारडोली, महुआ, जलगांव, चींचपाड़ा। साकरी, गोधरा, चांपानेर, पावागढ़, दाहोद, रतलाम, नागदा, सवाईमाधोपुर (चमत्कार), नवाई (टोंग, सागनेर, चानणगांव पहुंदा), कोटा (बंदी), छत्रपुर (झालरापाट,नचांदखेड़ी), पंडितनीका सरोला, केसोरी पादनमास, मथुरा, वृन्दावन, झांसी, कानपुर, ईडर, वडाली, खंभात, पेटकार, सोनीमा, कालाबाद, कावममंज, कंपिलाजी, हाथरस ।
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(३३)
किस क्षेत्रकी कौनसी स्टेशन है उसकी सूची।
नं. नाम क्षेत्र. । स्टेशन. नं० नाम क्षेत्र, । स्टेशन.
१। केशरियाजी उदयपुर १६ मा'णक्यस्वामी अलवर
एकलिंग हिम्मतनगर | कुलपाक मिकदराबाद ' भिंडर
सनयार ७ मात्यागाव, मीर- हींगोली काकरोली काकालीरोड पुर, अतरक्ष अकोला चारभुज, रूप
पा.ना बासम गजनगर
८ मुतागिरि
एलिचपुर ३ करेडा (पार्श्वनाथ) खुद ..
। (अमरावती) ४ प्रतापगढ, शाति. मन्दशौर९ कुन्दनपुर सामनगाव नाथ, देवगढ़
.. कौनी
जबलपुर ५ चूलेश्वर, विजो- नीमच, भ ल २५ छत्रपा
यजगहा, लिया पार्श्वनाथ वाडा, मादल
अजयगढ़ । बुद्ध २ वागोरी, हीरापुर, मलाग, मागर, ७ बनडा
इन्दौर
पाचोरी, द्रोण- दमोह ८ धार, कुकशी, मउ वहवा गिार ननागिर
तालनपुर वड. बलिया टोकमगट, पपौग' ललितपुर बानी, मऊ, ।
सीगेन
दलवाडा महेश्वर
बीना, चदेरी, मुगावली औकार, सिद्रवर.' मोरटका खे
थोवन कट. नादगाव । डीघाट, खुद २५ पटे। कुंडलपुर | दमोह मागीतुंगी, ना. मनमाट ०६, मलमा
उजेन शिक, गजपंथा, नाशिक
नालवेट त्रम्बक महादेव
कुम्गमा झासी एगेलाकी गुफा
अयोध्या फैजाबाद (दौलतावादी
सरयूघाट औरंगाबाद
सौरिपुर (वटेश्वर) शिकोहाबाद अचनेरा पार्श्वनाथ चीकलठाना ३१/ कपिला कायमगज १३/ पर्वणी
३२/ सेटमेंट बलरामपुर १४ पूर्ण
३३ त्रिलोकपुर
बाराबंकी १५ सद मारखेड
। बीन्दौरा
७ पवा
२८
२.
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(१४)
' गढ़
अम्बाला
नं०' नाम क्षेत्र. स्टेशन. ० नाम क्षेत्र. स्टेशन. ३४ ग्वखुदा
नौनग्वार ५८ बड़ागांव खेखड़ा ३५ कहावगांव भटनी, नौन-५९ दलवाडा, अचल- आबूरोड
खार,तालवंट २६ सनपुरी मोहाबल ६० अहिक्षेत्र ३७' कुडलपुर बटगाव गेड-१ चानणगाव, पटुदा, हीडोन १८ पावापुरी गुणावा नवादा, विहार । महावीर ३९. कुन्हा पहाड गदा २ जांगगढ़ ! गुना ४. माथल पुर सीतामडीह स्तनापुर मेरठ १ मम्मेदशिखरमरी. गिरोटी ६४ लालगपाटन, चां- छत्रपुर २ वज-पथ (महादेव) दागे । दवटी, पंडित. ४३ परामरामकुट बीगोद
। सा. ४४ मंख्यादी गोहाटी ५ मम मागढ । भोपाल १५ गोमापुग म्हैमा ६६ पुष्कर अजमेर खागार उदय- भनिश्वा ६७ वाहुरी बंधन | सलया गि ।
६८ फोमा पहार भावारी अम्टाल हरली
गढवाय बाबानगर बाजापुर .९ अट होणमरगी शोल.पुर. ७० मत्यनारायण वुर आनना । धनी,
द्वारकाधीश सावलग्राम | बद्रीनाय खुद ममगाव, वामी टाऊन जनबद्री मंद गरी न कुशलगिरि
। (श्रवणवे गोल) ५१ म्तवानाध, नीदा.। कोल्हापुर ७ मलबद्री, कारकल, शिवमोगा, न', कोल्हापुर, बेलगाव हुच पमावती, वीर जंक. बेलगांव
ताथली,मोमेश्वर, मंगलू ५२ महुवा | बागडोली
वर । ५३ शत्रुजय पालीताना धाराशिव एडसी
गिरनार अनागढ़ ७५ नागटाना, तेर । तेर सोमनाथ
परावल ७६ दहीगांव बागमति, ढौड द्वारकापुरीभ मनगर खुद७७ कलिकुंट कुंडलरोट राणोली, रामगढ़ पोरबंदर, ७८ बाहुबली कुंभोज हातकलेगा
गैग, चरुबोते अंगावर
N
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(३५) कौन २क्षेत्र किस लाईनमें हैं क
कहांसे जाना पड़ता है ?
उदयपुर लाईनमें करेड़ा खुद स्टेशन है। करेड़ा पार्श्वनाथ सनवारसे । भीडर क्षेत्र जाकर वापिस लौट आवे । हिन्दू तीर्थ यहांसे कांकरोली, राजनगर, नव चौकिया, चतुर्भुन, रूपनी, नाथद्वारा आदि जावे । लौटकर वापिस भावे । नाथद्वारासे हिन्दुओंके तीर्थ जावे, उदयपुरसे एकलिंगनी जावे, लौटकर उदयपुर आवे । केशरियानी लौटकर आगे पीछे जाने का रास्ता है। दुर्गपुर, अहमदावाद तरफ भी एक रास्ता है, वापिस उदयपुर होर चितोड़गढ़ नाते हैं। चितौड़गढ़से २ लाइनोंका हाल ।
नीमच-होकर तांगासे विनौलिया पार्श्वनाथ और चूलेश्वर होकर आगे पोछे जाने का रास्ता है । नीमचसे रतलाम, जावरा ।
मन्दसौर-से मंदसौर, प्रताबगढ़, शांतिनाथ देवगढ़ लौटकर मंदसौर फिर रतलाम।
रतलाम - से नागदा जंकशन, गोवरा, डाकोरनी, चाम्पानेर. पावागढ़, वडोदरा ।
नागदा-से उज्जैन, छत्रपुर, झालरापाटन, चांदखेरी, पंडितका सारोला। लौटकर झालरापाटन, फिर छत्रपुर स्टेशन फिर कोटा जंक।
कोटा-तांगामें बूंदी लौटकर कोटा, फिर बाराक्षेत्र, लौटकर कोटा, फिर कोटासे केशवनी, पाटनगांव, फिर यहांसे टिकट लेकर सवाई माधोपुर चमत्कार, लौटकर माधोपुर । कोटासे १ रेलवे गुना कारंगढ़ क्षेत्र लौटकर गुना फिर मुंगावली, मोटरसे चंदेरी, थूवन ।
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(३६) लौटकर फिर चन्देरी, बीना इटावा नक० तक भी जासकते हैं।
साई माधोपुर-से १ रेलवे लाईन नवाईसे टौंक लौटकर नवाई । आगे सांगानेर क्षेत्र, जयपुर ।
मद्ग-से या हीडोनसे चांदणगांव महावीरकी यात्राको बेलगाड़ीसे जावे । लौटकर स्टेशन आवे । फिर आगे २ लाईन भैथाना स्टेशनमे जाती हैं। १ आगरा, २ मथुग, वृन्दावन लोटकर मथुग बावे । मथुगमे देहली, ग्वेग्वड़ा, बड़ाग्राम, लौटकर ग्वेखड़ा । वापिम दिल्ली। देहलीसे मेन्ट फिर तांगामें हस्तिनापुर, लौटकर मेरठ । मागे पंजाब फिर देहली।
चितौडगढ़-मे २ लाईन भीलोड़ा, मांडलगढ़, नसीगबादसे अजमेर, फिर पुष्कर लौटकर अजमेर। आगे किशनगढ़ स्टेशन, नरायना । नरायनासे मौनगद क्षेत्र लौटकर नरायना, फिर फुलेरा गंकशनमे ३ लाईन जाती हैं । १- नमसे मीकर क्षेत्र, आगे मारवाड़, लौटकर रीनस, फिर रेवाडी, देहली आदि । २- जयपुर, बांदीकुई, अलवर होकर रेवाड़ी । ३-मकराना, सांभर, नांवा, कुचामनरोड होकर डेहगाहना जाती है । डेहगाहनासे ३ लाईन जाती हैं। १ डीडवाना, जसवंतगढ़, लाडन, सुजानगढ़ चरु, हांसी, हिसार, पानीपत सुनपत जाती है। १ भिवानीसे देहली जाती है । १ मेरतारोड फलोदिया पार्श्वनाथ, जोधपुर, पाली, मारवाड़ जंकशन, भाकर मिलती है । पालीसे हैद्राबाद, करांची, नागौर होकर बीकानेर जाती है। ___ मारवाड़ जंकशन-से व्यावर होकर अजमेर जाती है। मानरोड मोटरसे आवृक्षेत्र, लौटकर माबूरोड फिर महेचाना, फिर
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( ३७ )
तारंगा लौटकर मेहेशाना आवे । महेशाना जंकशनसे कलोल, अहमदावाद, वीरमगांवसे बडवान जंकशन | बड़वान जंकशनसे ३ लाईन जाती हैं । १ - बीकानेर होकर राजकोट जंकशन । १- आसाम ब्रह्मदेश | १ - सीहोर, भावनगर, घोघा लौटकर सीहोर पालीतानासे शत्रुंजय | लौटकर सीहोर जंकशन ।
-
गजकोट से २ लाइन जाती हैं, १ जेतलसर, जुनागढ़, वेगवल, जूनागढ़मे गिरनार लौटकर जूनागढ़ | जामनगर, हारिका लौटकर राजकोट, मोहोर जंकशनसे पालीताना लौटकर सीहोर | १ धौला, पोरबंदर द्वारिका तक । धौला जंकशन से १ जेतलसर, जूनागढ़ | इधरकी सब यात्रा करके अहमदावाद आजाय ।
अहमदाबाद - मे २ लाइन जाती हैं । १ प्रांतीज, ईडर, वडाली पार्श्वनाथ, लौटकर अहमदाबाद बीचमें हिम्मतनगरसे डुंगरपुर होकर केशरियाजी जाते हैं। केशरियाजीकी यात्रा करके उद यपुर आजावे । २ धौला जाती है, आगे जूनागढ़ आदि । महेशाना, आवृ, माग्बाड़, व्यावर, अजमेर होकर घुलेरा जंकशन जाकर मिलती है | आनंद, वडोदरा तक । अंकलेश्वर, मृग्त जंकशन, बम्बई जंकशन |
आनंद से डाकोरनीकी यात्रा करके गोधरा जाकर मिले | २ वडोदरासे चांपानेररोड़, फिर पावागढ़ स्टेशन यात्रा करके चांपानेर। आगे दाहोद, गोधरा, रतलाम, नागदा आदि । मयुग, देहली नाकर मिलती है । अंकलेश्वर स्टेशन से यात्रा करके वापिस आयें ।
सूरत - जंकशन से २ लाइन जाती हैं, १ बंबई, दूसरी टाप्टी लाइन में बारडोली से मोटर में महुआक्षेत्र, लौटकर बारडोली । आगे
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(३८) चींचपाड़ासे मांगीतुंगी आदि। चीचपाड़ासे जलगांव भादि जाकर मिलती है।
भुसावल जंकशन-से १ रेलवे खण्डवा जाती है। १ मलकापुर, अकोलासे मोटरमें माल्यागांव, सीरपुर आगे बासिम, हींगोल पूर्णातक जाती है, राम्ता मोटरका है । सीरपुरसे लौटकर अकोला भावे ।
खंडवा-से १ रेलवे सनावद, मोरटक्का (ग्वेडीघाट ) म्टेशन उतरे । फिर मोटरसे ओंकारनी, सिद्धवरकूट होकर लौटकर मोरटका आवें । आगे बड़वाह जावें । मोटरसे म्हेशर होकर बड़वानी तक। फिर आगे मउमे मोटरमें घारसे १ रास्ता गनघाट नाकर मोटरसे मिलता है । धारसे १ रास्ता कुकशी फिर वहांसे तालनपुर क्षेत्र, लौटकर सुसारी, कुकशी फिर मोटरसे जाकर बड़वानी मिलें । रान. घाटसे धर्मपुरी। आगे मांड पहाड़ देखकर वापित धर्मपुरी, लौटकर राजघाट फिर आगे अनंड होता हुआ बड़वानी। ये सब रास्ते मोटर या बैलगाड़ीके हैं। फिर मागे मऊसे मानपुर, गुजरी, अंजड होकर बड़वानी । बड़वानीसे चूलगिरी (बावनगजा), लौटकर बड़वानी । फिर ४ रास्ता जाता है । १-चीकलदा, कुकशी, तालणपुर, धार, मऊ तक । २-खानदेश, धुलिया मोटर, बैलगाड़ीसे । ३-लौटकर मऊ स्टेशन या इन्दौर । ४-महेशर होकर बड़वाहा नावे । आगे इन्दौरसे बनेडा क्षेत्र लौटकर इन्दौर, आगे फतीहाबाद, चन्द्रावतीगंज स्टेशन । फतीहाबाद स्टेशनसे १ रेलवे उज्जैन नाकर मिलती है। १-बडनगर मादि होकर रतलाम जाकर मिलती है । रतलामसे १ रेलवे मानन्द, चांपानेर, पावागढ़ होकर बड़ोदरा जाकर
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(३९) मिलती है। रतलामसे झावरा, मंदसौर वहांसे प्रतापगढ़, शांतिनाथ, देवगढ़ तांगासे जाकर वापिस मंदसौर । फिर मागे न.माहेड़ा, चित्तोड़गढ़ । चित्तौड़गढ़से उदयपुर, अनमेर आदि । आगे सब लिख दिया है। रतलामसे नागदा नंकशन आदि । नागदासे १ उज्जैनसे तांगामें भेलसाक्षेत्र । लौटकर उज्जैन, मक्सी पार्श्वनाथकी यात्रा करके मागे भोपाल जाकर मिले । मागे १ खंडवासे जाकर मिलती है। भोपालसे तांगामें समसागढ़की यात्रा करके लौटकर फिर भोपाल आवे । मक्सी होकर उज्जैन, बीनाइटावा नं० । ____ अकोला-से आगे मूर्तिनापुर उतरें । मूर्तिनापुरसे १ रेलवे कारंजा क्षेत्र जाती है। वहांसे वापिस फिर मूर्तिनापुर आयें। फिर यहांसे १ रेलवे अंजनगांव, एलिचपुर जाती है । एलिचपुरसे परतवाड़ा, खुरपी होकर मुक्तागिरी क्षेत्र जावें । लौटकर परतवाड़ा मावे। परतवाड़ासे अमरावती आवे । अमरावतीमे बलगाड़ीमें भातकुली लौटकर अमरावती, फिर स्टेशनसे बदनेग गाड़ी बदलकर धामणगांव । यहांसे मोटर या बैलगाडीसे कुंदनपुर क्षेत्र जावें । लौटकर घामणगांव मावें।
नागपुर-जंकशन या दोतवारी स्टेशनसे कामठी, रामटेक लौटकर नागपुर, नागपुरसे छिंदवाड़ा, सिवनी, केवलारी, पिंडरई, जबलपुर ।
जबलपुर-से कौनी अतिशयक्षेत्र लौटकर जबलपुर । यहांसे ४ लाईन जाती हैं। १ इलाहाबाद, इसके बीचमें कटनी जंकशन पड़ता है । आगे सतना, माणिकपुर जंकशन पड़ता है।
कटनी-से दमोह, दमोहसे कुंडलपुर क्षेत्र मोटर मादिसे
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(४०) कौटकर कटनी भावें । अथवा सागर जावें । सागरसे मोटरसे बंडा दौलतपुग होकर ननगिरी । फिर भागे द्रोणगिरिक्षेत्र | आगे पीछे लौटकर सागर आवे । सागरसे बीना इटावा जंकशन नाकर मिले ।
मनना-से मोटरसे नागोद पंडरिया, पन्ना शहर, अजयगढ़ क्षेत्र, आगे व नराहा, फिर वहां छत्रपुर, नयागांव, छावनी होकर म्टेशन हरपालपुर चले जावें । माणिकपुरसे भी हरपालपुर जाकर मिल सकता है । यहांमे आनेवाले भाई छत्रपुर, ख नराहा आदि आगे जावें । हरपालपुरमे फिर आंमी नाकर मिलें। झांमीसे आनेवाले भाई इधर आना चाहें तो माणिकपुर आदि जाकर मिलें । अब जबलपुरसे १ लाईन कटनी होकर दमोह मागर होकर बीना जंकशन जाकर मिलती है।
वीना इटावा-से ३ लाइन जानों हैं। १ मुगावली म्टेशन । मोटरसे चन्देगक्षेत्र, वनक्षेत्र लौटकर मुंगावली, फिर गुना स्टेशन तांगामें बनगढ़, लौटकर गुना म्टेशन आ । गुनामे आगे जानेवाला कोटा जावे। पीछे जाने वाला बोना आवें । दुसरी लाइन भोपाल, खण्डवा, मनमाड़ आदि होकर बंबई तक जाती है । ३ लाइन यहांसे बैलगाड़ी में देवगढ़ क्षेत्र लौटकर जाखलौन स्टेशन । यहांसे मोटरमें ललितपुर शहर, फिर मोटरसे टीकमगढ़, पपौराक्षेत्र, लौटकर ललितपुर, फिर आगे स्टेशन देलवाड़ा। वहांसे बैलगाड़ीमें सिरोंनक्षेत्र, लौटकर देलवाड़ा स्टेशन । यहांसे तालवेट स्टेशनसे बैलगाड़ीमें पवाक्षेत्र लौटकर तालवेट स्टेशन, यहांसे झांसी जंकशन | झांसीसे ४ लाइन जाती हैं। १ ललितपुर आदि २ हरपालपुर, ललितपुर आदि । ३ कानपुर जाकर मिलती है, ४ यहां सोनागिर
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(४१)
स्टेशन उतरना | सोनागिरकी यात्रा करके स्टेशन आवें । फिर ग्वालियर उतरें । ग्वालियरसे लश्कर। यहांसे पन्नीहारक्षेत्र, लौटकर लश्कर, फिर आगरा। आगरासे लौटकर फोरोनाबाद, आगे शिकोहाबादसे तांगामें सौरिपुर (वटेश्वर) लौटकर शिकोहाबाद स्टेशन । यहांसे फरुखाबाद, आगे कायमगंज म्टेशन, यहांसे कानपुर आदि भी जासकते हैं । लौटकर हाथरस स्टेशन आयें। हाथरससे अलीगढ़ नंकशन, यहांसे अम्बाला, अम्बालासे बैलगाड़ीमें अहिक्षेत्र । लौटकर अम्बाला म्टेशन आवें । आगे अलीगढ़, खुर्ना, देहली, मेरठ, हस्तिनापुर लौटकर देहली फिर ग्वेखड़ा स्टेशन । तांगामें बड़ागांवकी यात्रा करके देहलो, फिर चाहे जिधर चला नावे । लौटकर हाथरम म्टेशन आवें । गाड़ो बदल कर कानपुर जाना चाहिये।
कानपुरमे ४ लाईन जाती है १ झांमी, १ कलकत्ता, १ आगग, १ लखनऊ । लम्वन उसे ४ लईन जाती हैं। १ महाररनपुर, २ अयोध्यानी । इस तरफ जानेवाले सोहावल स्टेशन उतर पड़े . फिर रत्नपुरीकी यात्रा करके मोहावल स्टेशन वापिस आवें । यहांसे फनाबाद उतर पड़े यहांमे अयोध्या, कागीकी यात्रा करके फिर मोगलमगय नाकर मिले । ३ लाईन पंजाबमें जाती हैं। ४ लखनऊमे बाराबंकी या बिंदौग स्टेशन उतर कर त्रिलोकपर क्षेत्र लौटकर विन्दौर। स्टेशन फिर आगे सरयू ( लकडमंडो) उतरकर नावसे अयोध्या फैजाबाद आवे। फिर यात्रा करके अयोध्यासे बनारम आदि आगे नावे । लौटकर फैजाबाद सोहावल, रत्नपुरी क्षेत्र होकर वापिस सोहावल स्टे० आगे लखनऊ, नहीं तो गेटकर सरयू मावे ।
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(४२) फैजागद-से २ लाईन जाती हैं । १ अयोध्या घाट, १ प्रयाग । इलाहाबादसे ३ लाईन जाती हैं। १ आगरा, १ कटनी मुडवारा, १ मोगलसराय जाकर मिलती है।
अयोध्या घाट-से पार होकर सरयू स्टे० जावे । फिर आगे गौंडा बलरामपुर स्टेशन उतरकर तांगासे सेंटमेंट क्षेत्र जावें। लौटकर बलरामपुर, गोरग्वपुर, नौनम्बारसे बुखंदा जावे । लौटकर नौनखार स्टे० आगे भटनी जंकशन, सलीमपुरसे कहावगांव क्षेत्र लौटकर फिर स्टे० आवे । आगे कादीपुरसे चंद्रपुरी जावे । लौटकर स्टे० आवें । सारनाथ म्टे से मिंहपुरी लौटकर स्टे फिर बना रसकी यात्रा करें।
बनारस-से ४ लाईन जाती हैं । १ छपरा, १ सारनाथ, भटनीतक, १ अयोध्या लखनउतक, १ मोगलसराय जाकर मिलती है। मोगलसरायसे चारों तरफ रेलवे जाती हैं । १ बनारस तरफ अलाहाबाद, आरा पटना, रफीगंन होकर गया होकर शिखरजी महाराज | पटना जंकशनसे ४ लाईने जाती हैं। गंगा पार होकर सोहनपुर । आगे सीतामंडी स्टेशनसे मिथिलापुरी लौटकर सीतामंडी, दीकसाल, वीरगंज, नेपाल, तिब्बत, कैलाश आदि। भासाम तरफ, १ गया वखत्यारपुर, आगे लक्खीसराय कलकत्ता तक, १ रेलवे आरा, कानपूर, आगरा, देहली।।
बखसारपुर-से बदलकर १ गाड़ी विहार । विहारसे मोटरमें पावापुरी, लौटकर विहार, फिर रेलमें बड़ग्राम स्टेशन उतरें, वहांसे रामगृहीक्षेत्र लौटकर गुणावा | भागे नवादा स्टेशन जावे ।
नवादासे २ लाईन जाती हैं। १ गया, गयासे मोटर, तांगासे
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(१३)
कुलुहा पहाड़ लौटकर गया, फिर ईसरी-शिखरजी नावें । १ नाथनगर, चम्पापुर, भागलपुर ।
भागलपुर-१ रेलवे आसाम जाती है । कटीहारसे लेकर डिब. रूगढ़ जाती है । १ रेलवे मंदारगिरी क्षेत्र, लौटकर भागलपुर, फिर लौटकर लक्खीसरायकी उस गाड़ी बदलकर मधुपुर गिरोड़ी मोटरसे मधुवन (शिखरजी), भागलपुरसे १ लाईन हावड़ा कलकत्ता जाती है।
मधुपुर-जंक से १ रेलवे गिरीडी (शिखरजी), कलकत्ता जाती हैं । गोमोहसे १ आद्रा होकर खडगपुर. १ कलकत्ता ।
कलकत्ता-से आगे जानेवालोंका हाल-बोघरा, पार्वतीपुर, कटीहार, वारमोदी, दिकशाल, नेपाल, छोवड़ी गोलगन, नलवाड़ी, गोहाटी, कमंख्या, पलासवाड़ी आदिमें जाती है । कलकत्तामे चारों तरफ रेल जाती हैं । लौटकर खड्गपुर आना।
खड्गपुर-से १ रेलवे नागपुर तरफ, १ करक, भुवनेश्वरसे बैलगाड़ीमें खंडगिरी, उदयगिरी लौटकर भुवनेश्वर फिर खुर्दारोड । खडगपुरसे १ रेलवे आद्रा, गोमोहा, ईसरी, शिखरनी, गया । 'खुर्दारोडसे पांवर वैजनाथका मंदिर लौटकर खुदारोड, रेलवेसे जगदीश, लौटकर फिर खुर्दारोड। आगे जानेवाला बनवाड़ा मद्रास शहर जावे।
मद्रास शहर-से ४ लाइनें जाती हैं। १ रायपुर, बारसी रोड़, पूना, बंबई। १ तीडोवनम् , सीताम्बुर, पोन्नूर, आदि । मारकोनम् । १ काटपाड़ी, आगे जौलारपेठ, बेङ्गलोर ।
आरकोनम् जंकशन-से १ रेलवे कांजीवरम् लौटकर मारकोनम, काटपाड़ी जंकशन ।
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(४४) काटपाड़ी-! लाइन माघीमंगलम् । तीरुमलेक्षेत्र लौटकर काटपाड़ी। यहांमे मदुग, रामेश्वर, धनुप्यकोटी, लंका लौटकर त्रिचनापल्ली।
त्रिचनापल्ली-में लौटकर मदुरा, मद्राम, आगे जानेको रंगावंगा परोड़ा जंकशन, मंगलोर मूलबिद्री । मद्रासमे मीधा मंगलोर ईमुर। गोम्मटपुर क्षेत्रमे लोटकर म्हैसुर, मंदगिरि म्टे से जैनबद्री, हांसन, आरमीकरी। आरमीफेरीसे लौटकर तुमकर, टोपटर, हीराहेल्ली, वेगलोर, जोलारपेंट, गेडा, मगलोर, मूलबद्री ।
वीरूर जंकशन-मे १ आग्मीके, मागे मंदगिरि म्टेशन फिर मोटरसे जनबद्री (श्रवणवेलग ला) लौटकर मंदगिरि स्टेशन । आगे म्हैसूर मोटरमे गोमट्टपुगक्षेत्र । लौटकर हीगहेल्लीमे चन्द्रप्रभ पहाड, लौटकर फिर होगहेल्ली, आगे नीपटर, आग्मीकेरी बोकर जंकशन । वीरूामे दृमरी रेलवे मोवमोगा स्टे. मोटरमे नील्ली, हमंच पद्मावनी, लौटकर तीर्थली, फिर आगे सोमेश्वर, वगंग, कारकलक्षेत्र | आगे मूलबद्रीक्षेत्र, फिर मोटरसे वेणरक्षेत्र लौटकर मुलबद्री मंगलर । मूलबद्रीक राम्ने दो हैं । १ मीमोगा आदिमे १ मंगल्टर आदि, मंगलग्से दोनों तरफसे लिख दिया है।
जनबद्री- का २ रास्ता-१ मद्राम बेङ्गलोरसे, आरमीकेरी होकर मंदगिरि स्टे मे जैनबद्री, १ पारसीकेरीसे मंदगिरि होकर ।
मंगलोर-का ३ गस्ता, १ पुना, वीरूर, आरसीकेरी, तीपटुर, हीराहेल्ली, बेंगलोर । १ मद्राससे बेंगलोर ।
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(४५) म्हैमूर-गोम्मटपुराका भी २ रास्ता है । १ आरसी केरी मंदगिरि स्टे से जैनबद्री होकर म्हैसूरशहर। २ बेंगलोरसे म्हैसूर, गोमटपुरा आदि।
मूलबद्री-से कारकल, वरांग, सोमेश्वर, तीर्थली, हुमंच पद्मावती क्षेत्र । लौटकर तीथंल्ली, सीमोगा, वीरूर जंकशन | वीरूर जंकशनसे आगे हुबली जंक० उतर पड़े।
हबली-से तांगा बैलगाड़ीमें भरटार क्षेत्र, लौटकर हुबली यहांसे २ लाईन जाती हैं।
गदग ज०-मे बदामी स्टे० आगे बीनापुर स्टे० तांगासे बाबानगर लौटकर बोनापुर, शेषफणामंदिर । लौट कर बीनापुर स्टेशन, आगे होणगी, शोलापुरसे कुरूडवाडी नं० । यहांसे पंढरपुर लौटकर कुरूड़वाडी, फिर बारसी टाउन स्टे०, बलगाड़ीसे कुथलगिरि लौटकर बारसीटाउन । फिर एडसी स्टे० से मोटरसे धाराशिव, लौटकर एडसी, आगे तेर स्टे०, पांवमे नागटाना, मागे लातुर लौटकर बारसी टा०, कुर्दुवाडी लौटकर घौड़। फिर आगे मनमाड़ पीछे पूना, बंबई । धौड़ गाड़ी बदलकर बारामती । बेलगाड़ीसे दहीगांव ।
बेलगांव-से मोटरसे स्तवनिधि, आगे नीपाणी, कोल्हापुर, हातफलंगड़ा, स्टे० बैलगाड़ीमें कुंभोज बाहुबली पहाड़, लौटकर हातकलंगड़ा, आगे मीरज नंक० ।
मीरज-से १ रेलवे सांगली, कुंडलरोड, फिर गांवसे कुंडलग्राम, फिर झरीवरी कलीकुंड पार्श्वनाथ । लौटकर कुंडलरोड़ आगे पूना, बम्बई, दौड़, बारामती, दहीगांव लौटकर दौड़ । फिर पूना।
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(४६) पूनामे ? रेलवे घौंड १ बंबई। घौडसे १ बारामती । बैलगाड़ीसे दहीगांव, लौटकर बारामती फिर ढोड़ स्टेशन । १ मनमाड़, कुर्दुवाडी आदि गयचूर तक । रायचुरसे मद्रास ।
वंबई-मे पूना, मुरत, अकलंकेश्वर, वड़ोदग, अहमदाबाद, ईडर, आव , मारवाड न०, व्यावर ।।
नाशिक-स्टेशनम तांगामें नाशिकशहर फिर मशरुल, गजपंथा, लोट फर नाशिक, फिर तांगामें अंजनीग्राम लौटकर फिर नाशिक ! आगे जानेवालेको सटाना, मांगतुंगो जाना चाहिये । लौटकर फिर नाशिक, अगे मनमाड ।
मनमाड-से मोटरमें माल्यागांव, सटाना, मांगीतुंगी। मांगीतुगीसे लौटकर सटाना, नाशिक आदि ।
मांगीतुंगी-से ३ राम्ता जाता है। बैलगाड़ी, मोटर आदिसे १ मारी, यहांम चींचपाडाम्टे ०। आगे सीकरीम पीपरनार, कुसंवा, धुलिया, चालीशगांव आदि । मटानामे नाशिक, माल्यागांव, मनमाड़।
मनमाड़ मे २ रेलवे १ एरोलागेड़, एरोला ग्राम, दौलताबाद, फिर औरंगाबाद, बलगाड़ीसे अचनेराक्षेत्र, कोटकर चीकलठाना मागे पर्वणी, मीरखेड़, पांवमे पपरीगांव, आगे पूर्णा जंकशन ।
पूर्णा-नंकशनसे १ लाहन हींगोली, मोटरसे बासीम, सीरपुर (अंतरीक्ष पार्श्वनाथनी), माल्या, आकोला जाकर मिले ।
सिकन्दराबाद-से माणिकस्वामी लौटकर सिकन्दराबाद । सिकन्दराबादसे ३ रेलवे लाइन जाती हैं- हैद्राबाद, बैनवाड़ा। लौटकर मनमाड़ आवे ।
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(४७)
मनमाड़-मे आगे नांदगांव, जलगांव, भुसावल जंकशन ।
भुपावल-मे २ लाइन जाती हैं। १ खण्डवा, इन्दौर तक, ऊपरदेवो । मोरटक्का स्टेशनसे मोटग्मे *कारनी। पावसे सिद्धवरकूट लौटकर मोरटक्का । बड़वाहेमे मोटरमे महेशर, बड़वानी तक जावे ।
भोपाल-मे मममागढ़, भोपाल | आगे मक्सी पार्श्वनाथ, उज्जैन। उज्जैनसे नागदा, फिर उज्जैनसे १ रेलवे फतीयाबाद होकर इन्दौर, मोटरमें बनेडाक्षेत्र लौटकर इन्दौर, मउकी छावनी। मऊकी छावनीमे मोटरमें धार, कुकशी गांवम तालनपुर, लौटकर कुकशी, बड़वानी शहर । बलगाडीमे चूलगिरि लोटकर बड़वानी । यहाँम १ राम्ता धुलिया, अंजर, गनघाट, रामघाट राम्ता धर्मपुरी, बलगाडीसे मांडुपहाड़, लौटकर धर्मपुरी। फिर रानघाट, आगे मऊ छावनी। बड़वानीमे १ गस्ता सुमारी आदि नावे ।
वडवानी-मे १ गम्ता महेशरक्षेत्र, बड़वाह । स्टेशन तक |
इन्दौर-से बनेड़ा लौट कर इन्दौर फतीहाबादमे उन तक, फतीहावार से आगे बड़नगर, ग्नलाम जंकशन । रतलाममे १ गाड़ी दाहोद, गोधरा, डाकोर, चांपानेर, पावागढ़, वडोदरा, नंकशन तक। नागदा मादि ऊपर लिखा है । झावरा, मंदमौर । तांगामें प्रतावगढ़, 'पावते शांतिनाथ, देवगढ़, लौटकर प्रनावगढ़, मन्दसौर। आगे नीमच स्टेिशन | तांगामे बिजोलियाक्षेत्र । चूलेश्वा लौटकर नीमच आगे पीछे चिचौड़गढ़ ।
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(४८) মুহূৱাৰো
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इम ग्रन्थ के कर्ता श्री. ब्रह्मचारी गेवीलालजीका जन्म भींडर (उदयपुर)में नरमिपुरा दि जैन जातिमें वि० सं० १९४० में हुआ था। आपके पिताका नाम नाहरजो था। १७ वर्षकी अवस्थामें आपका विवाह हुआ था । कर्मयोगमे ७ पुत्रोंकी प्राप्ति हुई थी। किन्तु ५ पुत्रों का व आपकी धर्मपत्नीका वियोग में० १९७० में होगया तथा अवशिष्ट दो पुत्रोको भी प्लगने उठा लिया ! संप्तारकी इम असारता जान आपने ब्रह्मचर्यव्रत धारण कर लिया। आपके इम कल्याणमार्गमें श्री १०८ ऐलक श्री पन्नालालजी और ब्रह्मचारी चांदमलजी मूल कारण हैं। स० १९७३ में त्यागी होकर
आपने ग्राम कुणमें चातुर्मास किया। वहां कुछ पढ़ने का कार्य किया। फिर सं० १९७४ में उदामीन आश्रम इन्दोरमें श्री० पं० पन्नालालनी गोधा व श्री० ५० अम. चदनीकी संगतिका लाभ हुआ। सं० १९७५में बड़वानी, १९५६में धुलिया, १९७७ में लाडनूं तथा १९७८में कलकत्ता, १९७९ में प्रतापगढ़, १९८०में फिर बड़वानी, १९८१में मनावर, १९८२में आबूगेड़, १९८३में रखियाल (गुजरात), १९८४ में उजेड़िया (गु०), १९८५ में लाडनूं, १९८६में बेगु (मारवाड़) में फिर इस साल अर्थात् सं. १९८७में बड़वानीमें चातुर्मास किया है। शेष काल तीर्थयात्रा, प्रतिष्ठा व धर्मध्यानमें व्यतीत किया । अब भाप बड़वानीमें एक त्यागीमाश्रम खोलकर वहीं कुछ त्यागियों के साथ धर्मसापन कर रहे हैं।
प्रकाशक।
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Jagda
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श्रीमान ब्रह्मचारी गेवीलालजी महागन,
इम ग्रन्थके लेखक ।
जन्म-५० १ ० भीडर ( माद)। .............................................
अनविजय प्रस मुग्न ।
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full.in/
श्रीवीतरागाय नमः ।।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक।
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OS20 803025
(१) भींडर शहर । यह शहर खंडवा अजमेर लाईनमें बी० बी० एण्ड सी. आई. रेलवे ( B. B. & C. I. R१.) के बीचमें चित्तौड़गढ़ जंकसन
आता है। यहांसे उदयपुर जानेवालों को बीचमें सनवार (कांकरोली रोड) स्टेशनपर उतरकर पांव रास्ता कच्ची सड़क १० कोशपर भीडर बड़ा भारी शहर है। उदयपुर राज्यमें खाप्त भीडर ग्राम है। यहांपर चौतरफसे कोट, ४ दरवाजे और ३ दिगम्बर जैन मंदिर
१ वितौरगढ़-यह जंकशन है। स्टेशनके ऊपर सरकारी धर्मशाला है । यहाँसे गांव ३ मीलकी दूरी पर है । एक दिगम्बर जैन मंदिर तथा १० घर जैनियोंके है । यहांका किला बहुत प्राचीन और रचनासे युक्त है । उसको भी देखना चाहिये ।
२ सनवार-( कांकरोली रोड) स्टेशन है । यहाँसे २० मीलकी दूरी पर हिन्दुओका बड़ा भारी तीर्थ है। यहां पर जगदीशकी मूर्ति है। बांगेलीसे ६ मील दूर संयनगर है। यहां रायसमुद्रका बड़ा भारी तलाव है। यह तलाव कांकरोली मंदिरके नीचे है। रायनगरके दुर्ग ऊपर नवचौकिया नाब जैन मंदिर बन मारी देखने योग्य है । यहां
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जैन नीर्थयात्रादर्शक।
तथा १ श्वेताम्बर मंदिर हैं । नागरदा, नरसिंघपुरा, हूमर, अग्रवाल, ओसवाल, माहेश्वरी मादि सात जातिके महाजन लोग वसते हैं। यहांकी भावादी ४०० घरकी है। उनमें २०० घर दि. जनियोंके हैं। शहरमें कुल वस्ती १०००० घरकी है । यहांके दि० जैन मंदिर में प्रतिमा बहुत प्राचीन कालकी अतिशयवान हैं। निसकी मान्यता आसपासके १०० कोश के ग्रामों में सब जगह होरही है। प्रतिमा बहुत मनोज्ञ होनेसे दर्शनीय है। भीडरमें घृतादिका व्यापार बहुत होता है। सब जाति के लोग प्रायः शुद्ध सामान वेचने हैं । भीटर जाने का दृपरा राम्ता भी उदयपुर चित्तौरगढ़ लाईनमें करेडी स्टेशन होकर दक्षिणकी तरफ १ मील भीडर पड़ता है। पर समुद्रको पार वटा है । समुः देखने का भी सुमीता है । फिर वहामे वैष्णव भाइयोका बटा भारी धाम ( तीर्थक्षत्र ) चार भुजा ( गाउनाथ ) तथा ८ पजीका धाम है । यह प्राचीनकालकी १ मति चार भुजा नाम रमण की है । स्पजीम गमचन्द्र सीताकी मूर्ति है । यहा य त्रा करके फिर नाथद्वारामे हिन्दओकी कृष्ण महाराज की मूर्ति है। यहा पर गुमाद जीका । -य है । लील कुंट, गऊशाला, मदिर, गुमाइजीका महल, पोज परन दखने योग्य चीजे है ।।
१ करेडा-टेशनके सामने प्राचीनकालका बड़ा कीमती और नामी दि. जन वरडा पार्श्वनाथका मदिर है । इसकी यात्रा करनी चाहिये । मेष ट देशम ४ ची में देखने काबिल है ।
करेडाको देवरे। अर अहोणका महेल ।
बीनाताको वावडो, देरणेको सहेल ॥१॥ भावार्थ-परेडाका मदिर, अटाणा गायके राजाका महल, विनोताको बास्टी, देणेकी हेउ देखने योग्य है ।
करोडाका मदिर हजारो वर्ष तक दिगम्बरी रहा, पान्तु अब वना
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । और महोली स्टेशन (नाथद्वारा रोड) से भी दक्षिणकी तरफ २० मील भीडरका राम्ना है, राम्ता सब कच्चा है ।
(२) उदयपुर । उदयपुर स्टेशनमे २ मीलकी दूरीपर धानमंडीमें धर्मशाला व जैन पाटशाला है। यहींपर ही यात्री लोगों को उतरना चाहिये । यहींपर और शहरमें तथा शहरके बाहर भी अन्य मतावलंबियों की राजासाहिबकी धर्मशालाएं हैं। जिनमें बहुतसी किराये पर भी मिलती हैं । शहर बहुत बड़ा तथा दरबार भी रानासाहिबका है। एक किला है । निमके २ दरवाजे हैं, दश दि० नैन मंदिर हैं। उनमें प्राचीन प्रतिमाएं दर्शनीय हैं । यहाँका दर्शन पैदल या घोड़ा गाड़ी आदिमे करना चाहिये। एक जैन मंदिरमें शिखर जीका पहाड बना हुआ है । गहरमें बाजार, राजामा० महल, पानीके नीचे महल, पीछोला नामका तालाय, स्वरूपसागर, फतेसागर भादि तालाव, पलटन फोन, अजायबघर देवने योग्य है । यहांपर मत्र प्रकारका खानेपीने का सामान शुद्ध, सब देशोंका कपड़ा, जेवर मादि हरएक चीन सस्ती और शुद्ध मिलती है । उदयपुरसे १० मीलकी दूरीपर शिवधर्मियोंका एक बड़ा भारी तीर्थ है। उदयपुरसे ४० म्बरी कर लिया गया है ! यहां पर एक करोडपति बनजाग रहता , उसीने यह मंदिर बनाया था । यह मंदिर वेताम्बर होजाने पर भी देखना अवश्य चाहिये।
१ महोली-(नापद्वागगेड ) से श्रीनापजी नाथद्वारा १० कोग है पक्की सड़क है । स्टेशन पर हरतरहकी सवारी मिलती है । नाथद्वाराका हाल नं० २ से जानो । उदयपुर लाइनमें हरएक स्टेशन के पास गना साहिबकी धर्मशालाएं है । यहाँसे भागे उदयपुर बहर भाता है।
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बैन दीर्थयाबादक।
मोळकी दूरीपर दि. जैन अतिशय क्षेत्र, तीर्थरान, प्राचीन कालका महातप तेजवान् धुलेव-केशरियानी तीर्थ है। यहांपर प्रथम तीर्थकर मादिनाथ स्वामीनीकी प्रतिमा बिगनमान है। उदयपुर से यहांके लिये हरएक प्रकार की सवारी मिलती है ।
(१) केशरियाजी (धुलेव )। इम ग्रामका नाम धुलिया भील के वसनेसे धुलेव है । यहांपर न्दी, तालव, कुआ, आदि प'ने नह नेके पानीका सुभीता है। यहीं पर खाने पं ने और पूनाका भी सामान मिलता है। १०० घर नरसिंघपुर। नियोंके है । धर्मश ला बहुत बड़ी है । यहांकी मूर्तिका मतिशय प्राचीन काल में बहुत हा है । बड़े बादशाहोंको चमत्कार दिस्वाया था। इस तीर्थर की महिमा तीनों लोकमें व्याप्त है । ये तीर्थ दि० का अपूर्व स्थान है । यहांपर केश फूल बहुत चढ़ते हैं। हजारों मुलाके लोग मानता (बोली) मानकर चढ़ानेको आने हैं ।
और दर्शनोंको भी जेनी तथा अन्य लोग आते जाते हैं । केशरिया ग्राममें बारहों महिना हजारों यात्रियों की बड़ी भीड़ रहती है। यहांपर पूजनादिकका भी बहुत आनंद रहता है। यहांपर एक दि. जेन पाठशाला भी है। यहांपर माने जानेके दो रास्ता हैं । यह मंदिर बावन देहरीका पाव मीलके घेरेमें बहुत बड़ा लाखों रुपयोंकी कीमतका बना हुमा है। गुजरात अहमदावाद प्रांतीन रेल्वेसे हिम्मत नगरसे मोटरगाड़ी पारि सवारीमें जांबुडी, भीलोड़ा, डुंगरपुर होकर भी केशरियानी जाते हैं । केशरियानीकी यात्रा करके भाषा मीलपर भगवानकी चरणपादुका हैं। वहां भी दर्शनोंको नाना बाहिते। यहीपर पूर्वकालमें एक धुलिया भीलको स्वम हुमा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५ था। जिससे उसे हमारों रुपयों का धन और प्रतिमा इसी चरणपादुकाकी जमीनसे निकलीं थीं। उस धनसे उस भीलने यह मंदिर बनवाया । और वहींसे निकली हुई उस मूर्ति की मूलनायक केशरियानीकी प्रतिमाको विरानमान करदी। और पीछे यह ग्राम वसाया था । इमलिये इसको धुनेव और मूर्तिको धुले बाबाबा बोलते हैं। यहांपर हर साल चैत्र मासमें मेला भरता है जिसमें हजारों लोग इकट्ठे होते हैं। यहांसे केशरियानीकी यात्रा करके फिर वापिस उदयपुर आना चाहिये । फिर रेलसे यात्रियों को अधिक देखने या दर्शनोंकी इच्छा हो तो रतलामके पहिले रास्ते में चितोड़गढ़, नीमच, मन्दमौर, प्रताबगढ़, रतलाम आदि शहर पड़ने हैं सो उतर नाना चाहिये । इन्हीं का हाल नीचे क्रमवार पढ़ लीजियेगा ।
१-चितोडगढ़का हाल आगे लिखा है सो देखलें ।
२-नीमच-अच्छा शहर है, एक दि० नैन मंदिर है और कुछ घर नैनियों के भी हैं । म्टेशनसे ग्राम १ मील है। नीमचमे तांगा, मोटर आदि सवारी लेकर अतिशयक्षेत्र बिनोलिया नी तथा चूलेश्वरनी जाना चाहिये और फिर लौटकर नीमच आना चाहिये। उक्त दोनों क्षेत्रों को न नेका राम्ता एक है और इसी लाईनमें भिलवाडा स्टेशन चित्तौडगढ़ सीराबाद के बीच आता है। भीलवाडा बड़ा शहर है । दि. नैनियोके बहुत घर हैं, ४ मंदिर भी हैं, यहांपर पक्की कलईके वर्तन ग्लासादि बहुत विकते हैं। सो यहांसे भी माना-आना होता है। परन्तु यहांका रास्ता कचा और खराब है। सवारी भी नहीं मिलती है और नीमक्से जाने-मानेसे सवारी हसत कमी किराये में मिलती है। पकी सरकी, रास्ने हर
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६]
जैन तीर्थवादर्शक |
तरहका सुभीता है । रास्ते में रत्नगढ़ ( खेड़ी ) अरसीगोली ग्राम आता है। रत्नग में एक दि० जैन मंदिर तथा ८ जैनियोंके घर हैं। यहांसे बिनोलिया आदिका आगे कच्ची सड़क पहाड़ी रास्ता है सो पूछकर जाना चाहिये। यहांतक तांगा मामूली हर समय आते आते हैं ।
( ४ ) बिजोलिया ग्राम ( पार्श्वनाथ ) | यह ग्राम छोटा है परन्तु राजासा०का होने से अच्छा है । २ दि० जैन मंदिर व ६० घर जैनियोंके हैं। यहां पर भाई हीरालालजी कामदार बड़े सज्जन व्यक्ति हैं। गांवसे १ मीलकी दूरीपर अतिशय क्षेत्र बिजोलिया है। अतिशयक्षेत्र बिजोलियाका पार्श्वनाथ भी नाम है। यहां पर जंगलमें ? कोट खिंचा हुआ है। जिसमें ३ क्षत्री, १ शिखरवंद, १ बहुत बड़ा कुंड और आसपास में मैदान है । और कोटके बाहरी भागमें रमणीक सुन्दर जंगल है, तथा पास में एक नदी भी वहती है। बड़े२ पत्थरोंकी चट्टानें रमणीक और सुन्दर मालूम पड़ती हैं। मानो यह बड़ा भाग पुण्यक्षेत्र मुनीश्व रोक ध्यान करनेका स्थान है । इस पुण्य क्षेत्रको देखकर लौट जानेका भी भाव नहीं होता है । यहां प्राचीनकालमें बडे२ मुनीश्वर ध्यान करते थे | यहांपर एक चट्टान के ऊपर कोटके बाहर संस्कृत में श्री शिखरमहात्म्य शस्त्र खुदा हुआ है । और भीतर एक चट्टानपर एक राजा सा०का इतिहास खुदा हुआ है । ऊपर कहे हुए क्षत्रियोंके मंदिर मे से १ जहागा, १ मानस्तंम्भ है। जिसपर ४ प्रतिमा और कनाड़ी लिपिका शिलालेख है। यक्ष-यक्षाणीकी २ मूर्ति हैं, मंदिर में एक छोटीसी घुमटी है, प्रतिमा नहीं है। इस
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क्षेत्रको रमणीकताकी कथनी बचनागोचर है । यहांका दर्शन करके फिर किसी जानकार भादमीको साथ लेकर चलेश्वर जाना चाहिये।
(५) श्री चूलेश्वरजी (अतिशयक्षेत्र)। यह मतिशयक्षेत्र है। यह ग्राम वाड़ देशके सहपुरा निलामें है। और यहांसे ३ मील अमरगढ़, वागीदौरासे ४ मील मूलेश्वर है अमरगढ़ और बागीदौरामें एक २ जैन मंदिर तथा कुछ घर जैनियों के हैं। यहां एक पहाड़के ऊपर बहुत प्राचीन मंदिर और एक धर्मशाला है। प्राचीन कालकी श्री पार्श्वनाथ स्वामीकी मूर्ति विराजमान है । पहिले पुराने मंदिरमें पहाड़की तलेटी पर यह प्रतिमा विराजमान थी, फिर पहाड़ी मंदिरमें विराजमान करदी है। यह प्रतिमा स्खंडित है परन्तु अतिशयवान् पूरी है । यहां हनारों यात्री आते और मेला भरता है। यहांसे दर्शन करके लौट. कर वापिस नीमच छावणी पाना चाहिये। फिर यात्रियोंको प्रतापगढ़, शांतिनाथ, देवगढ़ की यात्रा करने और शहर देखने की इच्छा हो तो मन्दसौर, झावरा, रतलाम उतरना चाहिये। अगर इच्छा न हो तो सीधा फतिहावाद (चंद्रावतीगंज) उतरना चाहिये । प्रकरणवश उपरके शहरोंका कुछ दिग्दर्शन कराये देता है।
(६) मावरा। ___ यहांपर नवाब ( मुसलमान ) का राज्य है। स्टेशनसे २ मील ग्राम व शहर है। ४० घर दि. जैनके हैं, १ प्राचीन मंदिर और प्रतिमाएं. मतिशय तेजवान हैं।
(७) मन्दसौर । स्टेशन उपर डाकखाना है। सेठ मनीराम गोवर्धनदासनी जैन दि० भनवालकी धर्मशाला पासमें है, वहीपर ठहरना चाहिये।
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जैन तीर्थयात्रादक। स्टेशनसे २ मीलकी दूरीपर दि. जैन मंदिर और धर्मशाला शहरमें है। तांगा आदि सवारी करके वहां भी ठहर सकते हैं । यह शहर अच्छा और प्राचीन है। ५ दि जैन मंदिर और बहुत नियोंके घर हैं । यहांपर जनकुपुरा आदि १२ मुहल्ले हैं । इस ग्रामका नाम पद्मपुराणमें दशांगपुर शहर है । यहांपर राना वजकरण और सीहोदरका झगड़ा हुआ था । रामचंद्र मादि यहाँपर पधारे थे । एक दरिद्र मनुष्यने खबर दी थी, सो यही दशपुर शहर है। यहांसे २० मीलकी दूरीपर पक्की सड़कसे तांगा प्रतापगढ़ जाता है। उसका किराया करीब 1) होता है ।
(८) प्रतापगढ़ शहर । यह शहर भी प्राचीन है, राना सा०का राज्य होनेसे शहर सुन्दर है। कुल ४ दि जैन मंदिर बड़े विशाल हैं, अनेक जगहपर दर्शन हैं। प्रतिमा भी भारी मनोज्ञ शांतमुद्रायुक्त हैं । श्वेताम्बरी १२ मंदिर हैं । दिगम्बरी और श्वेताम्बरी दोनों की मिलकर खासी वम्ती है । सबका आपसमें प्रेमभाव है, धर्मध्यानका ठाटवाट रहता है। शुद्ध सामान नाजा खाने पीने का मिलता है । शहरके आसपास बाग, कुवा, वावड़ी, तालाव आदि बहुत हैं। स्थान रमणीक है यहांका दर्शन करके शांतिनाथ और देवगढ़ (देवरिया) जाना चाहिये।
(९) श्री शांतिनाथ (अतिशयक्षेत्र)। प्रतापगढ़से २ मीलकी दूरीपर कच्ची सड़कसे चलकर जंगलमें श्री शांतिनाथ महारानका बड़ा भारी विशाल मंदिर है और 'एक धर्मशाला है। प्रतिमा बहुत ही मनोज और दर्शनीय पद्मासन है, यहाँसे देवगढ़ नाला चाहिये।
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देवगा।
को ३ मील
पाचीन
जैन तीर्थयावाद।
(१०) देवगढ़।। इस गांवको ३ मील कच्ची रास्ता जाना पड़ता है, यह प्राचीन है। प्रतापगढ़ की राजधानी रही है । रामाका महल बहुत बड़ा है, पहिले यह शहर बड़ा भारी था सो टूट गया है । उसके बदलेमें प्रतापगढ़ शहर वसा है । यहांपर १ प्राचीन दि. जैन मंदिर है। जिसमें कुल ६ वेदियां हैं । महामनोहर प्राचीन कालकी तरह तरहकी प्रतिमाएँ बिराजमान हैं। एक सहस्राट चैत्यालय है, यह चैत्यालय पुराने ढंगका बना है। यहां की यात्रा करके वापिस लौटकर प्रताबगढ़ होकर मन्दसौर आजाना चाहिये । फिर यहांसे आगेका टिकट ||-) देकर रतलामका लेलेना चाहिये । बीचमें झावरा शहर पड़ता है । अगर शहर देखना हो तो उतर पड़मा चाहिये, झावराका हाल ऊपर लिख दिया है।
(११) ग्नलाम (रत्नपुरी)। स्टेशनसे १ मीलकी दूरीपर शहर है, सवारीका किराया ) लगता है। मा०पा०दि नैन बोर्डिग चौक बाजारमें ठहरनेका इंतजाम है, वहांपर ठहर जाना चाहिये। शहरमें ३ मंदिर भारी हैं। जिसमें प्रतिमाएं बहुत हैं। एक मंदिरके बाहर दोनों तरफ दोहस्ती हैं। १ मंदिर शहरसे २ मीलकी दूरीपर है, तांगासे जाकर दर्शन करना चाहिये | बाजार, गजाका महल, फोन पलटन, तोपखाना, दरबार आदि चीजें देखने योग्य हैं। और वामारसे कुछ खरीदना हो तो खरीदकर स्टेशन आजाय, यहांसे उनका रेलमाड़ा १) लमता है। और बीचमें नागदा नंकसन गाड़ी पल्या पाती है। मा रतलम चार लाईन जाती हैं मन सुमसा सार
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जैन बीर्थयात्रादर्शक । १-नागदा (उज्जैन), छत्रपुर (झालरापाटन), सवाईमाधोपुर (चमत्कारजी), कोटा (बुद्धि वांदरन), पटुन्दा (महावीर चानणगांव), केशवनी, पाटनगांव, बयाना जंकशन, आगरा, मथुरा तक ।
२-दाहोद गोका डाकोरनी, आनंद, अहमदावाद, गोधरासे चांपानेर (पावागढ़) वड़ोदरा तक ।
३-बड़नगर, फतीहाबाद, इन्दौर, महुयार, बड़वानी, कुकसी, तालणपुर, मांडुपहाड़ आदि, मोरटक्का (ग्वेडीघाट, ओंकारजी) बड़. वाह, सनावद, खंडवा तक।
४-झावरा, मन्दसौर, प्रताबगढ़ आदि, नीमच, (चूलेश्वर, विनोलिया पार्श्वनाथ), केशरपुरा (जावद), निम्बाहेडा (चीतोड़गढ़ मादि) सबका हाल इस पुस्तकमे मागे-पीछे लिखा गया है। सो देख लेना चाहिये। अब आगे जानेवाले या पीछे जानेवाले, चाहे जिधर चले जावें । यहांसे इन्दौर तरफ जानेवालोंको बीचमें बड़नगरके आगे फतीहाबाद स्टेशन पड़ता है। वहांसे गाड़ी बदलकर उम्मैन आना चाहिये । रतलामसे बड़नगरका रेलभाड़ा ॥) और फतीहाबादसे ।-) लगता है।
(१२) बड़नगर ( उज्जैन)। स्टेशनसे शहर एक मील है, ॥) सवारी तांगाका किराका देकर शहरमें मालवा प्रांतिक शुद्ध औषधालय व अनाथालय है, वहीपर ठहरना चाहिये । अनाथालय आदिका कार्य देखकर अपनी शक्तिके अनुसार दान देना चाहिये । ला० भगवानदासनी मंत्री मच्छा काम करते हैं। शहरमें ३ दि. जैन मंदिरके दर्शन करें। -यहां नियोंकि बहुत घर है। अपना कार्य करके स्टेशनपर भाजाय।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
[ ११
फिर महांसे रतलाम तरफ जानेवाले रतलाम चले जांय । और इन्दौर तरफ जानेवाला इन्दौर चले जावे । बीचमें फतीहाबाद । जंकसन गाड़ी बदलकर उज्जैन भी जा सकते हैं ।
( १३ ) फतीहाबाद ( चन्द्रावतीगंज ) ।
इस स्टेशनका नाम चन्द्रावतीगंज है। ग्राम स्टेशन के सामने पास में ही है । १ दि० जैन मंदिर व २० घर जैनियोंके हैं । भाई दीपचन्द्रजी यहां पर रहते हैं । यहांसे गाड़ी बदलकर उज्जैन जाना चाहिये ।
( १४ ) उज्जैन |
यहां पर आने-जानेकी तीन लाईन हैं। एक फतीहाबाद से दूसरी भोपाल से गाड़ी आती है । सो भोपालसे आते समय उज्जैन के पहिले मकसी स्टेशनपर उतरके मक्सी पार्श्वनाथकी बंदना करना चाहिये । पीछे उज्जैन आवे | उज्जैन प्राचीन बड़ा भारी तीर्थ है। जैनियोंके महापुरुष धन्यकुमार, चन्द्रगुप्त मादि हजारों यहां राजा हुए। यहांपर ही विक्रमादित्य सरीखे न्यायपरायण राजा हुए। यहां क्षिप्रा नदी है । दि० जैन ३ मन्दिर हैं । १ जिन मंदिर नमकमंडी में है । यहांपर धर्मशाला में ठहरने आदिका आराम है। दूसरा मंदिर नयापुरा, तीसरा मंदिर जयसिंहपुरा में है। प्रतिमाएं प्राचीन हैं । जैनियोंके बहुत घर हैं, बड़ेर सेठोंकी दुकानें तथा बाजार देखने योग्य हैं । सेठ घासीराम कल्याणमलनी सज्जन तथा प्रसिद्ध पुरुष हैं। यहांसे ६ मीलकी दूरीपर भेलसा है, मोटरसे जावे । (१५) भेलसा |
इसका दूसरा भद्रीलापुरी भी है। बहुत लोग इसको दशमें
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तीर्थकर शीतलनाथकी जन्म नगरी भी कहते हैं । पहिले वह बड़ा नगर था | यहांके जंगलमें रामा अशोक के समय के बीस २ कोशके चक्र में बहुत ऊंचे २ मंदिर २० फुटसे लेकर १० फुट तक हैं । यह ग्राम बहुत ही रमणीक है, यहांपर दि० जैन घर बहुत हैं । एक जैन पाठशाला भी है। प्राचीनकालके २ मंदिर हैं, जिनमें प्रतिमाएं बहुत ही मनोज्ञ हैं, यहांका दर्शन करके फिर उज्जैन लौट आना चाहिये । फिर यहांमे रेल किराया ||1) देकर मक्सी पार्श्व1 नाथ जाना चाहिये |
(१६) मक्सी पार्श्वनाथ अनि क्षेत्र ।
भोपाल से आते समय या उज्जैनसे जाते समय मक्सीनीका स्टेशन पड़ता है। स्टेशन पर हरवक्त नौकर रहता है। यात्रियोंको ऐसा कहना चाहिये कि " हम दिगम्बर जैन हैं " उसके साथ मा किमीसे पूछकर १ फलांगपर दि०जैन धर्मशाला में ठहरना चाहिये । फिर यहांसे २ मीलकी दूरीपर मक्सी पार्श्वनाथ है । वहांकी यात्रा करना चाहिये । मक्सीनीकी महिमा तीनों लोक में प्रसिद्ध है । अनेकों बादशाहों और महानुभावको अनेक अतिशय प्रगट हुए थे। यह पार्श्वनाथ की मूर्ति साक्षात मनको शान्त करके पापको नाश करती है । मन दर्शनोंसे प्रफुल्लित होजाता है, परम्परया मोक्षको भी देनेवाली है । बहुत प्राचीन और सुन्दर है । यहांपर एक बड़ी धर्मशाला, तालाब, बावडी, बगीचा आदि वस्तुएं दर्शनीय हैं । खानेपीने का सामान भी अच्छा मिलता है, यहांसे जाना हो तो भोपाल जावे । मक्सीभीकी मात्रा करके फिर १||) देकर टिकट कर भोपाल जाये।
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(१७) भोपाल । यह स्टेशन खंडवा, कानपुर, बंबई लाईनके बीचमें पड़ता है । यहांपर माने जाने का और रास्ता ननदीक नहीं है । इसीलिये मक्सीनीकी यात्रा करके जानेसे ठीक रहता है। किसीकी इच्छा हो तो नावे नहीं तो लौटकर उन आनावें । यह शहर स्टेशनसे ३ मील पड़ता है, शहरमें एक धर्मशाला, १ मंदिर तथा दो त्यालय हैं । प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ और प्राचीन है। यहांके भाई गाना बनाना अच्छा मानते हैं, यहांपर हमेशा पूजन भजनका ठाठ रहता है। यहांगर दि. जैन घर बहुत हैं, स्टेशनके उपर अन्यमतियों की धर्मशाला ननदीक है। यह शहर प्राचीन बहुत ही बढ़िया है, राना भोजने इसको बसाया था। इसलिये इसका नाम भोनपाल था परन्तु अब अपभ्रंशमें भोपाल होगया है। यहांपर अंग्रेजी सेना रहती है। २ मल लम्बी १ मील चौड़ी एक झील है। चारों तरफ कोटसे घिरी है, विशाल किलासे शोभित है। शहरके बाहर एक तीनारा वस्ती है, दोनों तरफ दो फतेहगढ़ हैं। गदमें बेगमसा० रहती हैं, यहां बेगममा का महल, जुम्मामसजिद, टकशालघर, तोपखाना, मोतीमसनीद, खुदासीया बेगमबाटीका जनाना, हिन्दी स्कूल, अंग्रेजी स्कूल आदि चीजें देखने योग्य हैं। यहां रामा भोमके समयका बहुत बड़ा तालाव है। चौतरफ पहा. उसे घिरा हुमा है, इमी तालावके होनेसे इसको ताल भोपाल भी कहते हैं। इसलिये यह तालाब भी देखना चाहिये, यहांसे १० मीलकी दुरीपर समसागढ़। तांगावाला १)ता, यहां नाना चाहिये।
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(१८) श्री समसागढ़ ( अति० क्षेत्र ) ।
यह एक जीर्ण ग्राम है, यहां एक बहुत प्राचीन जीर्ण मंदिर है, जिसमें तीन प्रतिमाएं चतुर्थकालकी महामनोहर शांत छबि तप वाम विराजमान हैं। यहांपर भगवान पार्श्वनाथका समोशरण आया था | यहांकी यात्रा करके भोपाल लौट आवे फिर भोपाळसे उज्जैन आवे। भोपाल से एक लाईन बीना तरफ, एक उज्जैन, एक चंबई तक जाती है। किसीको आगे जाना हो तो चला जाय, नहीं तो लौटकर उज्जैन ही आना चाहिये । उज्जैनसे किसीको जाना हो तो इन्दौर तरफ चला जावे । इसका हाल आगे लिखा जायगा वहांसे जानना चाहिये | अब उज्जैन से टिकटका || = ) देकर नागदा नाना चाहिये । इषरकी यात्रा पहिले लिखता हूं सो नीचे देखलें । ( १९ ) नागदा जंकशन |
यहांसे १ लाइन रतलाम, गोधरा, चांपानेर होकर बड़ौदरा जा मिलती है । इमका हाल आगे लिखा जायगा । १ लाइन रतलामसे आगे इन्दौर तक जाती है। एक लाईन नागदा से उज्जैन जाती है । १ लाईन सवाई माधोपुर होकर मथुरा जाकर मिलती है । इसका हाल देखें | नागदा से १) रुपया देकर छत्रपुर उतर पड़े । ( २० ) छत्रपुर स्टेशन |
यहांसे |||) सवारी में हरवक्त मोटर या तांगा मिलता है । उसमें बैठकर झालरापाटन जावे ।
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(२१) झालरापाटन ।
यह शहर पुराना है, पहिले बड़ा भारी शहर था। यहां शहरमें एक दि० जैन धर्मशाला, एक सरस्वती भवन और छोटे बड़े
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जैन वीर्यवानादर्शक। [१५ ११ मंदिर हैं। जिसमें एक मंदिर शांतिनावमीका बहुत लम्बा, चौडा विशाल है। इस मंदिरके आसपास वेदी बहुत हैं, प्रतिमाएं भी बहुत हैं, बीचमें मूलनायक श्री शांतिनावका मंदिर है। मंदिरनीके बीचमें बहुत ही प्राचीन अतिशयवान १५ हाथ ऊंची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। यहांपर एक बगलमें चैत्यालय है। एक तरफ क्षेत्रपाल पद्मावती हैं। मंदिर केशर फल बहुत चढ़ता है । वृतका दीपक जलता है । और भारती भी होती है। मंदिरके दोनों बगलमें २ हाथी बड़े हैं। एक नैन पाठशाला है। यहांके सब दर्शन करके तांगा भाड़ा करके यहांसे २० मील चांदखेड़ी जाना चाहिये । यहांसे जाते समय चांदखेरी पण्डिन का सरोला और सांगोद इन तीनों क्षेत्रोंका पुगर हाल पूछकर नाना चाहिये।
(२२) चांदखेड़ी अतिशय क्षेत्र । यह क्षेत्र परम पूज्य है । यहांगर एक प्राचीन कीमती मंदिर है। मंदिरमें दोनों बगल दो प्रतिमाएँ शांति कुथुनाथकी हैं। बोचमें ऋषभदेवकी है। उनकी ऊंचाई सात २ हाथ खड्गासन विराजमान हैं | और इनके मिवाय दो प्रतिमा चौवीस महारानकी, बड़ी२ पार्श्वनाथ म्वामी दो बहुत मनोहर हैं। कुल प्रतिमाओंकी संख्या ५७७ कहने है । यहांका मंदिर बहुत बड़ा है। यहांका दर्शन करनेसे अत्यंत आनंद होता है। यहांपर स्पष्ट अक्षरों में खुदा हुआ एक शिलालेख है। निसपर प्रतिमानी विसनमान है। यहांकी यात्रा करके झालरापाटन लौट भावे । बगर यहांसे और स्टेशन पास पड़ता हो तो वहां चला माना चाहिये।
चांदखेड़ीके बीच या नासपासने पूछन्त्र पण्डितनीत्र
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। सरोका और सागोद ग्राम है। यहां प्राचीन कालकी प्रतिमा हैं । सो कुछ कष्ट उठाकर यहांका भी दर्शन कर लेना चाहिये । फिर छापुर स्टेशन कौट आना चाहिये । फिर १) रुपया देकर टिकट कोटा अंकसनका लेलेवें।
(२३) कोटा। स्टेशनसे शहर एक मील है। कोटासिटीसे ५ मील पड़ता है । शहरमें एक दि० जैन धर्मशाला, पाठशाला और ११ बड़ेर कीमती मंदिर हैं। जिनमें प्राचीन और नवीन मैकड़ो प्रतिमा विराजमान हैं। दि. जैनियोंके घर बहुत संख्यामें है। शहरसे कुछ दूर नशियानी है। वहांपर मंदिरनी और प्राचीन प्रतिमा है। सबका दर्शन करे, कोटाका नरेश छत्रधारी राजाधिरान है । शहर चौतरफ कोट खाई, परकोटासे घिरा है । प्राचीन ढंगका बहुत रमबीक है। यहांका राजमहल, फौन पलटन, बाग, तोपखाना, तालाव, अनायवघर आदि देखने योग्य हैं। यहांसे बून्दी शहरका १) सवारी मोटर तांगा लेता है। वहां अवश्य जाना चाहिये क्योंकि हर समय माना नहीं होता है।
(२४) बूंदी। इसका हाल कहां तक लिखियेगा। यह एक बड़ा प्राचीन और प्रसिद्ध शहर है। कोटाके समान इसके चारों तरफ बड़ा भारी कोट और वस्वाजे हैं। शहर राजाप्ता का अवश्य देखने काबिल है।हर बड़े और विशाल बहुत मंदिर हैं। हमारो प्रतिमाएं तथा बहुत घर जैनियोंके हैं। एक पाठशाला व धर्मशाला है। हां एक पावमीको साथ लेकर बाग, तागव, फोन, मायुषशाला
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। और राजमहल, अनायबगर आदि देखना चाहिये । फिर यहांसे लौटकर कोटा आवे, कोटासे ४ रेलवे लाईन जाती हैं। एक नागदा रतलाम, दूसरी बीना, गुना, इटावा. १ मथुरा तक व एक दूसरी लाईन जाती हैं। फिर कोटासे टिकटका II) देकर स्टेशन वारां जावे।
(२५) श्री अतिशय क्षेत्र बारां। यहींपर भगवान कुन्दकुन्द स्वामीकी समाधि भी है । शहर स्टेशनसे ननदीक है, १ प्राचीन मंदिर और धर्मशाला है। नैनियोंके घर अच्छे हैं, यहांके जन्मरईसी जंगलमें धर्मतीर्थ के कर्ता श्री कुन्दकुन्द स्वामीने समाधिमरण धारण करके देह त्यागी थी। यहांपर एक क्षत्रीय चरणपादुका है, विशेष कुन्दकुन्द चरित्रसे जानना । यहांसे यात्रा करके लौटकर कोटा आवे, फिर टिकटका 112) देकर आगे केशवनी पाटन स्टेशन उतर जाना चाहिये । यहांसे एक लाइन गुना बीना तक, ? रतलाम, व १ मथुरा तक जाकर मिलती है।
(२६) अतिशयक्षेत्र केशवजी पाटनगांव। .
यह एक छोटा ग्राम है। यहांपर एक बहुत कीमती और प्राचीन जिन मंदिर है। मुनिसुव्रतनाथकी प्रतिमा सात हाथ ऊंची प्राचीन कालकी विराजमान है। महावीरस्वामीका समवशरण वहां पर बहुत बार भाया था । इसलिये यह भतिक्षयक्षेत्र प्रसिद्ध हुना है। यहांकी यात्रा करके स्टेशन लौट बावे। फिर एक रूपया १) देकर टिकट सवाई माधोपुरका लेवे । वहांपर उतर गारे, स्टेशनसे २ मीलपर चमत्कारनी (बालीनपुर) नाना पाहिले।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । (२७) श्री चमत्कारजी अतिशयक्षेत्र-आलीनपुर ।
यह शहर प्राचीनकालमें बहुत बड़ा था, सो टूटकर सवाईमाधोपुर वसा है। यहांपर मकानोंके खंडहर बहुत हैं। एक बड़े कोटसे घिरा हुआ है । दि. जैन धर्मशाला व कृप है। बड़ा मारी मेला भी भरता है । मंदिर भी यहांका भदभुन रमणीक है। मंदिरमें दो वेदी और प्रतिमा बहुत हैं । एक प्रतिमा श्री मादिनाथ चमत्कारनीकी म्फटिकमणिकी बहुत कीमती मनोज्ञ विराजमान है । यहांपर यात्री बहुत आने हैं । मानता, पूना, भेंट चढ़ाते हैं। यहांसे मवाईमाधोपुर शहर ननदीक हैं। वहांपर भी मंदिर प्रतिमा बहुत रमणीक है । दि० जनों के बहुत घर हैं। सबका दर्शन करके फिर लौटकर म्टेशनपर आवे । यहांसे एक गाड़ी जयपुर जाकर मिलती है । एक आगे मथुग देहली तक जाती है । एक अयोध्यानी, नागदा, रतलाम तरफ जाती हैं । अब यहांसे आगेका टिकट ?॥१) देकर पटन्दा ( महावीर रोड़) का लेलेना चाहिये । अगर किमी भाई को जयपुरकी तरफ जाना हो तो टिकटका २) देकर जयपुर जाना चाहिये । बीचमें नवाई स्टेशनसे टोंक जाना होता है। आगे सांगानेरको यात्रा बीचमें पड़ती है। इसका उल्लेख आगे कर देता हूं फिर पटुन्दाका करूंगा।
(२८) नवाई (टोंक) यहांपर.४ मीलकी दूरी पर एक बड़ा गढ़ है। भीतर शहर है। नवाब सा का राज्य है । राजदरबार तथा और भी चीजें देखनेकी हैं । शहर बहुत प्राचीन है । जैन मंदिर भी बढ़िया २ है, मैन लोगोंकी वस्ती बहुत है।
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(२९) सांगानेर। यह शहर पहिले बहुत बड़ा तथा नामी था, सो टूटकर न्यपुर वसा है। स्टेशनसे १ मील है और जयपुरसे ७ मील पड़ता है। यहांपर ७ मंदिर बड़े भारी लाखोंकी कीमत के और एक भेदर च हजारों प्रतिमाएँ हैं। जयपुरसे आकर या माधोपुरसे आकर यहांकी यात्रा करनी चाहिये। वहांपर पहिले बड़ेर करोड़पनि लोग रहते थे। पहिले यहांपर रंगाईका काम कपड़ेपर बहुत कीमती हो। था। सांगानेरी पगड़ियों का रंगीन कपड़ा नामी मशहर था । मंहरामें यहां बहुत प्रतिमा हैं। यहांसे जयपुर एक स्टेशन पड़ता है। अब माधोपुरके आगे पटुन्दा उतरे या आगे हीडोन स्टेशन नरें। (३०) श्री चानणग्राम महावीर बाबा-अतिशयक्षेत्र :
पटन्दासे ४ मील और हींडोनमे ७ मील चानणग्राम पटना है, यह एक छोटा ग्राम है। यहांपर एक नकट नामकी नदी बहती है । नदीके उपर भगवान महावीर बावाके दोनों तरफ दो चे हैं। आगे जाकर ग्राम माता है, ग्राममें एक बड़ी भारी धर्मशाला है। चौतरफ कोट है, बडे मकानों में लोग रहते हैं। सामानको तो दुकानें हैं। आगे एक बडा मारी तीन शिखरों सहित, दो छत्रयों सहित मंदिरनी है । सो चारों तरफमे एकर मीलसे दीखता है। ये मंदिर जादुराय जयपुर निवासीका बनवाया हुआ है। ___यहां भी हजारों यात्री हरवक्त दर्शनोंको, बोल कबूल चनानेको पाते हैं। चैत्र मुदी पूर्णिमाको यहां बड़ा भारी मेला भरता है। जिसमें हजारों मैन-अमेन लोग बाते हैं । बड़ा व्यापार होता है। मंदिरमीमें हारों मन बी दीपम राजिदिन प्रलता रहता है।
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केशर फूल आदि चढ़ने हैं । आरती होती है । जयपुर निवासी मान्यवर भट्टारकजी कभी २ यहां पर रहते हैं। मेले में आनंद बहुत आता है। मजर और भील लोग भगवानकी बहुत भक्ति करते हैं । गाते बनाने हैं । रथको उठाकर नदीपर लेजाते हैं । घृत, केशर, 1 दूध, नारियल, आदि शुद्ध द्रव्य भगवानको चढ़ाते हैं। पूजा भक्ति करते हुए अपना जन्म सफल मानते हैं । यहां एक हनुमानजी की बड़ी भारी मूर्ति है । उसको हिन्दुलोग पूजने आते हैं । अन्यमती लोग इमीको महावीर बोलते हैं । इस स्टेशनका नाम महावीर रोड प्रसिद्ध है । अपने दि० जैन मंदिर में ५ वेदी और बड़ी२ प्रतिमाएं मौजूद हैं। महान अतिशयवान रमणीक हैं।
किंवदन्ती है कि एक ग्वाला हमेशा जंगलमें गाय चराने जाया करता था जिस जगह ये प्रतिमाजी थी, उसी जगह पर एक गाय का दूध अपने आप निकल जाता था । गाय भी रोज आकर खड़ी होजाती थी और दूध झग्ने लगता था । किमी दिन यह बात उस ग्वालेने देख ली | और यह बात अपने मालिक और गांववालोंसे कही । ग्रामवासी आश्रय में थे कि गायका. दूध क्यों झर जाता है । उसी दिन रात्रिको खालेके लिये स्वप्न हुआ कि यहांपर १ मूर्ति है सो गांववालों को बोलकर निकाल लो। सवेरे उठकर यह बात गांववालोंसे ग्वालेने कही । फिर सब लोग मिलकर वहांपर गये । और खोदना शुरू किया। थोड़ा ही खोदा था कि भीतरसे आवाज आई " मेरे चोट लगती है, धीरे २ खोदो " ! फिर लोगोंने धीरे २ खोदा और मूर्ति बाहर निकाल ली । आवाज आनेके पहिले मूर्तिको चोट लगी थी जिससे नाक खंडित हो गयीं थी। वह अब भी है। फिर उस
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२१ मूर्तिको लेजाकर उम ग्बालेके घरमें रख दी। और ग्वाला नित्यप्रति दूधका प्रछाल करदेता था। सब लोग दर्शन करने लगे। इस मूर्तिके होनेसे यह ग्राम उन्नत होगया । लोगोंको अनेक चनकार होने लगे। फिर कुछ दिन बाद यह बात नजदीकके शहर और ग्रामों में पहुंच गयो । बादको आगरा, जयपुरादि शहरों में पहुंची। सब लोगों ने पाकर पूजन किया और आनंद मनाया । उन लोगोंने जयपुरादि शहरों में ले जाने का बहुत उपाय किया । कई गाड़ियां भी टूटी, मगर प्रतिमा न गई। फिर मब उस प्रतिमाको नदांसे निकाली थी वहींपर विरानमान कर दी। वहां पर १ छत्रि १ चरणपादुका बिगनमान है। फि. श्रावक लोग एक आदमीको पूजन प्रच्छालके लिये छोड़कर चले गये । फि. महावीम्बानीकी जयध्वनि मना देशोंमें फैलने लगी। बहन लोग आने जाने लने ।
जयपुरमें एक वाजुगय नाम का कोई जागीरदार दिग कामदार था। उममे रानाका कुछ अपराध बन गया था । निमने रानाने उसका घर लुटवा लिया और उसको कैद कर लिया। इस काटमें वानराय उसी महावीरस्वामीकी प्रतिमाका ध्यान करता रहा। हृदयसे अपना दु ग्ब सुनाता और भगवानकी स्तुति करना था। जिसके प्रभावसे रानाकी बुद्धि फिर गई, फिर राजा खुद चाजूरायके पास गया और उसको बंधनमुक्त करके छोड दिया ।
और प्रसन्न होकर ५००) सालकी जागीर लगादी । नक बाजूरायने माकर बड़ा भारी मंदिर बनवाया और उसके खर्चके लिये एक ग्राम लगा दिया। फिर उस मूर्तिको मंदिरमे बिराजमान करदी, और जीवनपर्यंत उनकी भक्तिपूजा करता रहा।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
retas वही मंदिर धर्मशाला ग्राम जागीर मौजूद है । (१) यहांसे यात्रा करके लौटकर या टुक सांगानेर होता हुआ सीधा जयपुर जावे (२) अथवा नागदा रतलाम ब्यादिकी तरफ जावे (१) आगे जाना हो तो बीचमें बयाना गाडी बदलकर आगरा जावे । ( ४ ) अगर कहीं न जाना हो तो इसी गाडीसे सीधा मथुरा जावे। टिकट प्रायः २) होगा | बीचमें भरतपुर भी पड़ता है । किसीको उतरना हो तो उतर पड़े। नहीं तो सीधा मथुरा चला जाना चाहिये । (३१) जम्बूस्वामी - चौरासी ।
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मथुरा स्टेशन से २ || मीलकी दूरीपर चौरासीकी धर्मशाला और मंदिर है । अगर शहर में जाना हो तो भी २ मील शहरमें धियामंडी में श्री जैन मंदिर और धर्मशाला है। यात्रियोंकी जहां इच्छा हो वहां पर ठहरें ।
( ३२ ) मथुरा ।
यह शहर भी प्राचीन है। शास्त्रोंमें इस नगर में शत्रुन आदि बड़े १ राजा हुए थे, ऐसा लिखा है । बड़ा भारी शहर है। यहांपर कृष्णजी तथा जमना बड़ा भारी तीर्थ है । सैकड़ों मंदिर वैष्णवों के देखने योग्य हैं। बाजार भी अच्छा है । सबै प्रकारकी वस्तुएं यहां मौजूद मिलती हैं। चौरासी क्षेत्रसे तीसरे केवली जम्बूस्वामी मोक्ष पधारे थे। वहांपर बड़ा भारी मंदिर है। यहांपर ऋषभ ब्रह्मचर्याश्रम भी हैं। उसके अधिष्ठाता पं० दीपचंदजी वर्णी हैं। उसमें भी दान देना चाहिये। शहर में घियामंडी में ३ मंदिर हैं । फिर नावसे जमना पार होकर उस तरफ गोकुल में जाते हैं। वहां भी एक चैत्यालय है। यात्रियोंकी इच्छा हो तो
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। माय । इसी गोकुलमें श्री कृष्ण महाराज नवमें नारायण नंदग्बाल तथा यशोदामाताके यहां पाले गये थे। यहांपर जाना हो तो माय । नहीं तो यहांसे सब जगहको गाड़ी जाती है सो पूछकरजहांको जाना हो वहांको जाय । मथुरामें छोटे बड़े ७ स्टेशन हैं।
(११) वृंदावन । वृन्दावन तांगा भी जाता है । किराया वहींपर तय करलें । रेलगाड़ीसे एक आना सवारी लगता है। मथुरासे ४ मील दूर वृन्दावन है। यहांपर सेठ तथा राजाओ द्वारा बनवाये गये बड़े २ कीमती मंदिर देखनेयोग्य हैं । जिसमें मथुरानिवासी सेठ लक्ष्मीचन्द्रनी जैन अग्रवालका बनवाया मंदिर अच्छा है । ग्राम मुन्दर और बड़ा है । यहांपर १ दि. जैन मंदिर और १ घर दि. जेन अग्रवालोंके हैं । यहांकी रचना जरूर देखना चाहिये। वहांसे फिर मथुरा आना चाहिये । मथुरासे गाड़ी चौतरफ जाती है चाहे निघर चला जावे । अब हम अजमेरकी यात्रा हाल शुरू करते है।
(३४) अजमेर । __ यह एक बड़ा अचरजगत प्रसिद्ध (खाना पीर) अममेरके नामसे सर्व मूलक और विलायत तक मशहर है। यहां खाना पीरकी दरगाह बहुत लम्बी चौड़ी करोड़ों रुपयाके लागतकी देखने योग्य है। यहाँपर सब देशोंके अंग्रेज व मुसलमान आते हैं । पर कोई १ हिन्दू लोग भी कुछ बोल चढ़ाने आते हैं ! यहाँपर हरक्क मेला भरा रहता है। माल सब मिलता है । राजबाग, मनासागर तालाप, गढ़, बाजार, सेठ मूलचन्दनीका महल भादि देखनेकी चीमें हैं। स्टेशनसे १ मील ) माना सवारी देकर सेठ साकी
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । धर्मशालामें उतरना चाहिये। बगल में एक दूसरी हिन्दू धर्मशाला भी है। फिर सेट सा. की नशियानी ननदीक है सो वहांपर जावे। वहांपर नशिया और मंदिरनी है। मंदिरनीमें प्राचीन प्रतिमा स्फटिकमणिकी है । मंदिरके पीछे हाथी घोड़ा अनेक तैयारी ऊपर बंगलामें समवशरणनी और अयोध्याकी रचना, हनारों फौज देव देवियोंकी, भगवानको मेरुपर लेनाना, अभिषेक करना इत्यादि हैं और मंदिरजीकी दीवालोंके ऊपर शास्त्रका लेख, मुनिराजका आहारदान, धर्मोपदेश, भगवानकी पंचकल्याणककी रचना लिखी है । सबका दर्शन करें। फिर आगे नगियांनीमें ३ मंदिर हैं। उनका दर्शन करें। फिर शहरमें सेटमा०के मंदिरजीका दर्शन और शास्त्र जो दीवालोंके ऊपर लिग्वा है और गंधकुटीकी रचना और स्फटिकमणिकी चतुर्मुखी प्रतिमाकी छविका दर्शन करे । शहरमें ६ मंदिर और हैं। एक भट्टारकनीका मंदिर बड़ा है। जिसमें प्राचीन बहुत प्रतिमा हैं । सबका दर्शन भाव सहित करना चाहिये । किसी हिन्दू भाईको अजमेरसे पु-करजी जाना हो, या किसी नैनी भाईकी देखने की इच्छा हो तो १० मीलपर पक्की सड़कसे चला जाय । तांगा मोटर आदि. १)के भाड़ेसे जाती हैं। पुष्करनी एक ग्राम है। वैष्णवोंके बहुत मंदिर हैं । पुष्कर 'एक तालावका नाम है। उसके उपर घाट बंधा है। तटपर ही मंदिर है। भासपासमें कुंड हैं। उसमें वैष्णव लोग स्नान करके पूना भेट चढ़ाकर पिंड दान तर्पणादि करके कुछ पंडोंको देकर चले आते हैं! वापिस अजमेर माना चाहिये। स्टेशनपर जाफर वहांसे एक लाइन नसीराबाद खंडवा आदिको जाती है। ब्यावर भाबूसे बहम.
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२५ दावाद । १ फुलेरा तक जाती है । अजमेरसे यदि इन्दौरकी तरफ नाना हो तो बीचमें नसीराबाद छावनी पड़ती है। किसीको उतरना हो तो उतर पड़े।
(३५) नसीराबाद। स्टेशनसे २ मील दूर शहर है। -) मानेमें तांगावाला सवारी लेजाता है । नसियामें ठहरनेका भाराम है । सो ग्रामके पश्चिमकी तरफ नजदीक नसिया है । वहांपर ठहरना चाहिये । फिर शहरमें एक बड़ा मंदिर और एक चैत्यालय, एक नसिया ग्रामके पूर्वकी तरफ है । वहांपर तीन प्रतिमा बहुत बड़ी हैं। सो सबका दर्शन करना चाहिये । और पश्चिमकी नशियामें जहां ठहरनेको धर्मशाला, कुवा, जंगल, मंदिर और ग्रामके नजदीक सब आराम है। फिर यहां केकड़ी, अमरगढ़, बागीदौरा और चूलेश्वरजी अतिशयक्षेत्र तक जाने का रास्ता है । सो पूंछकर जाना चाहिये । नसीगबादसे आगे मांडलगढ़ तथा हमेरगढ़ स्टेशन पड़ता है। उसमें भी दिगम्बरियोंकी वस्ती और मंदिर हैं। आगे चूलेश्वर विनोलिया यहांसे भी ना सकते हैं। आगे चित्तौरगढ़, उदयपुर, रतलाम आदिका हाल उपर लिखा है वहांसे जानना चाहिये। अनमेरसे एक लाइन व्यावर मारवाड़ जंकशन भाब, महमदावाद जाती है उसका हाल आगे लिखा जायगा ।
तीसरी लाईन फुलेरा तरफ जाती है । उसका हाल नीचे लिखता हूं। अनमेरसे आगे किशुनगढ़ पड़ता है। यहांफर जैन मंदिर व जैन घर बहुत है । मागे मनमेरसे १३) देकर नरायनाका 'टिकट लेना चाहिये।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
( ३६ ) नरायना स्टेशन । स्टेशन से पूर्वकी तरफ नरायना ग्राम ठीक है। यहांपर मंदिर और प्राचीन प्रतिमा बहुत हैं । २५ घर दि० जैनियोंके हैं । यहांपर दादुरा साधुओंका बड़ा झण्डा है । बहुत प्राचीन कक्षों रुपयेका काम है । एक बड़ा भारी तालाब है। हजारों दादुरपंथी साधु मेलाके समय आजाते हैं। दादुरपंथी मनुष्य यहांपर बहुत आते हैं। दादुरामजीके जगह २ पर हजारों मुकाम हैं । चरणपादुका है ! लोग यहांपर पूजा भेंट चढ़ाते हैं । नृत्यगान भी करते हैं । हजारों साधु जीमते हैं । फिर यहांसे बैल गाड़ी भाड़े करके १६ मील कच्चे रास्तेसे मौजाद जाना चाहिये । बैक गाड़ीका भाड़ा जाने आनेका ४) रुपया अंदाजा लगता है। पूछ लेना चाहिये । बीचमें एक ग्राम पड़ता है । उसमें भी १ मंदिर I जैनियोंका है।
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( ३७ ) श्री मौजाद क्षेत्र ।
यह ग्राम ठीक है । १ पाठशाला, धर्मशाला और ५० के लगभग जैनियोंक घर हैं । २ मंदिर हैं । उनमें से १ मंदिर बहुत बड़ा ३ शिखरवाळा, १ भौंहरा, चौक मंडप, दालान सहित है । इसमें बड़ी२ विशाल ५ प्रतिमा बिराजमान हैं। यहांका दर्शन करके नरायना स्टेशन लौट आना चाहिये । फिर टिकट =) देकर फुलेराका लेवे । बीचमें गाड़ी बदले । फुलेरासे ३ लाईन जाती हैं। I १ रींगस जंकशन होकर रेवाड़ी तक जाती है ।
फुलेरा से टिकट १) अंदाजा लगता है। सो रींगस गाड़ी बदलकर सीकर शहर जाना हो तो जावे ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२७
(३८) रींगस । स्टेशनपर एक धर्मशाला है । गांव २ मील है। १ मंदिर व कुछ घर जैनियोंके हैं । गाड़ी बदलकर सीखर शहर जावे ।
(३९) सीकर शहर । स्टेशनसे १ मीलकी दूरीपर दीवानजीकी नशियांमें उतर जाना चाहिये । यहांपर मंदिर, कुआ, बानार नजदीक है । शहर अच्छा साफ है। त्यागी पं०महाचंदनी नामी धर्मात्मा यहींपर होगये हैं । उनके बनाये हुए सामायिक पाट आदि अनेक ग्रन्थ उनकी कीर्तिको दर्शा रहे हैं । पंडितनी बड़े तपस्वी और विद्वान थे ।
यहांपर एक चैत्यालय और १ नशियां है। एक बड़ा मंदिर है। जिसमें २ प्रतिमा चांदीकी, २ स्फटिकमणिकी, १ मुंगा लाल वर्णकी छोटी विराजमान हैं। यहांपर राजाका महल बाग देखने योग्य है। आगे यहांसे रास्ता रामगढ़ आदि मारवाडको जाता है। लौटकर रोंगच आनेमें बीचमें अंमधुपुर पड़ता है । ये भी अच्छा कस्वा है । जैन मंदिर और दि. नैन वस्ती अच्छी है। रींगचसे रेल रेवाड़ी होकर देहली जाती है।
(४०) रेवाड़ी। स्टेशनसे २ मील शहर है। १ मंदिर नसियामें है । दि. जेन घर बहुत हैं। यहांसे एक रेल बांदीकुई होकर जयपुर होकर फुलेरामें जाकर मिलती है । एक देहली जाकर मिलती है । अब फुलेरासे बांदीकुई होकर जयपुर जाती है।
(४१) जयपुर। स्टेशनसे १ मीलकी दूरीपर दिवान सा को धर्मशाला है।
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२८ ] जैन तीर्थयात्रादर्शक। यहांपर कूपादि सब हैं । दूपरो धर्मशाला सेठ नथमल ओसवालकी भी है । आठआना सवारीमें तांगावाला लेनाता है। तीसरी धर्मशाला शहरमें है । जहाँपर इच्छा हो वहांपर ठहरना चाहिये । हरएक बातका आराम है। फिर एक आदमोको साथ लेकर शहरकी वंदनाको जाना चाहिये । यहाँपर कुल ५४ मंदिर ९० व चैत्यालय हैं। उनमें हजारों प्रतिमा रंगविरंगी विराजमान हैं। दिवाननीका मंदिर नमोनके भीतर है निममें ७२ प्रतिमा तीन चौवीसीकी पद्मासन विराजमान हैं जो बड़ी विशाल और शांत छमि हैं। यहांका सब दर्शन दो दिन में हो सकता है । फिर तांगासे ।) सवारी देकर घाटके मंदिरों की वंदनाको जाना चाहिये । वहां ७ मंदिर बड़े २ विशाल हैं। जिनमें सेकड़ों प्रतिमाएं हैं। दर्शन करके जयपुर लौट आना चाहिये । फिर सिलवट के बाजारमें जावें। वहां सैकड़ों प्रतिमा धातु-पाषाण स्फटिककी देखना चाहिये । अगर प्रतिमानी खरीदना हो तो जानकार आदमीको लेकर प्रतिमा निर्दोष देखकर खरीद लेवे । परंतु देखने अवश्य नावे। यहांपर एक भट्टारक महाराज रहने हैं उनसे भी मिलना चाहिये । यहां सब देशका हर किस्म का कपड़ा जेवगदि सामान मिलता है । फिर शहरका चौपट बाजार, सनदरबार, फौन, हाथी, गेडा, कचहरी, बाग, अनायबघर, आदि देखना चाहिये । इसका नाम जैनपुर होगा सो जयपुर होगया है । सांगानेर शहर टूटकर यह जयपुर वसा है । पहिले यहांपर राना प्रना भादि हजारों जैन थे। हालमें भी यहाँपर दि० मैन घर बहुत बड़ी संख्या हैं । बड़े २ -भावकार पंडित महापर होगये है जैसे-१ टोटरमल, रायमष्ट,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२९ कृप्दास, निनदास, पार्श्वदास, सदासुख, दौलतराम, पन्नालाल, टेकचंद्र, रत्नचंद्र, जयचंद्र, जवाहरलालजी मादि बहुत विद्वान हुए हैं। जिन्होंने जैन धर्मके संस्कृत और प्रारुतके मन्थोंकी भाषा वचनिका की । और कुछ संग्रहरूप ग्रंथ भी रचे हैं। पुना, भजनको भी पोथियां बनाई हैं। इन्होंने जैन धर्मकी बड़ी सेवा की है। इन सजनोंको धन्यवाद है ! यहांकी यात्रा करके यहांसे एक रेलवे ट्रंक होकर सवाई माधोपुर होकर सांगानेर जाती है। सांगा. नेरका हाल ऊपर लिखा गया है वहांसे देखना । सांगानेरका दर्शन अवश्य करें। फिर आगे सवाई माधोपुर जाकर मिल जावें । या लौटकर फिर जयपुर आनाना चाहिये । फिर यहांसे फुलेरा तरफ नावे । फुलेरासे आगे निधर जाना हो उधर नावे । इसका हाल भी ऊपर लिखा है । फिर आगे लिखगे सो देख लेना चाहिये । एक लाइन बांदीकुई होकर जाती है।
(४२) बांदीकुई। यहां शहर अच्छा है। दि जैन मंदिर और मैन घर अच्छे हैं। यहांसे १ रेलवे अचनेरा होकर आगरा फोर्ट जाती है । एक रेवाड़ी देहली जाती है।
(४३) अचनेरा। यहांसे एक रेलवे मथुरा हाथरस होकर कानमुर माती है ।
(४४) आगरा फोर्ट। मागराका हाल भागे लिखा है वहांसे देखना । अब फिर एक रेलवे फुलेरा मंकशन होकर मारवाडकी तरफ जाती है । फुले. से रेल किराया २॥) देकर नगर, कावा, नसावंतगढ़, मुनानगढ़
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कहींका टिकट ले लेना चाहिये। अगर किसी भाई को रास्तामें उतरना हो तो उतर पड़े। घर जाना हो तो नीचेका हाल देखकर चला जाय । बीचमें मकराना पड़ता है । पत्थर बहुत अच्छा होता है । सब देशों में जाता है। रास्ते में देरका ढेर पड़ता है सो देखने जाना चाहिये ।
(४५) सांभर |
स्टेशन से ग्राम १ मील दूर है । २ दि० जैन मंदिर और बहुत घर मैनियोंके हैं। यहांके पहाड़ से नमक बहुत निकलता है। और दिशावरोंको भेजा जाता है। इस नमकसे १ करोड़की आमदनी अंग्रेजोंको है !
(४६) नांवा ( कुचामन रोड़ )
नांवा स्टेशन से २ मील दूर है । यहांपर ४ दि० जैन मंदिर और बहुत घर दि० जैनियोंके हैं। स्टेशन से हरएक वक्त मोटर, उंट, बैलगाड़ी की सवारी मिलती हैं। यहांसे कुचामन २० मील दूर है । ( ४७ ) कुचामन शहर ।
यह शहर मारवाड़ में श्रेष्ठ है । यहांपर बड़े २ चार दि० जैन मंदिर हैं । प्रतिमा बहुत हैं । जैनियोंके भी बहुत घर हैं । बड़े २ मकान विशाल और कीमती हैं। कलकत्ता निवासी सेठ चैनसुख गम्भीरमलजी यहींपर रहते हैं । इन्हींकी पाठशाला, कन्याशाला व औषषालय हैं । भाई सेठ मदनचन्द्र प्रभुदयात्री श्री यहीं पर रहते हैं।
(४८) जसवंतगढ़ |
महांसे एक गाड़ी सुजानगढ़ और एक लाडनूंंको जाती है।
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सो उधर जानेवालेको लाडनूं जाकर फिर सुजानगढ़ जाना चाहिये । और उपर से आनेवालोंको सुजानगढ़ उतरना चाहिये, फिर लौटकर लाडनूं आना चाहिये । ( ४९ ) लाडनू ।
स्टेशन से गांव लगा हुआ है, शहर अच्छा है, श्वेतांबर मंदिर और ओसवालोंकी वस्ती बहुत है । साधुमार्गी तेरापंथी है, नव श्वेतांबर मंदिर, २ उपाश्रय हैं । दि० जैन सगवगियोंने यहांपर २३ वार प्रतिष्ठा कराई थी। एक मंदिर जमीन के भीतर बहुत कीमती बना हुआ है, वहां प्रतिमा बहुत प्राचीन मनोहर विराजमान है । पूजा शास्त्रका अच्छा ठाटपाट रहता है । एक पाठशाला है । जोधपुर स्टेटमें ठाकुर सा०का ग्राम है, कोई भाई यहांकी वंदना पाव रास्ता से भी ५० मील सुजानगढ़ जामकता है, नहीं तो फिर रेलमें बैठकर सुजानगढ़ उतरना चाहिये । अगर कोई भाई हांसी, हींमार, चरु, रत्नगढ़, इस लाईन से भावे नो पहिले सुनानगढ़ उतरे | फिर वहांका दर्शन करके लाडनूं आवे औ' फुलेराके पहिले जमवंतगढ़ हो लाडनूंका दर्शन करके सुजानगढ़ जावे ।
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(५०) सुजानगढ़ ।
बीकानेर राज्य एक अच्छा नगर है स्टेनमे १ मील दूर शहर है, शहर से १ मंदिर व एक नमिया - | ३ | १०० के लगभग दि० जैनियों घर हैं, शहरमें साधुमार्गी ओनवाल, श्वेतांबर बहुत है, एक बढ़िया श्वेतांबर मंदिर मी स्वन योग्य है । यहांसे आगे जानेवाला भाई होली हिसार जा+र रेलका मेल करे और लौटनेवाले भाई वापिस लौटकर डेगाना आये। सुजानगढ़
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। बड़ी पाठशाला व दवाखाना है । यहांपर भी धर्मध्यान अच्छा है, पं० पन्नालालनी बाकलीवाल यहींके वासी हैं। यहांसे आगे जाने. वाले रत्नगढ़ चरू होकर ही हांसी, हिसार मिक जावे । फिर मुजानगढ़से लौटकर डेहगाहना नावे ।
(५१.) रत्नगढ़ । यहां दि० जैन कुछ घर हैं। एक दि० जैन मंदिर भी है। यहांसे एक रेल्वे बीकानेर जाती है । उसका हाल आगे लिखेंगे वहांसे जाना चाहिये।
(५२) चरू। स्टेशनपर एक हिन्दु धर्मशाला है, गांव २ मील है, १ मंदिर कुछ घर दि. जैन अग्रवालोंके हैं, एक रास्ता रामगढ़ आदि सीकर तक चारों तरफ मारवाड़के ग्रामों में जाता है ।
(५३) हांसी हिमार । ___ स्टेशनसे १॥ मील दूर शहर है, दि० जैन अग्रवालोंकी बस्ती बहुत है, बड़े२ दि० मंदिर हैं, स्टेशनपर अन्यमतियोंकी धर्मशाला है। कवि बाबृ न्यामतसिंह जी यहांके निवासी हैं, जिन्होंने नाटक, मजन मादि बहुत बनाये है, यहींपर भी कुछ चीजें देखने काबिल हैं। यहांसे एक लाइन भिवानी होकर देहली जा मिली है।
(५४) भिवानी। वहांपर १०० घर दि. जैनोंके हैं। एक मंदिर, पाठशाला, धर्मशाला मी। हांसीसे एक रेस्ने पानीपत, सुनपत मादि पंजाबमें जाती है। पर आगे जाना-माना पड़े तो यही हाल मानकर जाना-माना चाहिये,नही जानाही तो डेहगाहनामंकन मानावे।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [३३ (५५ ) डेह गाहना जंकशन । डेह गाहनासे २ लाइन जाती हैं, अगर कोई भाई जाना चाहे तो १ नागौर जाती है, सो जावे, नहीं जाना हो तो जोधपुर पाली होकर मारवाड़ जंकशन खारडा जाकर मिल मकता है, और वोचमें मेरतागेट पटना है, वहां भी उतर मकता है, नहीं तो जोधपुर उतरे | जोधपुरसे सीधी पाली होकर हैद्राबाद कगंचीको गाड़ी जाती है, परन्तु पालीमें गाड़ी बदलना चाहिये।
(५६) नागौर । म्टेशनमे एक मील दि० नन नशिया, धर्मशाला और २ मंदिर हैं, यहांपर ठहरना चाहिये । नशियामे २ मीलकी दूरीपर शहरमें पाठशाला है, वहां पर भी ठहर सकता है । यहांपर एक भट्टारककी गद्दी है, वहींपर बटा भारी मंदिर है, वहां की भव्यमूनियों का दर्शन करें। यहां एक बहुत बड़ा प्राचीन शास्त्र भण्डार है, वहांका शास्त्र बंद रहता है । इममे शास्त्र भीतर ही सड़ते रहते हैं, एक नेरापंथी है उमका भी दर्शन करें, एक पाठशाला भी है । दि० नैनियोंके ५०-६० घर हैं, यहांपर प्राचीन खण्डहर हैं। यह पुराने दंगका शहर है, इससे देखने योग्य है । यहांका किला भी देखने योग्य है, यहांकी नशियामें २ मंदिर बड़े भव्य दर्शनीय हैं। फिर लौटकर स्टेशन आनाना चाहिये, मागे जाना हो तो बीकानेर होकर....पंजाबमें जावे | अगर लौटे तो सीधा मेरतारोड़ फलोदी नावे । कोईको फुलेरा, कुचामण माना हो तो डेगाना गाड़ी बदल कर सांभर नादि माना चाहिये ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
साधु-साध्वी बहुत शीस महल, मोती
(५७) बीकानेर | स्टेशन से एक मील पर १ दि०जैन चैत्यालय व १ घर श्रावक 'सुखदेव गोपीलाल का है, १ घर दि० जैन ओसवालका भी है । ओमवाल श्वेतांबरोंके घर बहुत हैं। श्वेतांबर रहते हैं । शहरका बाजार, राजा सा०का महल, भवन, तोपखाना, किला, नया महल, देखने योग्य है । बड़े बढ़िया ३६ श्रीमती मंदिर हैं । उनमें कुछ मंदिर देखने काबिल हैं, एक मंदिर में आदीश्वरस्वामीकी बहुत बड़ी पद्मासन मूर्ति है । एक बंद मोहरे में हजारों प्रतिमाएँ हैं । परन्तु दर्शन नहीं होते हैं । " गेग और कोई उपद्रव आवें तब इस मौहरेका खोलकर पूजन-भजन कोनो सवं शांति होती है !" ऐसा श्वेबाम्बर लोग कहते हैं। आगे जाना हो तो पंजाब में जावें, नहीं तो लौटकर फलोदी आजाना चाहिये । (५८) फलोदी |
स्टेशन मे ग्राम नजदीक है । दश घर दि० जैनियोंके हैं । गांव के कुछ फामलेपर प्राचीन कोटका दरवाजा, धर्मशाला सहित मंदिर में पार्श्वनाथकी प्रतिमा बालू रेतीकी महामनोज्ञ है । मंदिर वगैरह पहिले दिगम्बरी था, अब दि० की मोह निद्रासे कुछ कालसे कुछ हक्क श्वेताम्बरों का भी है । परन्तु मंदिर में प्रतिमाएं दोनोंकी हैं। यहां दिगम्बरी हमेशा दर्शन-पूजन करते हैं । कार्तिक सुदी १५ को यहां पर मेला भरता है, आसपासके दि० श्वे० दोनों यात्री खाते हैं । प्रतिपदा दिन दोनों लोग अपने २ मंडप बनाकर भगजानको विराजमान करके अपनी २ पूजा प्रभावना करके चले जाते हैं । महांसे एक रेल मेरता जाती है। मेरता गांव व मंदिर अच्छा है,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [३५ दि. नैन घर बहुत हैं। लौटकर फलोदी फिर जोधपुरका रेलभाड़ा 1||-) लगता है।
(५१.) जोधपुर। स्टेशनके पाम १ दि जैन धर्मशाला और मंदिर है । सरकारी धर्मशाला भी ननदीक है। बाजार नजदीक है । खारे पानीका कुआ है, शहर अच्छा है । कोटका दरवाजा, बाजार, घण्टाघर, कचहरी, राजमहल, तालाव, रानाकी छत्री ये सब ३ मील दूरीपर हैं । यहांका अनार (दाडिम) प्रसिद्ध है ।
(६०) पादत्री। शहर बढ़िया है, श्वेतांबर पर धर्म मंदिर बढ़िया है, यहींको सूघनेकी तमाग्वृ देशों में प्रमिड है, आगे मारवाइरोड़ माडी बदल कर आब्रगेड़ नावे और इधर होकर व्यावरसे अनमेर नगरे ।
(६१) च्यावर ( नयानगर )। म्टेशनसे ? मोलपर मेट चम्पालाल नी राणीवालीको धर्मः।लामें ठहरनेसे पानी आदिका सुभीता होता है। महाविद्यालय, बंगला, कुआ, मंदिर आदि देखनेका आराम है । यह बड़ा भारी शहर है । यहांपर बंबई जैसा व्यापार होता है । २ मंदिर शहरमें व २ न'शेयानीमें हैं और जैनियों के घर बहुत हैं। यहांसे आगे मनमेर शहर आता है।
(६२) आबूरोड़। स्टेशनसे धर्मशाला थोड़ी दूर है, वहींपर ठहरे। यहां एक मंदिर है। नदी, कुमा, तालाब ननदी है, १० दिन अग्रवागेघा है, सामान सब शुद्ध मिला है, पात्र हवा यहां की अच्छी
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३६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । है। यहांमे मुनीमनीकी मार्फत पैदल, बैलगाड़ी, मोटर अथवा जेमी निमकी शक्ति हो उम माफिकसे पहाड़पर नावे । पगसे १८ मील पक्की मड़क लगी है । रात-दिन चल सकते हैं, कोई डर नहीं है। प्रत्येक सवारीका जाने-आनेका २॥) लगता है। बैलगाड़ी रातभर चलकर ८ बजे मुबह पहुंचा देती है, और लेकर भी आती है । मोटरका आने जानेका किराया ३||i) लगता है। टिकटमें ८ दिनको म्याद रहती है, मिर्फ आनेका या जाने का ही लेनेसे ५) पड़ता है। आने जानेका मागिल लेनेसे ४ दिनकी म्याद लेकर काम करें। विशेष हाल मुनीमसे पूछकर यात्री अपने सुभीतासे काम करें। यात्रियोंको पूजन तथा खानेका सामान लेकर पहाड़ उपर जाना चाहिये ।
(६३) अनिशयक्षेत्र आवनी। नलेटीसे २० मोलपर धर्मशाला है. निममें उतरे । एक प्राचीन मंदिर और प्राचीन प्रतिमा हैं । मूलनायक गंभवनाथनी हैं, एक मंदिर दि०-ट्वे० का मिला हुआ है, मब पूजनादि करें । बाद यात्रियों की इच्छा हो तो श्वेतांबर मंदिर देखें, नहीं तो फिर अचलगढको जावें । अगर इच्छा न हो तो तलेटी लौटकर भाजावें । टिकिट १॥) देकर महेशानाका ले लेवे ।
___ (६४) आबूका श्वताम्बर मंदिर ।
वहांपर एक भारी धर्मशाला है, जिसमें बहुतसे मंदिर हैं। विलोरी पत्थर खुदाई काम खुब किया गया है, ये मंदिर प्रसिर है, इसकी बनाई १८ करोड़ रुपया है, जिसमें एक मन्दिर सासु ननद, एक देवरानी जेठानीका है और बड़ा मन्दिर ५१ देहरिया
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [३७ हाथी, घोड़ा आदि सेठ नेनपाल वसंतपालका बनाया हुआ है। ऐसा लोग कहते हैं वे सेठ किसी नगरके निवासी हैं । राजाका उसपर खजाना होगया था, मो वह आकर इस जंगलमें ग्राम बसाकर रहने लगा । कुछ दिन बाद देवी प्रपन्न हुई बहुत द्रव्य हो गया । तभी यह मन्दिर बनवाया और अचलगढ़ की भारी प्रतिष्ठा कराई। फिर राना भी उमपर प्रसन्न होगया था। ये आबका मन्दिर देखनेयोग्य एक चीन है। इस मन्दिरमें मुलनायककी एक बड़ी भारी श्वेत प्रतिमा है और भी प्रतिमा बहुत हैं । मन्दिरके सामने एक मकान हाथी, घोड़ा, पापाणमई बड़े २ देग्वने काबिल हैं। हम मन्दिरको देखने के लिये दृर देगके बड़े लोग आते हैं। मन्दिरके देखनेमे मान्टम पड़ता है कि पृथ्वीपर ऐसे बड़े आदमी होगये जिनका अब निशान भी नहीं, अनेकों मन्दिर उसके नामको बता रहे हैं । आन उन मन्दिरोंकी कीमत न जाने कितनी होगी। इस मन्दिरको देग्व कर आश्चर्य होता है कि ये मन्दिर कितने वर्षों का बना होगा । यहांसे ४ मील पकी मडकपर अचलगढ़ ग्राम माना है।
(६५) अचलगढ़। यहां अचलगढ़के नीचे एक कोटके वीचमें महादेवजीका बहुत बड़ा मन्दिर है, बड़ा तालाव और श्वेतांबर एक मन्दिर है। जिसके चौतरफ कोट है। विशाल प्रतिमा भी हैं और बहुत खंडहर मकान है । यहांसे आगे एक दरवाना आता है, वहांसे अचलगढ़ तक पक्की पत्थरकी सड़क लगी है। माघ मीलके बाद अचलगढ़का मन्दिर माता है, बीचमें तालाव वावड़ी ग्राम पड़ता है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
अचलगढ़के जिनालय |
यहां पर दो श्वेतांबरी धर्मशाला और २ मन्दिर हैं। एक मन्दिर बड़ा भारी ३ मंजिलका है, जिसमें १२ प्रतिमा धातुकी बड़ी शांत मुद्रा वीतरागरूप हैं । १ मन्दिरोंमें २ प्रतिमा हैं, कुल १४ प्रतिमा ये लोग मोनेकी बोलते हैं । प्राचीनकालके कच्ची तौल ३२ भर सेर के हिसाब से १४ प्रतिमा १४४४ ) मन वजनकी बोलते हैं । यह से दर्शन करके वापिस आबुकी धर्मशाला में जावे। अगर किसीकी इच्छा हो तो बीचमें आत्र-छावनी देखे नहीं तो बाहर से देखले जाना चाहिये ।
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(६६) आबू छावणी ।
धर्मशाला से १ मील है। यहां बाजार है, सामान खाने पीनेका मिलता है । आसपास में तालाब, बगीचा, बड़े रईसोंके बंगले हैं, बाहर से ही देखना चाहिये । अगर भीतर से देखने की इच्छा हो तो -) का टिकट लेकर कुछ भैट चपरासीको देकर सब भीतरका हाक देखना चाहिये । फिर आबूरोडमें आकर महेसाना जंकशन जावे, टिकट १ || ) के लगभग है ।
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(६७) महेसाना ।
स्टेशन के नजदीक एक हिन्दुओंकी धर्मशाला है, बाजार भी है । एक श्वेताम्बर मंदिर बड़ा है, कुल श्वे० मंदिर २७ हैं । और श्वेताम्बर वस्ती बहुत है, दि० वस्ती कोई नहीं है । महांसे ६ रेलवे लाईन जाती हैं । १ - वीरमगांव तक, २ अहमदावाद तक, ३ पाट्टन, ४ वीसनगर, बड़नगर, तारंगा पहाड़ तक, ६ बाबूरोड़ अजमेर देहली तक | यहांसे II ) का टिकट लेकर वारंगा हीक
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
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जावे । बीचमै बड़नगर वीसनगर पड़ता है। किसीको उतरना हो तो उतर पड़े, दोनों ही शहर अच्छे हैं । श्वेताम्बरोंके घर व मंदिर हैं. दि०जैन कुछ भी नहीं हैं, आगेके ग्रामों में दि०जैन व मंदिर भी हैं। (६८) तारंगा हिल ।
स्टेशन के पाम दि० जैन धर्मशाला में ठहरे। यहांसे ।) आना सवारी में बैलगाड़ीसे ३ मील पहाड़की तलेटीमें जावे । फिर वहांसे मजूर करके सामान पहाड़की धर्मशाला में लेजावे । गाड़ीके रास्ते से धर्मशाला एक मील है, डोलीकी जरूरत हो तो कर लेवें । ( ३९ ) श्री सिद्धक्षेत्र तारंगा ।
कहते हैं ।
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इसका दूसरा नाम तारंगावन मुनीहुंटकोड भी पहिले एक बड़ा दरवाजा आता है । फिर कुछ दूर बाद कुण्ड और दिगम्बर श्वेतांबर दोनोंकी धर्मशाला आती है। सो दिगम्बर धर्मशाला में उतरे । फिर धर्मशाला के १३ मन्दिरोंका दर्शन करे । यह स्थान परम पवित्र और रमणीक है, मन्दिर और प्रतिमा प्राचीन है । यहांकी पूजा वंदना करके श्वे० मन्दिर जरूर देवे | फिर पहाड़की वन्दनाको जावे । पहिले ये सब मन्दिर तथा प्रतिमाएँ, दिग म्बरी थीं, पर अब श्वेतांबरी करली गई हैं । अजितनाथकी प्रतिमा I बहुत बड़ी श्वेतवर्णकी है, फिर सामने छोटे मन्दिर में नन्दीश्वर द्वीप ५२ चैत्यालय, सहस्रकूट चैत्यालय, १ सहस्र चरण, १ चतुर्मुखी चौवीसी, १ चतुर्मुम्वी प्रतिमा आदि बहुत रचना है। दोनों तरफ उत्तर-दक्षिण में दो पहाड़ हैं। दोनों पहाड़ोंक बीचमे एकर गुफा जाती हैं। पहाड़की चढ़ाई एक मील है, पहाड़के ऊपर २ देहरिया (गुमठी) प्रतिमा चरणपादुका है। सो भावपूर्वक दर्शन
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
पूजन करे और मनुष्य जन्मको धन्य माने | इस वनसे वरदत्त, सागरदत्त आदि ३५०० हजार मुनि मोक्षको गये हैं । यहीं यात्रा करके वापिस लौटकर स्टेशन जावे। यहांसे गिरनारजी जानेवाले (||) देकर जूनागढ़की टिकिट ले लेवे और अहम - दावादवाले १|||) रुपया देकर वहांका टिकिट लेवें। और आबू जानेवाले २) देकर आवरोड़का टिकिट ले लेवे और पालीतानावालोंको उघरका टिकिट लेना चाहिये । सब तरफका हाल नीचे देखें | 1
भावनगर, जूनागढ़
(१) महेसाणा गाड़ी बदलती है। आगेड़, अजमेर आदि जानेवालोंको ऊपर हाल देखना चाहिये ! (२) नहेसाणा गाड़ी बदलकर पाहून जानेवाला पाटन जावे, पाटन भी अच्छा शहर है। श्वेतांबर मंदिर वस्ती बहुत है, दि० कुछ नहीं है । (३) गिरनार पालीताना । जानेवालोंको वीरमगांव जाना चाहिये । वीरमगांव छोटामा है, स्टेशन के सामने धर्मशाला है, यहांसे एक रेलवे काठियावाद तरफ जाती है. 11) टिकटका लगता है। बढ़वान जाती हैं । बीचमें बढ़वान जंकशन पड़ता है यहांपर रेल बदलती है, सो कुली वगैरह मे पूछ लेना चाहिये। यहांसे १ रेलवे ब्रह्मपुत्र तक जाती है, एक वांकानेर मोरबी जाती है, एक मिहोर, भावनगर जाती है, एक राजकोटसे जेतलसर जंक्शन होकर जूनागढ़, वेरावल तक जाती है । अगर यात्रिगण पहिले गिरनारजी जाना हो तो राजकोट होकर जेतलसर होता हुआ सीघा जूनागढ़ जावें । फिर यात्रियोंको पालीताना ( शत्रुञ्जय ), सीहोर, भावनगर, घोघा जाना हो तो बढ़वान से भावनगरको गाडी में लींबड़ी होता हुआ भावनगर जावे | यात्रियों को हरवक्त रास्तामें कोई आदमीको
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। पहुँचाता रहना चाहिए । पूछनेसे बहुत फायदा होता है। अब मैं पहिले गिरनार तरफका हाल लिखता हूं।
बढ़वानसे राजकोट जाय, रानकोट पुराना शहर है, खे० मन्दिर वस्ती बहुत है । दि० कुछ भी नहीं है, राजा सा का राज्य बाग, मनायवघर आदि देखिने योग्य हैं, म्टेशनपर ब्राह्मणों की धर्मशाला है। शहर । गीलपर है, गनकोट जानेका -) सवारी है । राजकोटमें २ स्टेशन हैं-(१) गजकोट पुग, (२) रानकोट जंकशन । यहां उतरना हो तो उनमें नहीं नो मीधा जूनागढ़ उनरे ।
(७. ) गजकोट जंकमन । इसका हाल, इयर पहिलेकी लाइनमें लिख दिया है । यहांसे १ रेलवे नामनगर जाती है ! जामनगरसे १ रेल गौमती और चटहारका तक चली गई दे । पहिले द्वारिका जानेवालोंको नामनगरसे समुद्र के गम्ने नावमें जाना पड़ता है । अब नावका रास्ता भी चलता है। टिकट III) हैं और रेल गई है । टिकट ११) लगता है । चाहे जिधरमे नावें।
(७१) जामनगर जंकसन । ___स्टेशन के पाम वैष्णव लोगोंकी ४ धर्मशाला हैं। शहरमें भी २ बड़ी धर्मशाला हैं। मगर तांगावाला 1) आना सवारीमें ले जाता है । शहर २ मील दूर है, यह मुमलमान बादशाहका है, इमकी सड़क के बाजार, गनाका महल, बड़ी रौनकदार और साफ है। यहां भी श्वेताम्बरोंकी वस्ती है । कुछ बहुत बढ़ियां और साधारण १३ श्वे. मंदिर हैं । समुद्र पासमें ही है। दि. यहां
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४२] जैन तीर्थयात्रादर्शक। कुछ भी नहीं है, यहांसे एक रेल द्वारका जाती है । टिकट १) है द्वारका जानेका दुसरा रास्ता रानकोटसे जेतलसर गाड़ी बदलकर पौरबंदर स्टेशन जावे । टिकिट पोरबंदरका १॥) है, यह भी शहर बढ़िया है । समुद्रके बीचमें है, यहांसे सिर्फ नाव या बोटमें जानेसे ।) सवारी लगती है।
(७२) गोमती द्वारका । समुद्र के बीच टापू ऊपर स्टेशनसे एक मील द्वारका शहर छोटा कस्बा है । बड़ौदाका राज्य है, पहिले ये नगर श्री नेमिनाथके जन्म समय कुबेरने रचा था। अब छोटासा रह गया है । यहां समुद्र देखनेकी शोभा शिवनीका बड़ा भारी मन्दिर सुना जाता है । पहिले यहां एक नेमिनाथका मन्दिर और प्रतिमा थी, हजारों जैनी जाते थे। कुछ दिनोंसे जैनियोंने जाना बंद कर दिया। इससे मैष्णवोंने उस मूर्तिको समुद्रमें डालकर महादेवकी पिण्डी रख दी। खेद ! ये ग्राम फिर भी ठीक है, अब रेलका स्टेशन होनेसे सुघरगया है। हजारों यात्री (वैष्णव लोगोंके) यहांपर हर समय आते हैं । यहांसे बैटद्वारका जानेके २ रास्ता हैं। १ बैलगाड़ीका II) सवारी लगती है, ८ मील जाकर धर्मशालामें ठहरे । फिर नांवमें जाकर -) सवारीसे बैडद्वारका जावे या ॥) सवारी देकर बैटद्वारका नाके । बैलगाड़ीके रास्तेके बीच एक गोपीतालाव भाता है।
(७१) गोपीतालाव । यह सडकसे ननदीक है। १ गऊशाला, १ धर्मशाला, बगीचा, वावड़ी, मंदिर है, यहां भी वैष्णवोंके यात्री बहुत आते हैं। यहांसे २ मील पर समुद्र और धर्मशाला है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [.
(७४) बैट द्वारका। बराबर यह स्थान समुद्र के मध्य टापू पर है । यह ग्राम ठीक है। १ मीठा पानीका कुआ है, बहुत धर्मशाला हैं, हजारों वैष्णव यात्री आते हैं, यहां जैनीकी कोई भी चीन नहीं है। यहां १ बड़ा मंदिर है, चारों तरफ कोट है, बाजार नजदीक है । मं देरमें प्रसाद बहुत चढता है, सो बानारमें बिकता है . मंदिरके दरवाके पर कोट बहुत बटिया मनबृत है। यहां पर प्रत्येक आदमीसे १) लेकर पीछे दर्शन करने देते हैं, विना रुपया लिये दर्शन नहीं करने देते हैं। यहां कृष्ण महारानकी मूर्ति बहुत बढ़िया है । दिनमें समयसे ५-६ वार दर्शन कराते हैं। ग्राममें और भी मंदिर हैं । मगर बड़ा मंदिर वही द्वारकानाथका है । हरएक और साधु.
ओंको हाथ, भूना, पेटके उपर छाप लगाते हैं। उसका भी टिकिट लगता है ! यह यात्रियोंकी इच्छापर निर्भर है, नबरदस्ती नहीं की नाती है। वहासे लौटकर रेल या नावके राम्नेसे नामनगर फिर राजकोट आवे ।
(७. ) जेतलसर । यह जनागटके बीच में जंकशन है। यहांसे एक गाड़ी पौरबंदर जाती है, उसका हाल ऊपर लिख दिया है । बीचमें फिर धौला स्टेशन गाड़ी बदलनी पड़ती है। फिर सीहोरोड़ नाती है। मति योंको लौटकर अगर पालीताना जाना वापर गा . भावे । पालीतानासे जूनागढ़ जानेवालोंको धौला, जेतलसर गाड़ा बदलना चाहिये।
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४४] जैन नीर्थयात्रादर्शक।
( ७६ ) स्टेशन जूनागढ़। यहां स्टेशनसे यात्रियोंको सीधा पहाडको तलेटीकी धर्मशालामें जाना हो तो स्टेशनसे तलेटी ४ मील है, तांगावाला ॥) सवारी लेकर सोधा तलेटी पहुंचाता है। अगर यात्रियोंको जुनागढकी धर्मशालामें ठहरना हो तो १ मीलका -) आना सवारी लेकर तांगावाला जल्दी पहुंचा देता है।
(७७ ) जूनागढ़ । यहांपर दि० धर्मशाला, कुआ, मन्दिर है, तीर्थराज का भंडार लेनेवाले मुनीम यहांपर रहते हैं। यह राज्य बहुत रोनकदार है, सामान यहां सब मिलता है। यहांपर किसीको कुछ देखना हो तो कचहरीसे फार्म मिलता है मो गना सा० का महल, बगीचा, जूनागढ़ देखे । जूनागदमें बहुत लम्बा चौडा मनवृत किला है, इसमें ४ तालाव, बगीचा, मकान बडी २ नोपे देखने योग्य हैं । फार्म फ्री ( विना पैसे के ) मिलता है। फिर तलेटी यहांसे सामान आदि लेकर नावे । राम्तेमें वणवोंका मंदिर, मडक, बगीचा, नदी आदि देखने योग्य हैं। मो रास्तेसे ही देखता नाय । फिर गिरनार सिद्धक्षेत्रकी धर्मशाला है। यहांपर दि०श्वे० दोनों की अलगर धर्मशाला व मंदिर है। यहां कुआ, तालाव, जंगल, महाजनोंकी दुकानें हैं । यहाँपर मुनीम, पुनारी, नौकर सब रहते हैं। पहाडके ऊपर जानेके लिये डोली ५)-८) रूपयामें मिलती है। गोदीवाला मजूर भी मिलता है । यहांसे सवेरे ४-५ बजे शौचादि नित्य क्रियासे निमटकर शुद्ध द्रव्य सामग्री, कुछ रुपया, पैसे, पाई लेकर जयर करते हुए पहाडपर चढ़े। यहांसे पहाडकी कुल चढ़ाई ३॥ मील
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [४८ है । ७०२० सीढ़िया लगो हुई हैं। ये सीढ़ियां गिरनारके नामसे सब देशोंसे रुपया इकट्ठा करके बनवाई गई हैं । रास्तेमें वैष्णव साधुओंके बहुत आश्रम हैं । देव - देवी- गाय-भैंस आदि देखने जाना चाहिये। किमी२ आश्रममें चना और पानीको दानशाला है किसी भाईको जरूरत हो तो ले लेना चाहिये ।
(७८) गिरनार पहाडका वणन । २ मील ऊपर जाने पर सोन्टका महल मिलता है, यहां सामानकी के दुकान है । और बहुत श्वेताम्बर मंदिर हैं । यहांके बड़े मंदिरमें श्रीनेमिनाथकी श्याम मूर्ति है । और आगे बड़े२ मंदिर तथा श्वनाम्बरी प्रतिमा व तालाव है । यहांमे रास्ते में जाते समय पहाडके उपर श्वेताम्बर और बैंगवोंके मंदिर बहुत हैं । यहां सोरठका महल धर्मशाला है । यात्रियोंकी इच्छा हो तो देखले । नहीं तो आगे चला जावे । थोड़ी दूर जानेपर दक्षिणकी तरफ राजुलकी गुफा है। भीतर जाने-आने समय बटकर घुमना चाहिये । ये छोटोमी गुफा है । वहां पर उजेला करनेसे १ मूर्ति सती राजुलदेवीकी है । मो वहां का दर्शन करके उसी जगहसे ऊपरके दिगम्बर जैन मंदिरमें जावे । यहां एक कोटमें २ जिन मंदिर बहुत मनोज्ञ हैं । निममें प्रतिमा पद्मासन खड़गासन दोनों विराजमान हैं । एक गुम्मट में बड़ी खड्गासन प्रतिमानी अलग बिरानमान है यहां पुनारी रहता है । बुलाकर भगवान का दर्शनपूजन करे । फिर आगे चला जाय । श्री गिरनारजीके बाबत दिगम्बर श्वेताम्बरोंका झगड़ा चलता था जिसमें तन मन धनसे पूर्ण सहायता करके धर्मात्मा दानी सन्जन धनाढ्य एक हूमड़ ज्ञाति वंडी लाला कस्तूरचंदमीने इस
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुहको साफ कराया और धर्मशाला, मंदिर उन्हींकी कोशिशसे बना है । इन सब कामोंमें लक्षों रुपया खर्च हुआ है । हाल तक ये क्षेत्र प्रतापगढ़ राजपूताना (मालवा) के पंचोंकी कमेटीके सुपुर्द है। देखना करना सब कमेटीके ही सुपुर्द है । ऐसे धर्मात्मा पुरुषों को धन्यवाद है। यहांसे दर्शन पूजन करके फिर आगे जाना चाहिये । आध मील जाने के बाद दूसरी टोंक और १ मील जानेके बाद तीसरी टोंक भगवान के तप कल्याणककी आती है। जिसपर भगवान नेमिनाथने तप किया था। यहां पर चरणपादुका है। १ गुपाईनीका मकान है। बीचमें एक शासनदेवी अंबिका देवी । निमको दिगम्बरश्वेताम्बर मतके झगड़ेमें श्री स्वामी कुन्दकुन्द महारानने आराधना करके उसके मुंहसे यह बुलवाया था कि "दिगम्बर मत सच्चा है" मगर देव एक वक्त बोलने हैं, मो देवीके बोलनेको बहुत लोगोंने नहीं सुना था। इसलिये फिर दि.० इवे. दोनों का हक ठहरा । यह कथा स्वामी कुन्दकुन्दनीके चारित्रसे जानना चाहिये । यथासंघसहिन श्री कुन्दकुन्द मुनि, वंदन हेन गये गिरनार । वाद पड्यो जहां संशय मतसे, साक्षी रची अम्बिका सार ।। सतपथ है निर्ग्रन्थ दिगम्बर, प्रगट मरि नहां कहें पुकार । सो गुम्देव वसौ उर मेरे, विघन हरण मंगल करतार ।।२।।
यहांर एक साधु की धूनी और मकान है । अंबिका देवीका मंदिर देखकर तीसरी टौं की वंदना करके आगे चलकर १ मीलकी दूरीपर चौथी टौक है। यहां जाने का मार्ग कठिन है। सामय्यं हो तो जावे अन्यथा नीचेसे ही वंदना करके पांचवी पर जावे । चौथी कपर एक प्रतिमानी। पांचवीं टौंकाका रास्ता
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जैन तीर्थयात्रादर्शका [४७ थोड़ा कठिन है । सो धीरे २ संभव २ कर चढ़ना चाहिये। फिर पांचवी टोकके कुछ नीचे तक डोलीवाला लेजाता है। फिर ऊपर पांव २ जाना पड़ता है। यहां भगवान नेमिनाथका मोक्षकल्याणक हुआ था। यहांपर २ चरणपादुका व नीचे एक प्रतिमा पहाड़के पाषाणमें ग्वुदी हुई है। ये तीर्थरान वृत्तान्त तथा मादमबावा श्री नेमनाथ मादि नामसे जगत प्रसिद्ध है। वहांपर जैन-वैष्णव ( हिन्दू ), मुपलमान आदि मब नातिके लोग तीर्थ करने को आते हैं । इमकी टोक २ पर गुपाई गवा रहते हैं । सो मब चढ़ी हुई सामग्री वे ही लोग लेते हैं । और जातिके लोग यात्राको आने हैं उनमे कुछ रूपया-पैसा लेकर “ तेरी यात्रा सफल हुई " इस प्रकारका अ शीर्वाद देते हैं । जैनी भाई भी जो कुछ रुपयादि चढ़ाते हैं वह भी यही लेलेने हैं ! यहांकी वंदना करके लौटने समय वैष्णव लोगों की गोमुग्वी आती है । करीव २ मील होगी। वहांमे राम्ना उ.पर मीदियों में लगा हुआ है । उधर गम्ने में उन्हीं लोगोंका लीलाकुंड, हनुमान घाग, देखता हुमा ११॥ मील नीचे तक चला आना चाहिये । फिर शेषावन आता है। शेषावनमें १ कोट १ छत्री २ चरणपादुका हैं। यह बन बहुन मणीक है। देखने ही 'चत्त बुश होनाता है। यहां श्री नेमिनाथका तपाल्याणक हुआ था। और मब गिरनार पर्वतसे संबु प्रद्युम्न, अनिरुदकुमारको आदि ले भगवान पर्यंत ७२ करोड़ ७ सौ मुनि कर्म काट मोमको पधारे हैं । और पांचवी से श्री. नेमिनाथ मोक्ष पधारे है। और राजुल अपनी गुफासे स्वर्ग गई हैं। भगवान् नेमिनाथरे, उप-ज्ञान-निर्वाण इसी परम पवित्र स्थानपर हुए थे।
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ANA
४८]
जैन तीर्थयात्रादर्शक । उसको हमारा मन वचन काय, कृत कारित अनुमोदनासे नमस्कार हो । चौथी टौंक ज्ञान कल्याणकका स्थान है। यहांकी यात्रा करके तलेटी जुनागढ़ आवे । फिर यहांसे आगे वेरावल स्टेशन भाता है। कोईकी जानेकी इच्छा हो तो नावे नहीं तो वापिस पालीताना आना चाहिये । टिकट का ॥) देकर बीचमें जेतलसर जंक०, या धौला रेल बदलकर फिर शवजय जावे | अगर कोई भाईको आगे राजकोट, जामनगर, द्वारका, बटवान, वीरमगांव, मेसाणा, अहमदावाद, निधर जाना हो उघर जावे। इनका वर्णन ऊपर किया है वहांसे जानना । जूनागढ़से वेरावलका १॥) टिकट है।
(७९. ) वेगवल । स्टेशनसे नजदीक ग्राम है। कसबा अच्छा है। यहांसे आगे नानेको रास्ता नहीं है। चारों तरफ समुद्र लगा है । अग्निबोट, जहाजोंसे यहांसे बहुत माल बंबई, मेंगल्टर, कलकत्ता आदि शहरोंमें जाता है । बोट-जहानसे आगे जानेका रास्ता है । समुद्र के बीचमें यह टापू है । समुद्र देखने योग्य है । गांवमें ४ वैष्णव धर्मशाला हैं। वैष्णवयात्री बहुत आते हैं। ग्रामसे पूर्वकी तरफ समुद्रके किनारे सोमनाथका मंदिर और मूर्ति है।
(८०) सोमनाथ । हिन्दुस्थानमें यह एक प्रसिद्ध तीर्थ हिन्दुओंका था। अब बिगड़ गया है। हजारों यात्री भाते हैं। सूर्य-चन्द्र ग्रहणमें २० लाख तक हिन्दू यात्री इकट्ठे होते थे ! पहिले यहांपर सोमनावका बड़ा मंदिर मूर्ति व नादिया थे । मूर्तियों और नादियोनि नोंका जवाहरात लगा था। विक्रम सं. १०२६ में बादशाह
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। मुहम्मद उद्दीन इस मंदिरपर चढ़ाई करके मंदिर-मूर्ति नादिया तुड़वाकर अरबों रुपयों का जवाहरात ऊंटोंमें लादकर लेगया था । हालमें मामूली मंदिर है । प्राचीन मंदिर टूट गया है। यहांसे जूनागढ़ आवे । फिर निधर जाना हो जाये । पालीताना जानेवाले जेतलसर, घौला, गाड़ी बदलकर मीहोगरोड़ उतरें ।
(८१) सीहोग। यहांमे गाडी बदलकर पालीताना जावे । यहांसे जाते आते भावनगर जरूर उतरे । मोहोगमें राजाका राज्य, परकोटा, दरवाना आदि गेनकदार है । ग्राममे स्टेशन २ मील है।
(८२) भावनगर । यह शहर भी ममुद्र के एक गपूपर वमा है । यहांपर भावनगर नंकमन, भावनगर मिटी ये दो स्टेशन हैं । सो यात्रियोंको सिटी उतर कर दिगम्बर जैन धर्मशाला पूछ लेना चाहिये। एक धर्मशाला स्टेशनके सामने बहुत ननदीक है। १ धर्मशाला तथा दि. जैन मदिर और मंदिरके उंचे नीचे भी बहुत प्राचीन प्रतिमा हैं । स्टेशनसे १ मील दि. जैनियोंकी वस्ती है। ) सवारीमें तांगा जाता है। भावनगर शहर अच्छा है। राजा साका राज्य है। बाग, बगीचा, राजमहल, बानार आदि देखनेयोग्य हैं। यहांकी दि० प्रतिमा बहुत दर्शनीय है। श्वेताम्बर मंदिर बहुत हैं । मगर दो-चार मंदिर कीमती देखने योग्य है। किसी भाईकी इच्छा हो तो भावनगरसे ॥) सवारीमें तांगा जाता है। पक्की सड़के उपर ८ मीलपर घोघा शहर पड़ता है, भावनगरमें १ दि. जैन पाठशाला भी है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
( ८३ ) घोघा ।
यह भी प्राचीन कालका बड़ा भारी शहर है। टापू समुद्रके बीच में है । प्राचीन खण्डर, महल, मकान, तालाव, बाजार इत्यादि देखनेके काबिल हैं। कोट दरवाजा है । २-३ घर दि०जैन हूमड़ भाईयों के रहे हैं । ३ मंदिर बहुत बढ़िया हैं। बहुत प्राचीन प्रतिमा स्फटिकमणिकी २ छोटीं हैं। एक सहस्रकूट चैत्यालय और १ धर्मशाला हैं | यहां से लौटकर भावनगर सीहोरा गाड़ी बदल कर पालीताना आवे |
५० ]
( ८४ ) पालीताना ।
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स्टेशन से १ मील की दूरीपर १ दि०जैन धर्मशाला है। पासमें नदी भी बहती है । तांगाका किराया ) सवारी बगता है । सो यात्रियोंको यहां ही ठहरना चाहिये । नदीके उस तरफ शहर, बाजार, राजस्थान, बाग-बगीचा देखने योग्य है। आगे एक दि० मंदिर और कारखाना है । वहां जाकर मंदिरका दर्शन करे | शहर देखकर कुछ मामान खरीद लेना चाहिये । दि० मंदिर बहुत सुन्दर रमणीक है । जिसमें १ वेदीमें धातु-पाषाण, चांदी - स्वर्ण, की बड़ी छबिदार प्रतिमा बिराजमान हैं । १ शास्त्र भंडार और सम्मेद शिखर जी के पहाड़की भी रचना है । फिर सवेरे ४ बजे उठकर नित्य क्रियाओंसे निवटकर कुछ कंगालोंके दानके लिये पाई वगैरह लेकर एक आदमीको साथ लेकर रास्ते में अनेक श्वे० धर्मशाला देखता हुआ पहाड़की तलेटीमें जावे । दि० धर्मशालासे तलेटी १ || मील पड़ती है। पक्की सड़क है। हजारों लोग आते जाते रहते हैं। पहाड़की तलेटीके पास बंगला, वृक्षकी छाया,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५१ पानीका कुंड और प्याऊ है। यहां खाने पीनेका भी सामान मिलता है। यहांसे पहाइके उपर जानेको ३) रुपयामें डोली मिलती हैं। गोदी मजूर भी मिलता है। धर्मशालासे यहांतक आने-जानेका तांगा बैलगाडीका किराया सिर्फ ) है । यहांपर पाई, पैसा, भूना चना मादि सामान भी मिलता है। कंगालोंको बांटना चाहिये। फल, मिठाई, मेवा, पुडो आदि सब मिलता है। फिर यहांसे पहाड़ ऊपर जावे ।
(८५) शत्रुञ्जय पर्वतका वर्णन । इस पर्वतका चढ़ाव २॥ मीलका है । चढ़ने के लिये पत्थरकी सड़क बनी है। कहीं२पर सीढ़ियां भी है । पहाडका चढ़ाव सरल है । सस्तेमें कुड, मंदिर, छत्रि आदि बने हैं। आगे जाकर दो रास्ता फूटते हैं। पश्चिमकी तरफ श्वेताम्बरको राम्ता गया है। दुसरा सीघा राम्ता जाता है, मो मीधे राम्ने जाना चाहिये । आगेके राम्नेमें यात्रियों के गिरनेके भयसे कोट खिचा हुआ है। इसके आगे बड़ा भारी गढ़, धर्मशाला, पक्की सड़क, कुंड, तालाव, भोजनशाला और छोटे बड़े ३५०० साढ़े तीन बार मंदिर श्वेताम्बरके बने हैं। उनके मंदिर और प्रतिमा भी दि० भाइयों को देखना चाहिये। आगे जाकर १ मंदिर भाता है। वह मंदिर और प्रतिमा मनोहर है। यहांसे अर्जुन, भोम, युधिष्ठिर ये तीन पाण्डव और आठ करोड़ मुनि मोक्षको गये हैं। आगे वो रास्ता फूटकर गया था वहां भी एक बड़ा दुसरा गढ़ है। मंदिर है। मगर दोनों ही गढ़ ऊपर जाकर एक होगये हैं। रास्ता दोनों तरफ माने-जाने का खुला हुआ है। वहांके दि. मंदिरमें मुल नया प्रतिमा शांतिनाथ महारानकी है। और पात, पाषाणकी प्रतिमा
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५२ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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बहुत हैं | यहांकी जितनी यात्रा करनेकी इच्छा हो उतनी है करके स्टेशनपर आजावे । सीहोरारोड गाड़ी बदलकर फिर भाव नगर, गिरनार या वढवान वीरमगांम जिघर जाना हो उघर जावे ( ८६ ) अहमदाबाद |
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यह एक बड़ा शहर है | यहांसे रेलवे बहुत जाती हैं। यह जंकशन भी बड़ा है । (१) आबू, अजमेर, फुलेरा, जयपुर, बांदी कुई, भरतपुर, रेवाड़ी देहली तक । ( २ ) सूरत - बम्बई तक | (३ वीरमगांव, ईंडर प्रांतीज, धौलका । और भी बहुत जगह गाड़ी जाती हैं | यहां पर स्टेशन के सामने हिंदू धर्मशाला है । वहीं पर ठहरन चाहिये । पाव मीलकी दूरीपर साकर बाजार में चैनसुख गंभीरमलजी श्रावगीकी कोटी है | वहां पर पानीकी बावड़ी, शौचस्नान, चैत्यालय आदिका सुभीता है । इसी चैत्यालय में एक बड़ी मनोज्ञ प्रतिमा बाहर से लाकर विराजमान की है। प्रतिमा प्राचीन दर्शनीय है । स्टेशन से २ मील की दूरी पर शलापोमरोडपर शहर में प्रे० मो० दि ० जैन बोर्डिग में भी ठहरनेको धर्मशाला है । यहां भी चैत्यालय और पानीका आराम है, -) आना सवारी में मोटरवाला लेजाता है । अतः इसी बोर्डिग में ठहरना चाहिये । आगे इच्छा यात्रियोंकी । फिर एक I I आदमी साथ लेकर दर्शनको जावे । एक मन्दिर पतासीकी पोल, २ मंदिर मौहिरा और बहुत प्रतिमा मांडवीकी पोल में हैं । १ चैत्यालय माधुपुरा में सेठ मनीराम गोवर्धनदास मन्दसौरवालोंकी दुकान के ऊपर, १ छीपापोल में जयसिंहमाईका चैत्यालय है । इत्यादिका दर्शन करे। यहां कपड़ा, कांच, लोहाका कारखाना है। गांधीजीका आश्रम और माणिकचौक आदि बाजार देखना चाहिये । यहां सब
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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रहका सामान मिलता है। कुछ लेना हो तो लेलेवे। यहां श्वेताम्बर भाइयोंकि सात हजार घर हैं व ३५० मन्दिर है। जिनमें कुछ देखने काबिल हैं। फिर यहांसे स्टेशन आकर ईडरका टिकट १) देकर लेना चाहिये । बीचमें रखियाल, तलोद, प्रान्तीन, हिम्मतपुर 1 नगर पड़ते हैं । हिम्मतनगर से मोटर में भीलोड़ा, डुंगरपुरका दर्शन करते हुए केशरियानाथ की यात्रा करके फिर उदयपुर जावें । सब दि० जैन मन्दिर और घर हैं । ( वह हाल गिरनार से केशरियानाथकी यात्राका लिखा है ।)
० - ७० घर
( ८७ ) ईडर । स्टेशन से ग्राम १ मीलकी दूरीपर है। मोटर, कुही आदि मिलते हैं । यह ग्राम राजाका होनेसे बड़ा रोनकदार है । यहां १ दि० धर्मशाला, १ बोर्डिंग, १ कन्याशाला और अनुमान ६ 'जैनियों के हैं । ३ मंदिर बड़े२ आलीमान बने हुए हैं। चौतरफ प्राचीन प्रतिमा पाषाण, बा, चांदी आदिकी मनोहर हैं । १४ प्रतिमा चांदीकी और १४ प्रतिमा सहस्रफण युक्त सर्पवाली पार्श्वनाथकी हैं । ३ प्रतिमा बहुत विशाल हैं । एक मीलकी दूरीपर गढ़पर बहुत प्राचीन मंदिर है । सब दर्शन करें | यहांपर लकड़ीका खिलौना, चक्र, वेलन, पहिरनेका गहना आदि बहुत चीनें तैयार होती हैं। और फिर दिशावरोंको भेजी जातीं हैं। यहांका मंदिर पहिले भट्टारकनीका प्राचीन ढंगका बनाया हुआ है । पहिले यहांपर स्थिरस्थायी भट्टारककी गद्दी २७ पीढ़ी तक चलती रही थी। जिसमें बहुतसे महाराज विद्वान्, तपस्वी, कांतिबान हुए । उनके उत्साहसे यहां पर हस्तलिखित शास्त्रोंका बड़ा
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५४]
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। बच्छा संग्रह है। छोटे बड़े पांच हजार धर्मशास्त्र, वैद्यक, ज्योतिष, छंद, व्याकरण, गायन, मंत्र, यंत्रादिक अनेक चित्रकारी सहित बहुत सुन्दर अक्षरोंमें लिखे हुए शास्त्र बिराजमान हैं। उनका दर्शन करके लौटकर स्टेशन आवे। फिर २) टिकटका देकर वडालीका टिकट लेवे । ईडरमें श्वेताम्बर घर और मंदिर भी हैं।
(८८) वडाली। स्टेशनसे १ मील ग्राम है । पहिले यह ग्राम बहुत बड़ा शहर था । अब छोटा रह गया है । पहिले यहांपर १०० घर दि. जैनके थे । अब कुछ नहीं है ! मंदिरका कार्य एक श्वेतांबर भाईके हाथ में है, मंदिर बहुत बड़ा चौवीस देहरीका है। १ वावड़ी १ धर्मशाला है । पहिले यहां भगवान पार्श्वनाथके शरीरसे अमृत (मीठा पानी) निकलता था । और अनेक प्रकारके अतिशय होते थे । हालमें भी इन पार्श्वनाथका बहुत अतिशय है। हजारों यात्री लोग रोल कबोल चढ़ाने व यात्रा करनेको आते हैं। यहांपर मेला भरता है। मंदिरमें और प्रतिमा हैं। ग्राममें पूजा, खानेका सामान सब मिलता है । ग्राम ठीक है । श्वेतांबर घर बहुत हैं । यहाँकी यात्रा करके स्टेशन भावे, फिर १।) देकर अहमदाबादका टिकट लेना चाहिये । अहमदावादसे पावागढ़ या चांपानेरका १६) लगता है । बीचमे गाड़ी बड़ौदामे व चांपानेर रोडपर बदलती है।
(८९ ) बड़ौदा शहर । स्टेशनसे २ मीलपर वाडीकी दि. धर्मशालामें उतरे । इक्काबाला ।) सवारी लेकर उतार देता है, यहां दि० का कुछ घर क. मंदिर है। पावागढ़का भंडार मादि कारखाना यहांपर नयी पोलमें है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [५५ श्वेताम्बर मंदिर व पर बहुत हैं, शहर बहुत बड़ा है, सामान सभी. तरहका मिलता है। यहां दूसरी धर्मशाला भाड़ेवालोंकी, तीसरी धर्मशाला कुंवा हिन्दू लोगोंके ठहरनेको विना भाड़ेकी पासमें है, बाजार भी नजदीक है। स्टेशन के पास बहुत लंबा चौड़ा राजाका राणी बाग है, उसमें हजारों रचना देखने योग्य हैं। कचहरी बाग, राजमहल, बानारादि बहुत बढ़िया चीनें देखनी चाहिये। बड़ौदासे महमदावादका १) टिकटका, पावागढ़ चांपानेर रोड़का ) टिकटका लगता है । चाहे निघर चले जाओ। आगे चाम्पानेर गाड़ी बदलनी पड़ती है । पावागढ़ को छोटी लाइनकी गाड़ी जाती है।
(९०) पावागढ़ सिद्धक्षेत्र । स्टेशनसे आप मोल दि. जैन धर्मशाला व मंदिर है । बाजार डाकखाना ननदीक है। वहांपर उतरे। स्टेशन ऊपर कोठीका एक जमादार गाड़ीके समयपर खड़ा रहता है । सो यात्रियोंको पूछ लेना चाहिये । और मजदूर भी मिलते हैं । पावागढ़ जमीनसे लगाकर ३ मील पहाइतक बड़ा भारी शहर वसा था नो कोट, परकोटा, राजदरबार, तोपखाना, भौंहरा, तालाब, कुवा आदि चीनोंसे सुशोभित था। जिसका वर्णन कहांतक किया जाय । प्रत्यक देखनेसे वही मानन्द मासकता है। कुछ पहिले यहां मुसलमान बादशाहका राज्य रहा था सो मसजिद भी देखने योग्य हैं । फिर पहाड़, सड़क, गढ़, दरवाना, देखते हुए २॥ मील पर्वतके ऊपर जावे । यहांकी चढ़ाई बहुत सरल है। पहारके अन्तमें एक दिगम्बर जैन मंदिर खण्डित है। प्रतिमा विराजमान है। यहां एक छत्री रामचंद्रनीके पुत्र लवणांकुखकी चरण पादुका
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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हैं । लवणांकुशादि साढ़े पांच करोड़ मुनि मुक्तिको गये हैं । एक कूआ व तालाव है । पहिले पहाड़ पर हजारों दि० मन्दिर थे । आज वही सब खंडहर हैं। मंदिर के पत्थरोंमें हजारों जैन मूर्तियां खुदी हुई हैं ! यहांके पत्थरोंसे पहाड़पर एक अंबिका देवीका मंदिर बना हुआ है । ऊपर बहुत बड़ी यात्रा है । हजारों अर्जेनी देवीको भेंट पूजा लेकर जाते हैं । जैनियोंकी कोशिश से यहां देवीको नारियल, केशर, फूल, मिठाई, चूरमाका लड्डू, चढ़ता है । परन्तु जीवघात नहीं होता है । यहांकी वंदना करके लौट आना चाहिये। यात्रियों को चांपानेर स्टेशन जाना चाहिये। अगर यात्रियों को आगे जाना हो तो गोधरा, दाहोद होता हुआ रतलाम जावे । और पीछे जाना हो तो लौटकर बड़ोदरा जावे । बीचमें रतलाम लाइनमें १ डाकौरजीनाथ बैष्णव भाईयोंका तीर्थ भी है।
(९१) गौधरा ।
स्टेशन के नजदीक अच्छा शहर है । मुसलमानोंकी वस्ती अच्छी है । श्वेताम्बरोंके घर और वस्ती भी टीक है । दि० कुछ नहीं है ।
( ९२ ) डाकौरजी |
यह वैष्णवोंका तीर्थ है । आणंद गोधरा के बीचमें डाकौर स्टेशन पड़ता है । गोवरासे ||) और आनंदसे । - ) का टिकट है । स्टेशनपर तांगावालोंको ठहराके ग्राम में चला जाय, प्रत्येक सवारीका =) लेते हैं। ग्राम अच्छा है, सामान सब मिलता है। यहां वैष्णव धर्मशाला तथा बहुत लोगोंकी धर्मशाळा हैं। डाकौरमी मंदिर
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जैन तीर्षयात्रादर्शक। [५७ सोनेका किवाड़ कलशा सहित है, और थंभ चांदीके हैं । डाकौर. जीकी मूर्ति बहुत बढ़िया है । ४ तालाव हैं, हमेशा यात्री माते रहते हैं। लौटकर बड़ोदरा आवें फिर यहांसे अंकलेश्वर भावे । टिकट १ है, किसीको अहमदावाद जाना हो तो चला जाय ।
(१३) अंकलेश्वर । म्टेशन १ मील दूरीपर दि० धर्मशालामें उतरे । ४ मन्दिर और बहुत प्रतिमा हैं । भौंहरामें एक प्राचीन अतिशयवान् प्रतिमा श्री पार्श्वनाथकी चिंतामणीके नामसे जगत्प्रसिद्ध है, सबका दर्शन करके लौट आवे । इसी अकरेश्वरमें पुष्पदंत भुनवली आचार्य महारान गिरनारके वनमेंमे जयधवल महाधवल शास्त्र ताइपत्रोंपर वृक्षके रमकी म्याही र लिवकर यहांपर पधारे थे । सो जेष्ठ सुदी ५को श्रृंतपंचमीका उत्सव करके शास्त्रनी यहांपर विराजमान कर गये थे । वही मिहान शास्त्रनी यहांपर बहुत काल विराजमान रहे। फिर यहांसे मोलापुर, कोल्हापुर होते ..ए. वही शास्त्र मूलबद्री पहुंच गये हैं। आज वहींपर विराजमान हैं । यह अंकलेश्वर जैनियों का प्राचीन स्थान है। यहां पर श्वेतांवर घर और मंदिर भी हैं। यहांसे लौटकर मुरत उतरे, टिकट ।) है।
(९४) मुरत जंकशन । स्टेशन के पास तासवाला सेठकी छोटी दि. धर्मशाला व चैत्यालय है। यहींपर उतरें । एक दुसरी धर्मशाला १ मोलकी दुरीपर चन्दावाड़ी भी है, ॥ सवारी तांगावाला लेता है। यहाँपर सब बातका माराम है । पासमें सेठ मूलचन्द किसनदासनी कापड़िया रहते हैं। उन्हीं मेनविनय प्रेस है
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५८] . बैन तीर्थयात्रादर्शक।
और अके सामने मापका कापड़िया भवन तथा बड़ा भारी दि. जैन पुस्तकालय है। यहींसे जैनमित्र, दिगंबर जैन और जैन महिलादर्श निकलता है। इनका आफिस वगैरह भी देखना चाहिये । तरहरके चित्र और पुस्तकें मिलती हैं। २ विशाल मंदिर भी पासमें हैं। जिसमें अत्यन्त मनोज्ञ प्रतिमा है और एक मंदिर गोपीपुरामें है । यहां दोनों जगहपर एक काष्ठासंघ, नरसिंहपुराकी गद्दी, दूमरे मूलसंघ हूमडोंकी गद्दीके दो भट्टारकनी रहते थे । यहांसे फिर नवापुरा, ४ मंदिर हैं, उनका भी दर्शन करना चाहिये। यहांपर एक पाठशाला और श्राविकाशाला चलती है। सुरत शहर बहुत बड़ा है। प्राचीन दिगम्बरियोंकी वस्तीमें अब तो करीब ८५ ही घर हैं । परन्तु श्वेतांबर घर ७०० हैं और ४० बड़ेर मंदिर भी हैं। जिनमें कुछ मंदिर, बाजार देखने योग्य हैं। यहांपर माल हर किस्मका मिलता है । यहांसे एक रेल्वे जलगांव, अमलनेरकी तरफ सुरत ताप्ती लाईन जाती है । एक बंबईको, १ महमदावादको निसमें पहिली जलगांव लाईनका किराया ।) टिकट देकर वारडोली उतर पड़ना चाहिये ।
(९५) बारडोली। स्टेशनसे ग्राम आप मील है । दो आना सवारीमें तांगावाला जाता है। शहरमें श्वे० घर और मंदिर बहुत हैं। सो शहरमें जाना चाहिये। फिर वहांसे बैलगाडी व तांगा या मोटर करके महुवा जावे। बारडोलीमें दि• कुछ भी नहीं है। एक नदी है। ग्राम अच्छा है। महुवा तक पक्की
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(९६) महुवा ( विघ्नेश्वर अतिशयक्षेत्र ) महुवा ग्राम ठीक है । नदीके किनारे धर्मशाला, मंदिर, कुआ, बगीचा है। मंदिर में एक भौंहरा और ४ वेदीजी हैं । जिसमें अनेक प्रतिमा प्राचीन अतिशययुक्त पार्श्वनाथकी विराजमान हैं। इसका भी बहुत अतिशय है। जैन-अजैन, पारसी, मुसलमान यादि सभी लोग बोली चढ़ानेको यहांपर आते हैं। मुसमानपारसी लोग जीवित मुर्गा विघ्नहर पार्श्वनाथ के नामपर चढ़ाते हैं। यहांकी यात्रा करके वापिस स्टेशन बारडोली आवे । फिर वहांसे जलगांव भुसावल आदि जाना ही तो इधर जावे । तीचमें एक चींचपाड़ा स्टेशन पड़ता है । वहां से मोटर तांगासे पीपलनेर होकर श्री मांगीतुंगीजीको पक्का रास्ता जाता है । सो सिर्फ बहुत ही नजदीक ३९ मील पड़ता है । और नासिक मनमाडसे मांगीतुंगीजी ५४ मील पड़ता है । पीपळनेर में भी दि० जैनवस्ती है। और १ मंदिर भी है। यहांसे साकरी कुमबा होकर पक्की सड़कसे धुलिया जावे। और मांगीतुंगी से १ सड़क सटाना, माल्यागांव होकर मनमाड जाती है। और वही रेलसे भी मिलमाती है । अब हम जलगांवका हाल लिखने है। फिर ये ही रेल नागपुर जाकर मिलती है। एक जळगांव से बंबई तक जाती है। बारडोली से जलगांवका किराया १ ॥ ) लगता है । भुसावल गाडी बदलकर अकोला जाते समय रास्ते में भुसावल, मलकापुर आदि सब जगह दि० जैन वस्ती है । और मंदिर भी हैं। भुसावल में रेलवेका कारस्थाना देखने योग्य है ।
(९७) जळगांव ।
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( ९८ ) अकोला |
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स्टेशन से १ मीलपर जयकुमार देवीदासजी चवरे वकीलकी धर्मशाला है । तांगावाला ) सवारी लेता है । वहीं मंदिर, कुवा, बोर्डिग, जंगल आदि सबका सुभीता है। फिर शहर में एक मंदिर है सो दर्शन करके शहर देखनेको निकले। यह बढ़िया है । हरएक वस्तु मिलती है। यहां ४० घरके लगभग दि० जैन हैं। यहांसे सवा रुपया सवारी सिरपुर तक मोटर जाती है । बीचमें माल्यागांव पड़ता है । इच्छा हो तो उतर जाना चाहिये । ( ९९ ) माल्यागांव |
यह अकोला बासीमके बीच में अच्छा शहर है। एक चत्यालय और ४० घर दि० जैनियोंका है। यहां भी एक नांदिया देखने योग्य है । यहांसे रास्ता मुड़कर मिरपुर जाता है । और यहां एक रास्ता सीधा सड़क से १२ मील मोटर मे बामीमगांवको जाता है । बामीमसे १ || ) सवारी में हिंगोली तक मोटर जाती है । हिगोली से रेलवे जाती है। सो रेलवे पूना जंकशन बदलकर १ औरंगाबाद होकर मनमाड़ जाती है । एक लाईन सिकन्दराबाद हैदराबाद निजाम होती हुई वाड़ीतक जाती है। वैझवाड़ा जाकर मिलती है । इस लाईन में एक माणिकस्वामी (सिकन्दराबाद), १ उखदळजी, १ औरंगाबाद, एरोलागेड़ ये ४ यात्रा पड़ती हैं । उनको जागे लिखेंगे ।
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(१००) सिरपुर - श्री अंतरीक्ष पार्श्वनाथ अति० क्षेत्र ।
सिरपुर ग्राम मामूली अच्छा है। यहां दि० घर ४० हैं । एक बहुत मजबूत धर्मशाला और तोप लगानेकी सीन्ही, डीगे,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । ऐसा १ चार मंजिलका मंदिर जमीनमें बना हुआ है। इस मंदिरका बाहरी दरवाजा छोटासा है। भीतरी बड़ा है । २ खंड जमीनमें और २ उपर हैं। भोहराके भीतर एक मंनिलमें क्षेत्रपालकी स्थापना है । बीचके मंनिलमें श्री पाश्वनाथकी प्रतिमा बहुत प्राचीन हैं। पहिले कुछ नमीनसे ऊंचे रहती थी, अब कुछ नीचे है । इमलिये अंतरीक्षनी कहते हैं । और भतिशयवान होनेसे अतिशयक्षेत्र भी कहते हैं। यहां हजारों यात्री घनी पूना लेकर माने हैं । दर्शन करके शिवपुर जाते हैं । यहां दो दालानमें ३ वेदियां और हैं, जिनमें बहुत प्रतिमा विराजमान हैं। यहां केशर फूल दुग्धादि बहुन चढ़ता है । घोका दीपक दिन रात हमेशा जलता रहता है। यहां खाने पीने व पूनाका सामान सब मिलता है। यहांसे माधमील एक बगीचा है । वहींसे ये भगवान प्रगट होकर पधारे हैं। वहां मंदिर, बगीचा, चरण पादुका है । सब दर्शन करना चाहिये। फिर यहांमे एक कच्चो राम्ता १० मील बामीमको जाती है । परन्तु यात्रियों को लौट कर फिर आकोला आना चाहिये ।
(१०१) बगीचा सिरपुर । पहिले यहीं पर्श्वनाथ स्वामीकी मूर्ति इस बगीचेमें बहुत काल तक जमीन के भीतर विराजमान रही । फिर एक आदमीको स्वम दिया, उसीसे प्रतिमा बाहर निकाली गई । जिस स्थानपरसे प्रतिमा निकली थी वहांपर एक चबूतरा बनवाकर चरणपादुका स्थापित करदी थीं। पहले वहांपर सिरपुर बड़ा शहर था। सो बगीचेके पास ही मंदिर बनवाकर प्रतिमा विराजमान कर दी थी। फिर हमेशा लोग दर्शन पूजन कहते रहे । नयार चमत्कार दिख.
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६१] जैन तीर्थयात्रादर्शक। नेसे लोग हजारोंकी संख्या दर्शनोंको आने लगे। फिर इसी प्रतिमा के प्रभावसे शहरके बोचमें मंदिर आगया। फिर कालदोपके प्रभावसे वस्ती घट गई, मंदिर जीर्ण होगया। इस कारणसे प्रतिमाको यहांके मंदिरमें विराजमान कर दिया । मो यह मंदिर भी बहुत जीर्ण होगया है। दर्शन करके फिर आकोला आना चाहिये। टिकट ॥) का लेकर-फिर मूर्तिनापुर आवे ।
(१०२) मूर्तिजापुर । ___ म्टेशनसे २ मीक गहर है। तांगावाला 1) सवारीमें लेजाता है। यहांपर १ दि. जैन मंदिर व जैनियोंके २० घर हैं । शहर ठीक है। यहांसे ३ रेलवे लाईन जाती है। १ अननग्राम एलिचपुर, २ नागपुर, ३ कारंजा। अगर किसीको पहिले कारंजा जाना हो तो जावे । वहांसे लौटकर मूर्तिजापुर आवे । पलेचपुर जावे । और कारंजा नहीं जाना हो तो परतवाड़ा एलेचपुर जाना चाहिये।
(१०१) कारंजा (अतिशय क्षेत्र)। स्टेशनके सामने महावीर ब्रह्मचर्याश्रम बना हुआ है। जो यात्रियोंकी इच्छा हो तो यहींपर ठहर जावें, अगर इच्छा नहीं हो तो शहरकी धर्मशालाओंमें ठहरें। 4) सवारीमें तांगावाला लेनाता है । शहरकी धर्मशालामें कुआ मादिका आराम है। वहीं पर ३ मंदिर भी हैं। जहांपर इच्छा हो वहीपर ठहर जावें। कारंजा शहर बहुत बढ़िया है। यहांपर व्यापार बहुत होता है। ३०० घर दि. जैनियोंके हैं। वे लोग भी धनाढ्य हैं। १ काठासंघ, २ सेमगणगच्छ, ३ मुलसंघ इन तीन संघोंके तीनों मट्टारककी ३ गहियां प्राचीन हैं। और ३ मंदिर भी बड़े विशाल हैं। जिन्होंन
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
५३ प्राचीन प्रतिमाएं बहुत मनोज्ञ हैं । २ सहस्रकूट चैत्वाल्य, १ नंदीश्वर द्वीप, बहुत यंत्र और पंचमेरु हैं। यहांकी प्रतिमा अपूर्व दर्शनीय हैं। एक मंदिरके भंडारमें बहुत प्रतिमा स्फटिकमणि, मुंगामोती, चांदी आदिकी हैं। सो यात्रियोंको भंडारके सेठको बुलाकर दर्शन अवश्य करना चाहिये । एक वयोवृद्ध सेनमणकी गादी में भट्टारक श्री वीरसेन स्वामी अध्यात्म शास्त्र के ज्ञाता, वेदशास्त्र के मर्मी हैं। उनसे मिलना चाहिये । बड़ेर जैन अजैन विद्वान इनसे मिलने जाते हैं। फिर ब्रह्मचर्याश्रम देखना चाहिये । फिर लौटकर १ || - ) देकर ऐलेचपुर जाना चाहिये । बीचमें मूर्तिजापुर गाड़ी 1 बदलना चाहिये । रान्तेमें अजनगांव पडता है । यहांपर ३ मंदिर और सेठ मोतीसाव आदि दि० जैन रहते हैं ।
( १०४ ) एलेचपुर |
स्टेशनसे पहिले ) सवारीमें परतवाडा जाना चाहिये ।
( १०५ ) एलीचपुरकी छावणी ।
यहां पर १ दि० धर्मशाला, १ मंदिर और २० गृह दि० जैनके हैं। पांच मील उपर सेठ किशुनलाल मोतीलालजीका बगीचा है । यहां पर जंगल, कुआ, मंदिर सब हैं । यह स्थान स्टेशन से परतवाडा जाते समय गनेमें पड़ता है। यात्रियों को तांगावाले से कहकर जहां चाहे टर जाना चाहिये । महांसे ) सवारी में मोटर एलेचपुर जाती है। सो पहिले वहां जाकर दर्शन करें । (१०६) एलेचपुर शहर ।
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यह शहर पुराना है, यहां १ स्थानमें ४ मंदिर हैं, सो छकर दर्शन करना चाहिये। एक मंदिर सुलतानपुरा में है। यहां
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। सेठ नत्थुसा पासुसा बड़े धनाढ्य हैं। सो इनके मकानके उपर १ प्रतिमा ३ अंगुलकी कायोत्सर्गासन लाल मूंगाकी, १ प्रतिमा मोतीकी, १ चांदीकी हैं उनका दर्शन करना चाहिये। फिर लौटकर परतवाड़ा, बगीचा इन दोनों स्थानों का दर्शन करें। तांगा, बैलगाड़ी मोटर अथवा पैदल श्री मुक्तागिरिनी जाना चाहिये । यहांसे ९ मील दूर है । ४ मील खुरपी तक पक्की सड़क है । ५ मील तक कच्ची सड़क है । खुरपीमें रास्तेपर एक बढ़िया मंदिर है । यहांका जाते या आते समय दर्शन करना चाहिये। यहांपर रात्रि में रहनेका भी सुभीता है।
(१०७) श्री मुक्तागिरि (सिद्धक्षेत्र )। यहांपर पहाड़की तलेटीमें १ मंदिर, १ दि० धर्मशाला, कुआ नदी, कोठीका कारखाना है । मुनीम, पुनारी, नौकर, चाकर यहां पर रहते हैं । यहांसे यात्रियोंको निवट कर शुद्ध द्रव्य लेकर पहाड़की वंदनाको जाना चाहिये । पहाड़की चटाई आध मीलकी सीधी है। पहाड़पर ३५ मंदिर, देहरा चरणपादुका है। पहाड़ बहुत रमणीक है । यहांसे साढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्ष पधारे हैं। पहाइपर हमेशा रात्रि केशरकी वृष्टि होती है। कभीर कुछ वाजे भी सुनाई पड़ते हैं, पहाड़ ऊपर नदी बहती है, पानी वहता हुआ नीचे तक आता है । यहांपर पहाड़की गुफामें बड़ा२ भौहरा, परकोटा, प्राचीन मंदिर प्रतिमा बहुत बढ़िया हैं । पहाइपर २ देहरिया हैं । महापर पानी पड़ता है। कई मंदिरोंमें बड़ी विशाल प्रतिमाएं है। एक पार्श्वनाथस्वामीका बड़ा मंदिर है। एक भौंहरामें दीपले वन मना पड़ता है। यह पहाड़ मेढ़ेके सींघ सरीखा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [६५ टेड़ा है। यहां एक मेढ़ेके जीवको मरनेके समय मुनिराजने धर्मध्यान सुनाया था। वह मरकर देव हुआ । सो वह इसी पहाड़का रक्षक शामनदेवता हुआ था । इसलिये उक्त दोनों कारणोंसे इसको मेदागिर कहते हैं। प्राचीनकालमें बहत मुनिगण ध्यान करते थे। पहिले समयमें यहां मोतियों की वृष्टि हुई थी। इस कारण मुक्तागिरि भी कहते हैं । यहांकी वंदना करके फिर परतवाड़ा आजाना चाहिये। यहांसे II) सवारीमें मोटरसे अमरावतीको जाना चाहिये। अमरावतीको रेलका रास्ता बदनेरा होकर आता है। मगर इममें चक्कर बहुत है । और किराया भी २) लगता है । इसलिये परतवाड़ासे मोटरमें सवार होकर अमरावती आना चाहिये । परतवाड़ा
और अमरावतीका रास्ता १५ मील पडता है। रेलसे जानेसे रुपया भी ज्यादः और चक्कर भी पड़ता है।
(१०८) अमरावती शहर । नागपुर वर्घाके आगे बदनेरा स्टेशनसे आगे -) टिकट लगता है। स्टेशनसे शहर लगा हुआ है। यहांकी दि. जैन धर्मशाला १ मील पड़ती है। -) सवारीमें तांगावाला परवारके मंदिरमें लेनाता है । सो धर्मशालामें ठहर जाना चाहिये । यह परवारोंका ही बड़ा खुबसूरत मंदिर है। यहांपर ( वेदी हैं। जिसमें धातु पाषाणकी बहुत मनोज्ञ अनेक प्रकारकी प्रतिमा हैं। यहां एक मलमारीमें १५ प्रतिमा स्फटिकमणि, १ मूंगा, १ मोती, २ चांदी, १ हीराकी हैं सो सबका दर्शन करें । बादमें एक भादमीको साथ लेकर ४ मंदिर बुधवारी, ४ शुक्रवारीमें हैं । और घर२ कुछ चैत्याग्य हैं। एक मंदिरके भौंहरेमें भीतर बहुत प्रतिमा है। सबका
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। दर्शन करके आनन्द होता है । अमरावती शहर पुराना है । कुछ देखना, खरीदना हो तो देखे, खरीदें। चारों तरफ कोट और दरवाजे हैं। यहांसे बैलगाड़ी भाड़ा करके श्री भातकुलीनी जावे। रास्ता केवल ( मील ही पड़ता है । भाड़ा ॥) ही लगता है।
(१०९) अतिशयक्षेत्र भातकुलीजी। ___मूर्तिजापुरसे दो स्टेशन कुरम हैं वहांसे भी भातकुली आते. जाते हैं । परन्तु राम्ता १० मील पड़ता है । सवारी भी मिलती है। यहां एक धर्मशाला, ३ मंदिर हैं। जिनमें ६ वेदियां हैं। प्रतिमा मनोज्ञ और विशाल हैं। मूलनायक प्रतिमा श्री आदिनाथ स्वामीकी चतुर्थ कालकी दर्शनीय है। जमीनमें से एक आदमीको पवन देकर निकली थी। यहां भी बहुत यात्री भाते हैं । घृतका दीपक जलता है। दुग्धमे प्रच्छाल होता है और केशर, फूल चढ़ता है। एक मंदिरजीमें १ लालवर्ण, १ श्वेतवर्ण, १ श्यामवर्ण ये तीन प्रतिमा पद्मामन बहुत बड़ी हैं, और प्रतिमा भी अधिक हैं। यहांपर १० घर दि. नोंके हैं, धर्मशाला प्राचीनकालकी बनी है। यहांकी यात्रा करके कुरम या अमरावती आवे । फिर रेलमें बैठकर नागपुर जाना चाहिये । टिकिटका दाम १) लगता है, बीचमें धामणगांव म्टेशन पड़ता है । अगर यात्राकी इच्छा हो तो उतर पड़े, फिर बीचमें वर्धा पड़ता है। यहां १ धर्मशाला और १ पाठशाला, मन्दिर भी है। नियोंकी वस्ती बहुत है, फिर नागपुर जावे । स्टेशन नागपुर जंकशन है, दीतवारे वागारमें २ धर्मशाला हैं, सो जंकशन उतरना चाहिये वहासे २ मील धर्मशाला पड़ती है, और दीतवारी उत नेमे आप मील पड़ती है, चाहे महापर
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [६७ उतर पड़े। धामणगांवसे गाड़ी आदि सवारी लेकर कुंदनपुर जावे, १२ मोलकी दूरीपर है।
(११०) कुन्दनपुर अतिशयक्षेत्र । यह अतिशयक्षेत्र अमरावतीसे वर्धा नदीके किनारेपर है। यहांपर राजा भीष्मकी पुत्री रुक्मिणीका विवाह श्रीकृष्ण नीके साथ हुआ था। यह वही कुंदनपुर है। यहांपर बहुत विशाल तीन मंदिर हैं। तीनों दि० मंदिरों के बीच एक मन्दिर बहुत ही बदिया है । एक मन्दिर वैष्णवोंका है, उसमें श्रीकृष्ण और रुक्मिणीकी मूर्ति हैं, यह मन्दिर भी कीमती है। इसमें ३ मुरंग बहुत दूर तक हैं, यहांका दि० जैन मन्दिर बहुत बढ़िया और प्राचीन है। उसमें प्रतिमाजी रमणीक मुन्दर है। यहां एक बड़ी धर्मशाला है जिसमें बड़ी दालान है, यहां बहुतसी रचना प्राचीन देखने काबिल है । यहां तीनों मन्दिर पहिले नैनियोंके थे जिसमें नेमिनाथ राजुलकी मूर्ति थी। जिसको काल दोषसे वैष्णव लोग बिट्ठा बा रखीमाई कहके पूमते हैं और नैनियों की निद्रासे २ मंदिर गोका होगया। सिर्फ १ मन्दिर जैनियों का हट गया है। यहां हजारों यात्री वैष्णवोंके आते हैं, फिर दि० भाई बहुत कम माते हैं, यह एक नामी
और प्रसिद्ध क्षेत्र है। यहांकी यात्रा भाइयों को अवश्य करना चाहिये, फिर लौटकर नागपुर पाना चाहिये ।
(१११) नागपुर शहर । स्टेशनसे १ मीलपर दि. जैन धर्मशाला है. यहाएर ठहरना चाहिये। यहीपर एक बड़ा मंदिर है, जिसमें ५-६ वेदी हैं, हजारों पतिमा हैं। यहां पानीका कुमा, मंगल, बान नदी है, एक,
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६८] जैन तीर्थयात्रादर्शक। पाठशाला है, इस मन्दिरमें १ भौंहरा है, यहां दिन घर बहुत हैं, पूरे शहरमें १० मन्दिर हैं, पूछकर सबका दर्शन करना चाहिये। एक मन्दिरजीमें ४ मन्दिर शामिल होनेसे कुल १३ मन्दिर कहे जाते हैं । यह शहर बहुत बड़ा है, सब माल विकता है । बाजार, गढ़, पलटन, तालाव, अनायब घर, देखने योग्य हैं । मनायब. घरमें बहुत दि० जन प्रतिमा बहुत हैं, मन्दिरका ठिकाना दीतवारीमें ८, सुन्दरसाका नवीन शुक्रवारीमें, १ पुरानी शुक्रवारीमें, १ दृनवाड़ामें । यहांसे फिर दीतवान स्टेशन जावे । टिकिट !) देकर रामटेक जावे, बीचमें कामठी जंकशन पड़ता है । यहां भी शहर ठीक है, बड़े मन्दिर, भौहरा, प्रतिमा है । जैनियोंके घर बहुत हैं, स्टेशनके नजदीक धर्मशाला कुआ है, यात्रियों की इच्छा हो तो उतर जावे | नागपुरसे १ रेलवे रामटेक, १ गोंदिया, छिंदवाड़ा, सिवनी होती हुई नैनपुर जा मिलती है। १ वर्धा, भुसावल, मनपाड़, नाशिक, बम्बई तक जाती है, चाहे निघर जावे । कामठीसे एक रेल गोंदिया, दुर्ग, राजनांदगांव, रायपुर, अकलतरा, विलाशपुर, जाड़सुकड़ा, खड़गपुर होती हुई कलकत्ता जाती है। इन सब मामोंमें दि० जैन वस्ती बहुत है, बीच में बहुत जंकशन पड़ता है । वहां रेलवे दुसरी २ तरफ जाती हैं। रायपुरमें दि जैन मंदिरमें पाषाणकी बहुत प्राचीन प्रतिमा हैं, २ स्फटिकमणिकी २ छोटी प्रतिमा है । इस तरफ जानेवाले भाई रायपुर दर्शन करके आगे जाय।
(११२) रामटेक । स्टेशनसे ।) माना सवारीमें बैलगाड़ीवाला श्री शांतिनाथके मन्दिरमें ले जाता है। बीचमें ३ मील पकी सड़क है, रामटेक
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [६९ शहर पुराना ठीक रास्ते में पड़ता है । फिर दिजैन धर्मशाला में जावे, यहांपर २ धर्मशाला, २ कुआ, २ वावड़ी, ३ तालाव, २ बगीचा और पहाड़ जंगलादि सब चीजें हैं। यहांके कारखानेमें मुनीम, पुनारी, जमादार, नौकर आदि रहते हैं। यहांपर कुछ ८ मन्दिर और १३ वेदी हैं, जिसमें ३ मन्दिरकी खुदाई का काम बहुत ही बढ़िया और कीमती है।
यहां पर १५ हाथ लंबी खड़गासन तप तेनमान, अतिशयवान, लाल पत्थरकी शांतिनाथ भगवानकी प्रतिमा है। इनके बगल में २ छोटी प्रतिमा है । और भी प्रतिमा हैं । पहाड़का नाम रामटेक है । यहां पर रामचन्द्र, लक्ष्मण, सीताने बहुत दिनों तक निवास किया था । इमलिये इस पहाड़ और ग्रामका नाम रामटेक पड़ा है । पहाड़ पर एक तरफ बड़ा तालाव है । एक बड़ा कोट एक तरफ खिंचा हुआ है । उसके भीतर कुण्ड और मंदिर बहुत बहुत हैं। यही मंदिर पहिले दि. जैन था । और वहीं नीचेकी मूर्ति पहाड़ उपर, और उपरकी नीचे विराजमान कर दी । परन्तु कालके प्रभावसे वैष्णवोंका यह पर्वत होगया, केवल नीचेका मंदिर जैनियोंका रह गया । पहाड़ भी देखना चाहिये । यहां पर भी हजारों वैष्णव यात्री माने हैं। और यह स्थान बहुत रमणीय शोभायमान है, यहांकी यात्रा करके लौट भाना चाहिये । कामठी माकर गाड़ी बदलकर यहांसे १।) का टिकट लेकर रायपुर होता हुआ खड्गपुर जंकशन जाकर उतरें । अगर किमीको छोटी लाइनसे जाना हो तो नागपुर दीतवारीसे गाड़ी बदलकर छिंदवाड़ा, सिवनी, केवलारी, नैनपुर, पिंठरई होता हुमा जबलपुर तक जावे । अगर
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। कामठीसे गोंदिया गाड़ी बदलकर भी छिंदवाड़ा, सिवनी आदि होकर जबलपुर तक जाती है, यात्रियोंकी इच्छा होय निघर जासकते हैं। सबका हाल नीचे देखो।
(११३) छिंदवाड़ा। म्टेशनसे २ मील दूर है, शहर अच्छा है, दि० जैन घर बहुत हैं। ८ मंदिर बड़े २ कीमती हैं जिनमें मनोहर प्रतिमा विरानमान हैं । यहांसे छ घंटा बाद सिबनीकी गाड़ी मिलती है। बीचमें शहर शैरकर आना चाहिये ।
(११४) सिवनी। म्टेशनसे ५ मीलकी दूरी पर शहर है । ३ सवारीमें तांगावाला बराबर दि. जैन धर्मशालामें लेजाता है । यहांपर रायबहादुर सेठ पुरनशाहनी, चैनसुखदास छावड़ा आदि बहुत घर दि. जैनियोंके हैं । शहर अच्छा है, साक्षात्स्वर्गपुरीके समान बहुत रमणीक है, राजमहलसे भी अधिक शोभावाले २ जिन मंदिर हैं। जिनमें १५ वेदियां और बड़ी २ विशाल प्रतिमा हैं । २ स्फटिकमणिको विशाल प्रतिमा हैं। ये मंदिर भी अवश्य दर्शन करने योग्य हैं । जड़ाईका काम अच्छा है ।
(११५) केवलारी। यह छोटासा गांव स्टेशनसे १ मील है, २ मिन मंदिर और कुछ घर नैनियोंके हैं।
(११६) पिंडरई। स्टेशनसे ग्राम १ मील दूर है, ग्राम ठीक है, १ नदी " मंदिर व बहुत घर दि. नोकरें।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [७१
(११७) जबलपुर शहर । यह शहर बहुत बड़ा है । अनुमान ३०० घर दि. जैनोंके हैं । और १२ मंदिर बड़े हैं, स्टेशनसे शहर तीन मील है, रेल चारों तरफ जाती है। १ इलाहाबाद कटनी, १ बीना सागर, १ गोंदिया, १ नैनपुर सिवनी छिंदवाड़ा, १ इटारसी खण्डवा इत्यादि लाइनें जाती हैं । दमोह मादिकी तरफ मोटर बहुत कम किरायेमें जाती हैं । सो यात्रियोंको हरसमय हरएक जगह पूछ लेना चाहिये । स्टेशनसे २ मीलके फासलापर लाटगंजकी धर्मशाला१ धर्मशाला लाटगंनमें, २ मिलोनीगंजमें है। यहां दोनों जगह बड़े कीमती मंदिर हैं। फिर तालका मंदिर पाव मीलके चक्करमें बहुत सुन्दर २ मंजलका बना हुआ है। रंगविरंगी वेदियां तरहरकी प्रतिमा बिराजमान हैं। और लाटगंनका मंदिर भी ऐसा ही बढ़िया है। उसमें भी १६ वेदीनी हैं। और शहरमें कुल १० मंदिर मलगर हैं, एक आदमीको साथ लेकर दर्शन करना चाहिये । यहांसे एक आदमीको संग लेकर ४ मीलकी दुरीपर नंगल में पहाड़ी ऊपर २ जैन मंदिर हैं इसे मदियानी कहते हैं। यहांपर दर्शनके लिये नाना चाहिये । इस पहाड़ीके पास धर्मशाला, कु, तलाव, बगीचा है । पहाड़ी के पास रास्ते १ छोटासा ग्राम पड़ता है। वहांपर इस पहाड़ीका पुजारी और माली रहता है । सो यहांसे मालीको साथ ले जाना चाहिये और इस ग्राममें भी प्राचीन दो मंदिर में उनका भी दर्शन करना चाहिये। फिर लौटकर जबलपुर भावे, बाजार भादि देखलें, व्यापार भी अच्छा है । लाटगंजकी धर्मशालाके पास मंदिर, कुवा, पाठशाला, दवाखाना आदि सब
पमा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। बातका सुभीता है। इसलिये लाटगंज ही उतरना चाहिये । यहांसे माघ मीलकी दूरीपर दिगम्बर जैन बोर्डिंग हाउस गोलबाजारमें है, यह एक विशाल इमारत है । फिर यात्रियोंको पूंछकर जबलपुरसे बैलगाड़ी, मोटर आदिसे २१ मील कौनीक्षेत्र जाना चाहिये । यह क्षेत्र पाटनसे ३ मीलकी दूरी पर है । यह एक छोटासा गांव है, यहांपर बहुत बढ़िया २ ग्यारह जिन मंदिर हैं, प्रतिमा भी प्राचीन हैं, दि० अनियोंके ८ घर हैं । यहांकी यात्रा करके जबलपुर लौट आवे । फिर कटनी मुडवारा होकर दमोह जाना चाहिये । जबलपुरसे मोटरमें जानेसे कम खर्च पड़ता है परन्तु कटनी बीचमें नहीं पड़ता है। रेलसे जानेसे थोड़ा खर्चा ज्यादः लगता है पर बीचमें कटनीका दर्शन होजाता है यह फायदा है।
(११८) कटनी-मुडवारा । मुडवारा नामका शहर है, कटनी नदीका नाम है, इसलिये इमको कटनी मुडवारा कहने हैं । यह शहर अच्छा है । एक दि. जैन धर्मशाला. २ बड़े मंदिर और पाठशाला है। दि० नैनियोंके घर बहुत हैं, स्टेशन के पास ही हिन्दू धर्मशाला है। स्टेशनसे आध मील जैन पाठशालामें भी ठहरनेका स्थान है। जो यहांसे कुंडलपुर जानेका सुभीता पड़ जावे तो यहीसे चला जावे अगर नहीं पड़े तो रेलवेसे दमोह जाकर कुंडलपुरकी यात्रा करे । कटनीसे १ लाईन सागर बीना दमोह होकर जाती है, दूसरी लाईन जबलपुर, तीसरी लाईन सतना इलाहाबाद जाती है तथा बिलासपुर भी जाती है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
( ११९ ) दमोह शहर | स्टेशन के पास पाव मील पर एक दिगम्बरी धर्मशाला है । यहां चैत्यालय, कुआ, जंगल और बाजार पासमें है, सो यहांपर ठहरनेसे सब आराम रहता है । यहांसे शहर १ मील है, शहर अच्छा है, बड़े २-३ मंदिर हैं, वेदियां भी बहुत हैं, श्री जिन विम्ब भी अधिक हैं, दि० जैनियोंकी संख्या बहुत है, पाठशाला है । यहांसे जबलपुर, सागर, ललितपुर आदि स्थानोंको रेल व मोटर आती जाती है । यहांसे यात्रियों को बेलगाड़ी आदि किराये करके कुंडलपुर अतिशय क्षेत्र जाना चाहिये । बीचमें पोष्ट पटेरा पड़ता है, यहांसे 3 मील कुण्डलपुर है । दमोहमें बाबू गोकुलचंद्र वकील अच्छे सज्जन पुरुष हैं, राज्यमान्य भी हैं ।
( १२० ) पटेरा |
यह ग्राम अच्छा है, ३ जिनमंदिर और बहुत घर दि० जैनोंके हैं । कुण्डलपुर जानेका एक रास्ता दमोहसे १ स्टेशन आगे वांदकपुरसे जाता है । यहांसे एक मील और दमोह से १६ मील कुण्डलपुर पड़ता है। बांदकपुरमें एक दि०जैन मंदिर और १५ घर दि० जैनियोंके हैं, यहां एक वैष्णवोंका मंदिर बहुत बड़ा है, यात्राको अन्य लोग बहुत आते हैं, मेला भरता है, ग्राम स्टेशन से १ मील पड़ता है । यह बीना कटनी लाईन में पड़ता है ।
[ ७३
( १२१ ) अतिशयक्षेत्र कुण्डलपुर महावीरजी । यह शहर पहिले बहुत बड़ा था। यहांपर ६-६ महिनाका मेळा लगता था । हजारों व्यापारी विदेश व द्वीपांतरोंसे जाते थे ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । लाखोंका व्यापार होता था । हीरा, मोती, माणिकका व्यापार यहां बहुत बढ़िया होता था। इस शहरमें बड़े२ धनान्य लोग रहते थे। कोई कारण पाकर किसी बादशाहने हमला किया था। सो ग्राम लुटने लगा। मनुष्योंको मारने लगे। फिर पहाड़ ऊपर महावीर स्वामीके मंदिरपर भी हमला किया। मंदिर लुटने लगा । भगवान महावीर स्वामीकी प्रतिमाको फोड़ने लगे । सो पांवके अंगूठेमें टांकी लगाते ही दुधकी धारा लग गई ! मंदिर दूधसे भर गया । मधुमक्खियां उड़कर राजाकी फौजको काटने लगी। हजारों लोग अंधे होगये ! पत्थर बरसने लगे। लोग हाहाकार करते हुए भागने लगे। बादशाह हाथ जोड़कर भगवानकी शरणमें गया और बोला कि नैनोंका देव सच्चा है । सब माल छोड़कर और अपने प्राण लेकर भागे । ऐसा यहांका बहुत अतिशय प्रसिद्ध है । अब भी लोग मनोमानता करने और दर्शन करनेको आते-जाते हैं । यह ग्राम वर्तमानमें छोटासा है। यहां एक बड़ी धर्मशाला, १ तालाव आदि है। पहाके ऊपर और नीचे सब मिलाकर कुल ६४ मंदिरजी हैं । पहाके ऊपर मानेको सीढ़ियां, कोट, दरवाना, परकोटा और पत्थरकी सड़क सब जगह बनी हुई है। इसमें मूलनायक महावीर स्वामीका बहुत बड़ा मंदिर बना हुआ है। चारों तरफ परकोटा मादिसे शोभायमान है । ऊपर लिखे हुए अतिशय युक्त महावीरस्वामीकी प्रतिमा पद्मासन विराजमान है। और भी यहांकी सब प्रतिमा बहुत मच्छी हैं। यहांकी रचना कौरह सुन्दर है, यहांकी यात्रा करके लौटकर दमोह यावे । और दमोहसे सागरकी टिकट १) देकर लेना चाहिये।
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जैन तीर्थयात्रादर्षक। [७५.
(१२२) सागर । स्टेशनसे शहर पास है। १ मीलपर सतर्कसुधातरंगणी पाठशाला तालावके पास है । कटरा बाजारमें धर्मशाला है। तांगावाला' -) सवारीमें लेजाता है । सो यहांपर उतर पड़े । कुँवा, जंगल, चैत्यालय आदि सबका सुभीता है । यहांपर कुल १३ मंदिर हैं। अंदाजा ५. वेदी हैं, हनारों प्रतिमा महामनोज्ञ हैं। एक जानकार मादमीको साथ लेकर सबका दर्शन करे। यहांपर एक बड़ा तालाव है । इससे इसका नाम सागर है । यह शहर बड़ा है । दि. नैनियोंकी वस्ती बहुत है। यहांसे मोटर या बैलगाड़ीसे बंड़ा, दौलतपुर होता हुआ श्रीसिद्धक्षेत्र नैनागिरनी जावे । बीचमे बड़ा शहर पड़ता है। १) रुपया सवारीका रेट है। सागरमें न्यायाचार्य पं. गणेशप्रसादनी वर्णी रहते हैं। पाठशाला जाकर देखे और उनके भी दर्शन करे। आप बड़े विद्वान और सरल प्रकृतिके भव्य पुरुष हैं।
(१२३) वंड़ा। यह खुद मिला है। यहां दि०के बहुत घर हैं। एक बड़ा भारी मंदिर है । जिसमें ६ वेदी और प्रतिमा बहुत हैं । यहांपर कन्हैयालाल सा और दौलतराम चौधरी मच्छे भादमी हैं।
(१२४) दौलतपुर । ___ ये ग्राम ठीक है । १ मंदिर और नैनियोंके घर बहुत हैं। यहांतक तो मोटर हमेशा भाती जाती है। बंड़ामें बहुत मोटर हर समय मिलती हैं । दौलतपुरसे बैलगाड़ी किराया करके १० मीक पर नैनागिरजी नाना चाहिये । नेनागिरभीका एक रास्ता द्रोणगिरजी तक माता-जाता है। बीच ममरगढ़, वामोरी, हीरापुर पड़ता
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
है। पक्की सड़क है। बांदा, क्षत्रपपुर, सागर लाईन में सेधपा मलारा गांवसे रास्ता फुटकर सिद्धक्षेत्रको जाता है सो पूछते जाना चाहिये । बीचके उपरोक्त गांवों में दि०जैन घर और मंदिर हैं । नैनापुर सेंदपा ३० मील दूर पड़ता है ।
(१२५) नैनागिर सिद्धक्षेत्र ।
समवशरण श्री पार्श्वजिनन्द, रेसंदीगिर नैनानन्द | वर दत्तादि पंच ऋषिराज, ते बंदौ नित धरम जिहाज || १ || यहां पर एक धर्मशाला है, पहाड छोटा जमीन बराबर है, १ तालाव है, तालावके बीच में १ मंदिर है, २ कुआ, जंगला हैं, कुल ४० मंदिर हैं, परकोटा-दरवाजा है, यहांसे दर्शन करके एक आदमी साथ लेकर सेधपा सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरजी जावे । इसका हाल ऊपर लिख दिया है ।
( १२३ ) द्रोणगिर सिद्धक्षेत्र ।
फलहोड़ी बड़गांव अनृप, पश्चिम दिशा द्रोणगिरि रूप । गुरुदत्तादि मुनीश्वर जहां, मुक्ति गये बंदौ नित तहां ॥ १ ॥
यह एक छोटासा गांव है, नदी वहती है, २ दि० धर्मशाला और १ मंदिर ग्राममें हैं, थोड़ी दूर पहाड़ हैं, आघमीलका सरल चढाव है, सीढ़ी बनी हुई हैं, पहाड़पर २२ मंदिर और १ गुफा है | यहांकी यात्रा करके एक मोटर, बैलगाड़ी या पांवसे सागर व्याजावे | यहांसे ४५ मील छत्रपुर भी जाना होता है, बीचमें मलारा गांव पड़ता है, फिर भगवा हटापुर आदि होता हुआ ३० मील जंगलके रास्ते अतिशयक्षेत्र पपौराजी होकर टीकमगढ़ महरौनी होकर ललितपुर तक | मोटरसे टीकमगढ़से ||I) सवारीमें
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [७७. पपौरानी जासकते हैं। यात्रियों की इच्छा हो जिघरसे जावे । बहुधा लौटकर सागर भावे । फिर रेलगाड़ीसे बीना इटावा जंकसन उतरे । यहांसे गाड़ी बदलकर बीना वारन लाईनसे ।) टिकट देकर मुंगावली नावे । अगर कोई भाई बीना इटावा उतरें तो वहांका हाल नीचे देव ।
(१२७) बीना-इटावा। म्टेशनसे २ मीलकी दूरी पर धर्मशाला है, । सवारीमें तांगावाला ले जाता है । यहां एक मंदिरमें ७ वेदी हैं। १ पाठशाला भी हैं । नियों के बहुत घर हैं । शहर ठीक है। लौटकर स्टेशन आवे। फिर यहांमे १ बंबई, २ ललितपुर, झांसी, सोनागिर, आगरा, ग्वालियर होती हुई देहलीतक जाती है । १ मुंगावली गुना होकर कोटा वारन तक जाती है। १ सागर दमोह तरफ जाती हैं | सो चारों तरफ जैन तीर्थ हैं । अब मुंगावली तरफका विवरण लिखता हूं।
(१२८ ) मुंगावली। म्टेशनसे १ मील ग्राममें दि० धर्मशाला है, उसका किराया -) है। ग्राम अच्छा है । ४ मंदिर हैं । और दि० जैन घर बहुत हैं । यहांसे चन्देरी १६ मील है। मोटरवाला II) सवारी लेकर पहुंचा देता है।
(१२९ ) चंदेरी शहर । यह राना शिशुपाल नोरासिंधुके समयका अच्छा शहर है। यहांका कोट, सड़क, दरवाजा, मकानात बड़े ही कीमती और मनबूत हैं। यहांपर ३ जिनमंदिर १ धर्मशाला है। एक मंदिरनीम]
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.७८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । रंगरंगकी २४ महाराजकी मनोहर और भव्य प्रतिमा बिराजमान हैं। और भी बहुत प्रतिमा है। यहां दि. जैनियों की संख्या मच्छी है । यहांकी यात्रा करके बैलगाड़ी, मोटरसे ११ मील श्री थोवननी जाना चाहिये। 1) सवारीसे २ मील जंगल में पहाड़ ऊपर तथा नीचे प्राचीन प्रतिमा, चबूतरा ऊपर चरणपादुका मादिका दर्शन करना चाहिये।
(१३०) अतिशयक्षेत्र थोवनजी। यह ग्राम छोटाता है, एक नदी है, एक पहाड़पर एक पहाइपर एक जंगलमें १ धर्मशाला १ बाबड़ी, कुल २२ मंदिर हैं। जिसमें बहुत प्राचीन बड़ी२ प्रतिमा हैं। उनमें से दश प्रतिमाएं ७-८-१०-१० हाथ ऊँची खड्गासन हैं। वे प्रतिमाएं महा मनोहर शांत छबि हैं । यह जैनियों का स्थान एक करोड़ रुपयेकी कीमतका है। यहांसे लौटकर चन्देरी आवे । चन्देरीसे मुंगावली आवे, मुंगावलीसे १८ मील अतिशयक्षेत्र श्री बीनानी जावे ।
(१.३१) बीना अतिशयक्षेत्र । बीना जानेका रास्ता दूपरा रास्ता सागरसे करेली जानेवाली सड़कके किनारे देवरी है। उससे ४ मोलकी दुरीपर बीनानी पड़ता है । यहांपर तीन मंदिर बड़े विशाल और कीमती प्राचीन बने हुए हैं । उसमें १ प्रतिमा ५ गन ऊंची श्री शांतिनाथ भगवानकी व एक प्रतिमा ४ गज ऊँची महावीरस्वामीकी विराजमान है। और भी बहुत प्रतिमा प्राचीनकालकी तप तेनवान मतिशय युक्त विराजमान हैं । एक भौंहरा भी है। हिपमें प्रतिमा है, और भी कई चीजें देखने योग्य हैं। यहांकी यात्रा करके मुंगावली
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जैन तीर्थयात्रादर्षक। [७९ जावे । किसीको सागर जाना हो तो चल भाव । मोटर सुबह शाम आती है । किराया भी २) लगता है । चन्देरीसे एक रास्ता ललितपुर भी जाता है । २२ मील करीव पड़ता है। फिर मुंगाबलीसे ॥) टिकट देकर गुना मानावे ।
(१३२) गुणा छावनी । स्टेशनसे वनरगढ़ जानेको ॥ सवारीमें तांगा हर समय तैयार मिलता है । सो यहांसे पहिले वंजरगढ़ माना चाहिये । अगर गुना शहरमें जाना है तो ॥) सवारीमें शहरमें चला जाय । व्यापारी कम्बा अच्छा है । सो यहां २ मंदिर ४ वेदी, बहुत प्रतिमा, पाठशाला, और बहुत घर जैनियों के है। यहांसे ११ मील बंजरगढ़ है, पक्की सडकका रास्ता है।
(१३३ ) अतिशयक्षेत्र श्री बंजरगढ़नी ।
यह ग्राम अच्छा है, एक दि. जैन धर्मशाला, पाठशाला, मन्दिर, बहुन घर जैनियोंके हैं । यहांसे १ फाग २ मन्दिर हैं। एक तीसरा मन्दिर २ फलोग दूरीपर है। लक्षों रुपयाकी लागतका है। निममें १ प्रतिमा २० हाथ ऊँची और प्रतिमा बगलमे १५ हाथ ऊँची मनोहर वडगापन तप नेनवान अतिशय युक्त शांत, कुन्थु, अरहनाथ नीकी प्रतिमा विराजमान हैं। यहांका दर्शन करके सब बात स्वयं माल्टन क. लेना चाहिये । यहांकी यात्रा करके लौटकर गुना आजवे । फिर गुनासे इटावा चला भावे, यहांसे किसीको मागे जाना हो तो यह गाड़ी कोटा बारनवारा तक माती है। इस लाइनमें भी बहुत यात्रा है, सो पहिले लिखी माची सो नानदा उज्जैन आदिको तरफ देख लेना चाहिये।
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८.]
जैन तीर्थयात्रादर्शक । (१३४) बंजरगढ़का अतिशय । यहांपर कभी उत्सव हुआ था, सो मुसलमान लोगोंने हमला करके उत्सवमें विघ्न किया था। मगर उसी समय यहांके मन्दिरसे भौर उड़कर सबपर टूट पड़ी । पत्थर और अग्निकी वर्षा आकाशसे होने लगी, सब जगह धुवां अन्धकार छागया, लोग सब डरकर भाग गये । फिर शांति होगई थी। फिर बीना इटावासे ॥) टिकिटका देकर (श्री चांदपुरक्षेत्र) धवला म्टेशन उतर पड़े। फिर यहांसे चांदपुरक्षेत्रकी वंदना कर लेनी चाहिये । ललितपुरसे आनेवाले भाई पहिले जाखलौन स्टेशन उतर कर देवगढ़की यात्रा करें फिर लौटती समय घवला स्टेशन उतरकर चांदपुरक्षेत्रकी वंदना करें।
(१३५ ) चांदपुरक्षेत्र । ___ यह स्थान जंगलमें जीर्ण और वे मरम्मत पड़ा हुआ है, यहां मरम्मत करना धर्मात्मा पुरुषोंका परम कर्तव्य है । जीर्णोद्धार बराबर पुण्य नये मकान में नहीं होसकता है । देवगढ़की यात्रा करके भी लौटकर ( मीलपर आ जासकते हैं । ललितपुर और जाखलौनसे आगे या बीनासे जाखलौन पहिले इसी धवला स्टेशन उतर कर और किसी जानकार आदमीको संग लेकर इस स्थानके दर्शन जरूर करना चाहिये । स्टेशनसे २ मीलकी दुरीपर हैं। ऐसे २ स्थानोंपर मनी भाई नहीं जाते हैं, और मरम्मत भी नहीं कराते हैं, इसका भी बड़ा दुःख है । यहांपर रेल्वेकी चौकीसे थोड़ी दूरपर एक बड़े भारी विशाल कोटसे घिरा हुआ मन्दिर है, बीचमें १ प्रतिमा, बगळमें १४ प्रतिमा। १ प्रतिमा ७ गन लम्बी, खड्गासन मखण्डित बिराममान हैं।इनके सिवाय मन्दिरकी दीवालमे २४ प्रतिमा,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
[८१ २४ भगवानकी बिराजमान हैं। बाहर बहुत प्रतिमा खण्डहर दशामें गिरी हुई हैं, यहांकी प्राचीनता देखकर चित्तमें नैनधर्म का बड़ा भारी गौरव पैदा होता है । यहांसे थोड़ी दूर एक कोट है । भीतर एक महादेवका मन्दिर फटा-टूटा पड़ा है, ३ नांदिया बड़े२ हैं। १ कुण्ड, १ तालाव है, यह रचना भी देखने काबिल है, फिर लौटकर स्टेशन आवे ।
(१३६ ) नावलौन स्टेशन | ___ यह स्टेशन ललितपुर बीनाके बीचमें पड़ता है । यहांपर पूछनेपर देवगढ़ जानेको बैलगाड़ी ।) सवारीमें मिल जाती है । अगर नहीं भी मिले तो नावलौन गांवमें नावे । यह ग्राम म्टेशनसे २ मील दूर है । पक्को सड़क है। फिर यहांसे किगये बैलगाड़ी करके ६ मील देवगढ़ जाना चाहिये । देवगढ़ स्टेशनसे भी ६ मील पड़ता है । और गांवसे भी ६ मील पड़ता है ।
(१३७) देवगढ़ क्षेत्र । यह अतिशयक्षेत्र नैनियों का भारी पुण्यस्थान है । पहिले यह देवगढ़ बड़ा भारी नगर था । अव छोटासा ग्राम है। यहांपर एक धर्मशाला है। एक बड़ा भारी पहाड़ है। उसका चढ़ाव १ मीलका है। पत्थरकी बनी हुई सड़क है । एक कोट चारों तरफ २ मील तक खिंचा हुआ है। जिसमें तीन तरफ ३ दरवाना और एक तरफ मुनीश्वरोंके ध्यान करने की गुफा है । इस गुफा २०• आदमी बैठ सकते हैं। इसके नीचे नदी बहती है। नदी यहांपर बहुत गहरी है । यात्रियोंको एक मादमीको साथ लेकर इस पवित्र स्यानको जरूर देखना चाहिये। एक दरवाजा गांवकी तरफ है। एक
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । दरवाना जोकि पूर्व तरफ है, वहांपर घाट बंधा हुआ है । एक तालाव और मंगल है। यहां कोटके बीच करोंड़ो रुपयोंकी लागतके बड़े २, ४५ मंदिर बने हुए हैं। एक बड़ा कीमती मानस्तंभ है। एक मंदिरमें १ सहस्रकृट चैत्यालय है। १०-१५ हाथ तथा ७-८ हाथकी उंची खडगासन प्रतिमा बहुत हैं। और कुल प्रतिमा अनुमानमे ५ हजार प्राचीनकालकी बनी हुई मनोहर हैं । यहां एक मंदिर बहुत बड़ा है । यहांपर शिलालेग्व बहुत हैं । पहिले यहाँपर मुनि, आच र्य, आर्यिका, ऐलक, क्षुक, ब्रह्मचारी बहुत काल तक पान करते रहे थे, ऐमा शिलालेख मे मालूम हुआ है। और ये मदिर भी विक्रम संवत् पांचमे लेकर बारह तकके बने
यहांके विषयमें ऐमो किवदंती है कि दो भाइयोंने जोकि अपनी गरीबो हालतमें मेटके माथ ममेदशिवानीकी वंदनाको गये थे । सो अपनी गरीबी पर पश्चाताप करने हुए चुपचाप मंघके पहले पहाड पर बंदनाको गये । और महान कमणाननक भावोंमे ज्वारके दाने टोंक २ पा चढ़ाकर वंदना की । वो ही दाने गजमोती हो गये ! उनही दोनों महात्मा भाईयोंके पुण्योदय आया । सम्पत्तिके स्वामी होकर इस पहाड़के जिनालय निर्माण कराये । यहां पर कितना धन खर्च किया होगा, कैमे काम कराया होगा, एकवारके दर्शनोंमे मालूम होजायगा। ज्यादः कहांतक लिखा जाय । यह स्थान अत्यन्त जीर्ण अवस्थामें पड़ा है। अगर कोई धर्मात्मा पुरुष जीर्णोद्धार करादें तो उसको और उसकी लक्ष्मीको धन्यवाद है । जीर्णोद्वारके समान कोई पुण्य नहीं है । यहांकी यात्रा करते
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
[ ८३
फिर लौटकर स्टेशन आवे । ) देकर ललितपुरकी टिकट कटाकर वहां पर उतरे | स्टेशन घवला जाकर चांदपुरकी यात्रा करके फिर टिकट (-) देकर ललितपुर आवे ।
( १३८ ) ललितपुर शहर ।
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स्टेशन से आधमील क्षेत्रपालपर तांगावाला ) सवारी में लेनाता है । यहांपर बहुत बड़ी दि० जैन धर्मशाला है । पानीका कुआ, जंगल, पाठशाला पास ही है । यहांका स्थान बड़ा ही हवादार और रमणीक है । यहां एक बड़ा भारी ऊंच गढ़ है । जिसमें मंदिर हैं । प्राचीन प्रतिमा बहुत अतिशवान हैं। शास्त्र भंडार है। यहां एक मंदिर में अभिनन्दन स्वामात्री प्रतिमा श्याम वर्ण सुन्दराकार है । उसके नीचे क्षेत्रपालकी मूर्ति नमानपर 1 इमलिये इसका नाम क्षेत्र प्रसिद्ध पड़ गया है। यहां सेट मधरादास पन्नालालजी या धर्मात्मा परोप यहांसे १ मी शहर पड़ता है। मो ललितपुर शहर अच्छा है । दि० जैन भाईयों के घर रंगदार तीन दि० मंदिर बहुत खूबसूरत हुए हैं। एक चैत्यालय भी है। वेदी यहांका दर्शन अवश्य करना चाहिये | मोटर आदि सवारी करके ३६ मील बीच में महरौनी गांव भी पड़ता है २ घर अंदाना ८० होंगे। फिर टीकमग
नाये | शहर
४.
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(१३९) टी.
यह एक अच्छा करना है। राज....
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बहुत है ।
नवारी में
नाहिये । नायके
रा अच्छा है।
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८४] जैन तीर्थयात्रादर्शक। यहां दिन घर बहुत हैं। १ धर्मशाला है। यहांपर फिर तांगा मोटरसे या पांव२ चलकर ३ मील पक्की सड़क आदमीको साथ लेकर पपीरानी जावे।
(१४०) श्री पपौराजी अतिशय क्षेत्र । यहां जंगलके बीचमें रमणीक मैदानमें चारों तरफ कोटसे घिरे हुए कुल ७६ मंदिर हैं । और बड़ी मने ज्ञ मूर्तियां हैं। यहां एक धर्मशाला, पाठशाला, कुवा, ८ मंदिर ? भौंहरा आदि चीजे हैं। यहां पहिले बहन अतिशय होता था। यहांका दर्शन करके टीकमगढ़ होता हुआ ललितपुर आवे। देलवाटा पपौरासे एक और रम्ना हटा हीरापुर भगवा होता हुआ ३० मील द्रोणगिरिजी नाता है । मो यहांसे भी सवारी आदिका प्रबंध कर नासक्त हैं। परन्तु राम्ता जंगली ठीक २ है ।
(१४१ ) दैलवाड़ा स्टेशन । म्टेशनसे २ मील ग्राम है। ग्राम छोटा होने से कुछ घर दि. नैनियोंके और १ मंदिर भी है। यहांसे किमी आदमीको साथ लेकर सिरोन जाना चाहिये ।
(१४२) अतिशयक्षेत्र सिरोनजी-(शांतिनाथजी)
यह एक छोटासा ग्राम है। ४ घर दि. जैनियोंके हैं । यहांके जंगलमें एक बड़ा भारी कोट था। जिसके भीतर न जाने कितने मंदिर थे। जिन्होंकी हजारों प्रतिमा खंडित १ मीलके चकरमें नहांतहां पड़ी हुई हैं ! जिसको देखकर छाती फटती है ! एक दिन यह स्थान भी परमपवित्र था। जिसको किसी सौभाग्यशालनीके पुत्रने कराया होगा। कितना धन खर्च किया होगा।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [८५ इस दुष्ट कालकी करालता देखो । हाल में यहां कोई एक जैन नहीं है । एक दूमरे कोटमें वावड़ी, धर्मशाला और १ शिलालेख बहुत प्राचीन लिपिका ग्बुदा हुआ म्पष्ट अक्षरों में है। पांच मंदिरजी हैं। उनके चौकमें चारों तरफ खंडित अखंडित प्रतिमा विराजमान हैं। एक मंदिरमें १ कुछ अंग वंडित १५ हाथ उंची खगासन शांतिनाथकी प्रतिमा विराजमान है। यहां की यात्रा करके स्टेशन वापिस भाना चाहिये। फिर टिकटका |-) देकर तालवेट उतरना चाहिये।
(१४३ ) तालबेट शहर । म्टेडानसे १।। मील दूर ग्राम है। यह भी प्राचीनकालका शहर है। यहां एक मंदिर और ३० घर दि० ननियोंके हैं । यहांपर ताल-जालाव और बेट- गट बड़ा है इसलिये तालवेट इमका मार्थक नाम है । यहांका तालाव और गढ़ अवश्य देग्वना चाहिये । यहांसे किमी मवारी या आदमीको साथ लेकर पवा छह मील जाना चाहिये । बीचमे २ तालाव और १ गांव पड़ता है । पवा जाने-मानेका दृमरा रास्ता सुगम है । नालवेटसे : स्टेशन आगे ) टिकट देकर वमई उतरकर फिर यहांसे भी पक्की मड़कसे ६ मोल पवानी आने-जाते हैं। तालवेट उतरनेसे तालवेट शहरका तालाव गढ़ देखने को मिलता है । इमलिये तालवेटसे ही आना-जाना ठीक रहता है।
(१४४) श्री पवानी अतिशय क्षेत्र । ___ यह ग्राम छोटासा है। कुछ दि० जेन व १ चैत्यालय है । यहांसे १ मील जंगलमें एक पहाडके नीचे कोट खिंचा हुआ है। भीतर एक धर्मशाला है, एक नवीन मंदिर है । भौहरा प्राचीनका
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। लका जमीनके भीतर है । जिसमें विक्रम संवत् १३४२ सालकी '७ प्रतिमा हैं। पहिले यहां बहुत अतिशय हुआ था। यहां भी लोग बोल कबृल चढ़ानेको आते हैं। १ मंडप, १ धर्मशाला और बाहर कुआ है। यहांकी यात्रा करके फिर वापिस तालवेट आवे । टिकट किराया ॥) देकर झांसी उतर पड़े।
(१४५) झांसी शहर । स्टेशनसे २ मील शहर पड़ता है। -) आनामें तांगा करके दि. जैन धर्मशालामें जावे । यह मिला और अच्छा शहर है। शहरमें ३ जिन मंदिर १ चैत्यालय है । एक मंदिरमें पांच वेदी
और सहस्रकूट चैत्यालय है । यहांका गढ़ बड़ा भारी है । शहरमें कोट और ४ दरवाजे हैं। बहुत घर दि. जैनियोंके हैं । सब माल मिलता है । यहांका दर्शन करके ३ मीलपर एक बगीचा है। उसका नाम कुरंगमा है । एक आदमी को साथ लेकर जावे । यहांपर कोटसे घिरा हुआ एक बगीचा है । कुवा, जंगल पासमें है। बगीचाकी जमीनमें एक भौहरा है । जिसमें वि० सं० १२ की प्रतिमा तपयुक्त पद्मासन विराजमान हैं । यहाँका दर्शन करके वापिस झांसी आवे । झांसीसे ३ रेलवे जाती हैं। १ सोनागिरआगरा तक, १ कानपुरको, १ माणिकपुर, इसी लाईनकी टिकट किराया १०) देकर हरपालपुर चला नावे ।
(१४६) हरपालपुर । इलाहाबाद-जबलपुरके बीचमें माणिकपुर जंकसन पडता है। सो इस लाईनसे आनेवाले भाई माणिकपुर गाड़ी बदलकर हरपालपुर नावे । टिकट २) लगता है। हरपालपुर छोटासा ग्राम है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [८७ १ चैत्यालय और १० घर दि. नैनियोंके हैं। यहांसे छत्रपुर जानेको हर समय मोटर मिलती है । छत्रपुर यहांसे २८ मील है । टिकट मोटरका १॥) लगता है । बीचमें नयागांव छावनी पड़ती है।
(१४७ ) नयागांव छावनी । यह ग्राम भी अच्छा है । एक मंदिर और कुछ घर नैनियोंके हैं। यहांसे छत्रपुर १० मील पड़ता है ।
(१४८) छत्रपुर शहर। यह शहर रानासा का अच्छा और साफ है । यहांपर ३० घर दि० जन, ४ मंदिर और २ धर्मशाला भी हैं । मंदिरजीमें कुल वेदी १५ हैं । प्रचीन मनोज्ञ प्रतिमा हैं। शिखिर महात्मके रचियता पं० जवाहरलाल यहींके वामी थे। यहांका दर्शन करके मोटर, बलगाडो या तांगामे पक्की सड़क २८ मीलकी दुरीपर खनराहा जाना चाहिये । खनग जानेवालोंको दृमरा रास्ता राननगर होकर सीधा जाता है। इस राम्तेमें बलगाड़ी, घोड़ा, ऊट आदि सवारी नासकती है। रास्ता साफ है । चोर वगैरह का डर नहीं है। रास्ते में ४ गांव छोटे २ पड़ते हैं। फिर राजनगर यहांसे १२ मीलपर पड़ता है । राजनगर भी अच्छा शहर है। पोष्ट घर भी है । दि जैन मंदिर और १५ घर दि. जैनियोंके हैं। बानार, तालाव, पुराना मकान आदि रमणीक हैं। यहांसे ३ मील खनहरा है । खनहरा जानेका एक और भी रास्ता है-इसी जबलपुर इलाहाबाद लाईनमें सतना स्टेशन पड़ता है।
(१४९) सतना शहर । स्टेशनसे पाव मील दूर दि. जैन धर्मशाग है। यहीपर
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एक पाठशाला, बड़ा मंदिर, कुआ वगैरह नजदीक है । बाजार, (तालाब, जंगल भी है। मंदिरजीमें पांच वेदी पर प्रतिमाएं हैं । यहां पर ५० के करीब दि० जैन घर हैं । बाजार मच्छा, सामान सब मिलता है । यहांसे ४) मवारीमें खनहरा तक मोटर, तांगा, बेलगाड़ी जाती है। पक्की सड़क का रास्ता है। सतना से खजइरा कुल १० मील है । रास्ते में नागोद, पड़रिया, दो ग्राम जैनियोंके पड़ने हैं। ( १५० ) नगोद |
यह ग्राम राजासा०का अच्छा है । २ मंदिर और ४० घर दि० जनके हैं। डाक तारघर, राजदरबार, तालाव धर्मशाला, बाजार आदि सब हैं । फिर आगे सडकपर पड़रिया ग्राम है । ( १५१) पडरिया ।
यहां कुछ घर दि० जैनोंके और १ मंदिर पाठशाला है । ( १५२ ) पन्ना रियासत ।
यह राजा सा० का अच्छा साफ ग्राम है। सड़क, बाजार, विजली, तारघर, २ तालाब, राजमहल आदि सब इस शहर में हैं । यहां दि० जैन घर बहुत हैं। दो मंदिरों में से एक मंदिर में स्फटिकमणिकी प्रतिमा विराजमान है । दो मंदिर वैष्णवोंके भी हैं । उन्हीं लोगों का माघ - फाल्गुन में बडा भारी मेला भरता है । आगे जाते हुए रास्ते में पश्चिम की ओर एक सड़क फुटकर दश मीलकी दूरीपर अजयगढ़ जाती है। मोटरवालेको १) सवारी ज्यादः देकर वहां पर अवश्य जाना चाहिये ।
( १५३) अतिशयक्षेत्र अजयगढ़ ।
यह स्थान एक पहाड़ीपर चौतरफ खाईपर कोटसे घिरा है ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [८९ दरावाना, तालाव, बाग, बगीचा, गनमहल मादिसे सुशोभित है। जमना, गंगा नामक दो प्राचीन कुंड हैं। अजयगढ़के दरवाजेमें प्रवेश करते ही एक पत्थरमें उकेरी हुई ५० प्रतिमा का दर्शन होता है । भागे थोडी दूर बड़ा गहरा तालाव है । तालावकी दीवालों में बहुत खण्डहर प्रतिमाओंके हैं। जिसमें १ प्रतिमा १५ फीट दूमरी १० फीट उची अग्बंडित कायोत्सगोमन विराजमान हैं। एक बड़ा मानम्तंभ भी है। उसमें हनारों प्रतिमा बनी हुई हैं । यहांसे १॥ मील उपर जंगल में एक स्थान रमणीक है। वहां भी हजारों प्रतिमा विराजमान है । उनको देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। प्राचीन काल में कमे धर्मानुगगी धनाटय थे। उनकी बनवाई हुई ये प्राचीन प्रतिमा है। ग्राममें और भी मंदिर हैं, उनका भी दर्शन करना चा..। फिर लौटकर बनहरा नाना चाहिये। बोचमें एक मड़क फूट कर र जाती है। मो पूछकर ग्व नहरा नावे । उपरका मब दाल देवकर तीनों हो गम्तोंमे खनहरा जाना चाहिये।
१४) अनियक्षेत्र ग्वजहरा। अभी यह ग्राम छोटामा है। ग्रामके पूर्वकी नरफ जंगलमें चारों तरफ कोट लगा हुआ है। भीतर धर्मशाला, वावडी, कुवा है । और कोट के चारों तरफ बहुत ग्बडित प्रतिमा हैं। एक बड़ा भारी मंदिर है । बीचके मदिरजीमें कायोत्सर्गामन मूलनायक श्री शांतिनाथकी प्रतिमा २० हाथ उ.ची हैं। और गढ़के चारों ओर भी बहुत प्रतिमा हैं। बाहर मदानमें लाखों रुपयाकी कीमतके प्राचीन ढंगके छत्र, चमर, सिंहामन, भामण्डल और निनसेवी शासनदेवताओंसे युक्त हनारों प्रतिमाएं. उन १४ मंदिरोंमें विराजमान
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। हैं। एक छोटी प्रतिमाकी रचना बहुत ही अच्छी है । आजकल लाखों रुपया खर्च करनेपर भी वैसी प्रतिमा नहीं बन सकती हैं। यह स्थान भी पुण्यवर्द्धक और बड़ा रमणीक है। जैनियोंको यहांका दर्शन अवश्य करना चाहिये । ग्रामकी पूर्व दिशाका हाल___ग्रामसे १ मील दूर राजाका महल, बड़ा तालाव, १धर्मशाला है । १ मीलके चक्रमें वैष्णवोंके २२ मंदिर है । दो बड़ी२ नदियां हैं । एक शूकर अवतार भगवान (ः) बीचमें पत्थरमें बने हुए हैं। उनके साथ ३३ करोड़ देवताओंका भी आकार बना है। एक सर्कारी लायब्रेरी है । उसमें हजारों प्रतिमा नन अननोंकी पड़ी हैं । और मंदिरोंके भी खंडहर हजारोंकी संख्या में हैं । फाल्गुन वदी १३से वैशाख सुदी १५ तक २॥ महिने का बड़ा भारी मेला भरता है । हजारों लोग आते हैं । और लाखों का व्यापार होता है। मेलाके समयमें राजा सा०, पुलिम, तारघर, डाकखाना आदि सब यहीं पर रहता है। इस समय आनेवाले यात्रियोंको बहुत कमतीमें सवारी मिल जाती है । और सब बातका माराम रहता है । खजराह जानेवाले भाइयों को ये मंदिर भी देख हेना चाहिये । फिर लौटकर छत्रपुर, नयगांव होता हुआ हरपालपुर भाकर झांसीका टिकट लेवे, और झांपी उतर पड़े । यहांका हाल उपर लिखा गया है, ॥) देकर टिकट सोनागिर स्टेशनका ले लेवे । कटनीसे सीधे आनेवाले भाइयोंको ऊपर लिखे तीर्थ रास्ते होनेसे करते आना चाहिये । झांसीसे सतना आदि जाने में खर्च ज्यादः पड़ेगा । अथवा सोनागिर, आगरा झांसी लौटकर उन तीयोंको करना चाहिये। झांसी आकर फिर लौटकर सतना जावे
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फिर लौटकर झांसी आवे यह ठीक नहीं है । झांसीसे सोनागिर वगैरह करके फिर लौटती वार उन तीर्थोंको करना चाहिये । ( १५५ ) सिद्धक्षेत्र सोनागिरजी ।
स्टेशन के पास ही एक दि०जैन वर्मशाला है । यहीं पर ठहरे । सोनागिर जाने से यहां पर सामान भी रख सकते हैं । जिम्मेवार माली रहता है । कुछ घर भी हैं । यहांसे ) सवारीमें ३ मील सोनागिरजी जाना चाहिये | ग्राम छोटासा है । यहांपर बहुत धर्मशाला, कुआ, जंगल, बाजार सब कुछ हैं। एक भट्टारकजी महाराजका यहां स्थान है। नीचे कुल तेरा, वीसपन्थी मिलाकर २२ मंदिर हैं । उनमें से एक मंदिर लश्करवालोंका बहुत ऊंचा, बहुत चक्कर में मोटा है। और भी अच्छे मंदिर हैं। पहाड़ जमीन बराबर ही नजदीक है । पहाटपर २ मीलके चक्कर में ५४ मंदिर कीमती मनोहर हैं। जिनमें हजारों प्राचीनकालकी प्रतिमा हैं | यहांके मूलनायक चन्द्रप्रभु स्वामीका बहुत बड़ा मंदिर है । यहां अनंकुमारादि साढ़े पांच कोड मुनि मोक्षको गये हैं | वंदना करके स्टेशनपर आजावे । टिकट |||) देकर ग्वालियर जंकशन उत्तर पड़े। ( १५६ ) ग्वालियर |
स्टेशन से २ मील दूरीपर करकर चम्पाबागकी धर्मशाला में उतरे, 1) सवारी लगता है । यहांपर ठहरनेसे सब बात का सुभीता रहता है । फिर किसी एक आदमीको साथ लेकर लश्कर जावे । ( १५७ ) लश्कर |
यहां पर कुल २२ मंदिर हैं। उनकी वंदना करे। फिर बाजारकी सैर करना चाहिये । कुछ लेना-देना हो लेना-देना चाहिये ।
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चम्पाबागकी एक ओर बाजारके दो मंदिर बड़े कीमती हैं। यहांसे तांगा करके ग्वालियर जाना चाहिये। किलाके बाहर हजारों प्रतिमा पहाड़ में उकेरी हुई बड़ी विशाल हैं । खंडहर भी हैं । सो किसी I जानकार आदमीको साथ ले जाकर सबका दर्शन करना चाहिये । यह रचना पहाड़ में गढ़के नीचे उकेरी हुई गुफा में है । फिर शहरमें ११ मंदिर और रंगरकी प्रतिमा हैं। उनका भी दर्शन करना योग्य है । फिर राजाका टिकट लेकर गढ़ देखने जावे | यहांपर 1 राजकर्मचारीको कुछ देकर साथ लेलेवे । वह गढ़, तालाब, राजमहल इत्यादि सब अच्छी तरह से बतला देगा | किलेके भीतर बड़ीर विशाल प्रतिमा हैं । उनका वह दर्शन करा देगा | गड़की लंबाई-चौड़ाई बहुत है। हजारों तोपें हैं । एक प्रतिमा यहांपर ३० गज ऊंची खडगासन विराजमान है । यह प्रतिमा शांतिनाथ स्वामीकी है । यह प्रतिमा २२ वर्षमें बनकर तैयार हुई थी । कीमती बहुत है । प्राचीनकालमें यहांका राजा न्यायपरायण धर्मात्मा दि० जैन था । उन्होंने यह सब रचना कराई थी । लेखनीके बाहर उसकी रचना है । अब भी ग्वालियरका राज्य बड़ा है । नव करोड़ की वार्षिक आय है । इन्होंके राज्यमें रेल, तार- पोष्ट ऑफिस, अस्पताल, गुरुकुल, पाठशाला, हिनरी हक्क सब राजा सा०का है। यहांसे सब दर्शन करके स्टेशन आनावे | फिर टिकट |) का देकर ग्वालियर सीप्री लाईन ( छोटी गाड़ी ) से पन्नीयार जाना चाहिये ।
( १५८ ) पन्नीयार ।
स्टेशन से १ मील दूर यह गांव है। यहांपर १ छोटा किल्म
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है । यहांपर राजासा० के नौकर रहते हैं । १ दि० जैन मंदिर और ४ घर दि० जनके है। थोड़ी दूरपर कोटसे घिरा हुआ १ दि० जैन मंदिर है । बाहर एक जंगल है। कोटके बाहर भीतर बहुत प्रतिमा हैं | यहां पर दो मकान हैं । एकके पश्चिम तरफ कोटरी में नीचे मोहरा है । रास्ता सकरा है । बैठकर भीतर जाना होता है । कोई प्रकाश लेकर भीतर जाना चाहिये । कारण कि भीतर अंधेरा रहता है । मोहरा ४२ प्रतिमा हैं । यहांका अपूर्व दर्शन करके बाहर आवे | यहांसे १ मोलकी दूरी पर लाल पत्थर से बना हुआ चारों तरफ मुखवाला बड़ा भारी मंदिर है । उसमें ३ प्रतिमा खड्गामन २२ हाथ उची अति महान शांतमुद्रा लालवर्णकी विराजमान हैं। मंदिरके बाहर मंडप जगल है | यहांका रचना देखनेके लिये एक आदमीको साथ ले जाना चाहिये। फिर जाकर खूब रचना देखना चाहिये | यहांका दर्शन करके बहुत आनंद होता है । मगर कुछ रोना पडता है । उन महात्माओंको धन्य है जिन्होंने अपना बहुत धन खर्च करके यह मंदिर बनवाया । परन्तु आज उसका जीर्णोद्वार और दर्शन करनेवाला भी कोई आदमी नहीं है ! कोई दि० जैन नहीं आता है । यहां लौटकर लश्कर स्टेशन आवे | स्टेशनसे १ मील चंपाबाग मेंसे अपना सामान लेकर ग्वालियर जंकशन जावे। यहां से १1) टिकटका देकर आगरा उतरे। यहांसे किसीको मागे जाना हो तो यहां से लाइनें जाती हैं । १ सोनागिर झांसी, बंबई तक | २ सिप्रो पत्नीहार, ३ आगरा, ४ भिंड, ५ शिवपुर चाहे जहां जावे। अगर बागरा जाना हो तो बीचमें मोरेना
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पड़ता है। किसीको उतरना हो तो उतर पड़े। यहां पर विद्ववर्य स्व० पं० गोपालदासजीका विद्यालय है, और मुनि अनंतकीर्तिमी महाराजका समाधि स्थान है । इसके स्पागे धौलपुर स्टेशन पड़ता है, यहांका पुल बड़ा नामी और कीमती है। देखनेकी इच्छा हो तो उतर पड़े । नहीं तो आगरा जाकर उतरना चाहिये । ( १५९ ) आगरा |
इस शहर में कुछ ७ स्टेशन हैं। गाड़ी चारों तरफ जाती हैं । चाहे किमो स्टेशन उतरो परन्तु तांगावाले से किराया पहिले तय करलेना चाहिये | मोतीकटराकी धर्मशाला में उतरना चाहिये । यहां पर कुआ, बाजार, मंदिर आदि सब बानका सुभीता है । शहरमे २२ मंदिर हैं । सो किमी जानकार आदमीको साथ लेकर इन सब मंदिरोंका दर्शन करें। लौटते समय दर्शन करता चला आवे । नाई की मंडी में श्वेताम्बर मंदिरमें बहुत प्राचीन शीतलनाथकी प्रतिमा है । यहां पर ताजबीबीका रोजा, सिकन्दर मनजिद, लाल किला, तोपखाना, शीस महल, मच्छीभवन, पुल, जमना के घट, जुम्मामसजिद, दौलतका मकबरा, अजायबघर आदि देखने योग्य चीजें हैं। यहांसे फीरोजाबाद उतरे । आगराकी स्टेशनोंके नाम- १ आगरा फोर्ट, २ जंक्शन, ३ आगरा किला, ४ वेलनगंज आगरा, ५ नाईकी मंडी, ६ आगरा कैंट, ७ राजाकी मंडी | आगरा से १ 1 लाईन झांसी बंबई तक | बांदीकुई जालना, जयपुर, फुलेरा तक । अचनेरा मथुरा कानपुर; लुपलाईन, हंडला, कलकत्ता तक, देहली तक | आदि बहुत गाड़ी जाती हैं सो पूछकर इच्छानुसार चढा जावे । आगरा में ३०० वर्षोंमें कवि रूपचंद्रनी, भगवानदासजी,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [९५ कुंवरपालनी, चतुरभुननी, तुलमीदास, भूधरदासनी मादि पण्डित यहींके थे।
(१६% ) फीरोजाबाद । ___ स्टेशनमे । मील दूर असरके कटरामें दि. जैन धर्मशाला है। तांगावाला -) मवारीमें ले जाता है। यहांपर ठहर जाना चाहिये । यहांपर बानार, पाठशाला, मंदिर, कुआ इत्यादि सबका भाराम है । शहरमें मंदिर ५ हैं जो बहुत मनोज्ञ हैं। एक मंदिर में ३ अगुल उची ग्वगामन पार्श्वनाथकी होगकी प्रतिमा है। उसका दान मुब, ८ बजे तक होता है । सो पूछकर दर्शन करे। भंडारीको बर'नेमे अन्य समयमें भी दर्शन होता है । यहां दि० जैनियोंके घा बटन है। न्यादिवाकर ५० पन्नालालनी यहींके निवामी थे । पवन शो की दुकान में मंडल -त्रिलोक, ढाईद्वीप, तेरहहीप अनि के नगे मिलने है, मो खरीदना चाहिये । फिर बानाग देवर स्टेशनपर आना चाहिये । टिकट ।) देकर शिको हाबाद नान' च हिये । यहासे १ लाईन कलकत्ता तक नाती है, एक आगग, १ देटली नक जाती है ।
(११) शिकोहाबाद । म्टेशनमे २ मा शहर है। यहांपर १ मंदिर और ७० घर दि. नेनों के है । किमीको शहरमें जाना हो तो नावे । नहीं तो स्टेशनसे मीया ॥ में इक्का करके वटेशर नाना चाहिये । १० मील पड़ता है।
(१६२) श्री मौरीपुरी-(बटेपर)। बटेश्वर ग्राम है । यहाँपर नमना नदी बहती है। मबाण
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बड़ा घाट और बहुत मंदिर महादेवनीका है । यहांपर अन्यमती कोग मुर्दोंकी राख हाड़ लेकर जमना नदीमें फेंकने आते हैं, श्राद्ध भी करते हैं । पिंडदान भी देते हैं। मेला भी भरता है। हजारों लोग आते जाते हैं । गांव अच्छा है । ब्राह्मणके बहुत घर हैं । 1
इन्हीं लोगों का जोर बहुत है। ग्राम में बड़े२ मजबूत गढ़ और मकान हैं। एक धर्मशाला और १ दि० मंदिर है । यहांपर एक भट्टारकजी रहते थे, सो ब्राह्मग लोगोंको चतुराई दिखाकर वादविवाद में जीतकर जमनाजी में शीसा तांब डालकर जमनाजीके पार जैन मंदिर बनाया गया | श्री नेमनाथ स्वामीकी पद्मासन श्यामवर्ण बड़ी विशाल प्रतिमा है । फिर यहांने १ मील जंगल में सौरीपुर जाना चाहिये |
( १६३ ) शोरीपुर |
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यहां नेमिनाथ भगवानका गर्भ जन्म कल्याणक हुआ था । किसी शास्त्रमें द्वारका में हुआ था भी लिखते हैं । मो इसका निर्णय केवलज्ञानी करेगा | हमको दोनों जगह पूज्य मानना चाहिये । यह शहर पहिले १२ योजन बम्बा ९ योजन चौड़ा था । कालके प्रभावसे आज जंगल है यहांपर दिगम्बर श्वेतांबर दोनोंके मंदिर चबूतरा चरणपादुका हैं । सो पुण्य क्षेत्रकी वंदना करके वटेश्वर फिर लौटकर शिकोहाबाद लौट आना चाहिये । फिर यहांसे टिकट १) देकर फरुखाबाद जावे | यहांसे १ रेल इंटला जाती है । १ फरुखाबाद, १ दिल्ली जाती है। अगर किसीको देखना हो तो फरुखाबाद चला जाय । नहीं तो वहांसे टिकटका (2) देकर काममगंज जाना चाहिये |
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(१६४ ) फरुखाबाद जंकशन । म्टेशनके पास २ धर्मशाला वैगयों की हैं, शहर १ मील दूर है, ३ सवारीने तांगा जाता है । ३ नन्दिर हैं, १ सदरबानार, २ हकीम पुतुलाल नीके पाम, -) जैन मुहल्ला में बनारमीका मन्दिर है। यहांपर दि.. नियों के घर बहुत है, टिकेट ।) देकर काय. मगंन उतरे।
(१६५ ) कायमगंज । म्टेशनमे १ मील ग्राम है, १ मन्दिा कुछ घर दि. जैनि योंके हैं । यहांमे ॥) सबागमें ६ मील कापलानी तांगा, मोटर मानी है। यहांमे १ रेल अचनेरा मयुग होकर कानपुर चली नाती है, छोटी लाइन भी है।
( १६६ ) कम्पिलानी क्षेत्र । १३ वें तीर्थकर विमलनाथ भगवान के गादिक ४ कल्याणक यहांपर हुए थे । यह भी बड़ा भारी नगर था, परन्तु मान छोटासा ग्राम है । १ मन्दिर और ३ प्रतिमा विमलनाथस्वामीकी प्राचीन विराजमान हैं। यहांपर एक धर्मशाला श्वेतांबर, दुपरी वैष्णवोंकी है और दोनों ही मन्दिर हैं। यहांसे लौटकर कायमगन भावे । फिर यहांसे किसीको नाना हो तो हाथरम मथुग होकर कानपुर जावे । टिकिट अन्दाना २) होगा, नहीं तो टिकट सीधा देहलीका लेना चाहिये । ३) टिकटका लगता है, बीचमें हाथरस मंकशन गाड़ी बदल कर देहली नावे, पर रास्तेमें हायरस, अली. गढ़, खुर्ना शहर पड़ते हैं। उन सबमें दि. जैन बड़े २ मन्दिर और जैनियोंकी वस्ती बहुत है, किसीको उतरना हो तो उतरे।
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९८] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
(१६७) हाथरस । गांव टेशनसे नजदीक है, शहर अच्छा है, धर्मशाला स्टेशनसे पाव मील है। यहांपर सुनहरी हलकी चित्रकारी और जड़ाईके काम संयुक्त ३ बड़े२ मन्दिर हैं, प्रतिमा बहुत रमणीक हैं। शहर बिलकुल साफ देखने योग्य है । दि० नैनियोंके घर बहुत हैं। यहांसे एक रेलवे मथुग, आगरा, कासगंज, देहलीतक जाती है।
(१६८) अलीगढ़ जंकशन । स्टेशनसे ? मील की दूगेपर सेट सोनपाल ठाकुरदासनीकी धर्मशालामें टहरना चाहिये । यहां पर मब बातका आराम है । यहांपर । मंदिर, १ लक्खीरायमें, गहामें ४ मंदिर हैं। सब मंदिर कीमती और बदया हैं। सब दर्शन करना चाहिये । बाजार भी देख लेना चाहिये । यहाँपर पं० प्यारेलाल जी थे । जैनियों के घर बहुत हैं। यहांमे श्री अहिक्षेत्रनीको नानेके वारेमें ठीकर पूछ लेना चाहिये। फिर अलीगढ़ बरेली लाईनमें अंबालाका टिकट लेवे । किराया ? ||-) लगता है ।
(१६५) अंबाला । यहांले । मोलकी दृरीपर रामनगर है । इमको राजनगर अहिक्षेत्र भी कहते हैं। बैलगाड़ीमें जाना होता है। यह एक छोटासा ग्राम है । १ धर्मशाला है। यहांपर प्रति वर्ष चत्रवदी ८ से १२ तक मेला भरता है। यहां पर एक मंदिर और प्रतिमा है । श्री पार्श्वनाथ भगवानकी सातिशय चरणपादुका हैं। पार्श्वनाथ स्वामी यहांपर तपस्या करते थे सो कमटके जीव देवने घोर उपसर्ग किया था। धरणेन्द्र और पद्मावतीने उपप्तर्ग दूर किया था। भगवानको
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [९९ केवलज्ञान होनेसे देवोंने समवशरण रचा था। दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश हुआ था। शेष हाल पार्यपुराणसे जानो । यहाँपर एक पाठशाला, कुवा, वावड़ी, बगीचा इत्यादि हैं। चरणपादुका वेत जोतनेमें एक मालीको मिली थी। बहुत दिनतक मालीके पास ही रही। फिर मंदिर में विराजमान करदी गई है । यह बड़ा ही पवित्र म्यान है । लौटकर अलीगढ़ जावे । फिर बादको देहली नावे । यहांसे आगे फिर बुरना पड़ता है। अगर बरेली जाना हो तो इमी लाईनसे चला आवे; दम लाईनमें बरेली होकर लग्वनऊ, चली जाती है।
(१७०) खुजा । यह भी बड़ा अच्छा गदर है। धर्मशाला है । बड़े२ मंदिर और सुन्दर प्रतिमा हैं । जैनियों के घर बहुत हैं। रानीवाले सेठ मेवाराम चंपालाल व्यावग्वाले आदि तीन भाई यहांपर रहते हैं। यहांसे एक रेल हापुड़ जाती है, मथुगका हाल उपर लिखा है ।
(१७१) देहली शहर ।। यहांपर छोटी बड़ी रेलवे मभी तरफमे आती जाती है । जहां तहां यात्री ना सकते हैं । देहरी शहर एक नामी प्राचीन शहर है । बादशाही समयमें हिन्दुस्थान की राजधानी रही थी। चारों तरफ कोट म्व ई दरवानाओंमे गोभित है । अंग्रेजी राज्यमें भी हिन्दुस्थानकी गनपानीका शहर है । गनाका तम्त यहींपर है । शहर बहुत लम्बा चौड़ा है। यहां करोड़ोंका व्यापार होता है, हर तरह का माल मिलता है. कारीगरीका काम यहांपर बढ़ियासे बढ़िया होता है। सेठ का कू वा अनारगली में धर्मशाला है, वहांपर
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सब बातका आराम है । फिर इसी मुहल्ले में बड़े२ मंदिर कीमती चैत्यालय हैं | किलाके पास १ मंदिर, धीरज पहाड़ी पर एक मंदिर और भी बहुत जगह मंदिर चैत्यालय हैं । सो किसी जानकार आदमीको साथ लेकर इच्छानुसार दर्शन करना चाहिये । यहां दि० जैनियोंके घर बहुत हैं । बड़े पण्डित धनाढ्य सज्जन रहते हैं । शास्त्रोंकी भाषा और कविता करनेवाले बड़े२ पंडित द्यानतरायादि होगये हैं | बड़ा बाजार, चांदनी चौक, सदरमंडी, हुमा का मकबरा, कम्पनी राग, अजायबघर, जुम्माममजिद, जनरलबाग, जंगलका मक्कवरा, काची ममजिद, किला, बादशाही मकान, टंकशाल इत्यादि चीजें देखने योग्य हैं । समंतभद्राश्रम जो करौकबाग में है देख लेना चाहिये | यहांपर दि० जैन महिलाश्रम, अनाथालय, कन्याशाला, पठशाला आदिका निरीक्षण करें। लौटकर स्टेशन आवे, फिर टिकिटका ) देकर खेखड़ा स्टेशन जावे, देहलीमें ट्राम गाड़ी हर जगह जाती हैं फिराया भी कम लगता है । इसीसे शहर घूम लेना चाहिये ।
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( १७२ ) खेखड़ा |
स्टेशनपर १ अन्य मतियोंकी धर्मशाला है, ठहरना हो तो ठहर जावे, नहीं तो ।) तांगा करके ४ मीलपर स्टेशनसे सीधा बड़ागांव चला जाय, रास्ता सड़का है ।
( १७३ ) बड़गांव अतिशयक्षेत्र ।
हाल ही ५ वर्षोंमें यह नया तीर्थं प्रगट हुआ है, यहां पर १ आदमीको स्वप्न हुआ था । जमीन खोदनेपर ४ घातुकी प्रतिमा निकली। जमीन के खोदनेसे प्रतिमाओंके नीचे महापवित्र रोग
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [१०१ व्याधिको मेटनेवाला मीठा पानी निकला । वहांपर गहरा कुआ बनवा दिया गया है । १ धर्मशाला है और प्रतिमाओं के साथ २ सिंहामन, छत्र, रकेबी आदि कुछ उपकरण निकले थे। यहांपर भी मेला भरना शुरू होगया है । सामान की दुकान है, रमणीक जंगल है, यात्री आने जाने रहने हैं, लौटकर फिर स्टेशन मानावे, विकिट =) से पीछे देह ती आनावे । २) का टिकिट लेकर और गाड़ी बदल कर मेग्ट चला जाय । किमीको ग्वे खड़ा गांव देग्वना हो तो देग्वे । ग्वेवडाम २ मन्दिर और बहुन पा दि. नेनियोंके हैं । लौट कर म्टेशन आकर मेग्ठ चला नाय ।
(१७४ ) मेरठ शहर । म्टेशनसे ? मील दूर कंपोन दरवानाके पास केशरंगनमें दि. जैन धर्मशाला है । शहरमें कुल ६ धर्मशाला हैं, चाहे जहां उतर जाना चाहिये । तोपग्वाना, छावनी सदरबानार और शहरमें ऐसे ४ मन्दिर हैं, च हे नितनेका दर्शन करे । यहां दि नियोंकी अच्छी संख्या है। महादेवका मंदिर, महल, मुरजकुंड, बानार आदि देखना चाहिये। यहांसे १) में तांगा करके हस्तिनागपुर जाना चाहिये । २० मोल पड़ता है । बीचमें दो मोहाना पड़ने है। एक बड़ा मोहानामें राम्तापर १ दि. जैन धर्मशाला है । जाने-आने ठहरना हो तो ठहर नाय ।
(१७५) श्री हस्तिनापुर अतिशयक्षेत्र । यहांपर भगवान आदिनाथका प्रथम पारणा राना मोमसेन श्रीसेणके यहां हुआ था। देवोंने पंचाश्चर्य किये थे। फिर तीर्थकर, चक्रवर्ती, कामदेव इन तीनों पदोंके धारक शांति, कुंथु, अरहनाथके
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गर्भ - जन्म कल्याणक हुए थे । मल्लिनाथ और पार्श्वनाथ भगवानका समोशरण यहांपर आया था। राजा जयकुमार अकंपनादि बड़े२ मोक्षगामी जीव जन्मे थे । यह महान पवित्र पुण्य क्षेत्र है । यहांपर एक बड़ा भारी जंगल है । एक गढ़ और दरवाजा है । भीतर धर्मशाला है। एक मंदिर कुआ हैं । बाहर एक बगीचा है । एक बंगला है | यहांसे एक मील दूर ४ चबूतरा हैं। चरण पादुका भी हैं। यहांकी यात्रा करके लौटकर टिकट हाथरसका लेवे १||) लगता है । फिर गाजियाबाद गाड़ी बदलकर हाथरस उतर जावे। यहांसे किसीको आगे-पीछे जाना हो तो छोटी बाईन कानपुर-मथुरा जाती है।
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( १७६ ) भरवारी ।
स्टेशनसे ग्राम पास है । २ जैनियोंकी दुकान हैं। फिर यहां अलीगढ़, खुर्जा आदि पड़ता है। यहांका हाल ऊपर लिखा है, सो देख लेना चाहिये | हाथरससे टिकिट कानपुरका लेवे, ३ ॥ ) लगता है । छोटी बड़ी लाइनका किराया बरावर लगता है । कानपुर उतरे ।
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( १७७ ) कानपुर शहर ।
स्टेशन से १ मील शहर में दि० जैन धर्मशाला है, यहांपर कुआ, टट्टी, बाजार पास है । वैद्यराज कन्हैयालालजीका बड़ा भारी दवाखाना है । शहरमें व्यापार बहुत है, कलकत्ता, बम्बई जैसा होता है | यहां पर सब दिशावरका माल आता है, सब देशके मनुष्य आते जाते हैं। यहांपर दि० जैनियोंके घर बहुत हैं । यहांपर मन्दिर 8 बड़े कीमती हैं। यहां कांचका मन्दिर श्वेताम्बर बहुत बड़
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१०३ है अवश्य देखना चाहिये । यहांसे एक रेलवे झांसी, १ छोटी लाइन मथुरा अचनेरा तक, १ कलकत्ता तक, एक इलाहाबाद । कानपुरसे आनेवाले भाइयों को इलाहाबादके पहिले भरवारी स्टेशन उतरना चाहिये । टिकटका दाम १॥) लगता है ।
(१७८ ) भरवारी। म्टेशनसे ग्राम न नदीक है, २ मनियोंकी दुकान हैं। फिर यहांसे तांगा करके पफोमा पहाड़ नाना चाहिये। यहांमे सवारी बैलगाड़ी, तांगा की जाती है । १५ मील पड़ता है, पक्की सड़क और कच्ची दोनों हैं।
(१७१ ) पफोसा पहाड़ । यहांपर जंगलमें १ धर्मशाला, का है, मुनीम भी रहता है। इसके पास पफोसा नामका पहाड़ है । मोटो लगी है, कुछ चढ़ाव है। ऊपर मन्दिर है, पहाड़में गुफाप हैं, प्राचीन प्रतिमा हैं। छठवें श्री पद्मप्रभु म्वामीका यहांपर तप ज्ञान कल्याणक हुआ था । यह स्थान बड़ा पवित्र और रमणीक है ! यहांपर मेला भराता है, यात्री माने जाने रहने हैं। यहांकी यात्रा करके एक जानकार आदमीको साथ लेकर ६ मील दूर गढ़वायके मंदिर जाना चाहिये । पहिलेकी यह कौशांबी नगरी है। आन जंगल है ! जमना नदी ननदीक वहती है। १ धर्मशाला है, भीतरमें दो मंदिर हैं-१ चतुर्मुख मंदिरमें चतुर्मुग्व प्रतिमा पद्मप्रभुकी है, एक मंदिर बहुत ही प्राचीन है जिसमें प्राचीन प्रतिमा और चरणपादुका हैं। यात्रा करके स्टेशन भरवारी लौट आना चाहिये। यहांसे फिर टिकट 1)। देकर इलाहाबाद उतर पड़े।
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(१८० ) इलाहाबाद शहर । स्टेशन से १ मीलकी दूरीपर चौकबाजार में दि० जैन धर्म - शाला है। तांगावाला ) सवारी लेता है, वहीं पर ठहर जाना चाहिये । पास में ४ बड़े बड़े मंदिर ३ चैत्यालय हैं । एक मंदिर में ४ वेदी हैं । प्राचीन श्यामवर्ण प्रतिमा विराजमान हैं। दो मंदिर में गंधकुटीकी रचना बहुत कीमती और रमणीक है । चैत्यालय में खड्गासन चन्द्रप्रभु भगवानकी प्रतिमा विराजमान है। शहर बहुत बड़ा है। बाजार देखने योग्य हैं। यहांसे तांगा में प्रयाग की यात्रा बड़ा करके इलाहाबाद लौट आवे । आगे मोगलसराय जावे । जिसको जिधर जाना हो चला जावे । अत्र लखनऊ की ओर की यात्रा लिखते हैं | कानपुर से II) टिकटका देकर छोटी लाईन से लखनऊ आवे | कानपुर में शहर में हरवक्त ट्रामगाड़ी स्टेशनको घृमा करती हैं । इसकी सवारीमें आराम बहुत और दाम कम लगता है । ( १८१ ) लखनऊ |
शहर बहुत लम्बा चौड़ा प्राचीन है । दि० जैन घर बहुत हैं | यहां पर कुल ९ स्टेशन हैं। उनमें एक स्टेशन जंक्शन बहुत बड़ा और रमणीक है | एक बड़ा स्टेशन और है । और पांच स्टेशन छोटे हैं । मबसे बड़ा भारी स्टेशन नौबागका है । यहांसे
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२ मील दूर चौक बाजार चूड़ीगली में धर्मशाला, और एक पंचायती मंदिर बहुत कीमती है । उसमें छह वेदी और हजारों प्रतिमा हैं । एक मंदिर यहांसे नजदीक गली में है । फिर थोड़ी दूर फरंगी महल के पास नई सड़क के किनारे एक चैत्यालय है और चौक बाजार, सड़क यहां से पाव में ल ईमामबाड़ा, हुसेनवाड़ा देखने योग्य
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१०५ है। यहां तांगा बहुत खड़े रहते हैं माल सब मिलता है । लखनऊ सिटीसे १ मील दूर म्वाहागंनमें दि० जैन धर्मशाला, पाठशाला है। १ मन्दिर बड़ा भारी हैं, जिसमें ३ वेदी और प्राचीन मनोज्ञ प्रतिमा हैं, छोटी लाइनसे इस बाग स्टेशन है। वहांसे ननदीक डालीगंजमें बड़ा भारी बगीचा है । कुआ, धर्मशाग, मन्दिर, बानार, ननदीक है । यहां माघ सुदी ५ को प्रतिवर्ष मेला भरता है। उपमें ४ दिन तक यात्रा होती है, श्रीनीका रथ निकलता है, पूना आदिका बहा आनन्द रहता है । यहाँका स्थान बड़ा सुन्दर और हवादार है, यहांसे एक मन्दिर खण्डेलवालका २ मील पड़ता है । यहां र शहरमें नैनियों की बहुन वानी है। ब्रह्मचारी शीतलामाद नी यहींके निवामी हैं, जिन्होंने समानका बड़ा उपकार गर्ने देश द्वारा किया है और अनेक उपयोगी अन्य लिग्वे हैं।
यहां गाट दरवाना, तम्बीर घर, घण्टाघा, आमकदोलाका महल, मनायब घर अदि देखना हो तो तांगा किराया करके जावे । आने ममय हर जगह नांगा मिलना है। दूसरा तांगा करके चला भावे, ऐसा करनेमे दाम कम लगता है और आकुलता भी नहीं बढ़ती है । लम्बन उमें एक और स्टेशन है । दलीलगंन इत्यादि । यहांसे एक रेलवे कानपुर, एक बड़ी लाईन फैनाबाद, अयोध्या, कागी, मोगलमगय नाकर मिल नाती है । अब हम लखनउसे भटनी लाइनकी यात्रा लिम्बने हैं । यह रेलवे कानपुरसे लखनऊ, बाराबंकी, गौड़ा, गोरखपुर, भटनी पारा होती हुई जंबी कटीहार तक चली जाती है । १ गाड़ी बरेली नाती है । एक लाईन सहा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। रनपुर पंजाब तक जाती है। अब यहांसे टिकटका ॥) देकर विन्दोरा तक लेलेवे । बीचमें बाराबंकी में उतर पड़े।
(१८२) बाराबंकी। शहर अच्छा है । स्टेशनसे १॥ मील पर दि० धर्मशाला ३ मंदिर २ और ६० घर दि. जैनियोंके हैं । यहांसे भी त्रिलोकपुर नाते हैं । पर यहांसे १२ मील पड़ता है । सो तांगा किराया बहुत है । विन्दौरसे ४ मील पड़ता है ।
(१८३) बिन्दौर। यह ग्राम ठीक है । कुछ दि. जैनोंके घर हैं । और एक मंदिर है । यहांसे ४ मील तांगासे त्रिलोकपुर जाना चाहिये ।
(१८४ ) त्रिलोकपुर। यह १ छोटासा ग्राम है, कुछ घर दि. जैनियोंके हैं, पासमें १ मन्दिर वैष्णवोंका है। धर्मशाला, कुआ, बगीचा है, धर्मशालामें बड़ी दालान है, दालान के पास एक कोटरीमें १॥ हाथ ऊँची बड़ी प्राचीन नेमिनाथकी प्रतिमा है । यह प्रतिमा वैरागी साधुके हाथमें है ! ॥) लेकर दर्शन कराता है। कोठरीमें अन्धेरा रहता है, इससे दीया जलाकर दर्शन करना चाहिये । यहांके दर्शनोंसे आनंद होता है । फिर स्टेशन लौटकर टिकिट ।) देकर सरजू स्टेशनका ले लेवे । सरयूको लकड़मण्डी स्टेशन भी कहते हैं।
(१८५) सरयू (लकड़मण्डी)। यहां उतर कर १ मील सरयू नदीके किनारे जाना होता है, फिर टिकिट सरकारी नावका -) लेकर अयोध्या घाटका लेना चाहिये।
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(१८६ ) सरयू नदी घाट । यहांसे १ रेलवे फैजाबाद जाती है, ६ मीलका ) लगता है। १ रास्ता माघ मील अयोध्यानी जाता है।
(१८७) अयोध्या नगरी । कौशल्या, साकेता, अपरानिता, विदेदा इत्यादि नाम भी हैं, यहां बानेका राम्ता मोगलसराय, लखनऊ, बड़ो लाइनसे है । एक मोगलसराय बनारससे लखनऊ आने समय अयोध्या पडती है । पहिले अयोध्या पड़ती हे मो अयोध्याकी यात्रा करे। बादको फेनाबाद । आगे सोहाबल जाना चाहिये। और लखनऊमे आनेवालोंको सोहाबलकी यात्रा करके पीछे फैनाबाद अयोध्या जाना चाहिये । दूसरा रास्ता लखनऊ बाराबकीमे सरज़ उतरकर नावसे अयोध्या घाट उतर कर अयोध्या जाना चाहिये । तीसरा रास्ता मनकापुरसे भानेवाले अयोध्या घाट उतर कर अयोध्याकी यात्रा करें। फिर फैजाबाद सोहावल नाना चाहिये फनाबाद भी उतरकर ) सवारीमें अयोध्या जाना होता है । अयोध्या स्टेशन उतरकर -) सवारीमें दि. जैन धर्मशालामें आना चाहिये । अयोध्या नगरी जिनागमके अनुसार अनादि कालसे अनंतानत तीर्थंकरोंकी उत्पन्न करनेवाली पवित्र भूमि है । परन्तु इम हुंडावसर्पिणी के प्रभावमे हालमें अयोध्या ऋषभादि पांच तीर्थकर और राम ल मणने ही जन्म धारण किया । भरत आदि चक्रवर्तीयों की भी यही मातृभूमि है । अनादि कालसे यही रीति है २४ चौवीस नीर्थकर अयोध्या में जन्मे और सम्मेदशिखरसे मोक्ष गये, पर इम कलिकालके चक्रसे भगवानाका अन्य स्थानमें जन्म हुमा । अन्य स्थानसे मोक्ष गये।
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१०८] जैन नीर्थयात्रादर्शक। यह शहर हालमें बड़ा है, मार पुगना है । एक धर्मशाला कुल ७ मंदिर और देहरिया चरण पादुका हैं । वेगवोंके राम लक्ष्मणके सकड़ों मंदिर हैं। उनमें बहुत मंदिर देखनेके काबिल हैं । यहां लाल बंदर बहुत हैं । हरएक समानको उठाकर ले जाने और नुकसान करदेते हैं । इसलिये सामान संभालकर रखना चाहिये । कोई लोग बंदरोंको चना, जलेबी आदि ग्विलाने हैं। यात्रियोंकी इच्छा हो तो कुछ खिला देना चाहिये । यहांकी यात्रा करके 2) सवा. रीमें फैनाबाद शहर देखना हुआ स्टेशनपर आनाय । अयोध्यासे फैजाबाद का ।-) लगता है और फैजाबाद देखनेको भी नहीं मिलता है । इमलिये तांगासे आना चाहिये ।
(१८८) फैजाबाद। म्टेशन बड़ा भारी है । अयोध्या, बनारम, मुगलसरायको रेल जाती है । १ मोहावल, लग्वनउ, प्रयाग, इलाहाबाद जाती है टिकट १॥ ) है ।
(१८९) प्रयाग । म्टेशनसे ३ मील दूर है, II) सवारीमें नांगावाला ले जाता है । यहांपर १ किला है, भीतर जमीनमें भोग है, भोइरामें बड़ी मूर्तियां शेव ले गोंकी हैं। एक आलेमें २ प्राचीन प्रतिमा आदीश्वर भगवानकी हैं । एक ववृक्ष है, निमको प्रयाग वरवृक्ष कहने हैं। इसी स्थानपर भगवान ऋषभदेवका तप-कल्याणक हुआ था। इसलिये यह स्थान परमपवित्र तीर्थरान कहाया है। किला बहुत बड़ा है, बहुतसी चीजें हैं । सो एक आदमी साथ लेकर सब देखना हिये । किलेके बाहर गङ्गा, जमना, सरस्वती ये तीन नदियां
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१०९ हैं। यहांपर हनारों अन्यमती यात्री दान म्नान तर्पणादिक करने आते हैं । फिर यहांसे ।।) सवारीमें इसा करके इलाहाबाद आना चाहिये । यहाँपर अनेक व मग पण्डे हैं उनसे बचना चाहिये । इलाहाबादमें ननियोंके ५० घर ४ मन्दिर और ३ चैत्यालय है। यहाँका दर्शन करके चाहे निम तरफ चला जाये । फैजाबादसे १ मील स्टेशन पड़ता है । शहर बादशाही ममयका देखने काबिल हैं। बाजार अच्छा है। १ दि. जैन मन्दिर और कुछ घर ननियोंके हैं । यहांमे अयोध्या आदि जाने को तांगा सम्ता मिलता है, फिर स्टेशन आवे | 2) देवर लम्बनस, लेनमें सोहाचल, उतर पड़े।
(१२० ) अयो-या स्टेशन । स्टेशनपर १ धर्मशाला है, फिर यहांसे -) सवारीमें बेलगाड़ी, हाथगाड़ीमे दि. जैन धर्मशालामें जाना चाहिये । १॥ मीलके करीब पड़ती है। यहांपर ब्राह्मण पण्डा बहुत रहते हैं। सो यात्रियों को हम नेन हैं' कह देना चाहिये। अयोध्यानीकी यात्रा करके फिर स्टेशन आवे । वहींसे एक रेल बनारस, मोगलसराय नाती हैं । एक फैजाबाद, सोहावल लखनऊ जाती है। यहांसे टिकटका ।) देकर सोहावलका लेवें। और लखनऊका ११) लगता है । बनारसका २) और मोगलसरायका २२) है । फैजाबादसे प्रयागका १॥) टिकट, इलाहाबादका १m) टिकट किराया उगता है।
(१९१) सोहावल । स्टेशनसे १ मील उत्तर दिशामें सड़क है । एक मील कच्चा रास्ता है । सो पूछकर नौराई जावे ।
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११.] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
(१९२) नौराई (रत्नपुरी) यहांपर एक श्वेताम्बरी दिगम्बरी सामिक धर्मशाला है। धर्मशालामें २ मंदिर श्वेताम्बरी हैं। फिर यहां ठहरकर एक आदमीको साथ लेकर ग्राममें चला जावे । ग्राममें ३ मंदिर दिगम्बरियों का है सो दर्शन करके लौट आवे । धर्मनाथ तीर्थकरका इसी नगरीमें गर्भ जन्म हुआ था। देखो काल की कुटिलता कि मान श्वेताम्बा भाई हैं। दिगम्बरियों का तीर्थ निसपर कुछ भी इंतनाम नहीं है । इम क्षेत्रका दर्शन ही करोड़ों भवका पाप दूर करता है। लौटकर म्टेशन आनावे । किसीको घर जाना हो तो चला जाय। सोहावलसे ।) का टिकट खरीद कर अयोध्या घाट आवे । अयोध्या घाट उतर कर -) नावका देकर सरज़ किनारे उतर नावे । फिर १ मीलपर लकड़मंडी स्टेशन चला जावे । टिकटका /-) देकर गौड़ा जंकशन उतर पड़े।
(१९३ ) गौडा जंकशन । यह शहर बड़ा भारी देखने योग्य है । प्राचीन मंदिर और दिन घर बहुत हैं । यहांपर शक्करगुट्टका कारखाना बहुत है। साटा-उग्वका रस पीने सम्ता मिलता है, यहांपर हजारों मन गुड़, सकर बनकर दिशावरों को जाता है। फिर लौटकर स्टेशन मानावे टिकिट किराया ॥) देकर बलरामपुरका ले लेना चाहिये । गौड़ासे ये ही लाइन बलरामपुर होकर गोरखपुर जाती है, एक गौड़ासे नेपालपुर जाती है । १ लखनऊ तक जाती है।
(१९४) बलरामपुर । .. यह ग्राम राना सा० का ठीक है । नैन लोग कुछ नहीं हैं।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
[ १११ स्टेशन मे १ मील ग्राम है। वैष्णवोंकी धर्मशाला है । यहांपर १ छत्री, २ तालाव, १ ब ग, राजमइल देखने योग्य है | यहांसे तांगामाड़ा करके गांव से पश्चिमकी तरफ १० मीलपर सेटमेट क्षेत्र जाना चाहिये ।
( १९५ ) श्री सेटमेटक्षेत्र ।
सडककी उनकी तरफ नंगल है। जंगलके आगे १ छोटासा ग्राम हैं। कुमा भी है। यहां एक बौद्धों का आदमी नौकर रहता है। बौद्धोंके साधु भी रहते हैं । उनके मकान भी हैं। यहां पर जाना चाहिये | फिर यहां मोल जंगलमें एक आदमीको साथ लेकर सौमनाथ के मंदिर जाना चाहिये । यहावर पहिले कच्चा मंदिर था । उसमें प्राचीन प्रतिमा थी, मो लखनऊ लायब्रेरी में लेगये ! अब कुछ नहीं है | मंदिर गिर गया है । अब भी कोनों तक मकानो खण्डहर हे जन-बौद्ध दोनों इस क्षेत्रको मानते हैं । मगर "जैनियों की दशा देखकर बड़ा दुख होता है। ऐसा पवित्र क्षेत्र इन जैनियोंने छोड़ दिया । यहावर प्रतिवर्ष केवल जैन २-४ ही आते होंगे ! पर बौद्धो र यहाका कर रखा है। नैनियों का नाम निशान भी नहीं यह वही नगरी है जहांवर संभवनाथ के गर्भजन्म, तब ये तो ल्याणक हुए थे।
उनका नाम श्रावती नगरी है। अभी सेटमेट नाम से प्रसिद्ध है । यहापर मौद्ध आकर रहते हैं । ब्रह्मकी धर्मशाला पूछ लेना चाहिये | यहां पर ग्रामके थोड़ी दूर बौद्ध लोगोंके खंडहर, कुंड, चबूतरा, और चरण पादुका हैं। सो आने-जाने समय देख लेना चाहिये । इस महान पुगेका दर्शन करके जन्म पवित्र कर लेना
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११२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । चाहिये । इस पवित्र क्षेत्रपर मन पवित्र रहता है। यहां बैठकर संभवनाथका ध्यान, स्मरण पूना बड़े शुद्ध भावोंसे करना चाहिये। लौटकर बलरामपुर आना चाहिये । फिर १॥) देकर गोरखपुर उतरना चाहिये । जाने आने में सेटमेटका भाड़ा ३) लगता है।
(१९६) गौरखपुर । यह शहर अच्छा है । यहाँपर अन्यमतियों का गोरखनाथका बड़ा प्राचीन मंदिर है लोग आते जाते हैं। स्टेशनमे १ मील दिन धर्मशाला है । और मंदिर भी है । यहांका दर्शन करके फिर तांगा किराया करके २ मील शहरमें बाबू अभिनंदन प्रसाद नीके मकानपर जावे | आप बड़े सज्जन धर्मात्मा पुरुष हैं । गोरखपुरके नामी हाकिम हैं, वहांपर चैत्यालय है । उसका दर्शन करें। एक मकानमें जमीनसे निकली हुई ३ प्रतिमा वैष्णवों की हैं, सो देखकर लौट बावे । फिर यहांसे टिकट 1) देकर नैनग्वार स्टेशनका लेलेना चाहिये । गोरखपुरसे १ रेलवे गौड़ा, १ भटनी, १ लखनऊ, १ दुसरी लाईन जाती है।
(१९७) नौनखार। स्टेशनसे किसी एक नानकार आदमीको साथ लेकर ३ मील नंगल में खुकुन्दा ग्रामके दक्षिण तरफ कोटसे घिरा हुमा १ धर्मशाला १ मंदिर, कुआ, चौपट जंगल मैदान है । यहांपर ३ मंदिर प्राचीन हैं । चरणपादुका है इसका पुजारी ग्राममें रहता है। ग्राम छोटासा है। मंदिर ननदीक है । बड़ा खेद है कि यहां भी नैनी नहीं आते हैं । कुछ इंतजाम नहीं है। गौरखपुरकी पंचाबतीकी तरफसे यहांपर पुजारी रहता है। भाईयो ! यहकी पुष्प
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
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दंतका गर्भ - जन्म - तप कल्याणका पवित्र स्थान है। इसका नाम किष्कंदापुरी है। यहांपर भी शांत भावसे पुष्पदंतका गुणानुवाद करना चाहिये। स्टेशन ऊपर टिकटका ) देकर भटनीका टिकिट ले लेना चाहिये ।
( १९८ ) भटनी जंकशन ।
यह स्टेशन बड़ा भारी है। ग्राम १ मील दूर है । शहर में जैन मंदिर और जैनियोंके घर बहुत हैं। शहर व्यापार में कानपुर सरीखा है | ग्राममें जाकर अतिशय क्षेत्र कहावा गांव जाने के लिये किसीको पूछकर ठीक कर लेना चाहिये | भटनी जंकशन से रेलवे १ लखनऊ, कानपुर तक | १ कटीहार तक । १ लेन बनारस जाकर मिलती है। इसी बनारस लाईन में भटनीसे ) देकर सलीमपुरका टिकट ले लेना चाहिये ।
( १९९ ) सलीमपुर |
स्टेशन किसी आदमीको साथ लेकर २ मील पूर्वकी तरफ कहावा गांव जावे | यह स्थान लट्टाका दर्शनके नामसे प्रसिद्ध है । ( २०० ) श्री कहावा गांव अतिशयक्षेत्र |
भटनी आदि में भी " लट्टाका दर्शन " इस नामके पूछने से जल्दी पता लगता है । कहावा गांव एक छोटा ग्राम है । ग्रामसे दक्षिणकी तरफ भटनी से भी दक्षिणकी तरफ थोड़ी दूर जंगलमें एक प्राचीन मानस्तंभ, उसके नीचे ऊपर ६ प्रतिमा मनोहर, और कनाड़ी भाषाका बड़ा शिलालेख है | यहांका दर्शन करके बड़ा आनन्द होता है । स्तम्भको देखकर यह सिद्ध होता है कि पहिले यहांपर बहुत बड़ा मंदिर था । किसीने नष्ट भ्रष्ट कर दिया है ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
अब केवल १० हाथ ऊँचा मानम्भ रह गया है। यहांकी यात्रा करके स्टेशन लौट आना चाहिये। फिर बनारसकी तरफ जानेसे पहिले टिकट कादीपुरका १ ||) देकर लेलेना चाहिये । ( २०१ ) चन्द्रपुरी |
सामान स्टेशनपर छोड़कर किसी एक आदमीको साथ लेकर ४ मील दूर पूर्वकी तरफ चन्द्रपुरी जाना चाहिये । चंद्रपुरीको चंद्रावटी कहते हैं । २ मील पक्की, और २ मील कच्ची सड़क है । बनारस से मोटर भी १ ) सवारीमें चन्द्रपुरी भाती है । १४ मील पडता है | रेलसे १५ मील और भाड़ा भी ) लगता है | चाहे जिस रास्ते आना जाना चाहिये । मोटर में पैदल नहीं चलना पड़ता है | रेलमें बहुत पैदल चलना होता है। इससे मोटर से ही यात्रा करना योग्य है । यहांपर चंद्रप्रभुका जन्म हुआ था | यह ग्राम छोटासा है । ग्राममें पुजारी मली रहना है, ग्रामसे थोड़ी दूर गंगाजी बहती है, उसके किनारे दिगम्बरी श्वेतांबरी दो धर्मशाला और २ मन्दिर हैं । इस क्षेत्रपर चन्द्रप्रभुकी आराधना करना चाहिये। फिर कुछ दान मन्दिरको देवें कुछ इनाम पुजारी, मालीको भी देवें। फिर लौटकर स्टेशनपर आवे। यह मन्दिर आरा निवासी बाबृ देवकुमारजीका बनवाया है, बड़ा ही मनोहर है । २ चरणपादुका और ५ प्रतिबिम्ब हैं, भण्डार पुजारीको दे देना चाहिये । ८) का टिकिट लेकर सारनाथ उतरें ।
( २०२ ) सारनाथ |
यहां भी बनारस से रेल मोटर में आते जाते हैं, स्टेशन से १॥ मील दूर धर्मशाला - मन्दिर है । मन्दिरके पीछे जमीनसे निकली
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [११५ हुई मूर्तियां रखी हैं। सब दर्शन पूजन करना चाहिये । भंडार देना चाहिये । इस स्थानपर श्रेयांमनाथके गर्भ-जन्म-तप तीनों कल्याणक हुए थे। सिंहपुरो है। लौटकर स्टेशन आवे, टिकटका -) देकर कागोका टिकट ले लेवे । और काशो अलईयपुर उतर पड़े। वहांसे तांगा करके बिहारीलाल धर्मशाला मैदागनीमें नावे ।
(२०३) काशी वनारस क्षेत्र । यहांपर तीन स्टेशन हैं । १ गनघाट, बनारस केन्ट, काशी शहर । यहांसे १ रेक भटनी, १ मोगलमराय, १ लखनऊ तक जाती है। काशी शहरकी स्टेशन उतरना चाहिये, और =) सवारीमें तांगा बिहारीलालनी धर्मशाला मैदागनीमें पहचा देता है। यहीं कुआ, नल, टट्टी, मंदिर, बानाका मुभीता है । यहांसे मंदिर-बाजार पाप्त है इमलिये यहीं पर ठहरना चाहिये । स्टेशन भी पाम है, मब बानका आराम है । भेटु युगमें भी धर्मशाला है । यहां भी जंगल कुमआ आदि सबका आगम है । यहांपर दो मंदिर और ( वेदी हैं । प्रतिमा बहुत मनोज्ञ हैं। मं दर सब ही कीमती हैं। यहांपर श्वेनांवर मंदिर व चरमपादुका, छत्री है । एक श्वेतांबरी दिगम्बरी मंदिर सामिल है।
भदैनीघाट पर श्री स्या० महाविद्यालय है । धर्मशालाभ पाठशाला है । इससे ठहरनेमें तकलीफ रहती है। पापमें गंगानी वहनी है, शोभा भी अपार है । भदेनीमें ३ मंदिर हैं। २ पाठशालामें, १ कुछ दूर है । यह स्थान दानी श्री० ब • देवकुमार नीका है। जहांपर इच्छा हो वहांपर टहरना चाहिये । मंदागिनी में बहुत सुभीता रहता है। फिर किसी मादमीको साथ लेकर शहरकी
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२१६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । वंदनाको जावे । पूर्वोक्त मंदिरोंके सिवाय , पंचायती बहुत बड़ा मंदिर है। उसमें म्फटिक मुङ्गाकी प्रतिमा है । एक उदयराज खगरानका चैत्यालय दालची मण्डीमें है । इसमें भी १ म्फटिकमनिकी बड़ी प्रतिमा है, एक भाटके मुहल्लमें जौहरीका चैत्यालय है. उसमें श्री पाश्वनाथकी हारेकी प्रतिमा है । इसका दर्शन । बजे सुबह ही होता है, जल्दी जाना चाहिये । विश्वनाथका मंदिर सोना चांदीकी गड़ाई का है। इसके सिवाय वैष्णवोंके हजारों मंदिर हैं। गंगाके घाटपरके मकान, भरवनाथ, दुर्गाका मंदिर, औरंगजेबकी ममनिद, राजाओंक टहरने के मकान, अम्मी संगम, अगम्त अमृत
और नाग ये नीन कुण्ड, हिन्दू विश्वविद्यालय, मान मंदिर इत्यादि देखना चाहिये । यहांपर नियोंक २५ घर हैं। भदनी घाटपर तो श्री सुणचाय और भेन्मे पवनाथके गर्भ-जन्म-तप ये तीन करयाण. हुए हैं। यहापर म्ह पुरुषोंने जन्म लिया था ! हिन्दू लो ना इसकी मदः . मानते हैं : यह विद्या का भी केन्द्र है। बड़२ विदा कर नहाने जाते हैं, एक हिन्दू विश्वविद्यालय है। उसमें कई हजार विद्यार्थी पढ़ते हैं। स्यावाद वि०को देखकर उसमें अच्छी सहायता देना चाहिये। यह मम्था विद्वानोंको उत्पन्न करनेवाली है । विद्यादान समान दुसरा दान नहीं है । फिर कुछ खरीदना हो तो खरीद देना चाहिये ! यहॉपर मोने चांदीका हाथका काम । अटो मकान भी कीमती हैं । सा.का प्यार का नहीं होता है, घर ही घरमें होताग वामान हरतरहके वर्तन निलने हैं। यहांकी यात्रा करके 'टे. . अगर किसीको आगे चंद्रपुरी, सिंहपुरी, भटनी,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [११७ अयोध्या, फेनाबाद, लखनउ, मोगलमराय आदि जाना हो, उघर चला जावे । इनका हाल उपर लिखा है मो देख लेना चाहिये । काशीसे मोगलसराय -) देकर जाना चाहिये । मोगलसराय गाड़ी बदलकर २) टिकटका देकर आग जाना चाहिये ।
(२०) मोगलमगय । यहांमे १ गाड़ी लग्ननउ, १ पहारनपुर, १ आग पटना होकर कलकत्ता तक जाती है । इलाहाबाद होकर जबलपुर जातो है । रफीगंज गया होकर टिमरनी जाती है। आग पटना वाली गाड़ी मधुपुर बदलकर गिरे दी जाती है। पिर गिम्बर जी जाती है। गया होकर भी मीधी शिग्वरजी जाती है।
(२०४) आग। म्टेशनमे १ मील -) मवागमें नांगा शहरमें जाता है । मो बा० इम्प्रसादनी ननकी धर्मशालामें उतर जाना चाहिये । इमो वर्मशालामें , चैत्यालय और शिवानीके पहाड़ की रचना है। १ प्रतिमा म्वर्ण, २ चांदी, १ म्फटिकमणिकी है। फिर किमी मानकार आदमीको माथ लेकर शहरके बदियार मंदिरोंकी वंदना करें। मंदिर और चैत्यालयों की संख्या ३४ है। इनमें रंगर की प्रनिम्न विराजमान हैं। जनपिद्धांनभवन भी है। फिर शहरके बाहर २ मीलको दूरीपर २ नमियां हैं। वहां का दर्शन करे । धनृपुगमै पं० चन्दाबाई द्वारा मवर्डिन जैनबालाविश्राम है । उसको देखना चाहिये व कुछ सहायता भी देनी चाहिये। फिर लौटकर शहरमें आवे । बाबू निर्मलकुमारनी, बा० चक्रेश्वरकुमारजी व व. धरणेन्द्रकुमारनी यहीं रहते हैं । यहांपर जैन अग्रवालोंकी संख्या ८० के अंदाना होगी।
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११८] जैन तीर्थयात्रादर्शक। गुड़ यहांका प्रसिद्ध है । लौटकर स्टेशन मावे । फिर ॥4) देकर पटना गुलजारबागका टिकट लेवे ।
(२०५) पटना-गुलजारबाग । __ स्टेशन के पास १ दि. जैन धर्मशाला है। १ मंदिर और पाममें ही सेठ सुदर्शनका मोक्षस्थान है। वहांपर चरणपादुका भी हैं। यहांकी पूजा करके शहरमें जाना चाहिये । शहर प्राचीन बहुत लंबा चौड़ा है। कारीगरीका काम बहुत होता है। शहरमें कुल पांच मंदिर हैं। १ तमोली गली, २ कचौड़ी गली, ३ बृदाबाबा, ४ गरुड़ा ऊपर, ५ बाजारमें है। सबका दर्शन करना चाहिये ।
रौटते समय बाजार देखता हुआ गुलनार बाग आनावे । १ पटना सिटी, २ गुलजार बाग, ३ वांकीपुर (पटना जंकशन), ४ सोहनपुर। नदीके उत्सर पार ये ४ स्टेशन पटनामें हैं । सोहनपुरसे १ गाड़ी हाजीपुर होकर कटीहार जंकशन जाकर मिलती है। इधर भी मिथिलापुरी, आसाम, नेपाल, कैलाश पर्वतकी यात्रा है। इसका वर्णन आगे करेंगे । पटनासे टिकट विहार शहरका लेलेवे । ॥) लगता है । बीचमें वखित्यारपुर गाड़ी बदलकर विहार उतर पड़े। १ गाड़ी यहांसे आरा-आगरा जाती है। एक गयाजी जाती है ।
(२०६) विहार शहर । स्टेशनसे नजदीक १ गली में दि. जैन धर्मशाला और मंदिर है। फिर मालीको साथ लेकर १ मील दूरी शहरमें दि० श्वे. दोनोंकी शामिल धर्मशाला है। वहां भी दोनोंके शामिल मंदिर हैं। ३ प्रतिमा महा मनोहर हैं । यहांका दर्शन करना चाहिये । यहांसे पावापुर नाना चाहिये । तांगा, मोटर, बैलगाड़ी आदि भाड़े करके
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [११९ १० मील पावापुर चला जावे । फिर पावापुरसे लौटकर बिहार जावे । बिहारसे एक रुपया सवारीमें नवादा तक हमेशा मोटर, तांगा जाते हैं। बीचमें पावापुरनी पड़ता है, ॥) सवारी लगता है।
(२०७) सिद्धक्षेत्र पावापुर । __श्री महावीरस्वामीका यहांपर निर्वाण कल्याणक हुआ था। पद्म सरोवरके बीचसे कार्तिक वदो ३० को पिछली रात्रिके २ घडी रहनेपर ७२ मुनियों सहित भगवान मोक्ष पधार गये । नालावमें बड़ा भारी मंदिर और चरणपादुका है। वहांका दर्शन करनेमे ऐमा मालूम होता है कि मानों साक्षात् मोक्षशाली ही है। पानी और फूले हुए कमलोंसे सरोवर सदा प्रफुल्लित रहता है। कार्तिक बदी अमावस्याके दिन यहा बड़ा भारी मेला भरता है । यहांपर दि. श्वे. २-३ वडी २ धर्मशाला हैं । कुल उपर नीचे ८ मंदिर हैं। बगीचा और कुआ है । थोड़ी दूर पावापुर ग्राम है । यहांपर एक दोनों की शामिल धर्मशाला है। १ मंदिर दिगम्बरी है। १ श्वे. भी है । यहांका दर्शन करके जाने के तीन रास्ते हैं-१ गुणावा होकर नवादा जाती है । १ मील दूर गाड़ीका रास्ता कुण्डलपुर जाता है । चाहे निघरसे चला जावे । मब हम विहारसे कुंडलपुरका वर्णन करते हैं।
(२०८) वड़ग्राम रोड़ म्टेशनसे १ मील ग्राम है। रास्ता सड़कका है । ग्रामसे उत्तरकी तरफ १ मील ऊपर कुंडलपुर ग्राम है। यहांपर एक धर्मशाला और १ मंदिर है। वहांपर सामान रखकर १ भादमीको साथ लेकर जमीनकी खुदाई देखने जाना चाहिये । जमीन खोद
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१२०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । नेसे कुंडलपुर ग्राम निकला है। जिसमें बड़े२ मकान, कुआ, चौद्धमतियोंके मंदिर बहुत मूर्तियां निकली हैं। इससे निश्चय होता है कि यह बड़ी भारी नगरी थी। सो नगरी दब गई है। जैन शास्त्रकी आज्ञा प्रमाण है। फिर लौटकर मंदिरजोको आवे। फिर ग्रामसे उत्तरकी तरफ आध मील ऊपर धर्मशाला है। यहांपर १ धर्मशाला १ मंदिर है। दर्शन करके स्टेशन मानावे । यहांसे १ राम्ता विहारको व १ रास्ता पावापुरीको जाता है । कच्चा-पक्का गम्ता है। (-८ मील दोनों ग्राम पड़ते हैं। किसीको घर जाना हो तो चला जावे । नहीं तो वापिस बड़गांव रोड आवे । टिकट ॥३) देकर रानगृहीका ले लेवे ।
(२८९) राजगृही अतिशयक्षेत्र । प्यारे सज्जनो ! यह वही पवित्र भूमि है जिसपर जगपिंधु, धन्यकुमार, शालीभद्र, सुकुमाल, मुनिसुव्रत आदि महान पुरुषने जन्म धारण किया था। इसका नाम कुशाग्रनगर भी है । सुभद्रा चेलना आदि महासती यहीपर हुई थीं। पांचों पहाड़ोंपर २३ तीर्थकरोंका समवशरण आया, वर्डमान म्वामीका तो कई वार आया। यहांपर नाना-आना और वंदनाका चक्र १८ मीलका पड़ता है। कुल पांच पहाड़ हैं। १ विपुलाचल, २ वैभारगिरि, ३ मोनागिर, ४ उदयगिर, ५ रत्नागिर ये पांच पहाड़ हैं। इन पहाड़ोंपर कुल १८ मंदिर हैं। जिसमें वैभारगिरपर बहुत मंदिर हैं। मंदिरके दक्षिण तरफ एक प्राचीन मंदिर, एक प्राचीन गढ़ व भौहरा है। इसका पता लगाकर दर्शन करना चाहिये । सब पहाड़ोंसे अधिक इस पहाड़पर बहुत मंदिर हैं। बहुत प्राचीन चरण पादुका हैं।
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[ १२१
।
विपुलाचल पर्वतपर ७ मंदिर हैं । खोज२ कर शांतभाव से दर्शन करना चाहिये ।
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वैभारगिरिपर श्रेणिक गुफा है। पहाड़ ऊपर थोड़ी दूर भद्रकुमार शालिभद्र का छोटासा मंदिर व श्रेणिककी गुफा ऊपर है । सबकी पूजा वंदना करें। इन पहाड़ों से कोई २ मुनि स्वर्ग भी गये हैं । २ मुनि मोक्ष भी गये हैं। ऐसा शास्त्रों में लेख है । इसलिये जैनियोंका तो पूज्यस्थान, अतिशय क्षेत्र सिद्धक्षेत्र और महावीर तीर्थराज भी है। पहाड़ के नीचे वैष्णवोंके बड़े मंदिर, नदी व कुंड हैं । मो सब मनके लोग वंदना को आने हैं । थोड़ी दूर एक मुसलमानकी कबर है । वपर मुसलमान भी आते जाते हैं | कुंडोंने पानी बहुत गरम, थोड़ा गरम, बहुत ठंडा तीनों तरहका रहता है। इनमें स्नान करनेमे रोग, व्याधि, शरीरमल, परिश्रम नष्ट होन में हैं ! इसलिये इस क्षेत्र, कुंडों की महिमा जगत प्रसिद्ध है। स्टेशन के पास राजगृही नगर ठीक है । पहिले बहुत प्रसिद्ध नगरी थी। मो अब बिलकुल छोटी रह गई है । यहांपर २ दि० धर्मशाला, २ कुआ, मंदिर, मैदानका सुभीता है। एक मंदिर देहलीवाले भाईका और एक गिरीडीवालेका बहुत बढ़िया बनाया हुआ है । इनके आगे एक श्वे ० धर्मशाला व इत्रे० मंदिर है । श्वेताम्बरीय मंदिर में २ प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं । सबका दर्शन करके स्टेशन लौट आये। यहां मेला भी बड़ा भारी भरता है । टिकटका १) देकर रेलसे बिहार आवे । दुपरे बैलगाड़ीके रास्ते से पावापुरी, गुणावा, नवादा, कुंडलपुर भी आना-जाना होता है । यह रास्ता यात्रियोंके सुभीनेपर निर्भर है। इनका ऊपर उल्लेख
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१२२ ]
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कर दिया है | बिहार लौटकर रेलसे आनेसे फिर मोटर, तांगा से नवादा तक जासकते हैं। बीचमें पावापुरी-नवादा पड़ता है। (२१०) सिद्धक्षेत्र गुणावाजी ।
पावापुर, राजगृही, कुंडलपुर, बिहारके आते-जाते समय बीच में यह तीर्थराज पड़ता है । यहां १ श्वेताम्बर, १ दिगम्बर दोनों धर्मशाला हैं । दोनों मंदिर हैं। दोनों कारखाना हैं। यहांसे श्री गौतम गणधर भगवान मोक्ष पधारे थे । चरणपादुका और प्रतिमा है | यहांसे दर्शन करके नवादा आवे । और नवादा से आनेवाले / यहांकी यात्रा करके पावापुर आदि आगे जायं ।
(२११) नवादा शहर ।
यह नवादा किऊल गया के बीच में पड़ता है । यहांसे एक रेल गयानी जाकर मिलती है। एक रेल किऊल- लक्खीसराय होकर भागलपुर नाथनगर होकर लूप लाईनसे बर्द्धमान होती हुई कलकत्ता जाती है । गयाका हाल आगे लिखता हूं । पीछे नाथनगरका | पहिलेसे ही पुस्तकको ध्यान से पढ़कर विचारकर जिबर जाना हो उधर चला जाय । हर जगह पूछना चाहिये ।
( २१२ ) गया ।
चाहे जिघरसे मानेवाले भाई मोगलसराय गाड़ी बदलकर बीचमें चंद्रवती नदीको देखता हुआ रफीगंज होकर गया आना चाहिये । ( २१३ ) रफीगंज ।
स्टेशन से नजदीक १ कस्बा है । २० घर दि० जैनियोंक हैं। एक मंदिर और प्राचीन प्रतिमा, १ पाठशाला है । यहांसे ययाका किराया ||) लगता है। पटना से भी सीधा गया मासकते
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। हैं। टिकट १॥) लगता है। लूप लाईन कलकत्ता, दिल्ली, कालका लाईनसे किउल ( लक्खीसराय ) गाड़ी बदलकर नवादा होकर पटना तककी यात्रा करके पटनासे गया आजावे । या नवादासे गया आजावे । एक रेल आसनशोल बनारस लाईनमें गोमोह, ईसरी, हजारीबाग होती हुई गया आती है। चाहे जिधरसे आने जाते समय गयानी उतर जावे ! गयानी हिन्दुओं का बड़ा भारी तीर्थ है। हजारों लोग यहांपर रातदिन आते-जाते रहते हैं। रेलगाड़ी स्टेशन धर्मशाला में बड़ी भीड़ रहती है । कभी२ इतनी भीड़ रहती है कि गाड़ी चूक नाती है। टिकट नहीं मिलती है । सो कुछ खर्च करके टिकट खरीद लेना चाहिये। स्टेशन पर वैष्णवों की बड़ी भारी धर्मशाला है। नदीके किनारे चौक बाजारमें दि जैन धर्मशाला है। वहींपर २ दि. जैन मंदिर और प्राचीन तथा नवीन बहुत प्रतिमा हैं। अंदाना ६० घर दि जैन, १ पाठशाला, कन्याशाला है। फिर शहरमें १ मोल दूर बहुत बढ़िया १ मंदिर है। यहां भी १ धर्मशाला है। स्टेशनसे दोनों मंदिर, धर्मशाला बराबर पड़ते हैं। शहरमें ही जाकर ठहरना चाहिये । शहरमें हजारों मंदिर वैष्णवोंके हैं। बानार, मूर्ति, फल्गु नदी बहती है । नदीमें पिंड दान करते हैं ! नदीके किनारे घाट, मंदिर इत्यादि चीजें देखना चाहिये। फिर यहांसे मोटर या तांगा करके तीर्थरान कुलुहा पहाइपर जाना चाहिये। गयानीमें सेठ रिषभदास, सेठ केशरीमल लल्ल्टमल सेठी सजन पुरुष हैं।
(२१४ ) अतिशयक्षेत्र कुलुहा पहाड़। गयानीसे ३८ मील दूर कुलुहा पहाड़ है जो इस देशमै प्रसिद्ध
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१४] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
____w ww ~~ wwwmmmmm पहाड़ है | गयामे जीदापुर ढौवीग्राम तक पक्की सड़क है । ढौबी ग्राम तकसे बांई तरफ राम्ता मुड़कर ९ मीलपर हटरगंज थाना है। यहांतक मोटर तांगा आते-जाने हैं। आगे वीचमें फल्गु-नीलांजना दो नदी उतरना पड़ती है । तांगावाला यहींपर ठहर जाता है । यहांसे ६ मील दूरीपर हतवरिया ग्राम पड़ता है । वहांतक मोटर, तांगा ज्यादः किराया देनेसे चले जाते हैं । राम्ता अच्छा है । नदी भी गहरी नहीं है । कभी नदी नहीं उतरनेपर नदीके उसी तरफ हटीरगंज तक तांगा अच्छी तरह आता है । हटरगंजमें बहुत तांगे हर समय मिलते हैं। नदीसे सिर्फ २ मील दूर हतवरिया ग्राम है। यहां बाबू बद्रीनाथ जौहरी कलकत्तावालोंकी कच्ची धर्मशाला है । एक मादमी रहता है । यहांसे आप मील पहाडकी तलेटी है । नीचे कुआ और बगीचा अच्छा है । एक मकान भी है । यह पहाड़ पहले जैनके नामसे प्रसिद्ध था। पहाड़पर एक जिन शासनदेवी थी, उसमें विराजमान करके उमको कुलेश्वरीके नामसे प्रसिद्ध कग्दी । पहाट का नाम भी कुलुहा कहने लगे । और हजारों पापी जीव वरदानकी इच्छासे बोल-कबोल कर भंसा, मुर्गे, बकरे जिन देवी और जिन प्रतिमाके आगे मारकर चढ़ाने लगे । उस हत्याका पार नहीं है । उसको कुलदेवीका मंदिर बोलते हैं। वहांपर जाने हुए दि. जैन मंदिर शुरू में पडता है । इस मंदिरमें पहिले बहुत प्रतिमा और एक सहस्रकूट चैत्यालय था । और बाहरकी दालांनमें शासनदेवी विराजमान थी।
बड़े दुःखको बात है कि नैनियोंकी गलीसे उन दुष्टोंने प्रतिमा और सहस्रकूट चैत्यालयको बाहर निकालकर एक झाड़के
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९५ नीचे डाल दिया । और मंदिग्में देवीको विराजमान करदी । जिन प्रतिमाको भैरव आदि बोल कर उनके ऊपर देल मिदुर चढ़ाने हैं । और सामने हजारों जीवों का वध करते हैं। प्रतिमाएर ग्यून
और मांस पिंडका देर कर देते हैं । बहुनसे लोग नारियल, फल, फूल, मिठाई आदि भी चढ़ाते हैं। पहाड़की दुर्दशा और मोह निद्रा दिगंवरियों की देग कर कलकत्ता निवामीबाव बद्रीदामनी जौहरी वेताम्बर -नने अपना बहुतमा धन खर्च करके इस पहाड़को ग्राम सहित खरीद लिया है । और अपने आधीन कर लिया है व कनी - शाला बनवाकर एक अपना आदमी रग्ब दिया है । पहाइपर जीववघ न हो, इसलिये बाबमा ने बहुत मुकदमा लडा, परन्तु बगाली लोगोने जीव मारना बंद नहीं किया। मगर पहिलेसे कुछ कम नीव मरते हैं। यह सब कलिकाल की माया है। पहाड़की चढ़ाई आध मीलकी मरल है । पहिले वही मदिर, प्रतिमा और सहनकट चत्यालयका बटर मिलता है निमका उल्नेम्व उपर किया नाचुका है । फिर पहा, जर थोड़ी दा जानेगे एक पत्थर के नीचे बड़ी भारी गुफा है । इसमें अखण्डित २ प्रतिमा विगनमान हैं। एक बडा भारी वृतग मंडप आता है। यहांपर पहिले बड़ा मंदिर और धर्मशाला थी, मो टूट गई ऐमा माटम होता है ।
फिर आगे जानेमे एक पहाटके पत्थरमें १० प्रतिमा अग्बंटित लेकर वरनाथ नगई है । और आगपाममें छोटी२ प्रतिमा हैं। वृषभनाथमे एक पत्या शिलालेग्न भी है। पर पढ़ने में नहीं आता है। गीतलनाथके तप कल्याणकका यह स्थान है। यहींपर भगवानको केवलज्ञान हुआ था। यहांसे थोड़ी दूरपर १ भद्रलग्राम है । उसमें
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१२६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । भी एक प्राचीन शीतलनाथका मंदिर है। इसलिये इसीका नाम सच्चा भद्रलापुरी है । जहाँपर कि भगवान के गर्भ, जन्म, कल्याणक हुए थे, यह वही तीर्थ और वही नगरी है । यह दुष्ट कलिकालका प्रभाव है । यहांकी हजारों वर्षों से मुनि, आर्यिका, धर्मात्मा लोग वंदना करते भाये, उसीकी आज यह दशा है ! उपरकी दश प्रतिमाओंको बंगाली लोग दशावतार मानते हैं। यहांकी वंदनाके लिये हम (व० गेवीलाल) और गयाके बहुतसे लोग आये थे । बड़े आनंद के साथ पूना वंदना की थी। गयावालोंसे बहुत कहा कि आप लोग यात्रियों को आनेनाने का प्रबंध करदो। जानेके लिये प्रेरणा किया करो । परन्तु किसीने भी ध्यान नहीं दिया । यात्री सिर्फ प्रसिद्ध नामी२ तीर्थोपर ही जाते हैं। यहांपर नहीं आने हैं। यह बहुत ही रमणीक पुण्यक्षेत्र है । रेल वगैरह पासमें है । दौड़कर भी चले जासकते हैं। हमने ऐसे २ गुप्त स्थानों के दर्शन बड़े कष्टसे करके इस पुस्तक लिखने का साहस किया है । यहांकी यात्रा करके लौट कर गयानी आवे । अब गयानीसे पीछे नवादा, भागलपुर, मधुपुर, गिरीडो होकर शिखरमी जासकते हैं । गयासे सीधे हजारीबाग-ईसरी होकर शिखरनी जासकते हैं । बीचमें कोडरमा, हजारीबाग रोड़ पडता है । वहांपर दि. जैन मंदिर और जैनियोंके घर बहुत हैं। फिर ईसरी स्टेशन उतर पडे । गयासे टिकट १॥) ब्गता है।
(११५) ईसरी। स्टेशन के पास २ दि. जैन धर्मशाला हैं। एक मंदिर और कुआ भी है । यहांसे मोटर-बैलगाड़ी या पैदल ही १४ मीठ
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१२७ मधुवन चला जावे । ईसरीसे १ रेल गोमोह जंकशन होकर बासनशोल, कलकत्ता तक जाती है। टिकट ३१) गता है। गो गोमोह जंकशनसे गाड़ी बदलकर आदा नंकशन जाती है । आद्रा जंाशनसे एक गाड़ी पुरलिया होकर नागपुर तरफ जाती है। एक गाड़ी भाद्रासे खडगपुर जंकशन जाकर मिलती है । पुरुलियासे १ रेल रांची जाती है। खडगपुरसे १ रेलवे कटक भुवनेश्वर होकर खुग्दा रोड जाती है । एक रेलवे कलकत्ता जाती है। एक खडगपुग्मे जाइ सुकड़ा झालीमाटी होकर सोनो नाकर मिलती है । फिर नागपुर होकर बंबई तक जाती है। बुग्दासे एक रेल जगदीशपुरी जाती है । एक रेलवे बैनवाडा होकर मद्राम तक जाती है । इत्यादि ममझ लेना चाहिये । अब हम नवादा तरफका हाल लिम्बिने हैं। नवादाने टिकट १।।।) देकर नाथनगरका ले लेवे या भागलपुरका ले लेये।
(१६) नाथनगर । म्टेशनमे पाव मील दि. जैन धर्मशालामें जाना चाहिये । यहांपर दो धर्मशाला मामने२ हैं। उनमेसे १ तेरापंथी, दूसरी वीसपंथीकी है। दो ही मंदिर, कुआ, कारखाना, भंडार अलगर हैं। यहांकी वंदना करके पांवमे १ मील दूर नाथनगर देखता हुआ चम्पानाला-(चंपापुरी) नावे ।
(२१७) चंपापुरी। यहांपर पहिले दि० श्वे की धर्मशाला शामिल थी। और दोनों का नीचे ऊपर भंडार था। मो अब श्वेताम्बरियों ने जुम्मे करली है। परन्तु यहांपर दि. जैन मंदिर, प्राचीन प्रतिमा, दो घर
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१२८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । णपादुका हैं । यह स्थान बहुत प्राचीन पूज्यनीक है । धर्मशालाके बाहर एक तरफ शहर है । पीछे गंगा नदी वहती है । गंगा नाला कहते हैं। यहांका दर्शन करके नाथनगर आनावे । फिर यहांसे -) सवारीमें भागलपुर आने-जाते हैं। और रेलमें सिर्फ -) ही लगता है।
(२१८) भागलपुर। स्टेशनसे थोड़ी दृर गाड़ीके सामने आधी मीलके फासलेपर दि० जैन धर्मशाला, कुआ, और एक मंदिरमें तीन मंदिर सामिल हैं । प्रतिमा वासुपूज्य भगवानकी विगनमान है। यह प्रतिमा बहुत प्राचीन है । यहांका भंडार भी अलहदा है। भागलपुर उतरनेसे भी नाथनगर तथा चंपानालाकी यात्रा करके लौटकर भागलपुर आजावे । अगर उधर उनरें तो इधरकी यात्रा करके उघरको लौट जावे । भागलपुर शहर अच्छा है । १० घर दि० नैनियों के हैं । बाजार अच्छा है । माल वगैरह सम निलता है ।
यहांसे एक लाईन (ल्लूप) जाकर कलकत्ता मिलती है । एक लाईन कटीहार जाकर मिलती है । एक लाईन नवादा होकर गयानी जाकर मिलती है । सो इमी लाईनसे लम्बीसराय गाड़ी बदलकर मधुपुर जावे। यहांसे गाड़ी बदलकर गिरीड़ी उतर पड़े। फिर शिखरनी जाना चाहिये । मम्मेदशिखरजीसे नाथनगर, भागलपुर आनेका दूसरा रास्ता भी है । बीचमें कीऊल या लक्खीसराय गाड़ी बदलकर भागलपुर आवे । अगर किमीको भागलपुरसे सीधा कलकत्ता जाना हो तो भागलपुरसे सीधा कककत्ता चला जावे। वहांसे लौटकर, मधुपुर, गिरीडी, या गोमोह,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१२९ ईसरी होकर शिखरजी नावे । टिकट भागलपुरसे नवादाका १॥-), गयाका ३), गिरीडोका २), कलकत्तेका ५) भाडाका लगता है। मागलपुरमे एक रेल मंदार गिरनी जाती है। टिकट II) लगता है। सो पहिले मंदारगिरनी जाना चाहिये । बैलगाडीका किराया ४), बग्गीका किराया १०), लगता है। और मोटरका किराया २) सवारी लगता है । चाहे निममे चला जावे । (२१९. ) स्टेशन मंदारगिा-(सिद्धक्षेत्र मंदारगिरजी)
भागलपुरमे ३० नील द्रा ग्राम है । स्टेशनसे १ मील दूर दि. भन धर्मशाला व चन्यालय है । यहांका भंडार पुजारी अलग है । यहांमे मड़क २ मील तक लगी है । १२वें तीर्थकरका गर्भ, नन्म, तप, ज्ञान कल्याण तो भागलपुर नाथनगर चंपापुरमें हुआ था । मो एक ही बड़ा शहर चम्पापुर था। उसकी सीमामें तीन खंड होगये । मगर मय चंपापुरमें ही गर्भित हैं। पान्तु मोक्ष कल्याणकका स्थान यही मंदारगिरिका पर्वत है। पहाड़ ऊपर १ तालाव, २ मंदिर और चरणपादुका हैं। पहाड़के नीचे १ बड़ा तालाव, जंगल, १ छत्री, कुआ आदि है | पहाइपर एक गुफामें १ नरसिंघकी मूर्ति, गंगा जमना कुंड व १ तालाव हैं । यह सब वैष्णवोंके तीर्थ हैं। वहींपर १ माधु रहता है । हनारों अन्यमतके यात्री यात्राको आने हैं। यहांकी यात्रा करके भागलपुर आवे । फिर २॥) देकर गिरीडीका टिकट लेलेवे । बीचमें लक्खीस. राय, मधुपुर गाड़ी बदलकर गिरीडी उतर पड़े। पहाइपर २ दि. जैन मंदिर हैं । ये दोनों ही प्राचीन मंदिर हैं । एक मंदिरमें चरजमाबुका हैं । और दुसरे मंदिरमें कुछ भी नहीं है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक।
(२२०) गिरीड़ी स्टेशन । स्टेशनसे थोड़ी दूर शहर है। शहर अच्छा है । १० दि. नैनियोंके घर हैं । वीसपंथी, तेरापन्थी, श्वेताम्बरी इन्हीं तीनोंकी ३ धर्मशाला व ३ मंदिर अलगर हैं। यहांसे मधुवन १८ मील पड़ता है । रास्ता पक्का है । तांगा, मोटर, बैलगाड़ी आदि सभी सवारी मिलती हैं । बीचमें ग्राम, भोडलकी खानि कोयले का बड़ा भारी कारखाना देखता हुआ चला जाये । बीचमें वड़ागर नदी पड़ती है। नदीपर एक श्वेताम्बर मंदिर व धर्मशाला हैं । अगर यहांपर किसीको ठहरना होय तो ठहर जावे ।।
(२२१) मधुवन (श्री सम्मेदशिखरजी) की कोठियां। ___ यहांपर तीन कोठियां, बड़ी२ धर्मशाला, कुआ, बाजार, बगीचा तथा अनेक मंदिर जिनमें हजारों प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहांपर आनेजानेके मुख्य दो ही रास्ता है। १ ईमरी स्टेशनसे, दूसरा गिरीडी स्टेशनसे, इनका हाल ऊपर लिख दिया है । दिनोंकी चीसपंथी व तेरापंथी २ कोटियां व श्वेतांबरीकी एक कोठी है । इन तीनोंके कार्य जुदेर हैं । मुनीम, पुनान, नौकर-चाकर, तांगा, हाथी, थोड़ा सब जुदा२ काम है । यहांसे पहाड़की चढ़ाई ६ मील जाने पड़ता है । बीचमें ऊपर २|| मोल गंधर्व नाला पड़ता है। यहांपर दि०, श्वे दोनों ही धर्मशाला बनी हैं। आने-जाते समय यहीं मलमूत्रादि करके पहाड़पर जाना आना चाहिये । पहाइपर तो हर्गिन न करना चाहिये । प्रथम रात्रि २ बजे उठकर शौच स्नानादिसे निवृत्त होकर साफ शुद्ध कपड़ा पहनकर, गरीबोंको बांटने के लिये रुपया पैसा, पाई वगैरह लेकर, खानेपीनेको द्रव्य लेकर, गोदीवाला,
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१११. डोलीवालेको करके आनंदके साथ जय २ शब्द करता पर्वतकी वंदनाको चला जावे । ऐसा करनेसे कोई बातकी तकलीफ नहीं होगी। अगर निवटना हो तो गंधर्व नाले पर ही निकट लेना चाहिये।
(२२२) श्री सम्मेदशिखरजी पहाड़। फिर यहांसे १ मील सीता नाला पड़ता है। यहांपर द्रव्य धोकर प्रक्षालके लिये जल भी लेलेना चाहिये । यहांसे १ मीलतक मीदियां लगी हुई हैं । बाकी गम्ता कचा साफ सड़क सरीखा बना हुआ है । पहिले पहल श्री गौतम स्वामी और फिर कुंचनाथ भगवानकी टोंक पड़ती है । सो वहांपर कुछ दिन निकलनेके पहिले पहुंच जाना चाहिये । फिर पूर्व दिशाकी तरफ कुल १५ टीकोंकी वंदना करके फिर जल मंदिर मावे । कमसे नेमिनाथ, अरःनाथ, मल्लिनाथ, श्रेयांसनाथ, पुष्पदंत, पम नभु, मुनिमुवन और चंद्रप्रभ इन टोंकोंकी वंदना करना चाहिये। ये टोंके बदन उंची और दूर हैं । फिर वहांसे आदिनाथ, गोनलनाथ, अनन्तनाथ, मभवनाथ, वासुपूज्य, अभिनन्दननाथ इन टोंकोंकी वंदना करके जलमंदिरमें आनावे। यहांपर बड़ा भारी मंदिर और गेशकण पार्श्वनाथ आदिको सैकड़ों प्रतिमाएं हैं । पहिले यह दिगम्बर्ग था, पर श्वेताम्बरोंने झगड़ा करके ले लिया है । यहांपर कुछ विश्राम तथा बाधा मेटकर फिर पश्चिमको तरफ ८ टोंकोंकी वंदना करें । कुल टोंके २५ हैं। सबमें चरण हैं उन्हींकी वंदना भावसहिन करना चाहिये । पाचनाथ और चंद्रप्रभकी टोंकका चढ़ाव बहुत कठिन है। यहांपर अनंतानन्त कालसे मनन्तानन्त मुनि मोक्षको पधारे हैं। एक टोंक दर्शनका फल कोडाकोड़ी उपवासका फल लिखा है । एकवार ही
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१३२ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
शुहू भावोंसे वंदना करनेपर तिथंच और नरकगति नहीं होती है । और वह जीव ज्यादः से ज्यादः ५३ भवमें मोक्ष चला जाता है । जिस जीवको नरक तिथंचगति बंध गई होगी उसको दर्शन नहीं होगा | इसमें रावण और श्रेणिक दृष्टांत बताया जाता है । पहाड़ पर के एकेन्द्रियादि जीव भव्य हैं । एकर टोंक से १-१ तीर्थकर अनन्तानन्त मुनि मोक्षको पधारे हैं । इसी भरत क्षेत्र के २४ तीर्थंकर अयोध्या में जन्में और शिखरजी से मोक्ष जांय । परन्तु हुंडावर्षिणी कालके प्रभावसे अन्यर जगह जन्म व मोक्ष हुआ है । यह नियम अटल है । इत्यादि पर्वतका महात्म्य शिखर महात्म्यसे जानना । कुल पर्वतकी यात्राका चक्कर १८ मील पड़ता है। इस तीर्थराजकी महिमा अपरम्पार है | बालक से लेकर वृद्ध तक सभी वंदना करके पर्वतके नीचे आते हैं। और आनन्दसे खाने-पीते, डोलने-फिरने हैं । कुछ भी वेद वा परिश्रम मालूम नहीं पड़ता है । इस तीर्थ - राजको धन्य हैं, जहां देवलोक दुंदुभी बजाते हैं पानी वरसता है, मंद सुगंध हवा चलती है । सब वंदना करके पार्श्वनाथकी टोंक से आते समय इकदम उतारका रास्ता है । बीचमें प्राचीनकालका मकान है । उसमें बहुत कम यात्री आते जाते हैं । और इसी 1 पहाड़की धर्मशाला में रहते थे। यहांपर पालगंजके राजाका राज्य था । यहीं पर रहते थे । कुछ राजाको देकर यात्रा सफल बुलाया करते थे । फिर गंधर्व नालेपर आजाय । यहांपर विश्राम कर लेना चाहिये | अगर कुछ खाना-पीना हो तो कोठियोंकी तरफ से बंटता है वह लेकर खा - पीलेना चाहिये । बाल- बच्चों को भी कुछ खिला पिला कर नीचे कोठी में आजाय ।
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जैन नीर्थयात्रादर्शक । कोठियोंके थोड़ी दूर जंगल में चबूतरा है । नहांपर श्रीजीका रथ विराजमान होता है। वहांसे भी सब पहाड़का दर्शन पूना अच्छी तरह से कर सकते हैं । मधुवन में कुछ दिन ठहरकर २-३ वंदना करनी चाहिये । फिर १ भादमीको तथा १ दिनके खानेपीने का सामान साथ लेकर पर्वतकी परिक्रमा देवे । परिक्रमाके बीचमें १ भाग नालाव, २ गांव वगैरह पड़ते हैं । फिर अच्छी तरहमे दिल बोलका गरीब तथा टला, लंगड़ों को दान देना चाहिये। यहांपर कोट में बची बहुत रहता है । मो अपनी शक्तिके माफिक भंडार भगना चाहिये । फिर लौटकर गिरीली या ईमरी आनावे । घर जाना हो तो घर चला नावे । इसका हाल उ.पर लिख दिया है वहांसे देख लेना । ईपगमे या गिरीदीमे एक वार कलकत्ता अवश्य देखना चाहिये। फिर बडगपुर होकर घट गरि, उदयगिरि जाना चाहिये । दमका हाल नीचे रिग्वता हूं। जिम मनुष्यने मनुष्य जन्म पाकर तीर्थयात्रा नहीं की बह गुर्द के ममान है। और लक्ष्मी मिट्टीके बराबर है । कुटम्पी जन कीया के समान हैं । माधु पुरुष चाहे तीर्थ करें, या न करे वह नो म्वयं शुद्ध होनाता है, परन्तु गृहस्थों को तो नीर्थ अवश्य करना चाहिये।
घग्वारीने तीर्थ करना, माधुननने ध्यान । ये दोनों नहीं करें, ने हैं पशु ममान ॥१॥ काल करंना आन कर, आज करना अब्ध । छिनमें परलय होयगा, फेरि करेगा कव्य ॥२॥ आजकलको छोड़कर, करले जो कुछ अव्च । आग जरंता झोंपड़ा, सोया सो ही लब्ध ॥३॥
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२१४] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
पाव पलकी खबर नहीं, करे कालकी बात । कुण जाने क्या होयगा, कब ऊंगे परभात ॥४॥ धर्म कार्यमें ढील नहीं, करियो मेरे भ्रात । पाव पलककी खबर नहीं, कब होवे प्रभात ॥५॥
परमपूज्य शिखरजीकी यात्रा करके ईसरी, गिरीडी जाना चाहिये । फिर ३०) रेलकिराया देकर कलकत्ता जाना चाहिये। निस भाईने पहिले चंपापुरकी वंदना न की हो वह यहांसे भागल. पुर जा सकता है।
(२२३) कलकत्ता शहर । __ स्टेशनपर हर प्रकारकी सवारी मिलती है । यात्रियोंकी इच्छा हो उसीमें बैठ जाय । स्टेशन माघ मील हरीसन रोड बाजार है । यहांपर १ बाबू सुरजमलजी, २ बाबू रामकृष्णदासनी, ३ बा० बद्रीदासनी जौहरीकी ऐसी ३ धर्मशाला हैं। ये तीनों धर्मशाला बहुत बड़ी हैं। हिन्दु यात्रियोंको भी इनमें उतरनेकी आज्ञा है । पानीका कल, टट्टी, रसोईका कमरा, बाजार, मंदिर आदिका सुभीता है । बेलगछिया स्टेशनसे ४ मील है। वहांपर भी बहुत ही यात्रियोंको आराम मिलेगा। अपनी इच्छानुसार ठहर सकते हैं। अपना सामान हिफाजितसे रखना चाहिये । हर तरहके आदमी आते हैं। बेलगछियाका स्थान खास जैनियोंके लिये है। अच्छी आब-हवा और रमणीक है। शहर कुछ दूर पड़ता है। सिर्फ यही कष्ट है। ट्राम गाड़ी चलती है सो १५ मिनट में ही पहुंचा देती है। टिकट आनेजानेका सिर्फ 4) लगता है । ट्राम गाड़ी रात दिन, हर जगहको जाती है। इसी में बैठकर शहर मच्छी तरहसे देख लेना चाहिये।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१३५ अपने दि. जैन मंदिर बहुत कीमती बने हुए हैं। १ बेलगछिया, १ चांवलपट्टीमें, ३ पुरानी वाडी, ४ हरीसन रोडके पास चितपुर रोड़ नं० ८१ में हैं । सबका दर्शन करना चाहिये । एक चैत्यालय जैन अग्रवालोंका चांवलाहीमें है। मंदिरोंमें धातु पाषाणकी प्रतिमा रमणीक हैं। कलकत्ता एक नम्बरका शहर है । शहरकी गली२ दुकान २ देखने योग्य हैं । इस शहरको जिसने नहीं देखा उसने कुछ नहीं देखा। इस शहरके देखनेसे और शहरके देखनेकी इच्छा नहीं होती है। यहांपर ४-५ दिन ठहरकर कुछ खर्च करके शहरको देखना चाहिये । दि० नैन भाईयों के २००-३०० घर हैं। फुटकर व्यापार करने वाले प्रायः ६०० मनुष्य होंगे । देखनेयोग्य ये चीजे हैं___ हरीपनगेड, बानार, कोठियां, बाबु बद्रीदास नी जौहरीका बगीचा, मंदिर, यहींपर श्वेताम्बर ४ मंदिर हैं, वे देखनेयोग्य हैं। टंकमाल, हाफपा० का बाजार, मनायबघर, तार घर, बड़ा डाकखाना, विनलीघर, गंगाका पुल, नहान, अग्निबोट, अलीपुर चिड़ियाघर, हावड़ा स्टेशन इत्यादि ची में देखना चाहिये। कलकत्तेमें हाबड़ा और म्यादला ये दो स्टेशन हैं। रेलवे लाईन चारों तरफ जाती हैं। अगर अग्निवोटकी यात्रा करनी होय तो कलकत्तेसे ॥)का टिकट लेकर बाली और उत्तरपाड़के दर्शन करके कलकत्ता लौट मानावे । अगर किसीको आगबोट नहानमें किधरको नाना हो तो ब्रह्मपुत्र और समुद्रमें होकर पोरबंदर, बंबई, मंगलूर, बेंगलूर, भासाम, ब्रह्मपुत्र, विलायत तक नासकते हैं।
अब मैं कलकत्तेके मागे मासामका उल्लेख कर देता हूं। कल.
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। कत्तेके ललवे स्टेशनसे टिकट ३॥) देकर वोघराका लेलेना चाहिये । बीचमें संतार गाड़ी बदलकर एक गाड़ी पार्वतीपुर जाकर कटीहार जाती है । एक गाड़ी बोघरा जाकर कौनिया जाकर मिलती है ।
(२२४ ) बोगरा। यह ग्राम अच्छा है । १ मंदिर और २० घर दि. नैनियोंके हैं । यह गाड़ी कौनिया जाकर मिलती है ।
(२२५) कौनिया जंक० । एक गाड़ी संतार और बोगरा होकर यहां मिलती है। पार्वतीपुर में एक गाड़ी परतावगंज जाकर मिलती है । एक नरकटियागंज जाकर मिलती है । एक लाईन दरभंगा जाकर मिलती है। दरभंगा शहर बड़ा है । देखने योग्य शहर है । दरभंगासे एक रेलवे नयमगर जाकर मिलती है । जयनगरके पास बहुत मारवाडी जैनोंके मकान हैं । जयनगर भी अच्छा शहर है । १ मंदिर और कुछ घर जैनियोंके हैं। पार्वतीपुरसे १ रेलवे मनीहारबाट जाकर मिलती है। बीचमें वारसोही पड़ता है। वारसोहीके आसपास बहुत दि. नैन मारवाड़ियोंके घर हैं । यहांपर वारसोईघाट, वारसोईहाट ऐसे दो मुकाम हैं। दोनों जगहपर २ मंदिर और २६ घर दि. नैनियोंके हैं। पार्वतीपुरसे गोहाटी गाड़ी जाती है । बीचमें कौनी जंकशन जाकर मिलती है । कौनी और गोहाटीके बीचका उल्लेख करता हूं। बीचमें लालमनीहार पड़ता है। यहां भी १ मंदिर और कुछ घर दि. जैनियोंके हैं । यहांके आसपास दि. जैन मारवाडियोके बहुत घर हैं । आगे गोलगंज जंकशन पड़ता है । वहांसे एक रेलवे घोवड़ी जाती है । धोवड़ीसे नदी पार होकर ४ मील
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जैन नीर्थयात्रादर्शक । पर जमादारहाट जाती है । यहांपर १ मंदिर और २० घर जैन मारवाडियोंके हैं । इसके आसपास भी बहुत जैन मारवाड़ी हैं । धोवडीमें कुछ नैन नौकर भी हैं। मंदिर नहीं है । धोवड़ीसे गोलगंज लौट आवे । फिर आगे नरवाड़ी पड़ती है।
(२२६) नरवाड़ी। यहांपर १ मंदिर और १५ घर दि० अनियोंके हैं । यहांसे ८ मील दूर चीनीका कारग्वाना है। आमपाममें बहुत घर दि. मारवाड़ीके हैं। आगे गोहाटीगंन स्टेशन पड़ता है । बीचमें ब्रह्मपुत्र नदी पड़ती है। नावमें घटकर उस पार हो जाने पर दुसरी रेल मिलनी है। उममें घटकर गोहाटी नाना चाहिये ।
( ७) गोहाटी शहर । जंगलको - अंग्रेनने यह गहरवमाया है। शहर अच्छा है। १ चैत्यालय व : घर दि. जैनियों के हैं । यहांमे १ मील दूर नीलांजना नमक प है। पहाड़के नीचे स्टेशन है । मो गोहोटी जाने ममय बीच में पता है । गोहाटीके आगेके हिम्मेको कामरू देश बोलने हैं । कुछ हिम्मेको आमाम कहते हैं। उपमे आगेके हिन्मेको ब्रह्मदेश कहते हैं। (२२८ ) नीलांजना पहाइ-(कामरूदेश कमंग्या देवी)
यहांपर एक छोटापा ग्राम है । उममें दुष्ट ब्राह्मण लोग मांसभक्षण करने हैं। १२ धूनी गोरग्वनाथ आदि मिडोंकी बोल कर लगाते हैं। यहांपर एक तालाव, अनेक मंदिर, कमख्या देवीके हैं। जिसमें कटा हुआ गिर चढ़ाने हैं। एक देवी जमीन के नीचे गढ़ी है। वहांपर तलवार, छुरी आदि लगा रखी हैं। पंडा लोग हर
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१३८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । समय हजारों पशुओंका वध करते हैं। आधा मांस देवीको चढ़ाते हैं और यह प्रसाद है ऐसा कहके लोगोंको बांटते हैं ! खूनका तिलक लगाते हैं। और जनमानोंसे रुपया पैसा वगैरह दक्षिणामें लेते हैं। यहांका दृश्य बड़ा भयानक है । गोहाटीसे मोटर पलासवाडी जाती है।
(२२९) पलासवाडी। ___ यहांपर १ मंदिर, २० घर दि. जैन व पाठशाला है । यहां पर बढ़ियासे बढ़िया रेशम-एरंडीका लाखों का व्यापार होता है । निसमें जीवघातका कुछ ठिकाना नहीं है। इस हिंसक व्यापारके व्यापारी मारवाड़ी ही हैं । यहांसे २० मीलके चक्रमें बहुत मारवाड़ियोंकी वस्ती है । यहांसे गोहाटी आवे । टिकट २) लगता है। डिम्मापुर उतर पड़े।
(२३०) डीम्मापुर (मनीपुररोड)। यहांपर १ मंदिर व कुछ घर दि. जैनके हैं। यहांसे मोटर, बैलगाड़ीमें ९२ मील मनीपुर शहर जाना होता है । बीचमें बड़ा भारी शहर है । बहुत ग्राम पड़ते हैं ।
(२३१) मनीपुर शहर । यह शहर बहुत अच्छा है। १ दि. जैन मंदिर व बहुत घर दि० जैनके हैं। कपड़ा मादिका व्यापार खूब होता है । देशमें बहुत माल जाता है । यहांसे आगे बड़े भयानक जंगल और पहाड़ मिलते हैं । उसमें भील लोग बहुत रहते हैं । इसको तिब्बत देश बोलते हैं । तिब्बतके पहाड़ोंपर कभी कैलाश भी दीख पड़ता है। मागे नेपाल भाता है। इसका उल्लेख आगे करेंगे वहांसे जानना। लौटकर डिम्मापुर भावे । टिकट तनसुखियाका लेवे ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [११९
rammarnnmmmmmmmmmmmmm (२३२) तनसुखिया। यहांपर कुछ दुकानें जैनियों की हैं । मंदिर नहीं है। चायके कारखाने हजारोंकी संख्यामें यहांपर हैं ! मजूरों की संख्या हनारोंकी है । यहांसे १ रेलवे डिबरूगढ़ जाती है।
(२१३) डिवरूगढ़। शहर अच्छा है । १ मंदिर और ४० घर दि० नैनोंके हैं। रायबहादुर मेठ सालगराम चुन्नीलालजी यहांपर रहते हैं । गवर्नमेंटकी ४ कंपनियों का काम करते हैं। इस देशमें सब ग्रामों में इन्हीकी दुकानें हैं। नेल, शक्का, लोहा, लक्कड़, चावल, चायकी कंपनीके मालिक हैं । अंग्रेजी राज्यमें इमकी अच्छा मान्यता है। इनके मुख्य मुनीम छगनमलनी हैं। इनकी आज्ञा खूब चलती है। ३००) माहवार कंपनियोंमे और १५०) माहवार सेठ सा. की तरफसे मिलता है । फिर यहांमे तनसुविया आना चाहिये । तनसुखियासे आगे रेलवे डीगबोई जाती है । टिकट ॥) लगता है।
(३४) डिगबोई । यहां पर पूर्वोक्त रायबहादुर सा० की दूकान है । नमीनमेसे कुआ ग्वोदकर १००-१५० हाथ नीचेसे नलके द्वारा काले रंगकी मिट्टी निकालने हैं । काली मिट्टीको उबालकर मशाला देनेसे मिट्टी, पानी, तेल अलग २ होनाने हैं । यह मिट्टी १० यंत्रों में भरी जाती है । तीन भाग दूर होनाता है। तेल ४ नंबर पर मग होनाता है । पहिला नंबर मोटरका श्वेत तेल, दूसरा नंबर हल्का, तीसरा नंबर हल्का पीला तेल, इसमें पानी और माटीका कुछ संबंध रहता है। इससे उसमें धुवां बहुत निकलता है।
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१४०]
जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
माटीको साफ करके मोम बनाया जाता है । वह विलायत जाकर खिलौना रूपमें यहांपर आता है। मोमबत्तीके कारखाने यहीं भी बहत हैं। चौथा नंबरका तेल लकड़ियों वगैरहमें लगता है। यहांपर कनस्टर आदिका कारखाना है। केला नारंगी यहां पर बहुत पैदा होते हैं । इस देशमें बड़े २ पहाड़ हैं । उनके बीचमेंसे अंग्रेनोंने रेल निकाली तथा ग्राम भी वसाये हैं। जगहर पर गोरा लोगों के बंगले बने हुए हैं । सिंहादि पशु यहां पर बहुत रहते हैं । यहांसे १ रेलवे परशुगम कुंड जाती है। एक रेलवे आगे जाती है।
(२६५) परशुगमकुंड । डीगबोईसे कुछ दृर पर रेल जाती है । फिर ६ मील पहाड़ीमें पैदलका राम्ता है । बड़े२ पहाड़ और जंगलकी बीचमें ३ कुंड हैं। उनमें क्रमसे उप्ण, अनि उष्ण, अति शीतल पानी रहता है। यहांपर महादेवनीकी मूर्ति है। छोटी२ तीन देहरी हैं। पहाड़से पानी बहुत पडना है। यहांमे एक नदी निकली है । फिर लौटकर रेलमें चढ़कर डीगबोई उतर पड़े ! आगे डीगबोईसे रेल जाती है। कापाड़ी स्टेशन पड़ता है । यहांपर लकड़ीका बहुत बड़ा कारखाना है । हजारों चीजें बनकर दिशावर जाती हैं । पर्वतमेंसे माटी निकलती है। उसको गला करके लोहा बनाते हैं । हजारों चीजें बनती हैं। यहांके दोनों कारखाने देखने योग्य हैं । यहांपर मंदिर नहीं है । ४ घर नैनियोंके हैं। रायबहादुरकी दूकान और नौकर हैं । यहांसे 12) देकर ४ स्टेशन आगे एकई स्टेशन है । वहींतक ही रेल जाती है। वहां ग्राम है । साहब
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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[ १४१ लोगोंके बंगले हैं | यहां पर बड़े २ पहाड़ हैं । उनमें छोटीसी रेल जाती है। पहाड़ भी भीतर १०-१० मील तक खुदे हुए हैं । 1 यहांवर हरएक पहाड़ में तेल मिले हुए पत्थर निकलते हैं उनको पत्थरका कोयला कहते हैं। यहां से लाखों-करोड़ों मन कोयला निकलकर सर्व देशांमें जाना है । इसीसे रेल कारखाने वगैरह चहते हैं । हर किस्म कारखाने कोशोंतक देखने योग्य हैं । यहांके जंगल में केला, मनरा, चाय बहुत ही पैदा होते हैं । यहांकी वेळ तो यहांतक ही है । आगे ब्रह्मदेश आगया है । मो वहां रेल आकर पहाड़ में १० मोलपर ठहर जाती है । यहांसे लौट आना चाहिये | लौटनेपर बीचमें सीलीगुरी स्टेशनसे पूछकर १) टिक्का देकर दर्शनाला मी जामकते है । २३६) दार्जिलिंग पहाड़ ।
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पहाड़ उभी रेल जाती है । शहर बहुत अच्छा है । अंग्रेजलोग रहते हे । नाहर और सुअर के बच्चे (पले हुए) लोगोंके साथ २ घूमने है | यहांको रचना देखने योग्य है । अजब २ रचना है। भागलपुर, बनारस, पारवतीपुर, भटनीसे भी कटीहार गाड़ी जाती है ।
पटना- बांकीपुर - नदी उतरकर मोनपुर जंकशन से हाजीपुर आदि होकर (मुकाम), मोनपुर लाईन दलसिंह सराई होकर ' या उतरकर मुजफ्फर आदि स्टेशनोंसे इन लाईन में गाड़ी बात हैं । सब हाल पूछकर सीतामंडी स्टेशन उतरकर मिथिलापुरी जाना चाहिये । इस जगह पर हजारों वैष्णव लोग यात्राको आते हैं। पूछने पर जल्दी पता लगता जाता है। यहांपर मैं खुद नहीं
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१४२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । गया हूं इसलिये पुरार हाल नहीं बता सकता हूं। रेलवे उतरने चढ़नेवालोंसे पूछा था। वे कहते थे कि जनकपुरीकी यात्राको जाते हैं । सो धर्मात्मा भाइयों को इस पवित्र स्थानकी यात्रा अवश्य करना चाहिये । स्टेशन सीतामंडी उतरकर जनकपुरी तांगामें जाना चाहिये।
(२१७) जनकपुरी। यह राजा जनक-कनक, सीता-भामंडल, श्री मल्लीनाथ तीर्थकरकी जन्म नगरी आदि अतिशयोंसे शोभायमान पवित्र नगरी है । अन्य मती तो यहांपर हनारो आते हैं, पर जैनियोंने यह तीर्थ छोड़ दिया है । इसी लाइनमें मुनफफर गाड़ी बदलकर बागहा ब्रांच लाईनमें गोली उतरे। वहांसे गाड़ी बदलकर (सेगोली) रकशोल लाईनमें रक्सौल उतर पड़े । टिकट पटना सोनपुरसे रकशौल तकके २) रुपया लगता है । परन्तु यहांपर काम हजारों रुपयोंका होता है।
(२३८) रकशील। स्टेशनसे ग्राम नजदीक है । यहांसे वीरगंज २ मील दूर है।
(२३९) वीरगंज (नेपाल)। यह शहर अच्छा है। मारवाड़ी वैष्णव भाईयोंकी दुकाने हैं। यहां शिवरात्रीका फाल्गुण वदी १० से १३ तक बड़ा भारी मेला भरता है। उन दिनों में राजा सा०के हुक्मसे नेपालका रास्ता खुला रहता है । यहांपर तार, डाइधर, सड़क, कानून सब नेपाल राज्यकी तरफके हैं। किसी दुसरेकी आज्ञा नहीं चलती है । राना बड़ा जबरदस्त है । वीरगंनमें कचहरीसे आज्ञा पानेपर नेपाल जासकते
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४१ हैं। २ दिन वीरगंजमें रहकर नेपालसे हुकुम मंगाना चाहिये । खुद राजा सा के हाथ मुहर रहती है। टिकट देना पड़ता है। विना हुकुम कोई परदेशी आदमी नेपाल के भीतर नहीं नासकता है! मगर मेलेपर आम समानको आज्ञा है। यहांसे २८ मील नेपाल है। २० मीलतक बैलगाड़ी जासकती है। आगे ८ मीलका विकट राम्ता है। पांव, घोड़ा या बैलमे जाना होता है । बीचमें ३ मील अत्यन्त मकग चढ़ावका गम्ता है। यहाँके नेपाली मजुर लोग असमर्थ लोगोंको २) लेकर : टोकरीमें बिठाकर पहाड़ उतार देते हैं । बड़ा विकट स्थान नेपाल है।
(२४० ) नेपाल शहर । शहरके चारों तरफ पहाडका गढ़ बागया है। फिर गढ़, दरवाजा, वापिका, तालाव, उपवनादि हैं। नगर गजा मा०का अत्यन्त सुन्दर माटम होता है । यहांपर एक पशुपति ( पार्श्वनाथ या महादेव का बड़ा भारी मंदिर है । उम मूर्तिमें फण हैं इमलिये साक्षात पाश्वनाथकी मन्टम होती है। उसके शरीरका पता नहीं है । केवल फण महिन मानक है । इम शरीरका नाम लोगोंने पशुपति ग्व लिया है । यह मूर्ति पाच पाषाणकी है । इमीके लिये लोग ह नागेकी मंग्याम शिवरात्रिपर इकट्ठे होते है । इस मंदिरका दरवाना ग्बु गना साहिब आकर खोलने हैं । तभी सब लोग दर्शन करते हैं। लोहे की सुई लगानेसे सोने की होनाती है ! यह नेपालके राना चंद्रगुप्त-भद्रबाहु के समयमें जैन थे। उसी समयका यह मंदिर है । इमसे इसी मूर्ति के लिये राना सा० पूरा बंदोबस्त रखते हैं। मान इसकी ऐसी दशा है कि एक-दो रानिये
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१४४ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
ज्यादः कोई ठहर नहीं सकता है । नेपालके पासके पहाड़पर चढ़कर देखने से कुछ कैलाश पहाड़ दीखता है । ऐसा कोई २ लोग बोलते हैं । उसको हिमाचल पहाड़ भी कहते हैं । यहांसे I आगे तिव्वत मुल्क आता है । तिव्वतके आगे मनीपुर आदि आसाम देश आता है । उसका लेख ऊपर कर दिया है । ( २४१ ) तिब्बत मुल्क |
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यह बहुत ऊंचा पहाड़ी देश है । यहां पर बड़े पहाड़ है । उच्छ लोगोंका निवास ज्याद: है । ये लोग काले निम्लुर क्रूर परिणामी होते हैं । इनको किसीका डर नहीं। मौका पाकर मनुष्य पर भी बाबा मार देते हैं । यहांके पहाड़परमे कैलाश दिखता है । यहां पर दार्जिलिंग रेलवेका आगे स्टेशन है। एक नदी केलाश पर्वतके दक्षिण तरफ बहती है । सो नगर चक्रवर्तीके ६० हजार पुत्रोंने कैलाशके चारों तरफ खाई खोदकर पर्वतराजकी रक्षा के लिये नदी बहाई थी । इस नदीका नाम भी ब्रह्मपुत्र नदी कहते हैं । इसके बीच में बड़ी२ भँवर पड़ती हैं। इसी कारण से कोई आदमी उस पार अनेक यत्न करनेपर भी नहीं जासकता है । अंग्रेजने हवाई जहाज द्वारा कैलाशपर जानेका प्रयत्न किया पर सब निष्फल हुआ । ऐसी ही देवी माया है ।
( २४२ ) सिद्धक्षेत्र कैलाश पर्वत ।
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यह पर्वत बहुत ऊंचा है । आठ साड़िया होनेसे अष्टापद कहते हैं । श्री आदिनाथ, नागकुमार, व्याल महाव्यालादि सिद्धपदको प्राप्त भये हैं । पूर्वकालमें भूमिगोचरी रावण, भरत, बालमुनि मादिको यात्रा सहजही में होती थी। हमारे अभाग्य से हमारा वहांपर
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४५ पहुंचना नहीं होता है। हम लोग दूरसे ही प्रभुका ध्यान कर पुण्यबंध कर सकते हैं। भरत महारानने बड़े र मंदिरोंमें भूत, भविष्यत वर्तमान, सम्बन्धी तीनों चौवीसी विराजमान की थी। कलिकाल में वहांका दर्शन नहीं होता है। वहांकी रक्षा देवों द्वारा होती रहती है।
(२४.) बंगालके देश । इम प्रांतमें रेशम, अरंडी आदिका व्यापार बहुत होता है। यहां मांसभक्षी लोग बहुत रहने हैं। जीवोंकी हिंसाका कार्य बहुत होता है। दुमरी लाईन कलकत्तसे नाती है। बीचमें बहुन ग्राम है उनमें बहुतसे मारवाड़ी नैनी रहते हैं। मंदिर भी कहीरपर हैं। अब भासामका लेख पूर्ण करता हूं। कलकत्ते मे मागेका लिम्वता हूं। ____ कलकत्तमे बडगपुर जावे। टिकट १७) है। ईमर्गसे गोमोह, तथा आद्रा गाड़ी बदलकर बडगपुर नावे ।
(२४४ ) खडगपुर । ___ म्टेशनसे शहर पास है। पासमें १ वैष्णवों की धर्मशाला तथा मंदिर है। हीगलाल सरावगी आदि तीन घर दि. ननियोंके हैं। यहांपर रेलवेके नौकर अंग्रेज रहने हैं । शहर अच्छा है। सामान सब मिलता है । यहांसे १ लाईन सिवनी, नागपुर, कामठी मादि जाती है। ऊपर देखो । एक लाईन कटक, भुवनेश्वर होकर खुर्दारोड नाती है । १॥) देकर टिकट कटकका लेना चाहिये ।
(२४५) कटक । स्टेशनसे ।) सवारी देकर बैलगाड़ी ५ मील शहरमें जाना चाहिये । मानीवाभार दि. मेन धर्मशाला, मंदिर व कुमा। मंदिर ब चैत्यालयों में मूर्ति बहुत है। सबका दर्शन करना चाहिये।
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१.४६ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
vIAAAAI MAMAMA
पास में बड़ी भारी नदी है । आसपास कटक है। हजारों प्रतिमा ग्रामों व शहरोंमें हैं । इस देशमें हजारों जैनियोंके मंदिर थे । यहांसे स्टेशन लौट आवे । टिकट ) देकर भुवनेश्वरका लेवे । ( २४६ ) भुवनेश्वर |
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स्टेशनपर १ धर्मशाला, १ मुमाफिरखाना, कुछ दुकानें हैं उनमें २ दि० जैन इलवाई की दुकानें हैं। शहर में जानेको 1) सवारी में बैलगाड़ी मिलती है । जानेवाले चले जावें । नहीं तो सीधा उदयगिरि, खंडगिरि चला जावे। यहांपर महादेवके बहुत मंदिर हैं। स्टेशन से गांवकी तरफ जाते समय जंगलमें बहुत प्राचीन महादेवका मंदिर है । लोकमें यह प्रसिद्धि है कि ये मंदिर राजा शिवकोटिने बनवाये थे । पहिले यहांपर १ लाख मंदिर शिवजीके थे । राजा शिवकोटि" स्वामी समन्तभद्राचार्य " का शिष्य होकर एक तेलीको एक खळीके टुकड़ेमें देकर, आप जैनी होगया । शिवकोटिने सुनिधर्मका प्रदेत्तक " भगवती आराधना " बनाया था। अब भी आसपास हजारों मंदिर हैं। गांव में १ तालाव है । यहांकी रचना देखने योग्य है । इच्छा हो तो देख लेवे ।
( २४७ ) श्री खंडगिरि-उदयगिरि (सिद्धक्षेत्र) जसरथ राजाके सुन कहे, देस कलंग पांचसौ लहै ।
यही कलिंग देश पांचमौ मुनियोंके मोक्षका स्थान है । अनेक मुनि, तपस्वी, त्यागियोंके ध्यानका महा पवित्र स्थान है । नीचे एक बंगला, धर्मशाला, कारखाना, कुवा, जंगल इत्यादि है । दोनों तरफ छोटासा उदयगिरि- खंडगिरि नामका पहाड़ है । दोनों पहाड़ोंमें मुनियोंके ध्यान करनेकी बड़ी २ गुफा हैं । बहुत
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नीर्थयात्रादर्शक जैन |
प्रतिमा हैं । २ मंदिर हैं । सब पूछ कर दर्शन फिर स्टेशन लौट आवे | (Ii) देकर टिकट खुरदारोड़ गाड़ी बदलकर पुरी जाना होता है । ( २४८ ) जगन्नाथपुरी ।
यह वैष्णवोंका बड़ा भारी तीर्थ है । इच्छामे ही यहांपर गाना चाहिये । जगदीशका मंदिर पहिले नेमनाथ का मंदिर था, परंतु अपनी मूलमे जगन्नाथका होगया है । यहां पर यात्री सत्र मतवाले हजारों आने रहते हैं । यह बड़ा भारी प्रसिद्ध तीर्थ है। स्टेशन मे २ मील दूर शहर है । एक ब्राह्मण पडाको साथ लेना चाहिये। उससे पहिले ठहराव कर लेना चाहिये " हम लोग नेन हैं, ज्याद कुछ नहीं देगें " इत्यादि । पट को साथ लेनेमे सच चीजें देखने में सुमीना रहता है | शहरमें २ टी धर्मशाला हैं । जहार पटा उनारे नहावर उतर जाना चाहिये | यहां अपना सामान जेवर वगैरह मावधानी से रखना चाहिये। मंदिर में भी सावधानी से जाना चाहिये | हजारों परदेशी यात्री व हर क्रिम्मके लोग मौजूद रहते हैं । भीड़ के मारे मदिरमें जाना-आना कठिन होता है। यहां पर जैनियोंका कुछ भी नहीं है । इसी मंदिरमें कृष्ण, बल्देव, रुकमणी, यशोदाकी ऐमी चार मूर्ति हैं, वे काटकी हैं । इस मंदिर के चारों तरफ तेतीस कोटि देवता बने हैं। एक गणेशजी की बहुत बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर भी इसीमें सामिल है । इसकी बनवाई तीन करोड़ हैं । सब देखना चाहिये। यहां 'जगदीशका भात, जगत पसारे हाथ' यह प्रसिद्धि है। भाव एक लोहे की कढ़ाई में बनता है।
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करना चाहिये । पुरीका लेलेवे ।
मात्र देखनेकी
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१४८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । फिर मिट्टीके मटके में भर देते हैं किसीको कुछ देकर देख लेना चाहिये । जगन्नाथपुरी समुद्रके नीचे टापूपर वसा है। समुद्र, नाव, जहान, देखें । फिर कुछ खरीदना हो तो खरीदे । नहीं तो ।) देकर ग्वुरदा रोड उतर पड़े।
(२४९) खुरदा गेड (जंकशन)। म्टेशनसे १ मीलपर १ बड़ा भारी मंदिर वैष्णवोंका है। उसमें चांदी सोनेके जड़ावका काम होरहा है। अगर किसीको देखना हो तो देख आना चाहिये ।
यहांसे १ रेलवे पुरी, १ खड्गपुर व १ वालटेर वेझवाड़ा होती हुई मद्रास जाती है।
विशेष-जिन भाइयोंको मद्रास, रामेश्वर, कांजीवरम्, नैनबद्री मुलबद्री नाना हो तो पहिले मद्रास चला जावे । टिकट १७) के लगभग लगत है । यह राम्ता सीधा और कम खर्चका है । अगर किसीको नहीं जाना हो तो लौटकर खड्गपुर भाजावे | आगे जाना हो जिघर चला जावे । इसका हाल उपर देखो। मद्रास जानेवालोंको सीधा मद्रास चला जाना चाहिये । डाक गाड़ीमें जानेसे केवल १॥) ज्यादः लगता है । परन्तु शीघ्र विना किसी तकलीफके पहुंच जाते हैं । (बीचमें वेजवाड़ा उतरना हो तो उतर पड़े।
(२५०) बेजवाड़ा। यह शहर मच्छा है। कपड़ेके कारखाने बहुत हैं। बढ़िया बढ़िया स्वदेशी कपड़े बनते हैं।
(२५१) मद्रास शहर। यह भी दक्षिण प्रांतमें एक बड़ा मारी शहर है। अंदरेनी
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१४९ राज्यमें पहिले नंबर कलकत्ता, २ बंबई, ३ देहली, ४ मद्रास है। यहांसे १ रेलवे रायचुर होकर पूना बम्बई तक, १ कलकत्ता, १ देहली, इत्यादि सब दिशाओंको जाती है। एक बड़ी लाईन, छोटी लाईन ऐसे दो स्टेशन हैं । बड़ी स्टेशन के मामने हिन्दु धर्मशाला है । वहांपर ठहर जाना चाहिये । सामान रखकर शदरको ट्राम गाड़ीमें जाना अच्छा है । पैसे भी कम लगते हैं। शहरमें दि० नियोंकी एक धर्मशाला व मंदिर हैं। संपादक अंग्रेनी नगनटका मकान नं. ४३६ मिन्ट स्ट्रीटमें है। मोतीबानाग्में श्वेताम्बरी २ मंदिर हैं। एक मंदिर बाब ओंकान्ट मा० के मकान पर श्वेतांबगे बगीचाके पास है । पर शहरमे २ मोल पड़ता है। हर देखकर स्टेशनपर भावे । टिकिटका 11-) देकर मारकोनम्का लेलेना चाहिये । यहांसे १ गाडी रायचुर जाकर मिलती है।
( २५२ ) गयचुर शहर ।। स्टेशन के पाम हिन्दुओंकी धर्मशाला है । पासमें कुछ बानार, कुआ व जंगल है। गइर २ मील दूर कोटसे घिरा हुआ है। शहर बहुत बड़ा है । १ मंदिर व कुछ घर दि. जैनियोंक हैं, मामान सब मिलता है, एक तालाव, १ गढ़ है। यहांसे एक रेलवे मद्रास जाकर मिलती है । टिकट ५) है। एक रेलवे “ कुर्दुवाड़ी" ( बारमी रोड ) शोलापुर घोड होकर पुना-बम्बई तक जाती है।
(२५१) आरकोनम जं० । यह स्टेशन रायचुर-मद्रास लाईन व मद्रास बेंगलौर लाईनके बीच पडता है । यहांसे गाड़ी बदलकर टिकटका II) देवर
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छोटी लाईनसे कांचीवरम् जाना चाहिये । ( २५४ ) कांचीवरम् ।
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स्टेशन से १ मील दूर शहर है। यहांपर शहरके ३ भाग होगये हैं । १ शिव कांची, २ वैष्णव कांची, ३ जैन कांची१, शिव कांची- यहां पर एक धर्मशाला व बड़ा लम्बा चौड़ा शिवका मंदिर है । बीचके मंदिर में सोने चांदीके काम सहित महादेवकी बड़ी भारी पिंडी है । मंदिरके चारों तरफ हजारों महादेवकी पिंडी हैं । एक बड़ा तालाव व दरवाजा हैं । इसके बाहर भंडार में पीतल के बड़ेर हाथी, घोडा, सर्प, विमान आदि देखनेयोग्य हैं । इस मंदिर के आस-पास १ मील तक मकान व सैकड़ों मंदिर, छोटे बड़े हाथी-घोड़ा, गाडी, ऊंट व बड़े२ नादियां हैं । इस स्थानका नाम शिव कांची कहते हैं। यहां शिवजीका राज्य है। याने शिव मूर्तियां खूब हैं। यहांसे १ मील वैष्णव कांची है ।
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२, वैष्णव कांची- यहांपर १ बड़ा भारी दरवाजा है। बाजार भी है। आघ मील तक वैष्णव भगवानके मंदिर हैं। हाथी-घोडादिकी रचना बहुत है । आगे १ बड़ा भारी मंदिर है । जिसमें स्वर्ण - चांदी का काम खुब है । उसमें मूर्ति विष्णु भगवानकी है । आसपास में बहुत मूर्तियां हैं | यह मंदिर ऊंचा व पूर्व-पश्चिम द्वारवाला है। मंदिर कीमती है। उक्त दोनों जगहकी यात्रा करके रामेश्वर भी आ जासकते हैं । यहांसे २ मील जैन कांची है । ३, ,जैनकांची - यहांपर कोटसे घिरा हुआ मंदिर है । उसके 1 भी ठहरनेको मकान है। दोनों तरफ दरवाजा है। भीतर एक बड़ा भारी मंदिर है। यहां पर बड़ी भारी मूर्तियां हैं। यहांपर
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बड़े २ विद्वान आचार्योंने ब्राह्मण कुलमें जन्म लिया था । पडिले यहांका राजा जैन न्याय प्रिय था । यह पूरा शहर बड़ा भारी है, अब खण्ड २ होगया है । मिथ्या धर्मकी मान्यता होगई । समन्तभद्राचार्यने यहां पर कई वर्षों तक शास्त्रार्थ करके अन्य मतियोंको पराजित किया था । काळ दोषसे अन्य लोगों की मान्यता है । यहां पर सिर्फ जैन ब्राह्मणों के ८ घर गये है । यहांसे लौटकर आरकोम लौटकर आना चाहिये, फिर टिकट काटपाडीका लेवे । | = ) लगाता है ।
विशेष - पहिलेकी पुस्तक में पोनर, आरपाकम, मनारगुण्डी, सीताम्बुरकी यात्रा लिखी गई है। मैं उस विषय में विशेष नहीं जानता हूं | इसलिये यात्रियोंके व्यर्थ तललीफके लिये नहीं लिम्बा है । अगर जाना हो तो नीचे देखो! कांजीवरम से 1) टिकिट देकर दूसरी स्टेशन विन्दुकम उतर पड़े । विलुकम शहर अच्छा है. १ वैष्णव धर्मशाला है । यहामे बैलगाडी ६ मील आरापाकम गांव जावे | ग्राम अच्छा है, ' धर्मशाला, १ दिगम्बर जैन मंदिर है। भट्टारकनीकी गद्दी भी है, वैष्णव लोगोके यहां पर बहुत कीमती २ मन्दिर हैं । हजारों मूर्तियां हैं, दर्शनोंको हजारों लोग आते हैं। फिर यहां बेलगाड़ी में १८ मील पोनर ग्राम पडता है । यह ग्राम भी अच्छा है। जैनियोंकी वस्ती अच्छी है, १ मन्दिर और प्राचीन प्रतिमा है । यहांसे 5 मील दूरीपर एक पहाड़ है। बैलगाड़ीमें जाना होता है। पहाड़पर जानेको सडक है। पहाड़पर एक वृक्षके नीचे चबूतरापर १ ॥ हाथ लम्बी चरणपादुका है । कुन्दकुन्द स्वामीने महांपर बहुत कालतक तपस्या की थी । यह क्षेत्र इस प्रांत
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१५२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । पमिड है। हनारों लोग यात्राको माते-जाते हैं। यहांसे फिर ३ मील दूरीपर १ ग्राम पड़ता है। वहांपर मंदिर व जैन घर हैं। फिर भागे १४ मील दूर सीताम्बुर ग्राम है । यहां भट्टारकजीका मकान ३ मंदिर और बहुत प्रतिमा हैं । यहांसे पूर्वदिशामें १ पीसुम ग्राम है । १ मील दूर पड़ता है। यहांपर श्री आत्मानुशासनके रचयिता गुणभद्राचार्यका जन्म हुमा था । बहुत काल वीत गया है। एक वावड़ी पर १ छत्री और चरणपादुका है । लौटकर सीताम्बुर आवे । यहांसे मोटरसे १४ मील तीडीवनम जावे । यह शहर अच्छा है । १ दि. जैन धर्मशाला, १ मंदिर, २ तालाव
और बहुत घर दि. जैनियोंके हैं । यहांसे आप मील तीड़ीवनम स्टेशन है । १।-) देकर मद्रास चला जाना चाहिये । फिर चाहे मिघर चला जासकता है। आराकोनमसे १ गाड़ी तींडीवनम जाती है। टिकिटका ||-) लगता है।
(२५५) कटपाड़ी स्टेशन । यहांसे टिकिट १॥) देकर माधीमंगलम्का लेलेना चाहिये। फिर गाड़ी बदल कर माधीमंगलम् जावे ।
(२५६ ) माधी मंगलम् । म्टेशनसे १ मील ग्राम है। ग्रामसे किसी आदमीको साथ लेकर २ मील दूर तीरुमले ग्राम जावे । इमी नामका पहाड़ सामने दिखता है।
(२५७ ) तीरुमले पहाड़। यह छोटा ग्राम है, आचार्य श्री वादीमसिंहका यह जन्म स्थान है । यहांपर जैन बहुत रहते थे। मुनिरान पहाड़की गुफा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२५१ ओंमें ध्यान करते थे । पहाइकी तलेटीमें २ मन्दिर हैं । पहाड़ो नीचे एक मन्दिर है । उसके ऊपर रंगदार बड़ीर गुफाएं हैं। मिन प्रतिमाएँ रमणीक हैं । यहांका दर्शन करके दुसरा राम्ता पहाइ उपर जाने का है। फिर उपर जानेकी मीदियां बन्धी हैं। पाव मीलका चढ़ाव है, ऊपर दरवाना है, भीतरी पहाड़में उकेरी हुई शांतमुद्रा बहुत प्राचीन १५ हाथ उची खड्दामन श्री नेमिनाथ स्वामीकी प्रतिमा विराजमान है । एक देहरीमें पार्श्वनाथकी प्रतिमा विराजमान है। उमीके पाम वादोभमूरिकी १ बालिम्त चरणपादुका हैं । यहाँका स्थान रमणीक है । यहांकी यात्रा करके नीचे आवे । फिर माधीमंगलमसे भागे रेल जनबद्रीकी तरफ जाती है । मो पहेले पछ लेना चाहिये । हम यहांसे आगे नहीं गये । मो बगवर याद नहीं है । अगर आगे नहीं जाना हो तो लौटकर काटपाड़ी आ जावे । फिर यहांसे किमी भाईको मद्राम जाना हो तो मद्राम जावे | अगर किसीको मूलबद्री नाना हो तो वहांको जावे । गमेश्वर नाकर भी मूलबद्री जा सकते हैं। टिकट ७) रुपया ज्यादः लगता है। मूल बद्रीमे आने हुा. रामेश्वर नानेमें भो ७) का फरक पड़ता है। आगे दो लाईनोंका राम्ता लिम्वता हू । पहिले गमेश्वर होकर मूलबद्रीका राम्ताका उल्लेम्व करता है। काटपाडीसे टिकट ५) देकर मदुगका लेवे । बीचमें बील्लुमपुर गाडी बदलकर मदुग नंकशन उतर पडे ।
(२०८) मदुरा जंकञ्चन । यह शहर बहुत बड़ा भारी तालाबके बीचमें बसा हुमा है। मगर १ बड़ा सम्बा-चौड़ा कुंड है। उसकी दीवाकोपर मेन
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१५४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुनि, मंदिर व जिनधर्मियोंकी बड़ी रौद्रदशा दिखलाई गई है। यहां पर कोई कालमें दुष्ट राजा हुआ था । उसने जैन मुनियोंकी बड़ी बुरी दशा की थी। जैनियों की मूर्तियां तुडवा डाली । उनका दर्शन कुंडमें उकेरकर दिखाया है। यह दृश्य देखनेसे परिणाम एकदम दुःस्वरूप होनाते हैं । परन्तु ऐसे चोर उपसर्ग होनेपर भी जिनधर्मी महात्मा जरा भी नहीं विचलित हुए । यहांका दर्शन किये विना दृढ़ विश्वास नहीं हो सकता है । यहांका ज्यादः हाल कहांतक लिखू । देखनेसे ही मालूम होगा। टिकट मीषा धनुप्यकोटीका लेना चाहिये । २) लगता है। पहिले बीचमें रामेश्वर पड़ता है। धनुष्यकोटी पहिले जाकर लौट आवे ।
(२५९) धनुष्यकोटी। रामेश्वरके मागे समुद्र के बीचके मंदिरमें राम-लक्ष्मण-सीताकी मूर्तियां हैं । सागरवादि दोनों धनुष्य पथमें खुदे हुए हैं । रामचंद्रजी यहां तक सीताके लिये पुल बांधकर आये थे। फिर देव भाकर रामचंद्रादिको लंकामें लेगया । ऐसी कथा वैष्णव पुराणमें है। जैनियोंको अपने अनुसार मानना चाहिये । यहांसे आगे लंकापुरी बहुत दूर है । समुद्र होनेसे उस लंकामें गमन नहीं है पर अंग्रेजी लंकामे अग्निबोट द्वारा नासकते हैं। इसका विशेष हाल ज्ञात नहीं है।
(२६०) कृत्रिम लंका। मामकल यही अंग्रेजी राज्यमें अच्छा शहर है। अग्निबोट जहाज जाते हैं। कोट-दरवाजा मनबूत और भारी २ बाजार है। बड़े देशोक व्यापारी रहते हैं। जैनियों का पता नहीं है। मनुष्य
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कोटीसे अग्निबोट द्वारा बंगलोर, मंगलोर, बम्बई, कलकत्ता, मद्रास भी जासकते हैं । धनुप्यकोटीसे लौटकर ) की टिकट लेकर रामेश्वर आजावे |
( २०१ ) सेतुबन्ध गमेश्वर ।
समुद्रके बीच पर यह स्थान है । स्टेशन के पास ग्राम अच्छा है । लाखों यात्री हर समय आते-जाते रहते हैं धर्मI शाला और १५० घर ब्राह्मण पंडोंके हैं। एक बड़ा विशाल मंदिर है जिसके पूर्व-पश्चिममें दरवाजे हैं। भीतर बहुत मंदिर हैं। मूल नायक रामेश्वर महादेव हैं। लाखों रुपयोंके मोने-चांदी का काम है । बड़े २ नादियां हैं। पीतलके हाथी, घोड़ा, रथ, मनुष्य, बैल, सर्प इत्यादि चीजें देखने योग्य हैं | यहां पर कौड़ी, शंख, तसवीरें आदि चीजें बेचनेवाले मंदिर में रहते हैं । ग्राममें खानेपीने, पूजनका सामान मिलता है । यह मूर्ति रामचन्द्रकी बनाई हुई है । इसलिये इसका नाम रामेश्वर है । रामचन्द्रजी जलके बीच सड़क बांधकर आये थे । इसलिये सेतुबन्ध भी कहते हैं, लौटकर स्टेशन आनावे | अगर किमीको धनुष्यकोट जाना हो तो चला जावे, हाल ऊपर देखो | ३||) देकर टिकिट त्रिचिनापल्लीका लेवे । बीचमें मदुरा गाड़ी बदलकर त्रिचिनापछी उतर जाना चाहिये । फिर स्टेशनपर दूसरे लोगों से पूछकर रंगाबंगास्वामी चला जाये | त्रिचिनापल्ली से ) का टिकिट लेकर श्री रंगारोड़ उतर पड़े । ( २३२ ) रंगाबंगास्वामी ।
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स्टेशनसे ४ मील दूरीपर ) सवारी में बैलगाड़ी जाती है | बहांपर लकड़ियोंकी बड़ी भारी २ मूर्तियां रंगदार बनी हैं, अन्य
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१५६) जैन तीर्थयात्रादर्शक । मती लोग जो रामेश्वर जाने माने हैं वे लोग यहां भी आने हैं। यहांसे १॥) देकर एरोड़ा नं० का टिकिट लेवे।।
नोट-अगर किसीको रंगावंगास्वामी नहीं जाना हो तो त्रिचिनापल्लीमे मीघा टिकिट एरोडाका लेलेना चाहिये । त्रिचिनापल्लीसे ? रेल मद्रास जाकर मिलती है। एरोड़ा गाडी बदलकर टिकटका ५॥) देकर मंगलोर जावे । यह हाल आगे देखना च हिये।
(२५३) एरोडा जंक० । रामेश्वर जाकर त्रिचिनापल्ली गाड़ी बदलकर यहां आकर मिल नावे । अगर कोई भाई मूलबद्रीसे लौटकर इमी राम्ने आवे, तो रामेश्वर जानेवालोंको एरोडा गाड़ी बदलकर, ५॥) देकर रामेश्वरका टिकट लेवे । फिर बोचमें रंगावंगा स्वामी देखकर, त्रिचनापल्ली गाड़ी बदलकर मदुरा उतर पडे । मदुरा देखकर और गाड़ीमें सवारी होकर रामेश्वर जावे। फिर लौटते समय मदुरा गाड़ी बदले । फिर विल्लुपुरम गाड़ी बदलें । काटपाडी गाड़ी बदलकर माघीमंगलम् ( तीरुवल्लम् ) स्टेशन आनावे | तीरुमल्लाकी यात्रा करके पीछे स्टेशन आवे । काटपाडी गाडी बदलकर मारकोनम स्टेशन जावे । टिकटका ।) देकर कांचीवरमकी यात्रा करें । वापिस मारकोनम आवे । भारकोनमसे किसी भाईको मद्रास देखनेकी इच्छा हो तो II) देकर मद्रास चला जा । मद्राससे चारों तरफ जासकते हैं। जहां मन हो वहां चला जावे । मद्राससे १ लाईन रायचूर जाती है । इपर भी माना चाहिये। टिकट ५।) लगता है। अगर किसीको मद्रास नहीं देखना हो तो आरकोनमसे सीषा रायचूर जाना चाहिये । टिकट ५॥) लगता है। रायचूर या
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
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कालका से मद्रासकी यात्रा करता हुआ रामेश्वर, एरोडा, मंगलोर होता हुआ मूलबद्री जावे । मद्राससे आगेकी यात्रा नहीं करना हो तो सीधा मंगन्द्रा मूलबद्री नावे | १०) देकर टिकट मंगलरकी लेवे । काटपाडी, आरकोनम पड़ता है । यह गाटो जोरालपेठ नं ० बदलती है । बीचमें एरोडा पड़ता है। मंगल होकर मूलबद्री जावे, रामेश्वर न जाकर मीषा मगन्दर जावे । उपर देखो | ( २६४ ) मंगन्दर शहर ।
यह शहर अच्छा है, समुद्र के किनारे है, स्टेशन मे १ मील दूर कमाई कीमें १ दि० जैन मन्दिर व ठहरनेका प्रबन्ध है । दि० जैन चोडिगमें भी ठहरने का इन्तजाम है। चैत्यालय है. शहर देखने योग्य है, आगबोट चारों तरफ जाती है । जहा चाहे जा सकते हैं । १ रास्ता रेलका भी आता है, फिर यहांसे 111 ) सवारी २२ मील पक्की सड़कसे मोटर मूडबिदी जाती है ।
मृचना - रायर, मुडबडी, मीरन, सीमोगा, मीकरी, बेंगलर, मैमूर, जबद्री तरफ नारियल, फनस केला बहुत मिलते हैं । इनका व्यापार भी खूब होता है । यहांकी भाषा "कनाड़ी" और " तामिल" है, लोग हिन्दी बहुत कम समझते हैं। इंग्लिशसे काम चलता है । कई लोग इशारे या उस पदार्थको छू कर काम चलाते हैं। इस देश में चांवल बहुत पैदा होता है, चांवलोंकी ही पकवान, पुबा, पुरी, लड़ड़ बनते हैं। नारियलका तेल निकल कर विकता है, गेहूं, घृत बहुत कम मिलता है । कम खाते हैं, मंदिरोंको जैन बस्ती बोलते हैं, प्रत्येक यात्रीको इसका ध्यान रखना चाहिये । इस देशमें मन्दिरको कुछ मेट देना हो तो वहीं पर चढ़ाने, भंडार
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१५८ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
नहीं है। इसी देश में दो तीन मंजलपर दर्शन रहता है, पूजाका erfaकार उपाध्याय लोगोंके आधीन है । वीमपंथी आम्नायके लोग यहांपर हैं । श्वेतांबरोंका झगड़ा नहीं है। केला, फल, फूल, लड्ड, पुरी, कपूर, घृत, तेल, दीपक आरती हमेशा चढ़ती है। पञ्चामृत अभिषेक होता है। चावल, रोटी, पुरी आदि भी चढ़ाते हैं। कोई जेनी त्यागी कोई २ फल, नैवेद्य आप पवित्र जानकर वाते हैं ! मूलबद्री की दूसरी लाईन से रास्ता लिखता हूं । काटपाडीसे सीधा रास्ता मूलबद्रीका है टिकट |||) देकर जोलारपेठका लेलेवे । ( २६५ ) जोलारपेट जं० ।
यहा से अगर किसीको बेंगलोर जाना हो तो १ ॥ ) रुपया टिकटका देकर पहिले बेंगलोर चला जावे। फिर लौटकर जोलार पेठ आजावे | यहांसे टिकट मंगलोरका ||) देकर लेलेवे । एरोडा जंकशन पड़ता है । फिर बेंगलोर और मृलबदी आती हैं । जोलारपेठसे एक रेलवे काटपाडी होकर मद्राप व बेंगलोर जाती है । ( २६६ ) बेंगलोर ।
यह शहर अच्छा है । लाखोंका व्यापार होता है । चीकपेठ बाजार में दि० जैन मंदिर और धर्मशाला है। मंदिर में बड़ी प्राचीन खड्गासन घातुकी प्रतिमा है । यहांसे ' रेलवे मीरज होकर पूना जाकर मिलती है । १ म्हैसुर होकर मंदगिरी जाती है । और सीकेरी जाकर मिलती है ।
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( २६७ ) म्हैमुर |
यह शहर बड़ा भारी राजा सा० का साफ स्वच्छ रमणीक है म्हैसुरका राज्य बड़ा है। राजमहल, बाजार आदि देखने योग्य
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६२ हैं। स्टेशनसे १ मील दि० मेन बोर्डिग व धर्मशाला है। यहींपर १ मंदिर, बगीचा आदि सबका आगम है। आदिगया अनंतराया धर्मशाला पाम मोतीग्वानामें रहते हैं। यहांपर घर मंदिर हैं। उन सबमें मुंगा-मोती म्फटिकमणिकी पतिमा है। एक मंदिर रानवाडामें हैं। किमीको माथ ले कर दर्शन करना चाहिये। यहांका बामार बहा है । मामान सब मिलता है । फिर यहांपर पूछकर मोटर या गंगामें ६ मील की दूरीपर जंगलमें हैमुरकी पश्चिम दिशामें २) मवारी देकर गोमटपुगका दान करना चाहिये ।
१८) गोम्मटपुग।। बिलकुल जंगलमें १ पहाड है । उमपर एक प्राचीन मंदिर है । विजली गिरनेमे पहाड़ 'फटकर मंदिर भी टूट गया है । मगर प्रतिमाको चोट नहीं आई। प्रतिमा गोम्मट बायोकी प्राचीन १५ हाथ उंची वामन विगनमान है । सुना जाता है कि पहिले यहांका राना मनधर्मी था । घरमें चत्यालय । न साधुओं की मेवा करता था । इस गोम्मट वामीकी प्रतिमा का योदक, वंदना करके पीछे भोजन का था । आज नी इस नीर्थगन का जीर्णोद्धार कगनेवासा भी कोई नहीं है। मन नानिकी दशापर बड़ा दुःख होता है : लौटकर हर आवे। म्है मुम्के आगे मंदगिरिका १) म टिकिट लगता है।
(२६९) मन्दगिरि । आरमी केरीसे रेल बदलकर हासन होकर मंदगिरि जाती है। फिर जैनबद्री (श्रवणबेलगोला) जाते हैं। फिर म्हसर, बेंगलूर, मंगलर होकर मूलबद्री आदि नाते हैं ।
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१६०] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
( २७० ) जैनबद्री तीर्थराज (श्रवणबेलगोला)
मंदगिरि स्टेशनपर सेठ गुरुमुखराय सुखानन्दजी बम्बईकी धर्मशाला है, ऊपर छतपरसे देखनेसे गोम्मटम्वामीका दर्शन होता है। यहांपर एक नदी है, उतरकर उस पार जाना चाहिये । वहांसे बैलगाड़ी या मोटरमें १२ मील गोम्मटस्वामी जाना चाहिये ।
(२७१) गोम्मटस्वामी। यह ग्राम अच्छा रमणीक है। २ धर्मशाला हैं । तालाव, जङ्गल, पहाड़ आदि शोभायमान हैं। नीचे गांवमें घर२ में १४ चैत्यालय, ७ मन्दिर हैं । प्रतिमा बड़ी रंग-बिरंगी हैं, एक मंदिर बड़ा भाडी मानस्थंभ युक्त चौवीस महारानका है। उसमें ठहरनेकी जगह भी खूब है । इसीके पास श्री चारुकीर्ति महाराज भट्टारकका मंदिर व मठ है। मंदिरमें धातु-पाषाणकी प्राचीन प्रतिमाएँ हैं । भट्टारकजीके भंडारमें ताड़ पत्रपर लिग्वे हुए. शास्त्र व मूंगा मोती, लीलम, स्फटिकमणिकी छोटी-बड़ी १४ प्रतिमा हैं । महाराजसे कहकर दर्शन करना चाहिये । नीचेके सब मंदिरोंका दर्शन करके फिर पहाड़पर जाना चाहिये। विंध्याचल पहाड़की तलेटीमें दरवामा,
और एक मंदिर है । मंदिरमें रंग२ की प्रतिमा हैं । यहीसे पहाड़ पर जाना होता है । आध मीलकी चढ़ाई है । सीढ़िया लगी हैं। बीचमें एक दरवाजा और तोरण है । आगे फिर पहाड़के चारों तरफ कोटसे घिरा हुमा एक दरवाजा है। भीतर तीन मंदिर, १ मानस्तंभ व तालाव हैं । फिर सीढ़िया लगी हैं। ऊपर १ गढ़ और दरवाना है । दरवाजेके दोनों तरफ देहरी और प्रतिमा है। सीदियों के बाद कोट, स्तंभ, हैं। स्तंभके दरवाजेके नीचे प्रतिमा
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६१ है । फिर आगे मीदिया हैं । उपर १ भारी गढ़ है । निसमें होकर उपर जानेको दरवाना है । गढ़के भीतरकी दीवालों पर प्रतिमा है । एक नेमिनाथका मंदिर है । मदिरके उपर प्रतिमा है। सामने मानम्नंभ है । उपर-नीचे जिन शामन देवी-देवता हैं । बाहर प्रतिमा हैं । पहार पर बडे२ गिल,लेग्ब हैं। दर्वाजेपर बड़े२ गढ़ हैं। चारों तरफ परिक्रमामें बहुत प्रतिमा है । २ मंदिर हैं । श्री गोम्मट ( बाहुबाल) म्वामीकी बत्रीम गन उची ग्वड़गासन प्रतिमा है । बड़ी शांत मुद्रा मंयुक्त, देखते ही आनंद होता है। सब दर्शन करके नीचे आवे । फिर दुमरे पहाइपर वंदनाको जाना चाहिये | चंद्रगिरि पहाड़ बिलकुल मरल है। ऊपर २ तालाव हैं। चारों तरफ कोटमे घिरा हुआ है। एक दरवाना जानेका है। भीतर १ मानम्तंभ है। ऊपर निन शामन देवता है। आगे छोटे बड़े कुल १८ मंदिर हैं। उनमें महामनोज्ञ पद्मासन, खड़गासन प्रतिमा विराजमान हैं। बीचमें १ प्रतिमा खडित खड़ी है। यहांपर ४ छत्रियां हैं । जिसमें श्री प्रतिमा सहित बड़े १ शिलालेख हैं। मंदिरके शिम्बर, दीवाल, ऊपर दालानमें भी प्रतिमा हैं। उनमें बड़ीर कीमती शासन देवताओंकी प्रतिमा है । सबका दर्शन-पूमन करें। वहांपर बाहरके कोटकी पूर्वकी तरफ एक गुफा है। वहांपर भद्रबाहुस्वामीका तपस्थान है। राजा चंद्रगुप्तको पाचार्य पद देकर माप स्वर्गधाम पधार गये थे। जिस समय १२ वर्षका भकाल पड़ा था, उस समय १२ हमार मुनि इनके साथ थे। मापने निमित्त ज्ञानसे मकाल मानकर मुनियों को दक्षिणकी तरफ मेना था। मापने अपनी आयु बोड़ी जानकर मानेवाले
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१६२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुनियोंको शिक्षा देकर वहींपर ठहर प्राणान्त किया था। वहींपर इनकी समाधि बनी है । कईने भ्रष्टाचारी होकर श्वेताम्बर मत चलाया था। पूर्ण कथा भद्रबाहु चरित्रसे जानो। इनका दर्शन-पूजन करके कोटके भीतर होकर उत्तर दिशाके छोटे द्वारसे बाहर जावे । बाहर १ मंदिर, १ तालाव है। फिर पहाड़से नीचे उतरकर ग्राममें भावे ।
(२७२) श्रवणबेलगोला ग्राम । इसी का प्राचीन नाम श्रवणबेलगोला है। यहांपर १ बड़ा भारी कीमती पत्थर म्तंभ, कोट, मंदिरके ऊपर खुदाईके काम सहित टूटा मंदिर है । उसमें बड़ी भारी विशाल प्रतिमा है। दर्शन करके लौटकर ग्रामके बाहर आवे । १ तालाव पर विशाल मंदिर और बहुत प्रतिमा है । उनमें एक श्वेत वर्णकी पार्श्वनाथकी प्रतिमा मनोज्ञ हैं। दर्शन करके चला आवे । भागे फिर एक तालाव बीचमें पड़ता है । १ मील आनेपर कोटसे घिरे हुए २ मंदिर व बहुत प्रतिमा हैं । शिखरमें यक्ष यक्षणी की तथा और भी बहुत प्रतिमा हैं। यह मंदिर कोमती है । फिर भी बीचमें ४ मंदर और १ घरमें चैत्यालय है, उनका दर्शन करके धर्मशालामें आनाय । फिर वहांसे चलकर मंद गिरि स्टेशन आवे । म्हैसूर तरफ आगे जानेवाले आगे चले जायं । हाल ऊपर देखो। और नीचे जानेवाले १) देकर टिकट हासनका लेवे । वहांका भी दर्शन करके १ टायमके वास्ते आरसीकेरी चला जाय । जैनबद्रीमें नेमचंद्रादि आचार्यों का समूह विराजमान रहा था। उन्हींके उपदेशसे मूर्तियोंका निर्माण हुआ है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६१
(२७२) हासन । म्टेशनसे २ मोल शहर है। १ दि जैन धर्मशाला, २ मंदिर हैं। प्रतिमा प्राचीन एवं रमणीक हैं। दि नियोंके घर बहुत हैं।
(२७४) आरमीकेगे। म्टेशनके पाम १ वैष्णव धर्मशाला है । १ मील दूर एक सहस्रकूट चैत्यालय, १ मंदिर और बहुन प्रतिमा हैं। मंदिरोंका नाम “जैन वस्ती " है । जैन वम्नी बोलनेमे पता जल्दी लगता है । मंदिर कहनेपर कोई नहीं ममझता है।
वहांमे ? रेलवे लाईन वीकर कशन होकर मीमोगा जाती है । जंकशनपर गादी बदले । वहांमे मोटग्में तीर्थली नावे । तीर्थलीसे हुमच पावतो जाते हैं। लौटकर फिर वहीं आवे । फिर वहांमे रामेश्वर, वगंटा, कारकल, गुलबद्री आवे । मृलबद्रीकी यात्रा करके वेणु' मोटरमें नावे । लोटकर मृलबद्री आकर मंगन्दर, परोडा, त्रिचनापल्ली, मदुग, गमेश्वा होता हुआ काटपाडीकी तरफ यात्रा करके मद्राम जाकर मिले । इसका हाल उ.पर देखो ।
(1) आरमोके गमे । गाड़ी गन्दा नाकर मिलती है। बीचमें टीपटर, नीटा, टोमकुर, हीराहली पड़ना है। किमीकी मनुशी हो तो उतर पड़े नहीं तो चेंगलोर नाचे । इमका हाल मूलबद्रीसे लौटकर लिग्वा नायगा, (२) आग्मीकंगसे वीरूर, मीरन, कोलापुर, सांगली, हबली, जलगांव होकर पूना तक रेल जाती है। मोमोगामे बैलगाड़ीमें हमच पद्मावती नाना होता है, वहांसे ७ लाइन जाती हैं।
मापसी फूट विसंवाद यहांपर नहीं है, षोडश संस्कारविधि
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१६४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । यहां पर हैं । यज्ञोपवीत, मुनिदान, स्त्री पूना भी आगमानुसार कर सकता है, बड़े२ आचार्य इस देशमें हुए हैं । इमीसे धर्मपरायणता यहां पर चली आती है, बड़ी कीमती अपूर्व प्रतिमाए यहांपर हैं। इस प्रकार गृलबद्री तीर्थरानके दोनों रास्तों का उल्लेख किया। अपनी इच्छानुमार राम्तेमे आ नामकने हैं ।
( २७५ / श्री मृलबद्री (मृडविद्री) तीर्थराज ।
यह शहर अच्छा है, ४ धर्मशाला और भट्टारकनीका मठ है। कुल २२ मंदा हैं, उनमें ३ मंदिरों का हाल---
१-श्री चन्द्रप्रभुम्वामी का बड़ा भारी करोड़ों की लागतका, मंदिर है, चारों तरफ दो कोट, मानस्तम्भ, र हस्ती और स्व
की प्रतिमा चन्द्रप्रभु स्वामीकी है। उपरके मंजलमें सहस्रकूट चैत्यालय, व साधारण चैत्यालय है. तीसरे मंजिल में हरी, पीली, लाल, श्वेत नाना तरहकी प्रतिमा हैं, घातुकी भी बहुत प्रतिमा हैं। स्फटिकमणिकी अन्दाजा ५० प्रतिमा हैं। पुनारीको कुछ देकर मानन्दसे दर्शन करना चाहिये।
दुसरा सिद्धांत मंदिर है। यह भी बहुत मजबूत और विशाल मंदिर है । यह मंदिर भी करोड़ोंकी लागतका है। नीचेके मंदिर श्री पार्श्वनाथस्वामीकी ११ हाथ ऊँची बड़ी प्रतिमा है। और भी प्रतिमा हैं । नीचे भंडारमें हीरा, पन्ना, मुंगा, मोती, गरुड़मणि, पुष्पराग, बैडूर्य, चांदी, सोनाकी ३५ प्रतिमाएं हैं। भंडारकी चावी ३ हैं। १ भट्टारकनीके पास व दो मुखिया पंचोंके घरपर रहती हैं । जब बात्री आते हैं सब तीनों चावीवाले इकट्ठे होकर और कुछ रूपया लेकर बहुत मात्रियोंके संघटन के समय
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६५ मंडप तैयार करके बहुत दीपक-कर्पूर जलाकर आनंदसे दर्शन कराने हैं । कमती यात्री होनेपर कमती पेमा देनेसे मामूली दीपक जलाकर दर्शन कराने हैं । जो रुपया लिया जाता है वह २२ मंदिगेकी पूजा व जीर्णोद्धारमें लगाया जाता है । यहां और भंडार वगैरह कुछ नहीं लेने हैं । इमी मंदिरमें मिद्धांत शास्त्र श्रीधवल, महाघवल, नयधनक ताडपत्रोंपर लिन्वा हुआ है । उसका दान भी उमी समय कगते हैं। ये भी भंडारमें रहने हैं । फिर दृमरे मंनिलमें अनेक प्रकारकी रंग बिरंगी बहत प्रतिमा हैं। एक नंदी. श्वर कृट सहित चयालय है, तीमरे मंनिलमें म्फटिक मुंगादिकी प्रतिमा बहुत हैं। यहांपर भी दर्शन करना चाहिये । और मंदिरोंमें भी अनेक प्रकारको प्रतिमा दो २ मंनिलोंमें हैं। बहुत जगह एक दो प्रतिमा म्फटिकमणिकी रहती हैं । पुनारीमे पुछपाछ के दर्शन करना चाहिये । यहांपर १ बोडिंग भी है। वहांपर १ चैत्यालय है । भट्टारकनीके मठमें म्फटिकमणिकी प्रतिमा है। म्यागे यह मूलबद्री शहर समुद्र के बीचमें दीपपर था। यहांपर हनागें घर नहरी लोगोंके थे।
वे लोग समुद्र से हीपांतरमें व्यापारको नाने थे । मो कोई भाग्यवान् प्रतिमा लेकर माने थे । सो यहांपर विराजमान हैं। यही मंदिर भी उन्हीं लोगोंने बनवाया था। आम इन प्रतिमाओंकी कोई कीमत भी नहीं दे सकता है। कलकत्ता, बम्बई, इन्दौर, देहलीके सेठ भी ऐसे मंदिर बनवानेको असमर्थ हैं । उन महानुभावोंको कोटिशः धन्यबाद है, जिन्होंने ऐसा कार्य करके अपनी चंचल लक्ष्मी, तथा मन्म सफल किया। मंदिरोंके लिये सेठ लोग
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१६६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । करोड़ोंकी जीविका देगये थे। वह अंगरेजोंने लेली। सिर्फ मंदिरोंकी पूजा प्रच्छालके लिये १८००) रुपया वार्षिक मिलता है । इतने में इतने बड़े भारी मंदिरोंका खर्च कैसे चल सकता है ? जीर्णोद्धार भी कैसे होसकता है ? यह बड़े खेदकी बात है। यहांके पंचोंने इन मंदिरोंका पूरा इंतजाम कर रखा है । उनको भी धन्यवाद है जो कि करोड़ोंकी जायदादकी रक्षा करते हैं। अब यहांसे ॥) सवारी देकर मोटरसे १२ मीलपर वेणुर क्षेत्र जाना चाहिये।
(२७६ ) श्री बेणुर क्षेत्र-(गोम्मटस्वामी)
यहां पर कोटसे घिरा हुआ १ मंदिर है । उसमें हँसमुख शांत मुद्रा २५ हाथ ऊंची श्री गोमट्टस्वामीकी प्रतिमा है। दरवाजे के पास दो मंदिर छोटे हैं । भागे फिर एक मंदिर बड़ा है। उसमें ठहरनेको दो कोठरी व धर्मशाला बाहर है। थोड़ी दूर १ मानस्थंभ है। ऊपर-नीचे स्थंभमें प्रतिमा बिराजमान हैं। सामने तीन मंदिर हैं। १-चौवीसीका, २-आदिनाथस्वामीका, ३चन्द्रप्रभुस्वामीका । एक मंदिरके ऊपर भी दर्शन है। यह मंदिर
और गोमट्टस्वामीको मुर्ति आज लक्षोंकी कीमतकी है। ग्राम छोटासा है। तालाव-नदी है। यहांका दर्शन करके फिर मोटरसे मूलबद्री भाजावे। फिर " कारकल" मोटरसे ॥) सवारी देकर १० मील पर जाना चाहिये ।।
सुचना-रायचूर आदिका हाल ऊपर लिखा है। यहांसे अब कारकल, वरांग, तीर्थली, सीमोगा होकर वीरूर जाकर रास्ता मिलता है । सो यात्रियोंको पहिले नंबर के रास्ता आनेवालोंको दूसरे नंबरके रास्तेसे जाना चाहिये । दूसरे नंबरके रास्तेसे मानेवालोंको
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६७ पहिले नंबरके राम्ने जाना चाहिये । ऐसा करनेसे कोई भी यात्रा नहीं छटेगी। और खर्च भी कम पड़ेगा।
(२७७) श्री कारकल क्षेत्र (गोमटस्वामी)।
कारकलमें दिनैन धर्मशाला, या भट्टारकनीके मठमें ठहरना चाहिये। यहांसे शहर माघ मील पड़ता है। शहर अच्छा है। भट्टारकजीके मठके पासमें धर्मशाला, पाठशाला, कुआ, तालाब हैं। सुन्दर रमणीक चीजें हैं। धर्मशालाकी उत्तर दिशामें लाग्वोंकी कीमतका चोरासा पहाड़ पर १ मंदिर है। इसमें वृषभको आदि लेकर वासुपूज्य पयंत १२ प्रतिमा चारों दिशामें १०-१० हाथ ऊँची स्वङ्गासन हैं। छोटी-बड़ी और प्रतिमा भी हैं। नीचे ४ मंदिर हैं । दक्षिण दिशाके पहाइपर कोट विचा हुआ है । पहाडका चढ़ाव सरल है। ऊपर मानम्थंभ, और बगल में छोटे दो मंदिर हैं। बीचमें १८ गन ( ३५ हाथ ) ऊंची शांत मुद्रा गोम्मटम्वामीकी प्रतिमा है। दर्शन करके उतरकर नीचे माजाय । फिर भागे पश्चिमकी तरफ चले, तो बीचमें चंद्रप्रभुका चैत्यालय है। भागे तालाबके बीच मंदिर है। जिसमें नीचे चार दिशामें ४ प्रतिमा हैं। ऊपर मंनिलमें १ प्रतिमा है । भागे फिर नानेपर ४ मंदिर राम्ने में पड़ने हैं। आगे जानेपर ६ मंदिर बड़े भारी हैं। उनमें १० जगह दर्शन हैं, एक सामने बहुत बड़ा मंदिर है, सामने मानस्तंभ है । मंदिरमें एक बड़ी भारी विशाल नेमिनाथ स्वामीकी प्रतिमा है। और भी बहुत प्रतिमा हैं। एक प्रतिमा स्फटिकमणिकी है । ऊपर मंजिलमें भी प्रतिमा है। बगलमें दो मंदिर। मिसमें दो प्रतिमा धातु पाषाणकी हैं। फिर इस मंदिरके बाहर
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१६८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । एक मंदिर चौवीसीका है। जिसमें सैकड़ों प्रतिमा हैं । यहांपर छोटी२ प्रतिमा स्फटिकमणिकी हैं। कुल मंदिर २३ हैं । उनकी कीमत दो करोड़ रुपयासे अधिक है । इस दक्षिण प्रांत के मंदिरों व मूर्तियों की रचना करानेवालोंको धन्य है । आनकल बड़े २ शहरोंके सेठ भी गोम्मटस्वामी सरीखी प्रतिमाका निर्माण नहीं करा सकते हैं। यहांका दर्शन करनेसे आनंद वरसता है। यहांका दर्शन करके मोटरसे तीर्थली जावे। टिकटका ४) लगता है। बीचमें वरांग उतर पड़े। फिर वहांका दर्शन करके दूमरे टायमसे जाना चाहिये । मोटर दिनमें तीन वार माती जाती है।
(२७८) श्री वरांग क्षेत्र । यह ग्राम छोटा है, चारों तरफ कोट खिचा हुआ है । एक धर्मशाला, कुआ, मकान व विशाल मंदिर है। उममें अंदाना २०० छोटी बड़ी प्रतिमा हैं। दो तीन प्रतिमा श्वेत पाषाणकी हैं जो कांच सरीखी चमकती हैं । एक प्रतिमा स्फटिकमणिकी है । दर्शन करना चाहिये। इस मंदिरके सामनेके तालावमें कमलफूल रहने हैं। बीचमें मंदिर है। उसके चारों तरफ चारों दिशामें १० प्रतिमा शांत मुद्रायुक्त हैं । पावापुर सरीखी रमणीकता है । इस मंदिरके मालिक पद्मावती हुमचवाले भट्टारकनी हैं। यहांपर भण्डार लिया जाता है। मुनीम पुजारी रहता है। भंडार देना चाहिये। फिर मंदिरकी उत्तर तरफ एक मानस्तंभ है। जंगल और बड़े। पहाड़ हैं। यहांकी यात्रा करके मोटरमें सवार होकर सोमेश्वर उतर पड़े। इघरसे मानेवाला कारफलकी यात्रा करके मूलबद्री चला भावे ।
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नीर्थयात्रादर्शक जैन । [१६९
(२७०. ) सोमेश्वर ग्राम । यहांपर मोटर स्टेशन है। मंगलोरमे यहां तक मोटर आती है । यहांपर आगे छह मोलके चढावका पहाड़ है। सड़क लगी है । मोटरवालोंकी बैलगाड़ी हैं । उनपर बैठालकर पहाड़पर पहुंचा देते हैं । बैठाकर ईघर उधर लोगों करने रहते हैं। पहाड़ ऊपर मागे जानेको दूमरी मोटर तैयार रहती है। उसमें बैठकर तीर्थली उतर पड़े।
(२८० ) नीथली। यह शहर अच्छा है। नदी किनारे १ ब्राह्मणकी धर्मशाला है यहांसे मोटर या बैलगाड़ी करके १८ मील हुमच पद्मावती जाना चाहिये । यहांमे हमच तक पक्की सड़क है। मोटरमें जानेमे कम पैसा लगता है । हमच ग्राम भी अच्छा है। यहांसे २ मील "जैन वानी " (मंदिर) को पांवसे जाना चाहिये । अथवा किमी आदमीको माथ लेवे। २ मील का रास्ता है, मोटरबैलगाड़ी भी जाती है। नीर्थलीमे बैलगाड़ी करके ||) सवारी लगता है। १४ मोल तक पकी मड़क है। ४ मील कच्चा रास्ता है। सो बैलगाड़ीवाला मीधा ही मैन वम्नी ले जाना है। बीचसे भी राम्ता फटकर जाता है। हमच नहीं जाना होता है। बैलगाड़ी वाला १-२ दिन ठहर जाता है। लौटकर फिर उसका किराया करना पड़ता है। अपने सुभीता माफिक कार्य करना चाहिये।
(२८१ हपच पद्मावती नीर्थ । यहांसे २ मील हमच ग्राम है । इस छोटे ग्रामका नाम भी हूमच है । यहांपर ३० घर दि. जैन व १ मट्टारकनीका
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१७०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मठ है। पद्मावतीदेवीका प्रसिद्ध मंदिर है। इस देशमें उसको मानते हैं इसको इमच पद्मावतीके नामसे पुकारते हैं।
भट्टारक महाराज ऐसे विकट जंगल, पहाड़में जिन मंदिरोंकी रक्षाके लिये वसते हैं । धन्यवाद ! महाराजका तोपखाना, नौकर हस्ती, घोड़ा, बगीचा, नीचे १ मंदिर भी मठमें है। महाराजके भंडारमें मूलबद्री जैसी हीरा, पन्ना, पुष्पराज, आदिको १८ प्रतिमा हैं। उत्तरप्रांत सरीखी प्रतिमा लाकर अपने देशमें बिराजमान करे, ऐसा धर्मात्मा धनाढ्य कोई नहीं है। महाराजको कुछ रुपया देनेसे दर्शन करा देते हैं। भट्टारक वयोवृद्ध विद्वान् हैं। यात्रियोंकी पाहुनागति करते हैं। रसोईका सामान अपने भंडारसे देते हैं । जीमनेवालोंको अपनी रसोई जिमाते हैं। महाराजने एक पहाड़ खुदवा कर बगीचा लगाया है। उसमें नाना प्रकार पुष्पादि हैं। उस बगीचेमें १ प्राचीन मंदिर निकला है। एक प्रतिमा भी निकली है । बगीचेमें उसका दर्शन अपूर्व है। फिर बाहर एक बड़ा मंदिर और प्राचीन प्रतिमा है । पद्मावतीके मंदिरकी परिक्रमा भी प्रतिमा विराजमान हैं। पासमें १ धर्मशाला, कुआ, व वनकी शोभा अद्भुत है। आगे १ मंदिर पार्श्वनाथका है। आगे एक पंचवस्ती नामकी बड़ी मंदिरकी वस्ती है। उसमें कुल ७ मंदिर व २० छोटी-बड़ी प्रतिमा हैं। एक बड़ा भारी मानस्थंभ है । उसपर प्रतिमा व शिलालेख है। पांच शिलालेख दूसरे हैं। मंदिरके पीछे जंगल है। भागेके तालाबमें कमल फूल रहते हैं। तालाबके पीछे महाराजके बगीचा, नारियल, सुपारी, पानस, माम इत्यादिके वृक्ष हैं। और पद्मावतीनीके मंदिरके पीछे पहाड़ ऊपर भाष मील चढ़
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१७१ कर एक प्राचीन मंदिर है जिसमें गोमट्टस्वामीकी ५ हाथ ऊँची प्रतिमा महा मनोज्ञ है । फिर पहाडके आस-पास जंगल में प्राचीन टूटे फूटे मंदिर हैं। वहींपर प्रतिमा व शिलालेख हैं। एक जानकार आदमीको साथ लेकर सबका दर्शन करें। यहांकी प्राचीन रचना देखकर मानन्द प्राप्त होता है। परन्तु भान इनकी मरम्मत कराने तथा देखनेवाला भी कोई नहीं है। किमी दिन यह बड़ा भारी शहर था । बड़े२ धर्मात्मा धनाट्य रहते थे। उन्हीं लोगोंने यह रचना कराई थी। फिर यहांसे लौटकर तीर्थली लौट आवे । मोटरका २) भाड़ा देकर सीमोगा शहर उतर पड़े ।
(२८२ ) सीमोगा शहर । नदीके किनारे शहरसे १ मील अन्यमनियों की बड़ी भारी धर्मशाला है। यहांपर सब बातका आराम है। शहर अच्छा रमणीक व व्यापारप्रधान कम्बा है। कुछ मारवाड़ी श्वेताम्बर भाइयों की दुकानें हैं। दि कुछ भी नहीं हैं । यहांसे ॥) टिकटका देकर विरूर जंकशन जाना चाहिये ।
(२८३) वीरूर जंकशन । यहांसे १ गाड़ी बेलग्राम, मीरन होकर पूना जाकर मिलती है । इसका हाल आगे लिखा जायगा। १ गाड़ी यहांसे आरसीकेरी बदलकर हासन, मंदगिरि, जनबद्री होकर बेंगलोर मसूर जाकर मिलती है । इसका हाल ऊपर लिख दिया है। यहांसे १ गाड़ी सीमोगा होकर मागे मोटरसे तीर्थली, हमच पद्मावती उल्टा पहिलेकी स्टेशन होता हुमा रायचूर नाकर मिलती है। इसका हाल भी ऊपर लिखा है। मद्राससे १ गाड़ी नोलारपेठ, पोडनूर
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होकर एरोड़ा मिलती है । एक गाड़ी वीरूरसे आरसीकेरी बदलकर बेंगल्टर जाकर मिलती है । इसके बीचमें किसी भाईकी इच्छा हो तो उतर पड़े । अब आरसीकेरीका हाल लिखते हैं ।
नोट- पूना तरफ की गाड़ीसे आनेवाले भाईयों को आरमीकेरीसे बेंगलूर, म्हैसूर होकर जैनबद्दीकी यात्रा करता हुआ सीमोगाका होकर मूलबद्री जाना चाहिये ।
वहांसे लौटकर मंगल्टरकी तरफ होकर मद्रास, रायचूर के रास्ते से जाने से सब वंदना होजाती है। मद्रास तरफसे आनेवा लोंको उधरकी सब यात्रा करके लौटकर कारकल सोमेश्वर होकर सीमोगा, जैनबद्री, म्हैसूर, बेंगलूर होकर वीरूर जंकशन मिलनाना चाहिये । ऐसा करने से खर्च कम और यात्रा सब होजाती है । आरसीफेरी से बेंगलूर जानेसे गाड़ी भाड़ा |||) देकर नीटर उतर पड़े। ( २८४ ) नीटुर |
स्टेशन से २ मील उत्तरकी तरफ ग्राम है। वहां पर एक प्राचीन कीमती मंदिर है । बहुतसी प्रतिमा हैं। एक प्रतिमा खड्गासन ५ हाथ ऊँची शांत मुद्रा घातुकी बिराजमान है। कुछ घर दि० जैनियोंके भी हैं, वहांसे चलकर रेल्वे भाड़ाका (८) देकर तीपटुर उतर पड़े ।
( २८५ ) तीपटुर |
स्टेशन से २ मील ग्राम है, वहांवर १ धर्मशाला, पाठशाला, १ रंगदार मंदिर और ५ हाथ ऊँची खड्गासन प्रतिमा है और ३ प्रतिमा घातुकी बिराजमान हैं, ४० घर दि० जैनियोंके हैं । यहांसे टिकटका ) देकर हीराहेली उतर पड़े ।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१७३ ( २८६ ) हीगहेल्ली ( अनिशयक्षेत्र चन्द्रप्रभु पहाड़)।
स्टेशन पर स्टेशन मास्तर के पाम मामान रखकर किमी आद. मीको माथ लेकर, मामने पहाट दिखता है वहांपर चला जावे । पहाड़की नलेडीमें धर्मशाला है, १ आदमी रहन: है. मामने पहाट है, पाव मेंल मीढ़ियां हैं. पहाट पर कोटमे घिरे हये धीचमें पांच मंदिर हैं और बड़ी भारी मनोज्ञ प्रतिमा है।
श्री चंद्रप्रभ की प्रतिभा अन्छो है । मंदिरमें ताला लगा रहता है । धर्मशालाक आदमोमे चावी लेकर म्नानादिसे निवटका, मामग्री लेकर पहाइपर नाना चाहिये । पहाड़पर भी ठहरनेका स्थान है । लौटकर स्टेशन नावे । टिकट !!) देकर बैंगलर चला जाना चाहिये । बंगाका हाल लिम्व दिया है। अब आगे वीरूरमे पुना तककी यात्रा लिम्बी जाती है । बीरूरसे टिकटका २) देकर टिकट हुबलीका सेलेना चाहिये ।
(८७) हुबली जंकसन । म्टेशनसे ) सवारीमें १ मील दूर दि. जैन बस्ती है । वहांपर धर्मशाला, कुमा, जंगल, बानार, मादि सबका सुभीता है। तीन मंदिर इमी जगहपर है। प्रतिमा बड़ी मनोज्ञ और प्राचीन है। पासहीमें १ दुसरा मंदिर है। उसमें धातु की प्रतिमा है। एक श्वेताम्बरी-दिगम्बरी इकट्ठा मंदिर है। सबका दर्शन करके फिर बाजार देखें। यहांपर कपड़ेकी २० मिल। छ देखकर और लौटकर मारटाल क्षेत्र नवे। (२८८ ) श्री आरटाळ क्षेत्र (पार्श्वनाथ अंतित्रयक्षेत्र)
हुबलीसे २४ मील बैलगाड़ीसे बारटाल क्षेत्र मा 14
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१७४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । शहर जिला धारवाड़, तहसील बंकातुर, धुडसीके पास है । रास्ता पक्की सड़क है । यहां १ बड़ा भारी कीमती मंदिर है। मूलनायक प्रतिमा श्री पाश्वनाथकी विराजमान है। यह प्राचीन, मनोहर, अतिशयवान है । और भी जहां-तहां प्रतिमा विराजमान हैं। कुछ घर दि. जैन भाईयोंके हैं । यात्रा करके हुबली लौट आवे । ( स्टेशनके पास दि० जन बोर्डिंग व धर्मशाला है, वहां पर ठहरना चाहिये ।) ___सबका दर्शन करके फिर स्टेशन लौट आवे, यहांसे दो लाइन जाती हैं, उनका अलग२ व्योरा इसप्रकार है। पहिली लाइन पूना तरफ जाती है, यहांसे रेल किराया १॥) देकर बेलगांव जावे।
(२८१ ) बेलगांव । ___ स्टेशनसे " बाला " जीका मन्दिर पूछकर जाना चाहिये । उमी मन्दिर के पास मानम्थम्भवाली जैन वस्ती पूछकर यहांपर या "बाला" जीके मन्दिरमें ठहर जाना चाहिये। फिर मानम्थम्भवाली वस्तीमें गढ़के मन्दिर मेंसे लाई हुई प्राचीन प्रतिमा है, और अनेक प्राचीन प्रतिमा हैं | मानस्थंभपर भी प्रतिमा है। एक कुआ व ठहरनेका स्थान है, किसी आदमीको साथ लेकर शहरमें २ मीलके चक्रमें ७ मन्दिर हैं, उनका दर्शन करे। फिर गढ़में जाना चाहिये। गढ़के ४ दरवाजा हैं, एक तरफ बाहर तालाव व चारों तरफ खाई खुदी हैं, और तोपे भी पड़ी हुई हैं, भीतर ३ मन्दिर हैं, जिसमें १ जैन मन्दिर कीमती है। उपरकी गुम्मट व दीवालोंमें प्रतिमा है। पहिले यहांका राजा जैन था, उसीने यह गढ़ व जैन मन्दिर बनवाया था, पीछे मुसलमान राना हुमा, उसने तुड़वा कर पत्थर
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१७५ गढ़में लगवाये ।इम समय भी यह शहर लंबा-चौड़ा हैं। एक जैन बोर्डिंग भी है। यहाका मब दर्शन करके और मोटर किरायाका २) देकर म्नवनिधि जाना चाहिये। नीपाणी" मे ३ मोल इस तरफ व वेलगांवमे ३८ मोल यह क्षेत्र बीचमें पड़ता है।
(२९० ) नवनिधि । मडककी उत्तर दिशामें दमग राम्ना पहाटके पाससे जाना है। यहापर बटा पहाट व जगल है। एक गट, धर्मशाला व दुकान है । पहाइपर कुआ है । यहा प्राचीन काल के ४ मदिर है । अनिशयवान प्रतिमाए भी है । । मानम्नम है । १ मंदिरमें भैरव क्षेत्रपालको मुर्ति है। यहा पर दनारों लोग बोल चढ़ाने आने है । मुनीम-पुना भी रहता है । भदा देना चाहिये । लोटकर नीपाणी आवे । ३ मोर परना है।
... ) निपाणी गहर। यह शहर अच्छा है । २ दि मन मदिर बहर घर ननियोंके है । यहामे १) मवारी देकर मोर या तानामे कोल्हापुर मावे।
( २) कोर गहर। स्टेशन के मामने पम हो 'द. मन धर्मशाला है । मंदिर नो है । मो पूछ कर चला नाना -ये। टमीके पास अन्यमतियोकी धर्मशाला वालानोके मर में है । दोनों जगह ठहर सकने है । गहम्में मेट माणिक वट होगचन्द बंबईवालों का बोर्डिंग है । स्टेशनसे । मोल चौकबाना में धर्मशाला, कुआ, बगीचा व मंदिर है । बोर्डिगसे १ आदमीको माथ लेकर शहरमें दर्शनोंको जाना चाहिये । बोडिंगके मंदिरमें २ प्रतिमा स्फटिकमणिकी है।
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शहर में भी मंदिर और हैं । दो भट्टारकोंका मठ है- लक्ष्मीसेन a जिनसेनजीका | वहां पर भी मंदिर है। एक मंदिर मानस्तंभवाला बहुत प्राचीन है । बाहर मानस्तम्भपर ४ जिनवित्र हैं । कनाड़ी में शिलालेख है । मदिर में प्राचीन बहुत प्रतिमा है । उनमें ५ प्रतिमा बहुत विशाल हैं। सबका दर्शन करे। एक जिनमंदिर कंसारगली में अंबाजी मंदिरके पास है। यहां पर बड़ा भारी मंदिर है । फलफूलसे पूजा होती है। यह मंदिर भी देखने योग्य है । जैन मंदिरका दर्शन करके राजमहल, बाजार देखता हुआ ठिकाने लौट आवे टिकटका ) देकर " हातकलंगड़ा " स्टेशन उतर जावे । ( २९३ ) हातकलंगड़ा ।
किसीको ग्राम जाना हो तो जाय, आघ मील दि ० जैन मंदिर व कुछ घर दि० जैनियोंके हैं । अगर ग्राममें नहीं जाना हो तो स्टेशन से २ ||) रुपया में लोटा फेरीका किराया करके कुम्भोज बाहुबली पहाड़ पर जावे | बीचमें नेजा ग्राम पड़ता है। उसका भी दर्शन करलेना उचित है । हातकलंगड़ासे ७ मील नैजग्राम व १ मील पहाड़ ग्रामसे है । ऐसे कुल ८ मील हैं। पहाड़के नीचे कुआ व जंगल है । ऊपर दो धर्मशालाएं हैं । सीढ़ियोंसे पाव 1 मीलका चढ़ाव है। ऊपर १ कुआ और १ मंदिर रमणीक हैं । अनेक तरहकी प्रतिमाएं हैं। बाहुबली स्वामीकी प्रतिमा खुले मैदान में है । १ सहस्रकूट चैत्यालय भी है। यहांकी रचना अपूर्व व लाखों रुपयों की लागतकी है। बाहुबली स्वामीने यहांपर कुछ दिनों तप किया था इससे उनकी प्रतिमा स्थापित है । और इस पहाड़का नाम भी बाहुबली पहाड़ है। महांसे २ मील दूर कुंभोज ग्राम
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जैन तीर्थयात्रादर्शक | [ १७७ है। वहांपर २ मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं। इन दोनोंका इकट्ठ | नाम बाहुबली कुंभोज बोलते हैं। यहां पर मुनीम पुजारी रहता है । बड़े २ मुनियोंने यहांपर ध्यान किया था, इससे यह महा पवित्र स्थान है | पासमे नैना ग्राम है । उसमें भी १ मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं । इस पहाड़ के आस-पास नजदीक बहुत ग्राम हैं । इन्हीं मोंमें आहार करके मुनि आनंदसे ध्यान करते थे । कुछ भंडार देकर लौटकर स्टेशन हातकलंगड़ा आवे | यहांसे किराया ।) देकर मिरनका टिकट लेलेवे |
( २९४ ) मीरज जंक्शन |
स्टेशन मे २ मील ग्राम है। ४ दि० जैन मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं। स्टेशनपर १ ब्रह्मणकी धर्मशाला है । यहांसे १ रेलवे सांगली जाती है । टिकट ) है । 1
( २९८ ) सांगली शहर ।
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यह शहर भी अच्छा है | स्टेशन से १ मील दूर है । २ मंदिर और अच्छी प्रतिमा ना बहुत घर जैनियोंके हैं । १ घर्मशाला बोडिंग व कन्याशाला है। लौटकर फिर मीरज आवे | मीरजसे ||) 1 टिकटका देकर कुंडलरोड उतर पड़े ।
( २९३ ) कुंडल रोड़ |
स्टेशन से ३ मील दूर ग्राम है । १ धर्मशाळा व दि० मंदिर है । १ प्रतिमा प्राचीन है । कुछ घर दि० जैनियोंके हैं। यहांसे पुजारीको साथ लेकर पहाड़पर जाना चाहिये ।
( १९७) श्री झरीबरी पार्श्वनाथ ।
पहाड़ पर जानेकी सीढ़ियां लगी हैं। १ मीकी बढ़ाई है।
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१७८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । ऊपर १ गुफा व २ मंदिर हैं। बहुत प्राचीन झरीबरी पार्श्वनाथकी २ प्रतिमा मुख्य हैं। और प्रतिमा बहुत हैं। पहाड़पर निरंतर प्रतिमाके ऊपर काल पानी टपकना रहता है ! यात्रा करके स्टेशन लौट आवे । टिकटका २) देकर पुना चला जावे ।
नोट-पूनासे मीरज पानेवाले भाई पहिले हातकलंगड़ासे कुंभो'नकी यात्रा करके कोल्हापुर और मोटरसे नीपानी जावे, फिर स्तवनिधिकी यात्रा करके बेलगांव जाकर मिले । आगेकी यात्राका हाल ऊपर देख लेना चाहिये । २-उघरसे यात्रा करनेवाले भाई मीरन भाकर मिलें । मोरजसे ३) देकर पना चले जावें। ३-पूनासे फिर शोलापुर होकर कुर्दुवाड़ीसे पंढरपुर जावे | वहांसे लौटकर फिर कुर्दुवाड़ी आवे । फिर बारसी टाऊन, कुंथलगिरि मादिकी यात्रा करता हुआ लौटकर कुटुंबाड़ी आवे । फिर धोंड़ आकर ठहर जावे, यहांसे १ रेल मनमाड़ जाती है, १ बारामती जाती है, सो पहिले बारामतीकी यात्रा करके फिर दहीगांवकी यात्रा करें । फिर बारामती धौंड़ आनावे । ४-पूनासे हरएक यात्री हर तरफ जासकते हैं । बम्बई आदि भी जासकते हैं, इसका परिचय आगे देखो ! ५-कुर्दुवाड़ीसे रायचूर, मद्रास, होटगी, गदग, हुबली आदि हरएक तरफ नासक्ते हैं। शांतिसे यात्रा करके पुण्य-बन्ध करना चाहिये। अब आगे दुसरी लाइनका परिचय लिखता हूं, सो दोनों लाइनोंके समाचारको देखकर और मन स्थिर करके जाना चाहिये । अब गदक तरफकी यात्राको जाना चाहिये । हुबलीसे टिकट १॥) देकर, बदामीका लेलेना चाहिये। बीचमें गदक जंकशन गाड़ी बदडकर बदामी उतर पड़े।
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( २९८ ) बदामीकी गुफाएँ। स्टेशनपर धर्मशाला छोटीमो है, यहांसे २ मील दूर ग्राम है, ग्राम प्राचीन एवं अच्छा है । १ प्राचीन तालाव और पहाड़ ननदीक है। उसमें तीन म्यानमें बहुत गुफा है, जिसमें एक गुफामें महादेव नीका लिंग है, एकमें कुछ नहीं है। ऊपरकी गुफामें छोटी बड़ी बहुत दि० प्रतिमा हैं, सब पहाड़ीपर उकेरी हैं। बहुत प्राचीन और कीमती रचना है। नीचे के तालाबके आसपास बहुत प्राचीन खण्डित मन्दिर हैं । नैनियों के घर नहीं हैं । यहांका दर्शन काके स्टेशन लौट आवे। टिकटका १॥) देकर बीनापुरका लेलेना चाहिये।
(२९०) वीजापुर । म्टेशनर्स २ मील जन वानी पुल कर दि० जैन धर्मशालामें तांगा =) सवागमें करके जाना चाहिये । यह शहर बादशाह के समयका है, कोटमे घिरा हुआ अच्छा है ।
यहां जैन मन्दिर व बहुन घर नैनियों के हैं । यहांसे २ मील दूर एक मन्दिर है, भौहरा भी है, प्राचीन प्रतिमा व शेषफणा पार्श्वनाथनी विराजमान हैं। यह मन्दिर कीमती है व प्रतिमा जमीनसे निकली हुई है। यहांपर बादशाहकी बड़ो भारी ममनिद कवरस्थान गढ़ देग्वनेयोग्य है। बीनापुरसे यहांतक पक्की सड़क है, मैकड़ों लोग माने जाते हैं । राम्ने में बादशाही वेल देखने जाना चाहिये लौटकर बीनापुर आवे । बादशाही चीने देखने योग्य हैं, मगर देखना हो तो कुछ मुलाय ना कर लेवे। फिर यहांसे मोटर, तांगासे -) सवारी देकर बावननगर जाना चाहिये । १४ मोल दूर है,
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( ३०० ) अतिशय क्षेत्र बावननगर । यह शहर पहिले बड़ा था, परन्तु अब छोटा है, एक दि० जैन धर्मशाला और एक बड़ा भारी कीमती मन्दिर है । उपमें पापाणकी १ हाथ ऊँची पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान है । यहांपर भी दूर देशके लोग बोल कबूल चढ़ाने आते हैं ।
यहांका अतिशय - कोई फीउद्दीन बादशाहने यहांके मन्दिर व मूर्तियां तुडवा दी थी। सिर्फ यह एक पार्श्वनाथकी प्रतिमा अपनी पुत्रीक खेलनेके लिये रख ली थी। बादशाहकी पुत्री इससे खेला करती थी । किमी १ दिन राणीके पेटमें बड़ी पीड़ा हुई, अनेक इलाज करानेपर भी नहीं मिटती थी। फिर रात्रिको रानीने स्व देखा, कि- " अपनी लड़कीके खिलौना रूप जो यह प्रतिमा है उसको धोकर पानी पिओ, तो पीड़ा शोघ्र मिट जायगी ।" ऐसा करनेसे रानी अच्छी होगई । ऐमा प्रभाव देखकर राजाने बड़ा पश्चात्ताप किया और प्रतिज्ञाकी कि आजसे किसीके देवताको नहीं सताउँगा । ये बड़े सच्चे होते हैं और अपने द्रव्यसे एक मंदिर 1
बनवाकर प्रतिमाको वहां पर स्थापित करदी और कुछ मंदिर के लिये भीविका भी लगा दी । वह अभीतक चलती है । भंडार व पुजारी रहता है। चार घर दि ० जैनियोंके हैं। यात्रा करके बीजापुर लौट आवे । बीचमें गाड़ी होटगी बदलकर शोलापुर उतर जाना चाहिये । ( ३०१ ) शोलापुर शहर ।
स्टेशनके पास में अन्यमतियोंकी धर्मशाला है । शहर में २ मील दूर दि० जैन धर्मशाला है । ४ मंदिर बढ़िया और प्रतिमा बहुत हैं। १ मंदिरके भीतर जमीन में मौहरा है। प्रतिमा भी है।
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यहांपर दि० जैनियोंके घर बहुत हैं। यहांपर १ बोर्डिंग, पाठशाला, कन्याशाला व श्राविकाश्रम भी है । १ श्री आतनुर, २ श्री आष्टै विघ्नेश्वर पानाथ अनिशय क्षेत्रोंके विषयमें शोलापुरके भाईयोंसे पूछकर यात्रा करना चाहिये ।
( ३०२ ) वारसी रोड कुर्डुवाडी |
यहां पर हरहमेश भीड रहती है। यहां पर हिदुओं का परमपवित्र पंढरपुर तीर्थ है । अन्यमती लोग हजारोंकी संख्या में रहते हैं । बारमी रोडपर खानेपीनेका सामान सब मिलता है । यहापर १० घर दि० जैनियोंके हैं। यहां पर पार्थनाथस्वामीका १ मंदिर व २ चन्य' लय हैं | मालमत्र मिलता है । यहां १ रेलवे पूना, एक शोलापुर होकर होटगी, १ बारसी टाऊन होकर लातुर व एक रेलवे गयचुर जाकर मिलती है । एक पहरपुर जाती है । टिकट ||) देकर पढरपुरका लेना चाहिये ।
(३०३) पंढरपुर तीर्थराज |
स्टेशन मे २ मील शहर है । धर्मशाला, पाठशाला, कन्याशाला और ६० वर दि० जेनियोक हैं । शहर में २ मंदिर और धातुकी प्रतिमा है। ग्राम में १ बडा भारी मंदिर वैष्णवोंका है । यह मंदिर पहिले नेमिनाथ स्वामीका दि० जेन था, सो आन वैष्णवका दीखता है । मंदिर बहुत लम्बा चौड़ा है । ३ दरवाजा, बडा भारी कोट, बीचर में छोटा मंदिर है । यहांपर चंद्रभागा नदी बहती है । नदीके दोनों तरफ घाट बंधा हुआ है। वैष्णवोंके मंदिर बहुत हैं। यहांपर हजारों लोग हरवक्त खाते हैं । नदीमें पिंडदान, हाडक्षेपण, तर्पणादि करते हैं ! बाजार बडा है । सामान सब मिलवा
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१८१] जैन तीर्थयात्रादर्शक । है। यह स्थान भी थोडेसे खर्चमें देख लेना चाहिये । लौटकर कुर्दुवाडी आवे । ॥) देकर टिकट बारसी टाउनका लेवे ।
(३०४) बारसी टाऊन । म्टेशनसे थोड़ी दूर २ हिन्दु धर्मशाला हैं, उनमें आरामसे ठहर जाना चाहिये । शहरमें १ दि. जैन धर्मशाला व मंदिर है। नैनियोंके घर भी बहुत हैं। शहर अच्छा, सामान सब मिलता है। यहांसे जाने-मानेकी ५) में बैलगाडी करके श्री कुंथलगिरि जाना चाहिये । रास्ता कच्चा, २२ मील पडता है । बीचमें पीपलगांव पड़ता है। वहांपर ठहरनेका सुभीता है । आगे भूमगांव पड़ता है।
(३०५) भुमगांव । यहांपर दि. जैन धर्मशाला, २ मंदिर, २० घर दि० नैनिः योंके हैं । बीचमें नदी है । माघे ग्राममें १ मंदिर व धर्मशाला है । उधर भी मंदिर है । यहांसे ८ मील कुंथलगिरि है।
(३०६) श्री सिद्धक्षेत्र कुंथलगिरि । यहांपर १ धर्मशाला और कुल १० मंदिर, तथा अच्छीर प्रतिमाएं हैं। एक मंदिरमें भौंहरा है। पहाइपर जानेको सीढ़िया लगी हैं । बीचमें सब मंदिर पडते हैं । पहाडका चढ़ाव सरल है। ऊपर बहुत बड़ा मूलनायकका मंदिर है।
__ उसमें श्री मादिनाथकी प्राचीन प्रतिमा विराजमान है । देशभूषण, कुलभूषण मुनि यहांसे मोक्षको पधारे हैं, उन्होंकी चरणपादुका हैं। पेटीमें दो स्फटिकमणिकी प्रतिमा है, सबका पूजन करके भंडार ममा करना चाहिये। यहांपर एक ब्रह्मचर्याश्रम भी है, उसको
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। देखकर सहायता करना चाहिये। लौटकर वापिस बारसी टाउन मावे। टिकट II) देकर एडसीका ले लेवे ।
(३०७) एडसी स्टेशन । ___ यहांपर धाराशिव (उस्मानावाद)को हर समय मोटर मिलती है। 1) सवारी लगता है, १४ मील उम्मानाबाद पड़ता है, पक्की सड़क लगी है । (१०८) धाराशिव (उस्मानावाद) अतिशयक्षेत्र, गुफा दर्शन।
ग्राम अच्छा है, यहांपर १ मन्दिर, १ चैत्यालय है, उसमें बहुत रमणीक प्रतिमाएं हैं। यहांसे पुमारीको लेकर या किसी भाद. मीको साथ लेकर २ मील दूर गुफाओंके दर्शनोंको जाना चाहिये। गुफाओंको यहांपर " लहाणा" कहते हैं । भागे १ मील सोपा रास्ता है । फिर पहाड़ है, नीचे १ पानीका नाला पड़ता है, उतर कर फिर पहाड़पर चढ़ना पड़ता है, फिर कुछ दूर जाकर पहाड़ उतरना पड़ता है, फिर एक महादेवका मंदिर है, वहांपर १ ब्राह्मण अपने कुटुम्ब सहित रहता है। वहांपर बड़ेर पहाड़ोंको काटकर मुनिराजोंके ध्यान करने की बड़ी २ गुफाएं बनाई गई हैं। उसमें बहुत कालतक मुनि साधु बिराजकर ध्यान करते थे। एक गुफामें और ही रंग-ढंगकी और दुसरे पाटकी प्रतिमा विराजमान हैं। उसकी उपमा कहांतक लिखी जाय । एक गुफा खाली है, तीसरी गुफामें पानीक कुण्ड है, ऊपर प्रतिमा बिराजमान हैं। यह भी लक्षोंका काम है, इस क्षेत्रकी पूजा एक ग्वालने सहस्र पाखुरी कमल के फूलसे की थी। सो मरकर रामा करकण्डु हुमा था जिसकी कथा पुमाके प्रसंगमें कथाकोमोमें किसी से पदपर पूनम ति देना चाहिये ।
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१८४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । यहांकी यात्रा करके उम्मानाबाद लौट भावे व एड सी स्टेशन लौट भावे, फिर टिकिट -) देकर "तेर" का लेवे | उस्मानाबादमें २० घर नैनियोंके हैं। यहांपर नेमचंद बालचंदनी वकील एक सजन गृहस्थ हैं।
(३०९ ) तेर स्टेशन ।। म्टेशनसे २ मील तेर टाफूटा ग्राम है, पहिले यह राजा करकुण्डकी राजधानी थी और यहांके सभी लोग जैन थे। इस पुण्य क्षेत्रमें २३ वार पार्श्वनाथ स्वामीका समवशरण आया था,
और ७ वार महावीरस्वामीका समवशरण आया था। इस परम पूज्य ग्रामको धन्य है। ग्रामसे पश्चिमकी तरफ एक नागम्थाना नामका स्थान है, पूछकर जाना चाहिये। यहां कोटसे घिरी हुई एक दि जैन धर्मशाला व भीतर २ मन्दिर हैं । उममें बहुत स्थानोंपर बहुत प्रतिमा विराजमान हैं, एक प्रतिमा महावीरम्बामीकी 9 हाथ ऊँची पद्मासन शांत छबि बिराजमान है । यहांपर एक पुजारी रहता है, भण्डार कुछ देना चाहिये। बाहर एक वावड़ी ई, उपमें जैनोंकी बहुत प्रतिमा हैं, एक पार्श्वनाथकी फण सहित प्रतिमा है। उसको लोग नागदेव कहते हैं। इसीसे इसका नाम नागठाना प्रसिद्ध है। मानकल कोई जैन यहांपर नहीं माने हैं । देखरेख की नहीं करते हैं । बड़ी विचित्र गति है ! लौटकर स्टेशन आवे । टिकटका 2) देकर लातुर जावे।
(३१०) लातुर । वारसी टाउनसे लगाकर लातुर तक मुसलमान रानाका राज्य है। यह शहर किला, खाई, दरवाजा, बगीचा, राज्य परिवार संयुक्त
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तीर्थयात्रादर्शक जैन। [१८५ है । यहांपर २ दि. जैन मन्दिर और प्राचीन उस्मानावाद अमी प्रतिमा है । बहुत घर दि० ननियों के हैं । यहांका दर्शन करनेसे मानन्द होता है, प्राचीन चीजें देखने योग्य हैं। लौटकर टिकटका १) देकर कुरूडवाड़ी आनाय, फिर टिकट । देकर धोंड़ जावे ।
(३११) धौड़ स्टेशन । यहांमे १ रेलवे मनमाड़ जाती है, एक पूना तक जाती है, १ बागमती जाती है। II) टिकटका देकर बारामतो चला जावे ।
(१२) बागमती शहर । म्टेशनमे १ मील दूर नन धर्मशाला, मन्दिर, कुआ वानारके बोनमें हैं । नांगावाला -) पवारी लेना है, यहांके मन्दिर बढ़िया हैं। वहुन घा दिनानियों के हैं, व ४ घग्में चैत्यालय हैं। यहांपर गुड़ बहुत बनिया दोना व विकना है। यहांसे ४) में बलगाडी भाटा करक " नानेपोने "-दहीगांव जाना चाहिये। करीब २० मील पढ़ता है । ब'चमें गोकी, नोकरी और १ ग्राम पड़ता है। जिनमें , , चायालय व दि. नन इमड़ भाइयोंके कुछ घर हैं । इस देश में गुनगातक रहनेवाले भाई आकर वसे हैं। इनको " गुजर " बोलने है । सब जगहपर गनरके घर व मंदिर पूछनेपर शोध पता लग जाता है।
(५३) दहीगांव अनिशय क्षेत्र (नातेपोने )।
यह ग्राम ठीक है। १५ घर गजर लोगोंके हैं, एक बड़ी भाग धर्मशाला, कोट और कुल १० मंदिर हैं । एक स्थानपर बीचमें चतुर्मुख मंदिर है । उममें १२ प्रतिमा चारों दिशा में हैं, चार२ कोनों में इस तरहसे अनेक प्रतिमा हैं। एक और बड़ा
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१८६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मन्दिर है, उसमें भी बहुत प्रतिमा हैं। इसीके नीचे भोहरेंमें ४ मंदिर हैं, और बड़ी२ सुन्दराकार पद्मासन ( प्रतिबिंब हैं। शिलालेख भी हैं। इस मंदिरके बनवानेवाले इस प्रांतमें बड़े प्रभावशाली, ब• महतीसागरनी थे। उनकी क्षत्री और चरण पादुका हैं । यह मंदिर बहुत ऊंचा और कीमती मजबूत है । भंडार, मुनीम, पुजारी रहता है । मेला हरसाल भरता है । हरसमय यात्री बाते जाते रहते हैं। इसके मागे नातेपोते आदिमें जैन गूनरोंके बहुत घर हैं । यात्रा करके लौटकर बारामती आजाय । फिर ढौंड आवें। यहांसे टिकट १॥) देकर पूनाका लेवें। अगर मनमाड़ जाना हो तो २॥) देकर मनमाड़ चला जावे | किसीको कुर्दुवाड़ी रायचुर मादि जाना हो तो चला जावे ।
(३१४) पूना शहर । स्टेशन के पास १ हिन्दू धर्मशालामें ठहरना चाहिये । या शुक्रवारी बाजारमें दि. जैन धर्मशाला है, उसमें ठहर भावे । तांगावाला ।) देकर सवारी और बैलगाड़ीवाला -) सवारीमें पहुं. चाता है। १ मंदिर दीतवारी, २ मंदिर शुक्रवारी, १ पेठमें ऐसे कुल ४ मंदिर हैं। सबका दर्शन करें । शहरमें ४० घर दि. जैनियोंके हैं। लाखोंका व्यापार होता है। घूमकर बाजार देख लेना चाहिये। कुछ खरीदना हो तो खरीद लें। लौटकर स्टेशन मावे ।
१ रेलवे मीरज, सांगली, कोल्हापुर, बेलगांव, हुबली, विरूर, सीमोगा, भारसीकरी, हांसन, मंदगिरि, म्हैसुर, बेंगलूर होकर हीराहेल्ली जाती है। १ कुर्दुवाड़ी, बारसी, तेर, लातुर, शोलापुर, रायचुर, होटगी होकर हुबली जाती है। इनका हाल ऊपरसे देखो
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१८७ एक रेल बम्बई जाती है। टिकट २॥) देकर बम्बई जाना चाहिये ।
(१५) बम्बई शहर। यहांकी स्टेशनोंके नाम बोरीबंदर, दादर, चर्नीरोड, ग्रांटरोड, कोलाबा, परेल आदि छोटी-बडी लाइन के बहुत स्टेशन हैं । चाहे जहांपर उतर पड़े। मगर तांगेवालेसे किराया ठहराकर दि० जैन धर्मशाला हीराबाग, या सुखानन्द गुरुमुखरायकी धर्मशालामें ठहरे। १ मंदिर भृलेश्वरमें, १ गुलालवाडीमें तारदेव, १ श्राविकाश्रम, १ बोर्डिंगमें, १ चौपाटीपर सेठ माणिकचंद्रनीके बंगले में, १ पामही डाह्याभाइके बंगलेमें, १ सौभागचंदके बंगलेपर, कुल ७ मंदिर हैं। भूलेश्वर, गुलालवाड़ी तथा सेठनीके चैत्यालयमें २-२ प्रतिमा स्फटिकमणिकी हैं। सो सबका दर्शन करे । ग्रांटरोड, बोरीबंदर, मूलेश्वर, गिरगांवकी तरफ बाजार अच्छा है । ऐसे तो बम्बई सबसे मच्छा शहर है, सभी देखने योग्य है। फिर रानीबाग, नौहरीबाजार, चिड़िया घर, चौपाटी समुद्र, हेगिंग गार्डन, म्यूजियम, कपडाकांच का कारखाना, टंकशाल, बोरीबंदर स्टेशन देखने योग्य हैं, देखना हो सो देख लेवे । लौटकर स्टेशन मानावे । रेलवे हरसमय चारों तरफ जाती है। जहांको जाना हो वहांकी टिकट लेकर रेलवेको खोजकर बैठ जावे । बम्बई में बिजलीक दामवे चलती है, उसमें बैठकर घूमना चाहिये। हर जगहका -) लगता है। सबसे बड़ा स्टेशन बोरीबंदर है। वहांपर जाकर टिकटका १॥) देकर नाशिकका लेलेना चाहिये ।
(३१६) नाशिक शहर । स्टेशनपर हरसमय मोटरवस व तांगा मिलते हैं। फी भादमी ७) दामका लेकर मील दूर शहरमें अम्बक दरबामा दि. मैन
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
धर्मशाला में पहुंचा देता है। स्टेशनपर बाजार, डाकघर व टेलीग्राफ है । रास्ते में भी अच्छी चीजें मिलती हैं । सो देखते जाना चाहिये । धर्मशाला में नल व ऊपर मंदिर है । थोड़ी दूर गली में कुआ है, जंगल भी थोड़ी दूर है । बाजार पास है । कुछ घर दि० जैनोंके हैं। बाजार अच्छा है, सामान सब मिलता है । फिर यहांसे तांगा, मोटर या बैलगाड़ी से २ || मील मसरुलगांव दि० जैन धर्मशाला में जाना चाहिये । बीचमें बाजार पड़ता है, देखता जावे । गोदावरी 1 नदीके उमपार अन्यमतियोंकी धर्मशाला है । ब्राह्मण पिंडदान, तर्पन आदि करते हैं । यह शहर भी प्रसिद्ध है । यहांपर हजारों यात्री आते-जाते रहते हैं । शिवरात्रीपर बड़ा भारी मेला भरता है तब १ लाख तक आदमी इकट्ठे होजाते हैं ।
( ३१७ ) मसरुल गांव ।
यहां पर १ दि० धर्मशाला, १ मंदिर, १ बगीचा व कुआ, है । मुनीम, पुजारी रहते हैं | भण्डार वगैरह देना चाहिये । यहांसे १ मील गंजपंथाजी जाना होता है । स्नान करके माली व द्रव्यको साथ लेकर पहाड़पर जाना चाहिये ।
( ३१८ ) श्री गजपंथजी सिद्धक्षेत्र ।
पहाड़की आधमीळकी सरल चढ़ाई है। सीढ़ियां लगी हैं । ऊपर कोट है । ३ गुफा हैं । उनमें खुदी हुई बहुत प्राचीन प्रतिमा व चरण पादुका हैं । १ पानीका कुण्ड व १ मंदिर है । यहांसे बलभद्रादि ८ करोड़ मुनिराज मोक्षको गये हैं | वंदना, पूजा करके थोड़ी दूर नीचे उतर आये । फिर पहाड़ ऊपरकी
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जैन तीर्थयागदर्शक। [१८९ सड़क काटकर परिक्रमा है । वह माघ मील की पड़ती है। परि. क्रमा देकर पहाड़की तलेटोमें भाजावे ।
(३१०. ) नलेटी (गजपंथ)। यहांपर १ कुआ, बगीचा, मंदिर व त्यागियों का आश्रम है। त्यागी बंसीलाल आदि रहते हैं। यहां पर सुपात्र दान करके धर्मशालामें जावे व भंडार देकर नाशिक चला जावे । किमी भाईकी इच्छा हो तो अनगिरिकी यात्रा करके फिर नाशिक आवे व वलगाड़ी करके मागीतंगो चला जावे। अगर बलगाड़ीमे न जावे वो लौटकर म्टेशन आवे । टिकिट ॥) देकर मनमाडका लेलेवे । बलगाडीका गम्ता कष्टसाध्य है। (३२०) अनिशयक्षेत्र अनंगिरि (अंजनगिरी)।
नाशिकमे त्रम्बक महादेवके गम्ने में पश्चिमकी तरफ १४ मील दूर अंजनी ग्राम है । यह कम्बा दक्षिणकी तरफ १ मील दूर सड़कमे है। यह एक जैनियों का प्राचीन शहर था । आसपाम जंगलमें टुटेफुटे बहुत मंदिर हैं। ? मंदिरके पास बहुत बड़ी वावड़ी है । ग्रामके पास तालाब, व धर्मशाला है । जंगल में लाग्वों रुपयाकी लागतके १० मंदिर टूटेफुटे हैं। एक अखंडित प्रतिमा छापरा ग्राम के पास विराजमान है। यहां पर पुनारी रहता है। किसी आदमीको साथ लेकर पहाड़ ऊपर जाना चाहिये । पहाड़ २ मील दूर पड़ता है । पहाइपर १ गुफा व १ पानीका कुंड है। १ गुफा मंदिर है । भीतर बहुत खंडित-अखंडित प्रतिमा विराजमान हैं। यही गुफा मुनिरानोंक ध्यानकी है । अंजना मुंदरीने नहीपर शैक हनूमानको जन्म दिया था । उपर जानेको सीढ़ियां
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१९०] जैन तीर्थयात्रादर्शक । लगी हैं। यह रचना प्राचीन होनेसे व नैनियोंके न रहनेसे खंड. बंड होगई । पहाड़ ऊपर १ तालाव, व अंजनाकी मूर्ति है। यहांपर मिथ्याती लोग जाते हैं। गुफाओंका दर्शन करके नीचे लौट आवे । कुछ भंडार देकर नाशिक लौट आना चाहिये । नाशिक मानेवाले जैनीभाई भी यहांकी यात्राको नहीं आते हैं ! झट भागकर चले जाते हैं । नाशिकसे २२ मील व यहांसे ७ मील त्रम्बक महादेवका मंदिर है। यहांपर नाशिक आनेवाले हजारों अन्यमतो यात्रीगण हमेश आते-जाते रहते हैं । हमारे जैनी भाइ तो बहुत ही प्रमाद करते हैं । यहांसे मनमाड आवें ।
(१२१) मनगाड़ । स्टेशनपर १ बड़ी भारी हिन्दू धर्मशाला है। वहांपर ठहर जाना चाहिये । फिर यहांसे मोटर या ५० मील मांगीतुंगी जाना चाहिये। बीचमें मालेगांव, सटाना पड़ता है। पक्की सड़क मांगीतुंगी तक जाती है।
(३२२) मालेगांव । यह बादशाह के समयका ग्राम है । १ दि. जैन धर्मशाला, एक मंदिर, ४ घर नैनियोंके हैं। सेठ दगडुराम भागचंद्र काशलीवाल सज्जन पुरुष हैं। यहांपर हाथसे कपड़ा बुना जाता है। व्यापार अच्छा है। बाजार भरता है । १ श्वे. मंदिर, धर्मशाला
और बहुत घर श्वे. मारवाड़ियोंके हैं । मनमाड़से यह ग्राम २४ मील पड़ता है। यहांसे २२ मील सटाना पड़ता है । यहांसे मोटरसे धुलिया शहर भी जाना होता है । ३२ मील पड़ता है। १०) मोटर लगते हैं।
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(१२३) सटाना। यह ग्राम भी अच्छा है। ४ घर दिनैनियोंके व १ मंदिर भी है। यहांसे १४ मील मांगीतुंगी पड़ता है। यह बात याद रखना चाहिये कि नाशिकसे जाने-मानेमें यह ग्राम बीचमें पड़ता है । यहांसे १ सड़क नाशिक तरफ जाती है। उमीके बीचसे १ सड़क फूटकर बम्बई तक जाती है। एक मालेगांव होकर मनमाड़ जाती है।
(१९४) श्री सिद्धक्षेत्र मांगी-तुंगी। यह क्षेत्र जंगलमें है । चारों तरफ पहाड़ है। १ नदी, कुमा, धर्मशाला, व ३ मंदिर रमणीक हैं। मुनीम, पुनारी, नौकर रहता है । ग्राम छोटामा है। शौचादिसे निवटकर द्रव्य व मालीको साथ लेकर पहाड़ पर जाना चाहिये । पहाड माल है। सिर्फ १ मीलकी चढ़ाई कठिन है। मीदियां लगी हैं। गस्ता मकरा है। बड़े शांतभावसे एवं धीरे २ चढ़ना चाहिये। उ.पर पहिले मांगीका पहाड़ आता है। उ.पीमें पहाड काटकर ५ बड़ी ; गुफाएं बनाई गई हैं। गुफाओं व परिक्रमा बहुत प्रतिमा उकेरी हुई हैं। पानीका कुंड, व २ छत्री है । एक कृष्ण व दुमरी बलभद्रकी मूर्ति है। यहांका दर्शन पूनन, परिक्र । करके माधी दूर नीचे भाना चाहिये। फिर यहांसे तुंगीका पहाइ १ मील दूर है । चढ़ाव कठिन है। इससे सावधानीमे पैर रखना चाहिये। १ गुफा, १४ प्रतिमा, व २ चरण पादुका हैं। दर्शन, पूजन, प्रक्षाल, परिक्रमा करके लौट माना चाहिये। आधा नीचे आने बाद, नीचे आनेका दूमरा रास्ता है। यह भी रास्ता विकट , सापवानीखे उतरना चाहिये । बीचमें
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१९२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । फिर २ गुफा हैं। उनमें बहुत प्रतिमा हैं। ये गुफाए सुध-बुधके नामसे प्रसिद्ध हैं। मधु-कैटव यहांसे मोक्ष पधारे । यहांका दर्शनपूजन करके धर्मशालामें लौट आवे । इम पहाड़से राम, हनु, सुग्रीव, नील-महानील आदि ९९ करोड मुनि मोक्ष पधारे हैं। और कृष्णके भाई बलभद्रने बनचर्याका नियम लेकर घोर तपश्चरण किया जो मरकर पंचम स्वर्ग गये। कथा पद्मपुराण, हरिवंशपुगणमें देखो। कुछ रहकर जितनी यात्रा करनी हो करके फिर मनमाड़ आजावे । यहांसे जानेके ३ राम्ते हैं। १-किसी भाईको नाशिक होकर जाना हो तो गजपंथा, अननगिरिकी यात्रा करके नाशिक स्टेशनसे रेलमें बैठकर मनमाड़ उतर पड़े। २-यहांसे १ राम्ता धुलिया तरफ जाता है ५० मील पडता है। बीचमें पीपरनार, साकरी, कुसुंबा गांव पड़ता है।
(३२५ ) पीपरनार गांव । यह ग्राम ठीक है । १ मदिर व कुछ घर जैनियोंके हैं । मांगीतुंगीसे यह ग्राम १४ मील है । यहांसे ८ मील साकरी गांव पड़ता है । यहांसे चींचपाड़ा स्टेशन भी जाते हैं।
(३२६ ) साकरी गांव । ग्राम अच्छा है। १ मंदिर व कुछ घर जैनियोंके हैं। यहां वांगामें ११ मील चींचपाड़ा स्टेशन पड़ता है।
चींचपाड़ा-यहांसे १ रेलवे बारडोली-महुमाकी यात्रा करके नौटकर बारडोली आकर सुरत जाकर मिलती है। दूसरी लाईन मलगांव, भुसावल, अमलनेर, जाकर मिलती है। इसका हाल अमर लिखा है। सारीसे १२ मील कुसुंबागांव पड़ता है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
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कुसुंबा गांव - यह ग्राम अच्छा है । १ मंदिर व २० घर जैनियोंके हैं | यहांसे १४ मील धुलिया शहर पड़ता है ।
( ३२७ ) धूलिया शहर ।
यह बड़ा भारी है। कपड़े रुईके कारखाने हैं। देखने काचिक है । १ मन्दिर है और राम सा० सेठ हीरालाल गुलाबचन्द्रजी सज्जन एवं धन पुरुष हैं । २५ घर जैनियोंके हैं। स्टेशन से २ मील दूर शहर पड़ता है । यहा से १ रेलवे चालीसगांव जाकर मिलती है । टिकट || ) है । यहांसे मांगीतुंगी ६० मील पड़ता है । मोटर या बैलगाड़ी से जाना पड़ता है । यहांसे एक रास्ता मालेगांव जाता है । ३२ मीलकी पक्की सडकपर १1) में मोटरवाला लेजाता है । यहां मांगी तुंगी, नाशिक, मनमाड जाकर मिलना चाहिये । हाल ऊपर देखो | अब यहां ११) देकर बीच में चालीसगांव गाड़ी बदलकर मनमाड जाना चाहिये । चालीसगांव से आगेपीछे का भी हाल उपर ही लिखा जाचुका है । मनमाडमे १) टिका देकर I हैद्राबाद निनाम रेलवेमे परोड़ा या दौलताबाद जाना चाहिये ।
( ३२८ ) एरोला रोड, (दौलताबाद स्टेशन ) ।
यहांसे बैलगाड़ी भाडे करके ९ मील दूर दोनों स्टेशनोंसे एरोला ग्राम जाना चाहिये । पक्की सड़क है । कोई भाई की हिम्मत हो तो पैदल भी जासकते हैं । तांगा भी जाता है ।
1
( ३२९ ) एरोला ग्राम ( गुफाओंकी यात्रा ) । एरोला ग्राम छोटा है। मगर प्राचीनकालमें बहुत बड़ा शहर था । ग्रामके आसपास प्राचीन चीजें देखने योग्य हैं। इसी ग्रामके नजदीक तालाव है। आगे १ लाल पत्थरका खुदाई का लाखों रुप
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१९४] जैन तीर्थयात्रादर्शक । योंकी कीमतका महादेवका अपूर्व मंदिर है। यहींपर प्राचीन अनेक मंदिर, छत्री, मसनिद, हिन्दु, मुसलमान, बौद्ध, जैन, शिवमतवालों के बड़े२ कीमती खंडहर हैं। एक मील दूर डंडाकार पहाड़, २ मील का लंबा, १ मीलका ऊंचा उत्तर, दक्षिण दिशामें है । पहाड़में लाखों रुपयों की रचना बनी है । उसको देखकर आश्चर्य होता है। ___ इस पहाड़में खुदी हुई छोटी-बड़ी कुल ५४ गुफा हैं । उनमें कितनी गुफा तो २-३ मंनलकी बनी हैं । ये गुफायें बौद्ध, शिव व जैन मतवालोंकी हैं । सभी मतवाले इनकी यात्राको आने हैं। पर हमारे भाग्यहीन जैनी तो कोई ही माता-जाता होगा। प्राचीन तीर्थो के उद्धार व धार्मिक भावोंकी जैनियोंमें बिलकुल कमी है। इन तीर्थों का जीर्णोद्धार भी नहीं कराते हैं। इन गुफाओंमेसे ९ गुफाओं के नाम गणेश गुफा हैं । यह बड़ी भारी गुफा ३ मंजिल लकी बनी हुई हैं । हजारों गणेशनीकी मूर्तियां भीतर वा बाहर मंगलमें हैं। बड़े२ पानीके कुंड व नदी वहती है । इस जगहपर
औरंगाबाद आदिके आसपासके धोबी कपड़ा धोने आते हैं । सब गुफाओं में ये ही गुफा कीमती हैं । ये इतनी लंबी चौड़ी है कि २० हजार आदमी बैठ सकते हैं। तीमरी कैलाशपुरी-इममें ह नारों मूर्तियां शिवकी हैं । ४ नाशशय्या, ३३ करोड़ देवी देवताकी मूर्ति हैं । पांचवी विष्णुपुरी ( कृ-गलीला ) का मंदिर आध मील ऊपर तक है। चारों तरफ विगु भावान की लीलाका ही ठाठ है। यह गुफा अब भी बड़ी रंगदार है । यहांपर ब्राह्मग, साधु भादि रहते हैं। बौद्ध गुफा यह २ मंनिलकी है | इममें बड़ीर पद्मासन खड्गामन मूर्तियां बहुत हैं । एक गुफा मुपलमानों की है।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९५ उसमें बहुत कबरस्थान २४ पोर, औलियापोर मादि हैं। कहांतक लिखिये । यह दृश्य बिना प्रत्यक्षके मानंद नहीं देसकता है। आगे दि. जैन गुफा हैं। यह रचना हजारों वर्ष पहिलेकी है । इस रचनासे ही श्वेताम्बरी झगड़े शांत हो सकते हैं ।
(३३०) एरोलाकी जैन गुफाएँ । पहिले एगेला ग्राममें, नहां कि टदग्नेका स्थान है, औचादिमे निवट र पूनाकी मामग्री लेकर एक जानकर आद को नाथ लेकर दि० नेन गुफाओं में जाना चाहिये । ग्रामो अ., दूर १ छोटामा पहाड़ है। ऊपर पाधनाथका पहाट नीचे ? गुफा हैं। उसमें सब जगह पहाड़को काटकर काम किया गया है। प्रारके मंदिरमें हाथी, घोड़ा, मिहामन, भामंटर, हाल, इन्द्र शादिकी रचना बड़ी मनोहर है । उ.परके मंदिर के दर्शन करके नीः गुफा
ओंमें जाना चाहिये । नीचे कुल ३ पहाटोंमें , गुफा निममें २ गुका लम्बी चौड़ी बया २ दो मंन गो की है। अनेक पतिमा, म्धंभ व दीवालों में हैं। यह असूर्य र चना वना है। १ गुफ में मानम्थंभ है । बड़ा हाथो, २ मिंद भी हैं , ... भी आमपाम शिलालेग्व कनाड़ी भाषामें लिये हैं । यह नाबाद जानेको गम्ना है । उपमें भी अनेक प्राचीन रचनः मिलनी है । देवता हुआ दौलताबाद चला जाय । अगर दौलताबादसे आये हो तो पगेडाकी तरफ चला जाय ।
(३३१) दोलनावाद । यहांपर भी कुछ घर दि. जैनियों के हैं। एक प्राचीन मंदिर च प्रतिमा है । यहांसे ७ मील सहकका रास्ता सीधा औरंगाबाद
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१९६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । जाता है । यहांसे स्टेशन १ मील दूर पड़ती है। रेलवे टिक्टका 4) दे कर औरंगाबाद उतर पड़े।
(३३२) औरंगाबाद । म्टेशनसे २ मील चौक बाजार मसनिदके सामने दि. जैन धर्मशाला है । तांगावाला ।) सवारीमें ले जाता है। यहां पर बाजार, पाठशारा ननदीक है । कुछ तकलीफ नहीं होती है। यहांपर ननदक कुल ३ मंदिर हैं । और घरमें ७ चैत्यालय व ४० घर दिनियोके हैं। एक बड़ा मंदिर है। उसके मोहरामें हजारों
प्रतिनग हैं। इसी मंदिरमें धर्मशाला भी है । यह मंदिर सिर्फ एक भाईको बनवाया है। अब पंचोंके कजे में है। वह विचारा मर गया है । किसी आदमोको माथ लेकर सबका दर्शन करें। फिर यहांने तांगा करके पहाड़की गुफा देग्वने जाना चाहिये । ३ मील पहाड़ पटना है । बीचमें गौमापुर पड़ता है।
(३३३) गौमापुर । यह शहर पहिले बड़ा था । सो टूटकर औरंगाबाद बप्त गया है । यह ग्राम अब छोटासा है। नैनियोंके घर बहुत थे | अब पुनारी रहता है। पहाड़की गुफाओंकी पूजा करने यही पुनारी नाता है । १ मंदिर एवं प्राचीन प्रतिमा बहुत हैं । एक बादशाहकी मसनिद देखने योग्य है। यहांसे १॥ मील दूर पहाड़ है। तलेटी तक तांगा जाता है।
(३३४) गौमापुरकी गुफाएं। पाव मीलका सरल चढ़ाव है। ऊपरकी तरफ बड़ीर तीन गुफा हैं। उनमें बहुत जैन, बौड, कृष्णकी मूर्तियां हैं । एकर
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९७ तरफ मंदिर परिक्रमा सहित बना हुआ है। मंदिरमें नेमिनाथम्बा. मीकी प्रतिमा बहुत ही मनोज्ञ है । यह मंदिर भी औरंगाबादके भाईयोंके निम्मे है। यह रचना भी एरोदा मी अपूर्व है । यहांकी यात्रा करके बीचमें शहर बाजार देखता हुमा धर्मशालामें भानाय । फिर यहांकी प्राचीन चीन देखना हो तो देखरें । यह शहर लंबा चौड़ा पुराना खंडहर दशामें है। बादशाही राज्य है । ५) में बैलगाडी आने-जानेको करके अचनेरा जाना चाहिये । २० नोक गम्ता कच्चा-पक्का पड़ना है ।
(३३५) श्री अचनेग पार्श्वनाथ अनिशयक्षेत्र ।
यह ग्राम प्राचीन मामूली है । यहां पर धर्मशाला व १ मंदिर है। जिसमें बहुत प्राचीन प्रतिमा हैं । कुछ नियों के घा हैं। मेला भरता है। मंदिग्में । प्राचीन डोटीमी पापाणकी पार्श्वनाथकी पतिमा है । यहां बहुत लोग बोल कवल चढ़ाने आने हैं।
(३३६) अचनेगके अतिशय । किमी दिन एक रनम्वला स्त्री मंदिरमें दर्शनों को आगई थी । उसको देख कर स्वयं प्रनिमानीकी गर्दन टूट गई थी। और मंदिरमें भी उड़कर उम बाईपर टूट पटी । सो बाई घरपर चली गई। यह खबर सुनकर पंच लोग मंदिर में आये । देवकर बडा दुःख हुआ। फिर दृमरी प्रतिमा मंदिरजीमें लाकर विगनमान करने का विचार किया । रात्रिमें एक मेठको म्बन हुआ कि यहांपर मेरे मिवाय दृमरी प्रतिमा नहीं बैठ सकेगी। अच्छे गुड़की लपसी बनाकर मेरा सेक करो। फिर गर्दनके बीचमें लपमी रखकर और कपड़ेसे बांधकर जमीनमें ६ महिनाके लिये रखदो । छह माहके
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
बाद मुझे निकालकर बैठा देना। इस प्रकार कहकर निश्चित किया । फिर सबेरे मिलकर सब पंचोंने वैसा ही किया । भौहरा बनवाकर छ महिना भगवानको गर्दन बांधकर रख दिया । वह भौहरा मंदि - रमें मौजूद है । फिर छ माह बाद निकालकर देखी तो गर्दन 1 पहिले जैसी मजबूत है । फिर होम विधान करके शुभ मुहूर्त में 1 आसपास के लोगोंको बुलाकर बिराजान कर दिया । जबसे यह अतिशय क्षेत्र प्रगट हुआ है। आज भी वही कटी गर्दनका निशान दीख रहा है। यहांकी यात्रा करके किसीको जरूरत हो तो औरंगाबाद जाय नहीं तो बैलगाड़ीवालेको बोलकर बीचमें १२ मील ऊपर चकलठाना चला जाय ।
( ३३७ ) चीकलठाना स्टेशन |
यहांसे मनमाड जानेवालोंको मनमाड जाना चाहिये । नहीं तो पैसींजरगाड़ी से २ = ) देकर मीरग्वेरका टिकट लेना चाहिये । यह स्टेशन पणी और पूना के बीच में है । बीचमें पर्मणी हिन्दु तीर्थं पड़ता है । अगर देखना हो तो पर्भणी उतर पड़े । ( ३३८ ) पर्मणी ।
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स्टेशन के नजदीक शहर बड़ा रमणीक है । नदीके घाट, किला मंदिर प्राचीन चीजें देखने काबिल हैं। यहां पर ब्राह्मण पंडा लोग बहुत रहते हैं । पिंडदान, गंगास्नान आदि करते हैं । यहांपर सब सामान मिलता है । कुछ घर दि० जैनियोंके हैं । १ मंदिर यहां पर बहुत प्राचीन है। यहांसे लौटकर मीरखेट उत्तर पड़े । टिकट =) लगता है। मीरखेट- यहांसे मजूर करके १९ ॥ मील दूर उत्तरकी तरफ पीपरी ग्राम जाना चाहिये । पीपरीगांव - यह
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१९९ ग्राम छोटा है। २० घर जैनियोंके हैं। यहांसे २ मील उत्तरकी तरफ श्री उखलद क्षेत्र जाना चाहिये।
(३३९) उखलद अतिशयक्षेत्र । पूर्णा नदीके किनारे एक पहाड़पर छोटासा ग्राम है। यहां पर १ दि० जैन मंदिर है। भीतर तप तेजवान, चतुर्थकालकी जमीनसे निकली हुई अंतरीक्ष श्री पार्श्वनाथकी प्रतिमा है। यहांपर धर्मशाला है। मेला भरता है । बहुत यात्री जाते-आते हैं । यात्रा करके मारग्वेट आजाना चाहिये । टिकट |-) देकर पूर्णाका ले लेना चाहिये।
(३४०) पूर्णा जंकशन । उखलदवाली पूर्णा नदी यहांपर वहती है। शहर अच्छा है। जैनियोंके घर बहुत हैं। यहां भी नदीका घाट मंदिरादि बहुत हैं। प्राचीन गद, बाजार देखनेयोग्य है। हजारों यात्री यहांपर माने जाते हैं । सब माल मिलता है।
(३४१) हींगोलशहर । यहांसे १ रेलवे हींगोल जाती है। हींगोल अच्छा शहर है। ६० घर दि. जैनियोंके, २ मंदिर और ३ चैत्यालय हैं। प्राचीन प्रतिमा है । यहांसे मोटर, तांगा द्वारा ३॥) देकर बासम जाना चाहिये ।
(३४२) बासम शहर । यह शहर अच्छा एवं व्यापारप्रधान है । जैनियोंकि २५ घर और २ मंदिर हैं। एक मंदिरमें भौंहरा है। उसमें बहुतसी प्राचीन प्रतिमा हैं। यहांपर बालगनीका मंदिर और कुंड देखनेयोग्य
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२००] जैन तीर्थयात्रादर्शक । है। यहांसे मालेगांव, सीरपुर ( अंतरीक्ष पार्श्वनाथ ) होकर अकोला तक १॥) में मोटर जाती है । इमका हाल ऊपर लिख दिया है।
पूर्णासे आगे १ गाड़ी शिकन्दराबाद, हैद्राबाद जाती है । सो यहांसे ३) देकर शिकन्दराबादका टिकट लेलेना चाहिये । शिकन्दराबाद उतर पड़े । बीच अल्बल स्टेशन पड़ता है। यहांसे ३ मील माणिक्यस्वामी पड़ता है ।
(३४३ / शिकन्दराबाद । शहर स्टेशनसे २ मील दूर है । शहर अच्छा रमणीक हैं। निनामका राज्य है । ३ मंदिर और बहुत प्रतिमा हैं । दि० भाईयोंके घर बहुत हैं । यहांसे ३ मील दूर जंगल है। तांगा करके कुलपाक जाना चाहिये। (३४४) माणिक्यस्वामी अतिशयक्षेत्र (कुलपाक )।
यहांपर १ मंदिर बहुत प्राचीन तथा धर्मशाला है। मंदिरमें हरित वर्णकी प्रतिमा माणिक्य म्वामी ( आदिनाथ ) की सुन्दर विराजमान है। और भी बहुत प्रतिमा हैं। यहां बहुत प्रतिमा श्वेताम्बर भाईयोंने अपनी कग्लीं हैं । पहिले यहांपर लाल वर्ण रत्नकी प्रतिमा बहुत कीमती विराजमान थी, उमीका नाम माणिक्य स्वामी था। आज वह प्रतिमा लापता है । न मालूम वह कौन लेगया । उसीके बदले में स्फटिकमणिकी प्रतिमा विराजमान है । सुना जाता है कि कभी २ यहांपर केशर चंदनकी वृष्टि होती है ! यात्रा करके सिकन्दराबाद लौट आना चाहिये । सिकंदराबादके एक स्टेशन पहिले अलबत स्टेशन पड़ता है। वहांसे ३ मील माणिक्यस्वामी पड़ता है। चाहे जहांसे चल जाय । सिकं.
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तीर्थयात्रादर्शक जैन। [२०१ दराबादसे १ रेलवे वाडी होकर रायचूर जाती है । १ लाईन बेनवाड़ा जाकर मिलती है। फिर आगे मद्राप्त तक आती है । अब यहांसे टिकट ८) देकर हैद्राबाद उतर जाना चाहिये ।
(३४५) हैद्राबाद स्टेट । यह बादशाही शहर भी अवश्य देनने योग्य है । यहांका बाजार, बड़े२ मकानात, राना सा० का दरबार, पलटन, तोपखाना, अजायबघर, बाग आदि देखने योग्य हैं । म्टेशनसे १ मील शहर पड़ता है । -) सवारीमें तांगावाला लेनाता है। मीनार नामक स्थानके पाम दि. धर्मशाला है। वहांपर ठहर जाना चाहिये । शहरमें मीनाके काममे मुशोभित रमण क बड़े २ पांच मंदिर और दि.० भाईयों के बहुत घर हैं। सब मंदिरों में प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं । दर्शन करके बहुन आनन्द प्राप्त होता है। यहांसे लौटकर वापिम मिकन्दाबाद होता हुआ घर जाना हो तो चला जाय । नहीं तो फिर लौटकर मनमाड़ मानाय । टिकट अंदाजा ७) लगता है।
(३४६ ) मनमाड जंकशन । यहांसे रेलवे बंबई नरफ नानी है। एक भुपावल, खंडवा आदि जाती है। मोटर मांगीतुंगी तरफ जाती है । हाल उ.पर देखो । अब यहांसे टिकट ।) देकर नांदगांवका लेलेना चाहिये ।
(३४७) नांदगांव । स्टेशनमे पाव मील ग्राम है। २५ घा जैनियोंके हैं। १ बहुत भारी मंदिर, बहुत ऊँची कुडची देखने योग्य है । मंदिरके बाहर २ हाथी पत्थरके हैं। मंदिर रंगदार बदिया है । भीतर चार
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२०१] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मंदिर और बहुत प्रतिमा हैं। ऊपर जाकर शिखर आदि देखना' चाहिये। मंदिरके पीछे कोट, बगीचा, कुआ, नदी है । यहांसे टिकट खंडवाका लेलेना चाहिये । बीचके शहर चालीसगांवसे लेकर नागपुर तक ऊपर लिख दिये हैं। गाड़ी भुसावल बदलकर खंडवा उतर जाना चाहिये।
(३४८) खंडवा शहर । स्टेशनके पास शहर है । दि. जैन धर्मशाला, पाठशाला, कन्याशाला, औषधालय और १ बड़ा भारी मंदिर है। ६० घर जैन भाईयोंके हैं। मंदिरमें प्राचीन प्रतिमा बड़ीर हैं। शहर व्यापारको अच्छा है। बाजार देखने योग्य है । यहांका दर्शन करके स्टेशन लौट भाना चाहिये। यहांसे १ रेलवे भोपाल बदलकर मक्सी, उजैन जाती है। १ भोपालसे आगे बीना, आगरा, मथुरा देहली तक जाती है । १ बंबई तरफ जाती है। एक रेलवे इन्दौर तरफ जाती है । इनका हाल ऊपर लिखा जाचुका है। टिकट १॥) देकर मोरटक्का (खेडीघाट ) का लेलेना चाहिये । बीचमें सनावद शहर पड़ता है। किसीको उतरना हो तो उतर पड़े । नहीं तो मोरटक्का उतरना चाहिये । सनावद शहर अच्छा है। २ धर्मशाला, ३ मंदिर व १०० जैनियोंके घर हैं।
(३४९) मोरटक्का । स्टेशनपर रायबहादुर सेठ ओंकारजी कस्तूरचंद्रनी इन्दौरवालोंकी धर्मशाला है। १ मंदिर, कुमा, बगीचा, रसोईघर, सबहैं। बाजार, नदी है। फिर यहांसे ॥) सवारीमें मोटर और ।) सवारीमें बैलगाड़ीसे ७ मील ओंकार जाना चाहिये।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२०३
(३५०) औंकारेश्वर । ग्राम अच्छा है । बीचमें नर्मदा नदी पड़ती है। इसलिये बहुत बाजार, धर्मशाला, महादेवजीका मंदिर इस तरफ हैं। नदीके उस पार जाना चाहिये । उसपर घाट, मंदिर, धर्मशाला, वानार मादि सब हैं। यहांपर औंकार महारानका मंदिर और मूर्ति है। यह यात्रा भी अन्य मतियोंकी उत्कृष्ट है । यहांपर पहाड़ोंमें साधु रहते हैं । इनारों यात्री आने जाते रहते हैं। हर समय यहांपर भीड़ रहा करती है । कोई कालमें यह मंदिर भी नैनियों का था। हालमें ओंकार महाराजका है । इस मंदिरको देखता हुआ आगे १ मील नदी किनारे२ पूछकर दूसरी नदीतक पैदल चले जाना चाहिये । फिर नावसे नदी उतरकर १ मील दूर सिद्धवरकूट जाना चाहिये।
(३५१) श्री सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र । यहां ३ दरवाजा हैं, आप मीलके चक्रमे कोट खिचा हुमा है, भीतर बहुत धर्मशाला हैं। नौकर मुनीम रहता है । यहां कोठीकी तरफसे वस्त्र, वर्तन, लकड़ी, पानी सब मिलता है । सामानकी दुकान व रसोईघर है । एक तरफ नदी है। एक तरफ जानेका रास्ता है । दोनों तरफ जंगल है। कोटके भीतर ७ मंदिर हैं। जिसमें एक मन्दिर बड़ा है, उसमें दो वेदी हैं । यही मूलनायक मन्दिर है और बहुतसी प्रतिमा हैं। एक छोटे मन्दिर प्राचीन कालकी २ प्रतिमा महावीरस्वामीकी हैं। दूसरे २ मन्दिरमें प्रतिमा मुन्दर हैं। यहांसे थोड़ी दूर जंगलमें नदीके किनारे पहिलेका टूटा हुमा मन्दिर और खण्डित प्रतिमा हैं। मालीको साथ लेकर
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२०४ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
ariपर अवश्य जाना चाहिये । सो ही निर्वाणकांड में कहा हैरेवा नदी सिद्धवरकूट, पश्चिम दिशा देह जहां छूट । द्वै चक्री दश काम कुमार, ऊठ कोड़ बंदौं भवतार || २ चक्रवर्ती, १० कामदेव, साढ़े तीन करोड़ मुनि मोक्षको पधारे हैं | यहांकी यात्रा करें । लौटकर मोरटक्का स्टेशन आना चाहिये | फिर टिकट ११) देकर मऊकी छावणीका लेवे । बीचमें I बड़वाहा पड़ता है | वहां पर भी उतर पड़ना चाहिये | यहांसे भी मोटर, बैलगाडीसे बड़वानी जाते हैं।
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( ३५२ ) बड़वाहा |
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यह शहर अच्छा है, १ मन्दिर और बहुत घर जैनियोंके हैं । यहां दानशीला वेशरबाई नामकी धर्मात्मा बाई रहती हैं। यहांसे मोटर आदि द्वारा ४० मील बड़वानी जाना चाहिये । बीच में महेश्वर सुन्दर रोल आदि ग्राम पड़ते हैं। सबमें दि० जैनियोंकी बस्ती है । मन्दिर भी हैं, महेश्वर शहर अच्छा है, ६० घर जैनियोंके हैं। ( ३५३ ) महेश्वर |
यहां पर बड़ा भारी मन्दिर है । उपमें प्राचीन प्रतिमा बहुत हैं । १ सहस्रकूट चैत्यालय है । मन्दिर भी मजबूत और कीमती है । यह भी एक अपूर्व रचनाका तीर्थ स्थान है । यहां पर नर्मदा नदी बहती है | यहां पर महादेवका मन्दिर व नर्मदाका घाट बंधा हुआ है । बहुत लोग यहांपर पिण्ड दान करनेवाले अन्यमती लोग खाते हैं । नदीपर पुराना किला देखने काबिल है | शहरमें और १ मंदिर व २ चैत्यालय हैं। यहांसे बड़वानी जाते हैं । लौटकर बड़वाह आना चाहिये । जहांतक हो भाइयों को यह दर्शन अवश्य
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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [२०५ करना चाहिये। फिर बड़वाहासे मऊकी छावनी जाना चाहिये ।
(३२४) मऊकी छावनी। स्टेशनसे १ मील शहरमें दि. जैन धर्मशाला है। वहांपर ठहरना चाहिये । तांगावाला ) सवारी लेता है। फिर धर्मशालाके सामने ही ३ मंदिर हैं । बहुत कीमतो, रगदार हैं। प्रतिमा मनोज्ञ हैं, १ चैत्यालय थोड़ी दूर बंबई बाजार में हैं, यहांपर पं० फतेहलालजी वैद्यगन रहने हैं | आप बड़े मजन और प्रेमी पुरुप हैं, आनन्दमे दर्शन करें। फिर यहांसे १) सवारी देकर मोटरसे धार शहर जाना चाहिये । मउ.में इन्दौरके राना व अंग्रेनी दोनों राज्य हैं । दोनोंकी यहांपर फौन-पलटन रहती हैं। यहांपर ६० घर ननियोंके हैं। धार यहांसे २५ मील पश्रिमकी तरफ पड़ता है।
(३५८ ) धार शहर । इमका हाल वचनागोचर है । जन अननों का यह पुराण तथा त्रिलोकप्रसिद्ध तीर्थ है । उज्जैनी घारमें कुछ कालतक राज्य रहता था। इसका नाम जयंतीनगर भी बोलने हैं। बड़े२ कोटीवन सेट व जौहरी रहते थे। हीरा आदि नवाहरातका काम यहांपर होता था। न्यायपरायण भोन, मुंन, शक्रादि राना यहांपर हो गये । बड़े२ पंडित माशाघर, मेधावी, मानतुग मादि यहीपर हुए थे। ___ यहांके राज्यमें बड़े२ आचार्योंने ग्रन्थ बनाये थे। आदि. नाथस्वामीको छोड़कर शेष तेवीस तीर्थकरों के यहांपर समवशरण माये थे । हालमें भी राना सा का राज्य है । स्थान बड़ा रमणीक है। बाग, बगीचा, वालान, कुण्ड, बाजार भाविसे युक्त है। १
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२०६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । दि० धर्मशाला, ४० घर व १ मन्दिर है । मन्दिरमें ४ वेदी व प्रतिमा रमणीक हैं । यहांके दर्शनसे पाप कट जाता है । यहांकी यात्रा करके मऊ लौट भावे । अगर यहांसे मोटरका सुभता पड़ जाय तो कुकशी होकर सुमारी जावे। कुकशीसे तालनपुरकी यात्रा करके फिर कुकशी आजाय । फिर कुकशीसे बड़बानी चला जाय, अपने सुभीतेसे काम करना चाहिये । धारसे कुकशीकी मोटरका ४) सवारी लगता है। यहांमे १ राम्ता राजघाट (नर्मदाका घाट) ऊपर जाकर मिलता है, फिर १ धर्मपुरी-बड़वानी जाता है ।
(३५६) कुकशी। धार स्टेटके राज्यमें यह अच्छा शहर है । व्यापार अच्छा होता है। यहां ३ घर दि. जैन व १ मन्दिर है । २०० घर श्वेतांबरी व ७ मन्दिर हैं। यहां सेठ रोडमल मेघराननी सुसारीवालोंकी दुकान है। उनसे मिलनेपर वे अच्छी खातिर करते हैं। आप सजन धर्मात्मा एवं दानी हैं। यहांसे ३ मील दूर पश्चिमकी तरफ तालनपुर क्षेत्र हैं। पक्की सड़क लगी है। बहुत लोग रास्ते में आते जाते रहते हैं । यहींपर पुनारी रहता है। हमेशा पूनाको वहांपर जाता है, उसके साथ त लनपुर जाना चाहिये ।
(३५७ ) तालनपुर अतिशयक्षेत्र ।। यहांपर १ धर्मशाला कुआ व जंगल है । एक श्वेतांबर मंदिर है। जिसमें बहुत प्रतिमा हैं उनमें कुछ प्रतिमा दि० हैं। १ मंदिर दिगम्बरी है, जिसमें ७ प्रतिमा प्राचीनकालकी दृमरे रंगढंगकी हैं। उनमें से १ प्रतिमा मल्लिनाथ स्वामीकी बड़ी मनोहर नख केश सहित ऐसी आंगोपांग हैं कि हम लिख नहीं सकते हैं।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२०७ हमने दर्शन किये पर, ऐमी प्रतिमा कहींपर देखनेमें नहीं माई । ___यहांका विशेष हाल-यहांपर १ शहर था, वहांके मंदिरनीमें ये प्रतिमा विराजमान थी । इनका सैकड़ों वर्षोनक पूजन, प्रक्षाल होता रहा था। फिर कोई राजाने शहरपर धावा किया । शहरको टूटकर जला दिया । उस समय लोगोंने जमीनमें गढ़ा खोदकर इन प्रतिमाओंको जमीनमें गाट दिया । न जाने कितने वर्षोंतक जमीनमें रही होंगी । एक किमान वेतमें हल चला रहा था। हलके धक्केसे वे मृर्तियां निकलने लगीं। यह देखकर वह किमान जमीन ग्बोदने लगा। खोदनेमे ये ३२ प्रतिमाएं निकलीं । सब ही अखंडित और दिगम्बर थीं। किपानने टमकी खबर कुकशीमें जाकर कर दी। फिर वहांमे श्वेतांबर, दिगम्बर दोनों तरफके लोग आये । दर्शन करके परम आनंद पाया। दोनों तरफके भाइयोंने आपममें जगड़ा किया । उनमेंमे ७ दि० भाइयों ने व बाकी श्वे० ने ले ली। दोनों ने अपना२ मंदिर बनवाकर उन मूर्तियों को विराजमान कर दी । यद बट्टा अतिशय है कि ये प्राचीनकाल की प्रतिमा होनेपर मी का एक अंग अथवा उपांग, नख, केश नी ग्बगब नहीं हुआ ये बड़ी शांत मुद्रा, जनाचायोकी प्रति टन प्रतिमा हैं । उनका दर्शन पूजन करके कुशी लौट आवे । नालनपुग्मे मुमारी मल पड़ता है।
(१५८) मुमार्ग। यहांपर एक मन्दिर है, ५ घर दि. जैनियों के है। सेठ रोडमल मेवगन यहींके रहनेवाले हैं, यहांसे बड़वानी १४ मील है, बीचमें चोकलदागांव आता है। यहां पर भी १ मन्दिर और ८
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२०८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । घर जैनियोंके हैं। वहींसे नदीपार होकर बड़वानी जाते हैं । कोई भाई घारसे महुआ, राजघाट, धर्मपुरी होकर बड़वानी आवे उनका हाल इसप्रकार है । मऊसे लारी मोटरमें आनेवालोंको ३) सवारी, छोटी मोटरमें ५) सवारी लगता है । बड़वानी ९० मील पड़ता है । बीचमें मनावर, गुजारी, अंजड़ पड़ता है, सबमें दि० नैन मंदिर और नैनियोंके घर हैं। राजघाट नर्मदा नदीका पुल है। वहांसे दूसरी सड़क फूटकर ७ मील धर्मपुरी शहरमें जाती है। राजघाटपर एक रास्ता धार और एक मउसे आकर मिलता है। यहांसे एक राम्ता धर्मपुरी, वांकानेर, एक राम्ता अंजडगांव होकर बड़वानी जाकर मिलता है। धर्मपुर से एक रास्ता वांकानेर, मना. दर होकर बड़वानी जावर मिलता है, सबसे अच्छा बेलगाड़ीका रास्ता है, कहींपर पक्की सड़क आजाती है । धर्मपुरी-यह भी धार राज्यमें अच्छा शहर है । यहांपर १ मंदिर व बहुत घर जैनियोंके हैं। किसीको देखना हो तो मांदु पहाड़की शेर करके फिर धर्मपुरी होकर राजघाट आजावे । फिर बड़वानी आना चाहिये ।
(३५९) मांडु पहाड़।। धर्मपुरीसे बैलगाड़ी करके यहांपर आना होता है । हिंदुस्थानमें लोग बंबई कलकत्ताकी शेर करके आश्चर्य करते हैं परंतु पहिले समयमें मांडु शहर सरीखा दुसरा शहर नहीं था । धर्मपुरीसे उत्तरकी तरफ, घारके दक्षिणकी तरफ यह एक बादशाही राज्य है । पहाड़पर चारों तरफ १२ मीलके चक्र कोटसे घिरा हुआ १८ दरवाजेके माने जाने हैं। उसके बीचमें ३ मंजकका शहर है। ऐसा शहर तो हमने नहीं देखा है। पहिले नीचे सह
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रमें सड़क, तालाब, कुआ, बगीचा इत्यादि हैं। फिर पुल बांधकर ऊपर मकान, तालावादि हैं। फिर ऊपर पुल बांधकर शहर है। उसके ऊपर दो दो तीनर मंजलके मकान हैं। और करोड़ों की लागतकी मसजिद आदि हैं । गधासा भैंसासा सेठ की हवेली, बादशाही दरबार देखनेयोग्य है । एक जगह मांडु महादेवका स्थान है। पहाड़से बहुत नीचे उतरनेके बाद बड़े२ ऊँचे दरवाजे हैं, नीचे कुंड है, पहाड़से पानी गिरता है। ऊपर उर्दू, फारसीका लेख, नीचे पाताल जैसे गढ़ा इत्यादि रचना देखने योग्य है । १ जैन धर्मशाला, १ मंदिर में प्राचीन प्रतिमा हैं । पहाड़ के रास्तेमें जैन शिलालेख एक बगलके खंडहर में हैं, भीतर प्रतिमा नहीं है।पर मंदिर अपूर्व है । लौटकर धर्मपुरी आवे। फिर राजघाट माजावे । राजघाट बड़वानी चला जाना चाहिये। बड़वानी आनेके बार रास्ता हैं - १ धुलिया खानदेशसे, २ बडवाहा महेश्वर होकर, १ मऊ की छावनी से सीधा, ४ घार, कुकशी, चीकखदा होकर |
सब हाल उपर किखा जाचुका है। यह शहर राभा सा का सुन्दर रमणीक है, माक व्यापार सब तरहका होता है। वस्तु फळ, फूल आदि सब सामान महपिर ताजा पैदा होता है। हर समय हर तरहके पदार्थ मिलते हैं। परश्मे पानीका कुमा है । १ दि० जैन धर्मशाला व बोडिंग शहरमें है । सो पूछकर महार ठहरना चाहिये। फिर शहरमे १ मंदिर व सरस्वती भवन है। सेठ भीकाजी चांदुलाजी आदि २० पर दिοमेनियोंके हैं परधर्मशाला पास एक महामगे १ प्राचीन दि० केक मेदिर व १ प्रतिमा भी है। उसका बड़ा
दोर
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२१.] जैन तीर्थयात्रादर्शक.। है। पूछ करके दर्शन करना चाहिये । फिर यहांसे सब मामान लेकर बैलगाड़ी या मोटर में पांच मील बावनगजानी (चूलगिरि) जाना चाहिये । बीचमें पहाड़ो रास्ता ठीक है, कुछ डर नहीं है। सैकड़ों आदमी आते जाते रहते हैं। पर रास्ता भूलना नहीं चाहिये। यहां १ रास्ता पहाड़ी सीघा ३ मीलका भी है।। (३६०) श्री बावनगजाजी (चूलगिरि सिद्धक्षेत्र)
पहाड़की तलेटीमें २ धर्मशाला, १ कुआ, ४ कुंड और कुल १६ मंदिर तथा बहुत प्रतिमा हैं। आगे १ मील मागे रास्तेमें जानेपर १ मंदिरको आदि लेकर २ मंदिर हैं जहां पहाड़में खुदी हुई बहुतसी प्रतिमा हैं । श्री बावनगजा (नादिनाथ ) स्वामीकी खड़ासन प्रतिमा ५२ गन ऊंची है । वहां ही एक ९ गन ऊँची श्रीनेमिनाथकी प्रतिमा है। यह प्रतिमा मंदिर बनते समय नमीनसे निकली थी। फिर पहाइपर जाना चाहिये । १ मोलका चढ़ाव है, १ मंदिर है। चूलेश्वर गिरिपर कोट व दरवाना है। भीतर १ मंदिर और बहुत प्राचीन खंडित प्रतिमा हैं। आगे बड़ा मंदिर है, उनकी परिक्रमाके बालों में बहुत प्रतिमा है । मंदिरके पीछे गणपरदेवकी मूर्ति है। मंदिरमें बहुत प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं। भीतर इन्द्रनीत व कुम्भकर्णकी चरणपादुका मनोहर हैं। इस पहाइसे रावणका भाई कुंभकर्ण और पुत्र इन्द्रनीतादि मुनि मोक्ष पपरे हैं। पहाड़से रेवा नदी सामने दीखती है।
(३६१) रेवा नदी। . इसको अन्यमती पवित्र मानते हैं, पूनते व परिक्रमा देते
मेनायमसे यह नर्मदा नदी अपने भावों द्वारा ही मान्य हैं।
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जैन तीर्थयात्रादर्शक |
[ २११ इसके तीरपर अनंतानंत सिद्ध हुए हैं। इसलिये यह क्षेत्र स्वयं पूज्यनीक है । सब यात्रा करके नीचे आजाना चाहिये | यहांपर भंडार भराकर बड़वानी लौट आवें । यहांसे तालनपुर अतिशय 1 क्षेत्र भी जा सकते हैं। हाल ऊपर देखो ! नहीं तो लौटकर मऊ होकर इन्दौर चला जाये ।
( ३६२ ) इन्दौर शहर |
यह शहर मानकल अच्छा है । श्री० रायबहादुर सरसेठ हुकुमचंद्रजी आदि बड़े २ सेठ साहूकार रहते हैं । होल्कर राजाका राज्य है । व्यापार बहुत है, स्टेशनके पास सेठनीकी जंबरीबागमें धर्मशाला है वहां पर सब जाराम है, यहीं पर ठहरना चाहिये। महांपर सेठ सा० की तरफसे सब सामान मिलता है। किसी यात्रीको किसी प्रकारकी तकलीफ नहीं होती है। यहांपर लाखों रुपबाकी कीमतके जड़ाव काम सहित १९ मंदिर हैं। किसी मादमीको साथ लेकर सबका दर्शन करें। २ छावणी, १ नसिया, २ तुकोगंज,
१ दीवारा, ३ मंदिर मारवाड़ी (शक्कर) बाजार में हैं । तुकोगंजमे उदासीन आश्रम है। उसमें २५ त्यागी रहते हैं। रास्ते में अच्छे मकान वगैरह मिलते हैं सो भी देखना चाहिये । दीतबारामे बड़ा मंदिर है । २-३ मंजिलोंमें दर्शन है। बड़ी२ विशाल प्रतिमा हैं। एक मंदिर में नंदीश्वर द्वीपकी रचना घातुमयी है । पहिले यहांपर २४ प्रतिमा चौबीसों महाराजकी स्फटिकमणिकी थी। नक भी ३ प्रतिमा उस मंदिर में मौजूद है । १ मंदिर श्रीका है। १ मंदिर मल्हारगंज में है। महपिर धर्मशाला, कुला भी है। यहाँ श्याम वर्ण बहुत विशाल प्रतिमा नेमिनाथकी है। बहर
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२१२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । और भी प्रतिमा हैं। एक मंदिर रनवाड़ाके पीछे नरसिंहपुरा मैनोंका है । दर्शन करके शहर देख लेवे ।
जंवरीबागमें स्व. हु. दि. जैन महाविद्यालय है। जिसमें न्यायतीर्थ और शास्त्री कक्षातककी पूर्ण पढ़ाई होती है। एक विशाल बोर्डिंगहाउस भी है जिसमें करीब १०० विद्यार्थी रहते हैं । दीतवारामें कंचनबाई श्राविकाश्रम है । जैन औषधालय, भोजनशाला, कंचनवाई प्रसुतिगृह और तिलोकचंद जैन हाईस्कूल, कल्याण बोर्डिंग हाउस आदि अनेक जैन संस्थायें दर्शनीय हैं। सब देखना चाहिये। बाजार बहुत बड़ा है। कुछ खरीदना हो सो खरीद लेवे। फिर यहांसे मोटरका १॥ देकर श्री बैनडाजी जावे । बीचमें जमकुपुरा पड़ता है । यहां भी १ मंदिर है। जिसमें प्राचीन प्रतिमा दर्शनीय हैं। यहां २० घर जैनियोंके हैं। २ मील दूरीपर बैनडानी का मंदिर है। बीचमें १ बड़ा भारी तालाव है । तालावके पामसे रास्ता है। मागे तालावके किनारे ही मंदिर दीखता है।
(१६३ ) श्री वैनडाजी अतिशय क्षेत्र । यहांपर बड़ा भारी गढ़ खिंचा हुआ है । बीचमें धर्मशाला, कुमा है । मुनीम रहता है। भंडार भी है। छोटासा ग्राम पासमें है। माम, १ चैत्यालय है । ४ घर भैनियोंके हैं । गढ़के भीतर ही बड़ा भारी विशाल गुम्मटवाला बादशाही समयका मंदिर है। भीतर ३ जगह बहुत प्रतिमा है। बहुत यात्री आते-जाते रहते हैं। लौटकर वापिस इन्दौर आवे। इन्दौरसे १ गाड़ी फतिहाबाद । R, रतलाम, नीमच, मावरा, मंदसौर, चितौड़गढ़ । १ बड़ोदरा, १
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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२१३ नागदा, मथुरा ! १ उदयपुर आदि। आगे भीलोड़ा, नसीराबाद होकर अजमेर जाती है। इसका हाल लिखा गया है वहांसे जानना ।
(३६४) हरद्वार-हिन्द तीर्थ । देहलीसे १॥) देकर सहारनपुर जावे। सहारनपुरसे टिकटका ॥2) देकर लकसर जावे | लकसरसे गाड़ो बदलकर हरहार जावे। टिकट ।-) लगता है । दूसरा रास्ता--कानपुरसे HI) टिकटका देकर लखनऊ जावे । या काशीसे टिकटका ३॥) देकर लग्वनऊ जावे । फिर लखनऊसे सहारनपुर लाईनमें टिकटका ५॥) देकर लकसरका लेवे। यहां गाड़ी बदलकर हरद्वार शहर स्टेशनसे १ मील दूर है। -) मवारीमें तांगावाला लेनाता है। अन्य मतवालों को धर्मशाला बहुत हैं । यह हिन्दुओं हा अच्छा तीर्थ है । शहर बदिया है। माल सब मिलता है । देहली, लाहौर, सहारनपुर की तरफसे यात्री बराबर आने जाते रहते हैं। हर समय मेलासा भग रहता है। रेलमें भी बड़ो भीड़ रहती है। स्टेशनपर जगह नहीं मिलती है। आगेका स्टेशन हृषीकेश है । टिकट -) है।
(३४५) हषीकेश। यह भी हिन्दुओं का भारी तीर्थ है। यहांसे मागे देहरादून जाकर मिल जावे । या वापिस हरिद्वार आजावे । हरिद्वारसे आगे सत्यनारायण तीर्थ है ।
(३६६) सत्यनारायण । यह भी हिन्दुओं का तीर्थ है । यहांसे फिर आगे पांव रास्ता है। कुल १८. मीक पहाड़के भीतर होकर बद्रीनाथ जाते हैं।
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२१४ ]
जैन तीर्थयात्रादर्शक |
पहाड़ी रास्ता हर तरहका है। बीचमें बहुत धर्मशाला, ग्राम सदावर्त हैं। बीचमे ३ जगह त्रिवेणी नदियां पड़ती हैं । उसको भी प्रयाग बोलते हैं। फिर कुछ दूर पहाड़में सीकर हीडोल चढ़कर जाना चाहिये।
( १६७ ) बद्रीनाथ ।
पहाड़के बीच में बड़ा ग्राम है । पंडा लोग रहते हैं । १ मंदिर है । द्वारकाधीशकी मूर्ति है । और भी हिन्दु मूर्तियां बहुत हैं। यहांपर भी छाप लगाते हैं। पंडा बहुत रहते हैं। विशेष हा खुद मालूम करो । लौटकर अपनी इच्छानुसार जहां चाहे जासकते I है। रास्ता हर जगह पूछते रहना चाहिये ।
समाप्त |
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तीर्थोके रंगीन चित्र व नकशे । सम्मेदशिसरजी ॥) चम्पापुरीजी) पावापुरीजी ।) गिरनारजी ।) मा० शांतिसागरजी 1) पटलेश्या स्वरूप :) संसार वृक्ष ) सीताजीकी अग्निपरीक्षा H) माताके १६ स्वम ।) चंद्रगुप्तके १६ स्वम ॥) आझरदान ।) जन्मकल्याणक ।)
समोशरणकी रचना-तीर्थकर भगवान के समोशरणकी पूर्ण रचनाएँ निस, १२ सभाएं अलगर, खातिका, वनपंक्ति, मंदिरपंक्ति, मानम्तंभ, गंधकुटि, सिंहासन, मिनेन्द्र प्रतिमा, तीन छत्र, भामंडल आदि सभी दृश्य दिखाया है । मूल्य-आठ आने ।
गोम्मटस्वामी-इन्द्रगिरि पर्वत व श्रवणबेलगोला ग्रामके दृश्य सहित विशालकाय श्री बाहुबलम्वामीका चित्र । मू० ॥)
चौवीस नीर्थकर चित्रावलि-अलगर चौवीस चित्र ३) जन चित्रावली-३९ रंगीन चित्रों का अपूर्व मंग्रह ४) भगवान पार्श्वनाथ-अतीव आकर्षक-दो आने ।
.. एकर आनेवाल मादे चित्र । सम्मेदशिखरजी, चम्पापुरी, पायापुरी, मन्तरीक्षजी. मुकागिरि, गिरनार, सोनागिरि, पपौरा,
पावागढ़, मांगीतुंगो, गजपंथा, स्तनिधि, केशरियानी मंगरगिरि, गिरि, चन्द्रगिरि . . . कुंथनिदि बा. शांतिसागरजी,
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(२१६) घ. प्रेमसागरजी, मुनिसंघ, प्र. शीतलप्रसादजर्जा, व त्रय-पं० गणेशप्रसादजी, पं०दीपचन्दजीव बाबा भागीरथजी,
मुनि मुनींद्रसागरजी, गोमटस्वामी, प्राचीन प्रतिमाएं, ऐ०पन्नालालजी, सिंहपुरी, चन्द्रपुर, त्यागी सम्मेलन, सोलह खम, मुनि चन्द्रसागरजी, मुनि अनन्तसागरजी, नेमगिरि आदिर।
यात्राके लिए अवश्य मगाइए
शुद्ध स्वदेशी व पवित्र
काश्मीरी केशर मूल्य 21) फी तोला व बाजारभावसे कम ज्यादा भाव।
सुगंधितदशांगधूप
२॥) फी रतल। अगरकी अमरबत्ती
२१) फी रतल। सब प्रकार के जैनग्रन्थ भी मिलते हैं। मिलनेका पतामेनेजर, दिगंबर जैन पुस्तकालय,
चंदावादी, कला
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भारतीय ज्ञानपीठ ग्रन्थागार काशी पक मन्ताहित तिपिको पुलकापसे की गई थी।
१५ दिनके मन्दर वापस माजागी शाहिये।
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________________ पुल सावधानी , गौर भारतीय ज्ञानपी प्रथागार, काशी। - निर्दिश दिन (१५मीवर पसार