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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६१ है । फिर आगे मीदिया हैं । उपर १ भारी गढ़ है । निसमें होकर उपर जानेको दरवाना है । गढ़के भीतरकी दीवालों पर प्रतिमा है । एक नेमिनाथका मंदिर है । मदिरके उपर प्रतिमा है। सामने मानम्नंभ है । उपर-नीचे जिन शामन देवी-देवता हैं । बाहर प्रतिमा हैं । पहार पर बडे२ गिल,लेग्ब हैं। दर्वाजेपर बड़े२ गढ़ हैं। चारों तरफ परिक्रमामें बहुत प्रतिमा है । २ मंदिर हैं । श्री गोम्मट ( बाहुबाल) म्वामीकी बत्रीम गन उची ग्वड़गासन प्रतिमा है । बड़ी शांत मुद्रा मंयुक्त, देखते ही आनंद होता है। सब दर्शन करके नीचे आवे । फिर दुमरे पहाइपर वंदनाको जाना चाहिये | चंद्रगिरि पहाड़ बिलकुल मरल है। ऊपर २ तालाव हैं। चारों तरफ कोटमे घिरा हुआ है। एक दरवाना जानेका है। भीतर १ मानम्तंभ है। ऊपर निन शामन देवता है। आगे छोटे बड़े कुल १८ मंदिर हैं। उनमें महामनोज्ञ पद्मासन, खड़गासन प्रतिमा विराजमान हैं। बीचमें १ प्रतिमा खडित खड़ी है। यहांपर ४ छत्रियां हैं । जिसमें श्री प्रतिमा सहित बड़े १ शिलालेख हैं। मंदिरके शिम्बर, दीवाल, ऊपर दालानमें भी प्रतिमा हैं। उनमें बड़ीर कीमती शासन देवताओंकी प्रतिमा है । सबका दर्शन-पूमन करें। वहांपर बाहरके कोटकी पूर्वकी तरफ एक गुफा है। वहांपर भद्रबाहुस्वामीका तपस्थान है। राजा चंद्रगुप्तको पाचार्य पद देकर माप स्वर्गधाम पधार गये थे। जिस समय १२ वर्षका भकाल पड़ा था, उस समय १२ हमार मुनि इनके साथ थे। मापने निमित्त ज्ञानसे मकाल मानकर मुनियों को दक्षिणकी तरफ मेना था। मापने अपनी आयु बोड़ी जानकर मानेवाले
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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