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१६२] जैन तीर्थयात्रादर्शक । मुनियोंको शिक्षा देकर वहींपर ठहर प्राणान्त किया था। वहींपर इनकी समाधि बनी है । कईने भ्रष्टाचारी होकर श्वेताम्बर मत चलाया था। पूर्ण कथा भद्रबाहु चरित्रसे जानो। इनका दर्शन-पूजन करके कोटके भीतर होकर उत्तर दिशाके छोटे द्वारसे बाहर जावे । बाहर १ मंदिर, १ तालाव है। फिर पहाड़से नीचे उतरकर ग्राममें भावे ।
(२७२) श्रवणबेलगोला ग्राम । इसी का प्राचीन नाम श्रवणबेलगोला है। यहांपर १ बड़ा भारी कीमती पत्थर म्तंभ, कोट, मंदिरके ऊपर खुदाईके काम सहित टूटा मंदिर है । उसमें बड़ी भारी विशाल प्रतिमा है। दर्शन करके लौटकर ग्रामके बाहर आवे । १ तालाव पर विशाल मंदिर और बहुत प्रतिमा है । उनमें एक श्वेत वर्णकी पार्श्वनाथकी प्रतिमा मनोज्ञ हैं। दर्शन करके चला आवे । भागे फिर एक तालाव बीचमें पड़ता है । १ मील आनेपर कोटसे घिरे हुए २ मंदिर व बहुत प्रतिमा हैं । शिखरमें यक्ष यक्षणी की तथा और भी बहुत प्रतिमा हैं। यह मंदिर कोमती है । फिर भी बीचमें ४ मंदर और १ घरमें चैत्यालय है, उनका दर्शन करके धर्मशालामें आनाय । फिर वहांसे चलकर मंद गिरि स्टेशन आवे । म्हैसूर तरफ आगे जानेवाले आगे चले जायं । हाल ऊपर देखो। और नीचे जानेवाले १) देकर टिकट हासनका लेवे । वहांका भी दर्शन करके १ टायमके वास्ते आरसीकेरी चला जाय । जैनबद्रीमें नेमचंद्रादि आचार्यों का समूह विराजमान रहा था। उन्हींके उपदेशसे मूर्तियोंका निर्माण हुआ है।