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१६०] जैन तीर्थयात्रादर्शक ।
( २७० ) जैनबद्री तीर्थराज (श्रवणबेलगोला)
मंदगिरि स्टेशनपर सेठ गुरुमुखराय सुखानन्दजी बम्बईकी धर्मशाला है, ऊपर छतपरसे देखनेसे गोम्मटम्वामीका दर्शन होता है। यहांपर एक नदी है, उतरकर उस पार जाना चाहिये । वहांसे बैलगाड़ी या मोटरमें १२ मील गोम्मटस्वामी जाना चाहिये ।
(२७१) गोम्मटस्वामी। यह ग्राम अच्छा रमणीक है। २ धर्मशाला हैं । तालाव, जङ्गल, पहाड़ आदि शोभायमान हैं। नीचे गांवमें घर२ में १४ चैत्यालय, ७ मन्दिर हैं । प्रतिमा बड़ी रंग-बिरंगी हैं, एक मंदिर बड़ा भाडी मानस्थंभ युक्त चौवीस महारानका है। उसमें ठहरनेकी जगह भी खूब है । इसीके पास श्री चारुकीर्ति महाराज भट्टारकका मंदिर व मठ है। मंदिरमें धातु-पाषाणकी प्राचीन प्रतिमाएँ हैं । भट्टारकजीके भंडारमें ताड़ पत्रपर लिग्वे हुए. शास्त्र व मूंगा मोती, लीलम, स्फटिकमणिकी छोटी-बड़ी १४ प्रतिमा हैं । महाराजसे कहकर दर्शन करना चाहिये । नीचेके सब मंदिरोंका दर्शन करके फिर पहाड़पर जाना चाहिये। विंध्याचल पहाड़की तलेटीमें दरवामा,
और एक मंदिर है । मंदिरमें रंग२ की प्रतिमा हैं । यहीसे पहाड़ पर जाना होता है । आध मीलकी चढ़ाई है । सीढ़िया लगी हैं। बीचमें एक दरवाजा और तोरण है । आगे फिर पहाड़के चारों तरफ कोटसे घिरा हुमा एक दरवाजा है। भीतर तीन मंदिर, १ मानस्तंभ व तालाव हैं । फिर सीढ़िया लगी हैं। ऊपर १ गढ़ और दरवाना है । दरवाजेके दोनों तरफ देहरी और प्रतिमा है। सीदियों के बाद कोट, स्तंभ, हैं। स्तंभके दरवाजेके नीचे प्रतिमा