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जैन तीर्थयात्रादर्शक। [२०७ हमने दर्शन किये पर, ऐमी प्रतिमा कहींपर देखनेमें नहीं माई । ___यहांका विशेष हाल-यहांपर १ शहर था, वहांके मंदिरनीमें ये प्रतिमा विराजमान थी । इनका सैकड़ों वर्षोनक पूजन, प्रक्षाल होता रहा था। फिर कोई राजाने शहरपर धावा किया । शहरको टूटकर जला दिया । उस समय लोगोंने जमीनमें गढ़ा खोदकर इन प्रतिमाओंको जमीनमें गाट दिया । न जाने कितने वर्षोंतक जमीनमें रही होंगी । एक किमान वेतमें हल चला रहा था। हलके धक्केसे वे मृर्तियां निकलने लगीं। यह देखकर वह किमान जमीन ग्बोदने लगा। खोदनेमे ये ३२ प्रतिमाएं निकलीं । सब ही अखंडित और दिगम्बर थीं। किपानने टमकी खबर कुकशीमें जाकर कर दी। फिर वहांमे श्वेतांबर, दिगम्बर दोनों तरफके लोग आये । दर्शन करके परम आनंद पाया। दोनों तरफके भाइयोंने आपममें जगड़ा किया । उनमेंमे ७ दि० भाइयों ने व बाकी श्वे० ने ले ली। दोनों ने अपना२ मंदिर बनवाकर उन मूर्तियों को विराजमान कर दी । यद बट्टा अतिशय है कि ये प्राचीनकाल की प्रतिमा होनेपर मी का एक अंग अथवा उपांग, नख, केश नी ग्बगब नहीं हुआ ये बड़ी शांत मुद्रा, जनाचायोकी प्रति टन प्रतिमा हैं । उनका दर्शन पूजन करके कुशी लौट आवे । नालनपुग्मे मुमारी मल पड़ता है।
(१५८) मुमार्ग। यहांपर एक मन्दिर है, ५ घर दि. जैनियों के है। सेठ रोडमल मेवगन यहींके रहनेवाले हैं, यहांसे बड़वानी १४ मील है, बीचमें चोकलदागांव आता है। यहां पर भी १ मन्दिर और ८