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जैन तीर्थयात्रादर्शक । [३७ हाथी, घोड़ा आदि सेठ नेनपाल वसंतपालका बनाया हुआ है। ऐसा लोग कहते हैं वे सेठ किसी नगरके निवासी हैं । राजाका उसपर खजाना होगया था, मो वह आकर इस जंगलमें ग्राम बसाकर रहने लगा । कुछ दिन बाद देवी प्रपन्न हुई बहुत द्रव्य हो गया । तभी यह मन्दिर बनवाया और अचलगढ़ की भारी प्रतिष्ठा कराई। फिर राना भी उमपर प्रसन्न होगया था। ये आबका मन्दिर देखनेयोग्य एक चीन है। इस मन्दिरमें मुलनायककी एक बड़ी भारी श्वेत प्रतिमा है और भी प्रतिमा बहुत हैं । मन्दिरके सामने एक मकान हाथी, घोड़ा, पापाणमई बड़े २ देग्वने काबिल हैं। हम मन्दिरको देखने के लिये दृर देगके बड़े लोग आते हैं। मन्दिरके देखनेमे मान्टम पड़ता है कि पृथ्वीपर ऐसे बड़े आदमी होगये जिनका अब निशान भी नहीं, अनेकों मन्दिर उसके नामको बता रहे हैं । आन उन मन्दिरोंकी कीमत न जाने कितनी होगी। इस मन्दिरको देग्व कर आश्चर्य होता है कि ये मन्दिर कितने वर्षों का बना होगा । यहांसे ४ मील पकी मडकपर अचलगढ़ ग्राम माना है।
(६५) अचलगढ़। यहां अचलगढ़के नीचे एक कोटके वीचमें महादेवजीका बहुत बड़ा मन्दिर है, बड़ा तालाव और श्वेतांबर एक मन्दिर है। जिसके चौतरफ कोट है। विशाल प्रतिमा भी हैं और बहुत खंडहर मकान है । यहांसे आगे एक दरवाना आता है, वहांसे अचलगढ़ तक पक्की पत्थरकी सड़क लगी है। माघ मीलके बाद अचलगढ़का मन्दिर माता है, बीचमें तालाव वावड़ी ग्राम पड़ता है।