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जैन वीर्यवानादर्शक। [१५ ११ मंदिर हैं। जिसमें एक मंदिर शांतिनावमीका बहुत लम्बा, चौडा विशाल है। इस मंदिरके आसपास वेदी बहुत हैं, प्रतिमाएं भी बहुत हैं, बीचमें मूलनायक श्री शांतिनावका मंदिर है। मंदिरनीके बीचमें बहुत ही प्राचीन अतिशयवान १५ हाथ ऊंची खड्गासन प्रतिमा विराजमान है। यहांपर एक बगलमें चैत्यालय है। एक तरफ क्षेत्रपाल पद्मावती हैं। मंदिर केशर फल बहुत चढ़ता है । वृतका दीपक जलता है । और भारती भी होती है। मंदिरके दोनों बगलमें २ हाथी बड़े हैं। एक नैन पाठशाला है। यहांके सब दर्शन करके तांगा भाड़ा करके यहांसे २० मील चांदखेड़ी जाना चाहिये । यहांसे जाते समय चांदखेरी पण्डिन का सरोला और सांगोद इन तीनों क्षेत्रोंका पुगर हाल पूछकर नाना चाहिये।
(२२) चांदखेड़ी अतिशय क्षेत्र । यह क्षेत्र परम पूज्य है । यहांगर एक प्राचीन कीमती मंदिर है। मंदिरमें दोनों बगल दो प्रतिमाएँ शांति कुथुनाथकी हैं। बोचमें ऋषभदेवकी है। उनकी ऊंचाई सात २ हाथ खड्गासन विराजमान हैं | और इनके मिवाय दो प्रतिमा चौवीस महारानकी, बड़ी२ पार्श्वनाथ म्वामी दो बहुत मनोहर हैं। कुल प्रतिमाओंकी संख्या ५७७ कहने है । यहांका मंदिर बहुत बड़ा है। यहांका दर्शन करनेसे अत्यंत आनंद होता है। यहांपर स्पष्ट अक्षरों में खुदा हुआ एक शिलालेख है। निसपर प्रतिमानी विसनमान है। यहांकी यात्रा करके झालरापाटन लौट भावे । बगर यहांसे और स्टेशन पास पड़ता हो तो वहां चला माना चाहिये।
चांदखेड़ीके बीच या नासपासने पूछन्त्र पण्डितनीत्र